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Saturday, 20 April, 2024
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ट्रांसजेंडर विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी, ट्रांस समुदाय आशंकित

विधेयक मोदी सरकार के 100 दिन के एजेंडा में शामिल हैं और इसे सांसद के वर्तमान सत्र में ही पारित किया जाएगा. लेकिन इस विधेयक को लेकर ट्रांसजेंडर समुदाय काफी आशंकित है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किन्नरों (ट्रांसजेंडर्स) की सुरक्षा के लिए ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा)’ विधेयक को मंजूरी दी है. यह विधेयक समाज में ऐसे लोगों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सशक्तीकरण के लिए एक कार्य प्रणाली उपलब्ध कराता है. यह विधेयक मोदी सरकार के 100 दिन के एजेंडे में शामिल है और इसे संसद के वर्तमान सत्र में ही पारित किया जाएगा लेकिन इस विधेयक को लेकर ट्रांसजेंडर समुदाय काफी आशंकित है.

लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय पूरी तरह खुश नहीं

ट्रांसजेंडर विधेयक के मुताबिक लैंगिक आधार पर ट्रांस को परिभाषित किया गया है. अगर किसी व्यक्ति का जेंडर उसके जन्म के जेंडर से मेल नहीं खाता है तो वो ट्रांसजेंडर कहलाएगा. जबकि विधेयक के अनुसार कोई व्यक्ति ट्रांसजेंडर तभी माना जाएगा जब जिला स्तर पर बनी एक कमेटी यह प्रमाणित करेगी. इस कमेटी में एक मेडिकल ऑफिसर, सॉयक्लॉजिस्ट, सरकारी अफसर और एक ट्रांसजेंडर शामिल होगा.


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ट्रांसजेंडर समुदाय इसे अपनी निजता का उल्लंघन मानता है. ट्रांस रिजवान ने कहा, ‘यह मेरा निजी विचार होना चाहिए कि मुझे किस जेंडर के तौर पर पहचाना जाना चाहिए. अपनी शारीरिक पहचान का प्रमाण किसी और से लेना हमारे लिए अपमान होने जैसा है.’

ट्रांस की परिभाषा के अलावा यह समुदाय विधेयक में दिए सजा के प्रावधान से भी खुश नहीं है. ट्रांसमैन बिट्टू बताते हैं, ‘अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति पर कोई यौन हिंसा या शारीरिक हिंसा करता है तो उसे केवल दो साल की सजा दी जाती है, जबकि वही हिंसा अगर किसी गैर-ट्रांस व्यक्ति के साथ की गई हो तो उसमें सजा का प्रावधान अधिक है.’

बता दें, ट्रांसजेंडर विधेयक को लेकर सरकार द्वारा जारी ज्ञापन में कहा गया है कि ये लोग सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का शिकार होते हैं. इनकी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और नौकरियों तक पहुंच नहीं है. यह विधेयक बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडरों के लिए मददगार साबित होगा और इन्हें मुख्यधारा में लाने में मदद करेगा.

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विधेयक को लेकर आगे कि योजना क्या है

27 संशोधनों के साथ ट्रांसजेंडर विधेयक लोकसभा में दिसंबर 2018 में पारित किया गया था जिसके बाद इसे राज्यसभा से पारित होना था. लेकिन यह विधेयक वहां पेश न हो पाने के कारण रद्द हो गया था. 17वीं लोकसभा के चुनाव के बाद शुरू हुए नए सत्र में इस विधेयक को दोबारा कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया है.

अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता ट्रांसमैन बिट्टू ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘इस विधेयक को लेकर ट्रांस समुदाय ने तीन-चार राउंड में सुझाव दे चुका है. हम लोग इस विधेयक को लेकर थोड़े आशंकित हैं. इसमें कुछ ऐसे प्रवाधान हैं जिसको लेकर हम सहमत नहीं है. आने वाले दो-तीन दिनों में हम एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी बात रखेंगे.’

वहीं ट्रांसजेंडर के मुद्दों को लेकर काम करने वाली संस्था नाज़ फाउंडेशन की अंजली गोपालन ने बताया कि इस विधेयक में कुछ दिक्कतें हैं. हम उम्मीद करते हैं कि वो भी ठीक होंगी. इसके लिए आने वाले दिनों में उक्त विभाग के मंत्रियों और नेताओं से मिलकर इस मसले का हल निकालने की कोशिश करेंगे.

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