नई दिल्ली: सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर 2022-23 तक, सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में से तीन ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए आवंटित “आधुनिकीकरण” निधि का एक पैसा भी खर्च नहीं किया था.
ये बल हैं राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी), भारत का प्रमुख आतंकवाद-रोधी बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), जो चीन के साथ सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), जो नेपाल और भूटान की सीमा पर तैनात है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) की 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, एनएसजी को वित्त वर्ष 2022-23 में आधुनिकीकरण के लिए 33.38 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि आईटीबीपी को 3 करोड़ रुपये मिले थे. इसी अवधि में एसएसबी को 20 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे.
विकास और प्रौद्योगिकी को बेहतर बनाने के लिए बाधा के रूप में “अपर्याप्त धन” का हवाला देने वाले सीएपीएफ ने वित्तीय वर्ष 2022-23 की तीन तिमाहियों में कुल मिलाकर अपने आधुनिकीकरण निधि का 10 प्रतिशत से कम खर्च किया था.
सीएपीएफ के लिए केंद्र सरकार की आधुनिकीकरण योजना-IV के तहत धन आवंटित किया गया था, जिसे 1 फरवरी 2022 को लॉन्च किया गया था और बलों द्वारा उपयोग किए जाने वाले हथियारों, वाहनों और उपकरणों के उन्नयन के लिए 1,523 करोड़ रुपये का परिव्यय था. पूरी राशि 31 मार्च 2026 तक खर्च करने का लक्ष्य रखा गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 के लिए आवंटन 248.30 करोड़ रुपये था, जिसमें से 31 दिसंबर 2022 तक केवल 17.45 करोड़ रुपये – या 7.03 प्रतिशत – खर्च किए गए थे.
कम फंड के उपयोग करने के बारे में पूछे जाने पर, एनएसजी – 1984 में बनाया गया और इसमें सीएपीएफ या स्टेट पुलिस फोर्स से भर्ती किया जाता है – के अधिकारियों ने कहा कि यह एक “जानबूझकर लिया गया फैसला” था, उन्होंने कहा कि बल का लक्ष्य प्रौद्योगिकी पर पैसा खर्च करना था.
इस संबंध में कई प्रश्नों की एक सूची आईटीबीपी के आधिकारिक प्रवक्ता को भी भेजी गई है, जिसकी स्थापना 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद की गई थी और यह अन्य भूमिकाओं के अलावा देश के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा की रक्षा करती है.
एसएसबी के प्रवक्ता की टिप्पणी का भी इंतजार है, जिसकी स्थापना 1963 में भारत-चीन संघर्ष के मद्देनजर की गई थी.
प्रतिक्रिया मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
सभी सात सीएपीएफ – एनएसजी, आईटीबीपी, एसएसबी, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ), असम राइफल्स और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) – की देखरेख एमएचए द्वारा की जाती है.
पूर्व सीएपीएफ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि खरीद प्रक्रिया अक्सर समय लेने वाली होती है. उन्होंने कहा, हालांकि कुछ बिंदु पर फंड का कम इस्तेमाल होता दिख सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि प्रक्रिया रुक गई है.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ऐसी उन्नत प्रौद्योगिकियां हैं जिन्हें हमें आधुनिकीकरण के लिए खरीदने की जरूरत है और…इस क्षेत्र में विकास होता रहता है.”
उन्होंने कहा, “इसलिए, बल ने नई तकनीक के लिए खरीद प्रक्रिया को रोक दिया है क्योंकि वे अपनी तकनीक को उस स्तर पर अपग्रेड करने से पहले कुछ और समय का इंतजार कर रहे हैं जो कुछ समय तक चल सके.”
उन्होंने कहा, “इसलिए, बल ने नई तकनीक के लिए खरीद प्रक्रिया को रोक दिया है क्योंकि वे अपनी तकनीक को उस स्तर पर अपग्रेड करने से पहले कुछ और समय का इंतजार कर रहे हैं जो कुछ समय तक चल सके.”
अधिकारी ने कहा कि एनएसजी के पास अपने ‘मशीन और उपकरण’ बजट के अन्तर्गत पर्याप्त धनराशि है, और कहा कि आधुनिकीकरण निधि “इसके अतिरिक्त” है.
अधिकारी ने यह भी कहा कि “कुछ 18 वस्तुओं की एक सूची” है जिसे एनएसजी आधुनिकीकरण योजना-IV में शामिल करना चाहता है, और बल उन्हें प्राप्त करने से पहले गृह मंत्रालय से मंजूरी का इंतजार कर रहा है.
अधिकारी ने कहा, बजटीय आवंटन उपयोग न होने या आंशिक उपयोग की स्थिति में समाप्त नहीं होता है और बल के हिस्से में ही रहता है.
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एमएचए की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, आधुनिकीकरण योजना-IV को “देश भर में वर्तमान सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए” सीएपीएफ द्वारा उपयोग की जाने वाली वर्तमान तकनीक और उपलब्ध नवीनतम विकल्पों के बीच “अंतर को पाटने” के लिए लाया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है, “इस योजना के माध्यम से, सीएपीएफ को नवीनतम हथियारों, निगरानी और संचार उपकरणों, विशेष वाहनों, सुरक्षात्मक गियर आदि से सुसज्जित किया जाएगा ताकि वे सीमाओं की रक्षा और आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करने में सक्षम हो सकें.”
योजना के तहत, सरकार ने मल्टी-ग्रेनेड लॉन्चर, अंडर-बैरल ग्रेनेड लॉन्चर (यूबीजीएल), असॉल्ट राइफल, बम का पता लगाने और निपटान उपकरण, माइन-प्रोटेक्टेड और बुलेट-प्रूफ वाहन, मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), हल्के स्लीपिंग बैग, हाथ से पकड़ने वाला सैटेलाइट ट्रैकर और थर्मल इमेजर और सैटेलाइट फोन जैसे नवीनतम प्रकार के उपकरणों की खरीद की परिकल्पना की है.
प्रौद्योगिकी में सुधार और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सीएपीएफ द्वारा अधिक धन आवंटन की मांग के बीच इसे लॉन्च किया गया था.
इस साल की शुरुआत में केंद्रीय बजट पेश होने से ठीक पहले, सीएपीएफ के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया था कि उनके फंड का एक बड़ा हिस्सा वेतन और भत्तों पर खर्च किया जा रहा है, जिससे विकास और उन्नयन के लिए बहुत कम जगह बच रही है.
अधिकारियों में से एक ने कहा, “बुनियादी ढांचे, तकनीकी उन्नति और सुरक्षा से संबंधित उपकरणों के लिए धन – जिसमें ड्रोन, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, रिऐक्शन टाइम बढ़ाने के लिए उपकरण, बेहतर प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी एकत्र करना और संचालन शामिल हैं – पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.”
फिर भी, एमएचए रिपोर्ट से पता चलता है कि दिसंबर 2022 तक आधुनिकीकरण निधि का बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं किया गया था.
आवंटन के विरुद्ध सबसे अधिक व्यय (33.25 प्रतिशत) असम राइफल्स द्वारा किया गया था – जिनकी भूमिका सीमा-सुरक्षा से लेकर उग्रवाद-विरोधी तक फैली हुई है.
सीआईएसएफ, जो देश भर में 355 प्रतिष्ठानों को सुरक्षा कवर प्रदान करता है, सूची में दूसरे स्थान पर था, जिसने 2022-23 के लिए अपने आवंटित धन का 7.69 प्रतिशत उपयोग किया था.
सीआरपीएफ, जिसके कर्त्तव्यों में दंगा नियंत्रण के साथ-साथ वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) जैसे घरेलू विद्रोह को कुचलना शामिल है, ने दिसंबर 2022 तक 1.23 प्रतिशत का उपयोग किया था.
दिप्रिंट से बात करते हुए, सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आवंटित धनराशि से कम आवंटित किए जाने का कारण “खरीद प्रक्रिया की समय लेने वाली प्रकृति” और “तथ्य यह है कि अप्रयुक्त होने पर धन नष्ट नहीं होता है” को बताया.
अधिकारी ने कहा कि कभी-कभी “निविदा और पुनर्निविदा की प्रक्रिया होती है क्योंकि उपकरण के ऑर्डर और उसकी डिलीवरी के बीच के समय में प्रौद्योगिकी विकसित होती है”. अधिकारी ने कहा, “इसीलिए, ऐसा प्रतीत हो सकता है कि धन का कम उपयोग किया गया है, लेकिन प्रक्रिया [खरीद] नहीं रुकी.”
बीएसएफ, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ सीमाओं की रक्षा करती है, ने दिसंबर 2022 तक अपने आधुनिकीकरण निधि का 3.10 प्रतिशत उपयोग किया था.
सीएपीएफ में से एक के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘खरीद कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप बाजार में जाकर कर सकें… इसकी निर्धारित प्रक्रियाएं हैं, जिनमें समय लगता है.’
उन्होंने कहा, “कई बार, जो चीजें आप चाहते हैं, उसके लिए बोली लगाने वाले कम होते हैं और दोबारा टेंडरिंग प्रक्रिया की जरूरत होती है और इसलिए इसमें समय लग सकता है.”
पूर्व अधिकारी ने इस बात पर जोर दिया कि “आठ या नौ महीनों में धन का कम उपयोग अनिवार्य रूप से बलों की परिचालन क्षमताओं में बाधा नहीं डालता है”.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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