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Friday, 29 March, 2024
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बंकर, एयर रेड ऐप—’कोई और विकल्प न बचने’ पर यूक्रेन लौट रहे हैं कुछ भारतीय छात्र

मोदी सरकार ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल छात्रों को यहां यूनिवर्सिटी में जगह नहीं दी जा सकती है. युद्ध शुरू होने के बाद करीब 20,000 से अधिक छात्र अपने देश लौट आए थे.

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नई दिल्ली: ‘अपने जोखिम पर आएं’, ‘दिन में दो बार एयर स्ट्राइक सायरन के लिए तैयार रहें’, ‘खाने-पीने की सामान की कीमतें बढ़ना अपेक्षित मानें’—ये कुछ ऐसे संदेश हैं जो युद्धग्रस्त यूक्रेन लौटने वाले भारतीय मेडिकल छात्रों को अपने सहपाठियों और प्रोफेसरों की तरफ से मिले हैं.

फरवरी में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तरफ से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के ऐलान के बाद कुछ हफ्तों में कम से कम 20,000 छात्र वहां से भारत लौट आए थे.

अब, कुछ छात्र तो पहले ही युद्धग्रस्त देश वापस लौट चुके हैं, जबकि कई अन्य यूक्रेन के पड़ोसी देशों जैसे मोल्दोवा, हंगरी या पोलैंड होकर एक लंबी यात्रा के लिए तैयार हैं, जहां से 8 से 24 घंटे की बस या ट्रेन यात्रा करके वे अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचेंगे.

महाराष्ट्र निवासी 22 वर्षीय नबील सैयद यूक्रेन की राजधानी कीव स्थिति बोगोमोलेट्स नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी का छात्र है. नबील भी ऐसा ही एक छात्र है, जिसने सात महीने के लंबे अंतराल के बाद अपनी क्लास में लौटने का फैसला किया.

उसने बुडापेस्ट के लिए उड़ान भरी और फिर एक दिन की ट्रेन यात्रा करके यूक्रेन पहुंचा. एक व्लॉग में उसने बताया कि यूनिवर्सिटी ने हाइब्रिड मोड में काम करना शुरू कर दिया है और वहां जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है. उसने कीव में तबाही के वीडियो भी दिखाए.

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नबील ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत से 10-15 छात्र पिछले सप्ताह कीव लौटे हैं. हालांकि, मेरे माता-पिता इस फैसले के खिलाफ थे, लेकिन मेरे पास लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.’

उसके माता-पिता उसे देखने के लिए दिन में 8-9 बार फोन करते हैं, और हर बार जब हवाई हमले का सायरन बजता है तो दहशत का अहसास होता है।

नबील जैसे कई अन्य छात्र भी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अपनी मेडिकल पढ़ाई कैसे जारी रखेंगे. एक तरफ तो उन्हें युद्ध प्रभावित क्षेत्र में लौटने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और दूसरी तरफ उन्हें भारतीय विश्वविद्यालयों में जगह मिलना भी मुश्किल है.

भारत में रहने के दौरान इन छात्रों ने यूक्रेन के अपने विश्वविद्यालयों की ऑनलाइन कक्षाएं लीं. हालांकि, इस तरह हासिल की जाने वाली डिग्री को मेडिकल एजुकेशन और मेडिकल प्रोफेशनल से संबंधित भारतीय नियामक संस्था राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के तहत पात्र नहीं माना जाता, क्योंकि पात्रता के लिए छात्रों को अनिवार्य तौर पर 12 महीने की व्यावहारिक इंटर्नशिप करने की भी जरूरत होती है.

जुलाई में कई छात्रों ने विरोध-प्रदर्शन का सहारा लिया क्योंकि एनएमसी की तरफ से इस पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया जा रहा था कि उन्हें भारतीय मेडिकल कॉलेजों में एडजस्ट किया जाएगा या नहीं.

विदेशों में पढ़ रहे छात्रों के ट्रांसफर पर ‘एनएमसी की गाइडलाइन अस्पष्ट’ होने का आरोप लगाते हुए छात्रों का कहना है कि एनएमसी और केंद्र सरकार का रुख मदद वाला नहीं रहा. नबील ने कहा, ‘वे स्पष्ट तौर पर हमें भारतीय यूनिवर्सिटीज में एडजस्ट नहीं कर सकते.’

दिप्रिंट ने यूक्रेन में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की स्थिति के बारे में जानकारी के लिए ईमेल के माध्यम से विदेश मंत्रालय से संपर्क साधा, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

एनएमसी का स्टैंड

छात्रों के आंदोलन के बाद अगस्त में विदेश मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से उन भारतीय छात्रों से संबंधित संकट को हल करने को कहा जो चीन (कोविड लॉकडाउन के कारण) और यूक्रेन से लौटे थे.

इसके बाद एनएमसी ने इन छात्रों के लिए दिशानिर्देशों के साथ एक सर्कुलर जारी किया, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया कि यह ‘मोबिलिटी प्रोग्राम को मंजूरी नहीं देता’ (जैसा यूक्रेन की तरफ से प्रस्तावित किया गया है). इसका मतलब है कि यदि कुछ यूक्रेनी यूनिवर्सिटी अपना ऑपरेशन पोलैंड या लातविया जैसे पड़ोसी देश में ट्रांसफर करने पर विचार करती हैं, या फिर सीमित समय के लिए यूक्रेन के बाहर अन्य यूनिवर्सिटी के साथ गठजोड़ करती हैं, तो उस स्थिति में नई जगह पर क्लास लेने वाले छात्रों को मिलने वाली डिग्री को भारतीय नियामक संस्था मान्यता नहीं देगी.

एनएमसी ने यह भी कहा कि छात्रों को किसी भी परिस्थिति में भारतीय मेडिकल कॉलेजों में एडजस्ट नहीं किया जाएगा. मामला कोर्ट में पहुंचने पर केंद्र सरकार ने सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में भी यही विचार रखा.

हालांकि, उसी माह एनएमसी ने मोबिलिटी प्रोग्राम को मंजूरी दे दी, और 29 देशों की एक सूची जारी की, जहां अभी यूक्रेन में पढ़ने वाले भारतीय मेडिकल छात्र आगे की पढ़ाई के लिए आवेदन कर सकते हैं.

29 देशों में पोलैंड, ऑस्ट्रिया, चेक गणराज्य, फ्रांस, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, लिथुआनिया और मोल्दोवा शामिल हैं. हालांकि, एनएमसी ने अभी तक केवल जॉर्जिया में एलिजिबल यूनिवर्सिटी की सूची जारी की है.

भारतीय मेडिकल छात्र एक बार अस्थायी रूप से अन्य देशों में समायोजित होने के बाद विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट परीक्षा (एफएमजीई) में बैठने के पात्र होंगे. गौरतलब है कि कुछ देशों से मेडिकल डिग्री वालों को भारत में प्रैक्टिस के लिए यह परीक्षा पास करनी पड़ती है.


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‘चिंता में घिरे’

संकट प्रभावित कई छात्र अंतिम वर्ष के मेडिकल स्कॉलर हैं. दिप्रिंट ने जिन छात्रों से बात की, उनका दावा है ‘भारत सरकार की तरफ से मदद से इनकार किए जाने के बाद, उनके पास अपनी अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी करने के लिए लौटने के अलावा कई विकल्प नहीं बचा था.’ इसमें से कुछ यूरोप में ही रहकर अपनी विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, जबकि अन्य प्रैक्टिस के लिए भारत लौटना चाहते हैं.

जो छात्र युद्धक्षेत्र में लौट रहे हैं, वे चिंता और दहशत से भरे हैं. पश्चिमी यूक्रेन की टर्नोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे मोहित कुमार ने कहा कि यूक्रेन वापस लौटने के उनके फैसले के बारे में सुनकर उनकी दादी बीमार पड़ गईं.

यूक्रेन से दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे आने के लिए उनसे झूठ बोलना पड़ा. मैंने उससे कहा कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने पोलैंड जा रहा हूं. मेरा परिवार मेरे लिए चिंतित है लेकिन पश्चिमी यूक्रेन में स्थिति अपेक्षाकृत सुरक्षित है.’

अन्य छात्रों की तरह मोहित कुमार को भी एफएमजीई की पात्रता हासिल करने के लिए ऑफलाइन क्लास में शामिल होना होगा और प्रैक्टिकल पूरा करने होंगे.

उसी यूनिवर्सिटी में तीसरे वर्ष के छात्र सास्वत शुक्ला के लिए तो कोई आकस्मिक योजना बनाना भी मुश्किल साबित हुआ. सास्वत ने बताया कि उसने भारतीय दूतावास को पत्र लिखकर सलाह मांगी कि टर्नोपिल पर हमले की स्थिति में क्या करना चाहिए, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं दिया गया है.

उसने बताया, ‘हर इमारत में भूमिगत बंकर हैं. हमने एक ऐप भी डाउनलोड कर रखा है जो हर बार हवाई हमले की स्थिति पर हमें अलर्ट करता है. हम चिंता के साथ जी रहे हैं.’

22 वर्षीय छात्र के मुताबिक, रूसी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर एक विकल्प है, लेकिन कई छात्र ऐसा करने को लेकर आशंकित है. ‘हमारी डिग्री पूरी होने पर यूक्रेन स्थित मूल यूनिवर्सिटी की तरफ से हमें एक कैरेक्टर सर्टिफिकेट चाहिए होगा. हमें नहीं पता कि यूक्रेन सरकार रूस में पढ़ने वाले छात्रों को यह प्रमाणपत्र देना चाहेगी या नहीं.’

मोबिलिटी प्रोग्राम को लेकर असमंजस

यद्यपि ट्रांसफर प्रोग्राम को एनएमसी ने मंजूरी दे दी है, लेकिन छात्र इसे अपनाने को लेकर बहुत इच्छुक नहीं हैं क्योंकि चिकित्सा प्राधिकरण ने पहले इस पर आपत्ति जताई थी.

दिल्ली के एक 21 वर्षीय छात्र ने अब हंगरी की डेब्रेसेन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है, उसने बताया कि जैसे ही उसे मोबिलिटी विकल्प के बारे में पता चला, उसने यूक्रेन से ट्रांसफर के लिए आवेदन किया. उसने दिप्रिंट को बताया, ‘बहुत छात्रों को इसकी जानकारी नहीं थी और जो जानते थे उनमें से कुछ ही आवेदन करना चाहते थे.’

प्रथम वर्ष के मेडिकल छात्र ने यह भी कहा कि ‘भारतीय छात्रों को देश के मेडिकल इंस्टीट्यूट में एडजस्ट करने की उम्मीद करना अनुचित ही है क्योंकि इंटरनेशनल मेडिकल प्रोग्राम छह साल का है, जबकि भारतीय एमबीबीएस में पांच साल की ही पढ़ाई होती है.’

होप कंसल्टेंट्स के दीपेंद्र चौबे के मुताबिक, कई भारतीय छात्रों ने अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए रूस और किर्गिस्तान में ट्रांसफर की कोशिश शुरू कर दी है.

उन्होंने आगे बताया कि ‘करीब 100 छात्र पहले ही रूसी यूनिवर्सिटीज में स्थानांतरित हो चुके हैं.’

छात्रों के अपने अनुमानों के मुताबिक, लगभग 1,000 से 1,200 स्कॉलर ने मोबिलिटी प्रोग्राम के तहत अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के लिए हंगरी का रुख किया है.

हालांकि, कई छात्र मध्यमवर्गीय परिवारों के हैं और उनके लिए अमेरिका या पोलैंड जैसे देशों में ट्रांसफर आसान विकल्प नहीं है क्योंकि वहां शिक्षा पर खर्च काफी ज्यादा है.

चौबे में कहा, ‘मैं समझता हूं कि 20,000 छात्र (भारत लौटने वाले) एक बड़ी संख्या है और उन्हें समायोजित करना किसी चुनौती से कम नहीं है. हालांकि सरकार ने उनकी मदद के लिए कुछ खास नहीं किया. इन छात्रों को आसानी से मिस्र भेजा जा सकता था, क्योंकि कॉलेजों के पास उन्हें लेने की क्षमता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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