मदुरै/रामनाथपुरम: मंगलवार दोपहर करीब 1.40 का समय है. ट्रेडमार्क सफेद डॉक्टर के कोट पहने छात्रों का एक ग्रुप, मदुरै से दो घंटे की दूरी पर स्थित एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में एक शव को बड़े ध्यान से देखने में लगा है.
ये 50 स्टूडेंट भारत के मेडिकल बिरादरी के बेहतर छात्रों में से आते हैं. ऐसा भला क्यों? उनके कोट पर लिखे नाम से इस बात को आसानी से समझा जा सकता है.
ये सभी तमिलनाडु के पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पहले बैच के छात्र हैैं, जो राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज में अस्थाई रूप से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं.
एम्स मदुरै शहर के थोपपुर इलाके में एक विशाल परिसर में स्थित है. तीन साल पहले नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी थी लेकिन अभी तक इसका निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है.
दरअसल बढ़ती लागत, महामारी के कारण देरी जैसी वजहों ने इसके निर्माण की समय सीमा को 45 महीने के भीतर तैयार करने की निर्धारित तारीख से आगे बढ़ाकर अक्टूबर 2026 तक पहुंचा दिया.
2014 और 2018 के बीच एम्स मदुरै के साथ-साथ 11 नए एम्स बनाए जाने की घोषणा की गई थी. इनमें से राजकोट, जम्मू, झारखंड और गुवाहाटी में स्थित चार एम्स भी मौजूदा समय में इसी तरह से अस्थायी परिसरों में चलाए जा रहे हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस साल फरवरी में लोकसभा में बताया था कि काम पूरा होने की सीमा 20 से 70 प्रतिशत के बीच है.
जब दिप्रिंट ने मदुरै की साइट का दौरा किया, तो पाया कि एम्स परिसर के लिए आवंटित बंजर जमीन पर सिर्फ कांटेदार तारों से घिरी चारदीवारी बनी है. वहीं आधा किलोमीटर दूर पास की जमीन पर तीन आदमी जमीन के एक टुकड़े का सर्वे करने में लगे थे.
स्थानीय सरकारी अस्पताल के एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘ऑस्टिनपट्टी अस्पताल का विस्तार करने के लिए अभी काम शुरू हुआ है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘एम्स के लिए, फिलहाल तो परिसर के चारों ओर बनी दीवार से ज्यादा कुछ नहीं है. उन्होंने एक छोटी सी इमारत बनाने के लिए कहा था लेकिन वह काम अभी भी शुरू नहीं हुआ है. उनके मुताबिक, मसला ‘फंडिंग’ का है.’
एम्स मदुरै के कार्यकारी निदेशक डॉ. एम. हनुमंत राव ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड-19 महामारी के कारण हुई देरी से लागत काफी बढ़ गई है. लेकिन उम्मीद है कि काम जल्द ही शुरू हो जाएगा.
वह कहते हैं, ‘रिवाइज्ड एस्टीमेट मंजूरी के लिए व्यय विभाग को भेजे जा चुके हैं. एक बार मंजूरी मिलने के बाद टेंडर जारी किया जाएगा और छह महीने में काम शुरू होने की पूरी संभावना है.’
जब पीएम ने 2019 में आधारशिला रखी, तो प्रोजेक्ट की लागत 1,264 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जो कथित तौर पर दिसंबर 2020 तक बढ़कर 2,000 करोड़ रुपये हो गई.
मार्च 2021 में जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) ने ‘गरीब और हाशिए के समुदाय के लोगों तक उच्च चिकित्सा सेवाओं की पहुंच’ बढ़ाने के उद्देश्य का हवाला देते हुए मदद को बढ़ाते हुए प्रोजेक्ट के लिए 1,627 करोड़ रुपये की सहायता दी.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने फरवरी 2022 में लोकसभा में उल्लेख किया कि प्री-इन्वेस्टमेंट का काम काफी हद तक पूरा हो चुका है. भारत और जापान की सरकारों के बीच ऋण समझौते पर हस्ताक्षर हो गए हैं. प्रोजेक्ट प्रबंधन सलाहकार को नियुक्त करने की प्रक्रिया चल रही है.
हालांकि प्रस्तावित मदुरै अस्पताल अभी तक मरीजों के इलाज के लिए बनकर तैयार नहीं हुआ है लेकिन संस्थान ने मेडिकल छात्रों को तैयार करना शुरू कर दिया है. इस अप्रैल में एक वैकल्पिक सुविधा में पहले बैच के स्टूडेंट्स का स्वागत किया गया.
50 छात्रों का यह पहला बैच जिसमें तमिलनाडु के बाहर से 49 और मदुरै से एक छात्र शामिल है, फिलहाल सरकारी रामनाथपुरम मेडिकल कॉलेज (जीआरएमसी) के छात्रों के साथ उनके परिसर में जगह साझा कर रहा है.
जीआरएमसी भवन की पांचवीं मंजिल, एयर कंडीशनर, कुर्सियों और ‘एम्स एमडीयू’ की स्टांप लगे उपकरणों के साथ दो साल तक एम्स के छात्रों के लिए अस्थायी शिक्षण परिसर के रूप में काम करेगी.
एक छात्र का मानना है कि अस्थायी परिसर में पढ़ाया जाना कोई ‘आदर्श स्थिति नहीं’ है. लेकिन ‘ फैकल्टी डॉक्टरी की पढ़ाई करने देने में वाकई हमारी मदद कर रहा है.’
नियमित रूप से संसद में इस मद्दे को उठाने वाले मदुरै सांसद सु. वेंकटेशन से जब प्रोजेक्ट के स्टेटस के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह कम से कम एक अस्थायी परिसर में शुरू होने वाले मेडिकल कोर्स को देखकर ‘बेहद खुश’ हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘दो साल से मैं प्रगति देख रहा हूं. एम्स मदुरै के आने से दक्षिणी तमिलनाडु में एक अच्छा मेडिकल हब बन जाएगा.’
यह भी पढ़ें: IAF के सुखोई विमानों के अपग्रेड पर बातचीत के लिए जल्द भारत का दौरा करेगी रूसी रक्षा उद्योग की टीम
भविष्य पर नजर
डॉ राव ने दिप्रिंट को बताया कि पुडुचेरी स्थित जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च को एम्स मदुरै के लिए मेंटर इंस्टीट्यूट नामित किया गया है.
परिसर में प्रशासनिक मुद्दों की प्रभारी डॉ. पी. विजया ने बताया, ‘हम पहले से ही शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया में हैं. पहला साल पूरा होने से पहले, हमारे फैकल्टी सदस्यों की संख्या बढ़ जाएगी.’
जुलाई में लोकसभा में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के जवाब के अनुसार, अभी तक एम्स मदुरै के 183 फैकल्टी पदों में से केवल आठ पदों पर ही नियुक्ति की गई है. ये फैकल्टी मेंबर प्रथम वर्ष के एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री और कम्युनिटी मेडिसिन विषयों को पढ़ाते हैं.
विजया के मुताबिक, जीआरएमसी के अधिकारियों से उन्हें अच्छा ‘समर्थन’ मिल रहा है.
वह बताती हैं, ‘हम उनके साथ एनाटॉमी लैब भी शेयर करते हैं. जीआरएमसी के छात्र सुबह इसका इस्तेमाल करते हैं, हम लंच के बाद यहां छात्रों को पढ़ाते हैं. इससे दोनों संस्थानों के छात्रों को किसी तरह की समस्या नहीं आती है.’
एम्स मदुरै के छात्रों के लिए अलग इंफ्रास्ट्रक्चर में लेक्चर हॉल, स्मार्ट क्लासरूम- जहां शिक्षक पढ़ाते समय कैमरे से हड्डियों को जूम करके दिखा सकते हैं और फर्स्ट ईयर के छात्रों के लिए स्थापित प्रयोगशाला शामिल हैं.
मदुरै के शिक्षकों ने बताया कि छात्रों के पास एम्स मंगलगिरी में फैकल्टी के साथ-साथ ऑनलाइन सत्र की सुविधा भी है.
जीआरएमसी के एक प्रोफेसर ने कहा, ‘हालांकि पाठ्यक्रम समान है लेकिन उनके और हमारे छात्रों के बीच अंतर है.’
प्रोफेसर के मुताबिक, ‘एम्स सामान्य तौर पर रिसर्च पर ज्यादा ध्यान देता और राज्य के सरकारी कॉलेजों की तुलना में बेहतर फंडिंग भी करता है.’
डॉ विजया ने कहा, ‘एम्स मदुरै में 50 छात्रों में से 33 लड़के और 17 लड़कियां है. इनमें से 49 तमिल नहीं बोल पाते हैं. दरअसल वे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, महाराष्ट्र और कुछ दक्षिणी राज्यों से यहां पढ़ने के लिए आए हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम उन्हें अनाथालयों और छोटे समुदाय स्तर के पुनर्वास केंद्रों में छोटे बच्चों के साथ बातचीत करने के लिए ले गए, ताकि उन्हें इस क्षेत्र से परिचित कराने और लोगों के साथ संबंध विकसित करने में मदद मिल सके, जो आगे चलकर उनके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा.’
उनके कार्यालय के बाहर एक नोटिस बोर्ड पर कुछ छात्रों के नाम लिखे हैं. ये उन छात्रों के नाम हैं जिनकी जुलाई महीने में अटेंडेंस काफी कम थी.
विजया ने कहा, ‘अगले साल से स्टूडेंट्स को मरीजों और परिचारकों के साथ बातचीत शुरू करनी होगी. इसलिए उन्हें तमिल बोलना सिखाने के लिए हमने शनिवार को एक घंटे की क्लास लेना शुरू कर दिया है.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: कैसे UP के गांव की एक लड़की का US की डिग्री पाने का सपना साकार हुआ