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Sunday, 17 November, 2024
होमदेशपॉप-अप मैसेज और कॉल से लोगों को निशाना बना रहे हैकर्स, कैसे पुलिस-जांच एजेंसियां इस खतरे से निपट रहीं

पॉप-अप मैसेज और कॉल से लोगों को निशाना बना रहे हैकर्स, कैसे पुलिस-जांच एजेंसियां इस खतरे से निपट रहीं

पुलिस और जांच एजेंसियों को जिन बाधाओं का सामना करना पड़ता है, उनमें पीड़ित द्वारा शिकायत दर्ज नहीं करवाना या बयान दर्ज करवाने के लिए राजी न होना, और चालक अभियुक्त, जो अक्सर बिटकॉइन के जरिये सौदा करते हैं व अपने कार्यालय बदलते रहते हैं, शामिल हैं.

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नई दिल्ली: आप अपना कंप्यूटर खोलते हैं और तभी इस बारे में एक संदेश के साथ एक जीआईएफ पॉप अप होता है कि आपका ऑपरेटिंग सिस्टम वायरस के हमले के अधीन है और आपको इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आपका डेटा असुरक्षित हो गया है.

इस बारे में सहायता के लिए आपको दिए गए नंबर पर कॉल करना करने को कहा जाता है. इसके निशाने पर बुजुर्ग लोग होते हैं. एक बार जब आप सहायता मांगते हैं, तो वे एनीडेस्क, लोगमीइन जैसे सॉफ्टवेयर के माध्यम से आपके कंप्यूटर तक पहुंच प्राप्त करते हैं, और फिर आपको अपने सिस्टम को ठीक करने के लिए भुगतान करने का लालच देते हैं और आपका सारा डेटा अपने कब्जे में ले लेते हैं. आपको पेचेक या पेपैल के माध्यम से भुगतान करने के लिए कहा जाता है. इसके बाद यह सारा पैसा और कॉल के दूसरी तरफ मौजूद लोग एकदम से गायब हो जाते हैं.

यह उन कई तरीकों में से एक है जिसके जरिये एक से छोटे कार्यालय वाला ठिकाने – कॉल सेंटर – में दूरस्थ रूप से संचालित कंप्यूटरों के पीछे बैठे जालसाज आपको निशाना बना सकते हैं. हमला किसी भी चीज और हर चीज के माध्यम से हो सकता है – कॉल के जरिये, फ़िशिंग लिंक वाले टेक्स्ट संदेशों से लेकर ईमेल तक या शुद्ध रूप से मैलवेयर हमलों के माध्यम से भी, और यह खतरा बड़े और छोटे दोनों तरह के भारतीय शहरों में तेजी से पनपता पाया जा रहा है. इसका लक्ष्य कोई भी हो सकता है, और यह पूरी तरह से साइबर अपराधियों के मोडस ऑपरेंडी (काम करने के तरीके) पर निर्भर करता है. आप पर एक से अधिक बार भी हमला हो सकता है.

यह किसी एक शहर या कस्बे के लिए कोई विशिष्ट या अनोखी बात नहीं है, फर्जी कॉल सेंटर और ठगी की कला अब हर जगह फैल रही है. अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के नागरिकों से ठगी करने के आरोप में कुछ फर्जी कॉल सेंटर हाल में बंद कर करवा गए थे. हाल के मामलों, छापे और गिरफ्तारियों पर एक करीबी नजर डालने से इस बात का पता चलता है कि कैसे दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के बिधाननगर (साल्ट लेक) कमिश्नरेत में पुलिस एजेंसियां ऐसे मामलों से जूझ रही हैं.

पिछले हफ्ते, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के तहत कार्यरत इकाई इंटेलिजेंस फ्यूजन स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस (आईएफएसओ), संयुक्त राज्य अमेरिका के फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई), और कनाडाई कानून प्रवर्तन एजेंसी ने एक संयुक्त अभियान के तहत ऐसे छह साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने आठ साल से अधिक समय तक अमेरिकी नागरिकों से 10 मिलियन अमरीकी डालर की राशि को लूटा था.

सूत्रों के मुताबिक, ये लोग हर दो महीने में अपने कॉल सेंटर का ठिकाना बदलते रहते थे और उन्होंने 20 हजार से अधिक लोगों को लूटा था. कुछ रकम बिटक्वाइन के रूप में भी अदा गई थी, जिसके बारे में जांच एजेंसियां अब पता कर रही हैं.

इन छह के द्वारा कथित तौर पर चलायी गयी सबसे हालिया कंपनी – पीसी सपोर्ट एंड केयर – का एक कार्यालय गणेश नगर में एक पूरी मंजिल पर फैला हुआ था और इसके बैंक खाते के विवरणों ने साल 2012 से 2020 के बीच 4 करोड़ से अधिक के लेनदेन का खुलासा किया.

आईएफएसओ में पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के रूप में कार्यरत प्रशांत गौतम ने दिप्रिंट को बताया, ‘इनमें से ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता सामने आने को तैयार नहीं होते हैं. यह मामला भी उस दिन प्रकाश में आया जब 85 और 86 वर्ष की आयु के दो बुजुर्ग व्यक्तियों ने नोडल एजेंसियों से संपर्क किया और उन्होंने इस साल 7 दिसंबर को दिल्ली पुलिस को सूचित किया.‘

डीसीपी गौतम ने कहा कि ये जालसाज किसी एक पीड़ित से करीब 85-299 डॉलर की राशि लिया करते थे.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, साल 2020 के बाद से दिल्ली पुलिस की आईएफएसओ ने ऐसे 10 कॉल सेंटरों का भंडाफोड़ किया है, जो मासूम लोगों से करोड़ों रुपये ठग रहे हैं. अन्य मामलों में, आरोपियों ने गिफ्ट वाउचर और नौकरी का झांसा देकर लोगों को ठगा था. इसके अलावा जिला पुलिस ने ऐसे 40 से अधिक कॉल सेंटरों पर छापेमारी भी की है.


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इस साइबर अपराधियों के काम करने का तरीका

ये साइबर अपराधी कई तरीकों से काम करते हैं, जिनमें से एक सबसे आम तरीका है – आकर्षक सौदों के साथ लुभाना. कोलकाता के आईटी हब बिधाननगर या साल्ट लेक में, ये गैर क़ानूनी कॉल सेंटर राज्य और देश के बाहर हजारों लोगों को निशाना बना रहे हैं.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार बिधाननगर पुलिस ने बड़े पैमाने पर छापेमारी करते हुए पिछले चार महीनों में ऐसे 25 अवैध कॉल सेंटरों का भंडाफोड़ किया है. सितंबर से दिसंबर के बीच बड़े पैमाने पर छापेमारी के दौरान 292 आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया है.

इस कमिश्नरेट ने लगभग 5 करोड़ रुपये की वसूली कर इसे पीड़ितों को वापस कर दिया है. हालांकि, सूत्रों ने कहा कि पीड़ित को पैसे की वापसी तभी संभव है जब पीड़ित तुरंत पुलिस के पास पहुंचे, जो अदालत पहुंचकर आदेश प्राप्त करे.

इस आदेश को तब बैंक के सामने प्रस्तुत किया जाता है जो डेस्टिनेशन अकाउंट (वैसे खाते जहां ये पैसे जमा होते हैं) फ्रीज कर देता है और पैसा पीड़ित खातों में वापस भेज दिया जाता है.

पुलिस अधिकारियों ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां शिकायतकर्ता तेजी के साथ उन्हें सूचित नहीं करता है, सारा पैसा गुम हो जाता है.

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए पश्चिम बंगाल पुलिस के बिधाननगर कमिश्नरेत के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि इन जालसाजों के काम करने के तीन मुख्य तौर-तरीके हैं. उन्होंने कहा, ‘एक तो साल्ट लेक में संचालित ऐसे घरेलू कॉल सेंटर से होता है, जहां वे राज्य के बाहर के लोगों को निशाना बनाते हैं. वे मोबाइल टावर लगाने के लिए लोगों को इस बहाने के साथ कॉल करते हैं कि वे जियो और एयरटेल से बोल हैं. ये रिलायंस जियो, एयरटेल, टेलिफोन रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया आदि के फर्जी दस्तावेज जमा करते हैं. फिर वे पीड़ितों को पंजीकरण, जमानत राशि आदि के लिए 1 लाख से 6 लाख रुपये ट्रांसफर करने के लिए कहते हैं और बदले में उन्हें यह कहकर लालच देते हैं कि काम पूरा होने पर वे 20 लाख रुपये के साथ एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी भी देंगे. एक बार पैसा मिलते ही वे लापता हो जाते हैं.’

सूत्र ने कहा, ये कॉल रैंडम तरीके से किये जाते हैं. आरोपी अंक बदलता रहता है और नए-नए नंबर आजमाता रहता है. अंतरराष्ट्रीय कॉल सेंटर के रूप में काम करने वाले बड़े नेक्सस में, डेटा को डार्क वेब से $50-80 में खरीदा जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय कॉल सेंटरों में दो तरह की प्रमुख मोडस ऑपरेंडी हैं – नॉर्टन एंटीवायरस और अन्य सॉफ्टवेयर्स इस्टॉल करना और बीमा. उन्होंने बताया, ‘वे अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रिया में लोगों को आकर्षक चिकित्सा और अन्य बीमा सौदे देने तथा इसके रिये उन्हें लूटने के लिए वीओआइपी (वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल) कॉल करते हैं. अन्य मामलों में, वे कहते हैं कि यह तीन उपकरणों के लिए सस्ती दरों – 80 डॉलर के बाजार मूल्य की तुलना में 50 डॉलर में – पर एंटीवायरस उपलब्ध करवायेंगें.’

इस साल, मुंबई पुलिस ने एक ऐसे कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया जो अवैध रूप से अमेरिकी नागरिकों को वियाग्रा और अन्य यौन इच्छा बढ़ाने वाली दवाएं बेचने की आड़ में लोगों को लूट रहा था. एक अन्य मामले में आरोपी कर्ज दिलाने का झांसा देकर पैसे वसूल रहे थे.

साइबर अपराधियों पर बड़े पैमाने पर नकेल कसने के एक प्रयास के रूप में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने इस साल अक्टूबर में इंटरपोल, एफबीआई और कई देशों के पुलिस बलों के साथ ‘ऑपरेशन चक्र’ शुरू किया था.

दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, चंडीगढ़, पंजाब और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की स्थानीय पुलिस की सहायता से 115 स्थानों पर तलाशी अभियान चलाया गया. राजस्थान में इन अभियानों के माध्यम से कम से कम 1.8 करोड़ रुपये नकद और 1.50 किलोग्राम सोना जब्त किया गया. इसके अलावा, कर्नाटक में 1.89 करोड़ रुपये बैंक खाते की शेष राशि फ्रीज कर दी गई थे. इसी दौरान 2014-2015 से पुणे और अहमदाबाद में चल रहे दो कॉल सेंटरों का भी भंडाफोड़ किया गया.

जांच एजेंसियों और पुलिस के सामने आने वाली बाधाएं

सूत्रों ने कहा कि जांच एजेंसियों के लिए समस्या इस बात से अधिक है क्योंकि ज्यादातर पीड़ित शिकायत दर्ज ही नहीं करवाते हैं. अगर वे पुलिस तक पहुंचते हैं तो भी उनमें से ज्यादातर सामने आना और बयान दर्ज करवाना नहीं चाहते हैं, और जब कभी वे ऐसा करते भी हैं तो बहुत देर हो चुकी होती और पैसा गायब हो गया होता है. साथ ही, आरोपी कभी-कभी बिटकॉइन में सौदा करता है. शक से बचने के लिए ये जालसाज अपना दफ्तर भी बदलते रहते हैं.

बिधाननगर पुलिस आयुक्तालय के जासूसी विभाग के पुलिस उपायुक्त बिस्वजीत घोष ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये जालसाज अपने ठिकाने और अपने नंबर एवं ईमेल आईडी भी बदलते रहते हैं. अधिकांश शिकायतकर्ता भी मामले को आगे बढ़ाने के लिए आगे नहीं आना चाहते हैं. ये कॉल सेंटर लुभावनी पेशकशों (ऑफर्स) के जरिए मासूमों को लुभाते हैं. एक व्यक्ति को एक से अधिक बार भी धोखा दिया जा सकता है. अगर वे 100 कॉल करते हैं तो कम-से-कम 5-6 लोग इसकी चपेट में आ ही जाते हैं. यहां सबसे बड़ी बाधा शिकायतों का दर्ज न करवाया जाना होता है.’

पुलिस सूत्रों ने कहा, ‘जब पीड़ित देश के बाहर स्थित होते हैं तो यह बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे भी मामले हैं जहां हमने कई बार कॉल किया है लेकिन भारतीय नंबर देखकर कोई कॉल नहीं उठाता है. कुछ मामलों में, वे ईमेल द्वारा जवाब देते हैं और हम इसे क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी) की धारा 161 के तहत दिए गए बयान (पुलिस द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयान) के रूप में लेते हैं और इसे अदालत में जमा करते हैं.’

इस सूत्र का कहना है कि ज्यादातर मामलों में घरेलू पीड़ित भी शिकायत दर्ज नहीं करना चाहते हैं, साथ ही, उन्होंने कहा कि वे (पीड़ित) केवल अपना पैसा वापस चाहते हैं, जिससे पुलिस के लिए पूरे गिरोह को नष्ट करना और अभियोजन पक्ष को मजबूत बनाना मुश्किल हो जाता है.

सूत्रों के कहा, ‘यही कारण है कि वे काम करना जारी रखते हैं, वे जानते हैं कि ज्यादातर लोग शिकायत नहीं करते हैं और इसलिए किसी का उनपर ध्यान नहीं जाएगा. ज्यादातर मामलों में, हमारे पास केवल स्रोत-आधारित खुफिया जानकारी होती है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना)


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