नई दिल्ली: पिछले हफ्ते भारत के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA), 2002 की सरकारी कंपनियों पर लागू होने को लेकर की गई टिप्पणी ने देश के बड़े कानूनी विशेषज्ञों को दो हिस्सों में बांट दिया है.
एक तरफ कुछ वकील मानते हैं कि PMLA की धारा 2 (1)(s) और 70 के तहत सरकारी कंपनियों पर कार्रवाई की जा सकती है क्योंकि ये धारणाएं “व्यक्ति” की परिभाषा में आती हैं और कंपनियों द्वारा किए गए मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों को कवर करती हैं.
दूसरी ओर, कुछ वकील इसे “बेतुका” और जरूरत से ज्यादा बताते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) सरकारी कंपनियों को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी बना रही है.
तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट द्वारा तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन (TASMAC) के खिलाफ ईडी की छापेमारी को सही ठहराया गया था, चीफ जस्टिस ने गुरुवार को कहा कि ईडी सभी हदें पार कर रही है और संघीय ढांचे में दखल कर रही है.
TASMAC की स्थापना मई 1983 में कंपनी अधिनियम 1956 के तहत हुई थी और यह पूरी तरह तमिलनाडु सरकार की स्वामित्व वाली कंपनी है. इसका राज्य में भारतीय निर्मित विदेशी शराब (IMFL) की थोक आपूर्ति पर एकाधिकार है. यह निजी कंपनियों से शराब खरीदती है और खुदरा दुकानों के माध्यम से बेचती है.
6 मार्च को ईडी ने चेन्नई, तंजावुर, पुदुक्कोट्टई और अन्य शहरों में TASMAC के कार्यालयों और डिस्टिलरी कंपनियों के कॉर्पोरेट दफ्तरों सहित 20 से ज्यादा स्थानों पर छापेमारी की. 8 मार्च को छापेमारी खत्म होने के बाद एजेंसी ने आरोप लगाया कि राज्य में एक बड़ा घोटाला है, जिसमें डिस्टिलरी कंपनियों, बॉटलिंग कंपनियों और TASMAC अधिकारियों का गठजोड़ है, जिससे बेहिसाब नकदी बनाई गई.
एजेंसी ने 15 मार्च को कहा था, “जांच से पता चला है कि डिस्टिलरी कंपनियों ने खर्च को जानबूझकर बढ़ाया और फर्जी खरीद दिखाई, खासकर बॉटल बनाने वाली कंपनियों के जरिए, जिससे 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बेहिसाब नकदी बनाई गई. इस रकम का इस्तेमाल घूस के तौर पर ज्यादा सप्लाई ऑर्डर पाने के लिए किया गया.”
कुछ दिनों बाद TASMAC ने मद्रास हाईकोर्ट में तीन याचिकाएं दायर कीं, जिसमें ईडी से उनके अधिकारियों को परेशान न करने का निर्देश देने और छापों को मनमाना घोषित करने की मांग की गई.
तीसरी याचिका में राज्य सरकार और TASMAC दोनों ने दलील दी कि ईडी राज्य से जुड़े अपराधों के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग की जांच नहीं कर सकती जब तक राज्य की सहमति न हो.
उन्होंने कहा कि यह “संघीय ढांचे और शक्तियों के बंटवारे की मूल संरचना” का उल्लंघन है.
लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने 23 अप्रैल को तीनों याचिकाएं खारिज कर दीं. अदालत ने कहा कि TASMAC के खिलाफ आरोप गंभीर हैं और राज्य सरकार की सहमति की मांग को “बेतुका” और “पूरी तरह से तर्कहीन और अंतरात्मा से रहित” बताया.
‘कानून रोक नहीं लगाता’ बनाम ‘कानून में बेतुकापन’
सीनियर एडवोकेट और तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने दिप्रिंट से कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका इसलिए दायर की क्योंकि ईडी की कार्रवाई में कई “मूलभूत” खामियां हैं और इसलिए यह एक “उद्देश्यपूर्ण” जांच लगती है.
उन्होंने कहा, “पहली बात तो यह है कि पीएमएलए की धारा 2(1)(s) के तहत ‘व्यक्ति’ की जो परिभाषा है, उसमें सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी, निगम या विभाग शामिल नहीं होता. अगर ऐसा होता, तो इसका मतलब होगा कि सरकार खुद मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अपराध में शामिल हो सकती है.” धारा 2(1)(s) में कंपनी समेत “व्यक्तियों” को परिभाषित किया गया है.
उन्होंने आगे कहा, “दूसरी बात, प्रीडिकेट अपराध की जांच—इस मामले में TASMAC अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले—पूरी तरह राज्य और उसकी एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में है. ईडी प्रीडिकेट अपराध की जांच नहीं कर सकती. लेकिन यही तो वह कर रही है। वह कह रही है कि विभाग भ्रष्ट तरीकों से टेंडर दे रहा है वगैरह, जो ईडी की जांच के दायरे में नहीं आता.”
इस मामले में उन्होंने बताया कि एक केंद्रीय एजेंसी ने एक पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के खिलाफ जांच शुरू की है. “ईडी की जांच तब शुरू होनी चाहिए जब अपराध की आय उत्पन्न हो, उससे पहले नहीं. वे आधारभूत अपराध की जांच नहीं कर सकते. यह केंद्र सरकार द्वारा पुलिसिंग पावर के इस्तेमाल जैसा है, जो संघवाद के लिए खतरा है.”
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने भी इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि किसी सरकारी कंपनी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच “बेतुकी” है.
उन्होंने कहा कि किसी अधिकारी के खिलाफ PMLA के तहत कार्रवाई हो सकती है, लेकिन सरकारी कंपनी पर केस नहीं बनता क्योंकि उसका सारा राजस्व सरकार के पास जाता है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “PMLA जांच की बुनियाद यह है कि किसी अपराध से अवैध संपत्ति बनी हो, जिसे अपराध की आय कहा जाता है. लेकिन सरकारी कंपनी जो भी राजस्व कमाती है, वह सरकार को जाता है. इसलिए उसे अपराध की आय नहीं माना जा सकता, जैसा किसी निजी कंपनी के मामले में हो सकता है.”
उन्होंने आगे कहा, “सरकारी कंपनी सरकार की व्यापारिक शाखा की तरह काम करती है, जबकि निजी कंपनियां व्यापारिक हितों के लिए होती हैं. इसलिए सरकारी कंपनी की गतिविधियों को आपराधिक नहीं माना जा सकता क्योंकि वह सरकार की नीतियों को लागू करती है.”
उन्होंने यह भी जोड़ा, “सरकारी कंपनी या सार्वजनिक उपक्रम पर ऐसे लेनदेन के लिए मुकदमा चलाना जो उसने किए हों, कानून में बेतुका है. गलत काम करने वाले अधिकारी और जिन लोगों को उनसे फायदा हुआ हो, उन पर कार्रवाई हो सकती है, लेकिन कंपनी पर नहीं. सरकारी कंपनी खुद पीड़ित हो सकती है, आरोपी नहीं.”
इसके विपरीत, PMLA मामलों में ईडी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वरिष्ठ वकील और एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा कि PMLA में सरकारी कंपनियों पर कार्रवाई करने की कोई रोक नहीं है.
उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अगर एक राजनीतिक पार्टी, जो व्यक्तियों का संगठन होती है, पर मुकदमा चल सकता है, तो राज्य या केंद्र सरकार की किसी कंपनी पर कार्रवाई में कोई कानूनी रुकावट नहीं है.”
वरिष्ठ वकील विकास पाहवा ने कहा कि PMLA निजी कंपनियों और सार्वजनिक उपक्रमों के बीच मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के संबंध में कोई अंतर नहीं करता. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अगर किसी राज्य संचालित उपक्रम को अपराध की आय से जुड़ा पाया जाता है, तो उस पर जांच, संपत्ति जब्ती और धारा 70 के तहत मुकदमा चल सकता है, साथ ही संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जा सकती है.”
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