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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'ध्वस्त होती विरासत'- 130 साल पुरानी खुदा बख्श लाइब्रेरी के कुछ हिस्से को गिराने की योजना पर बिहार में विरोध शुरू

‘ध्वस्त होती विरासत’- 130 साल पुरानी खुदा बख्श लाइब्रेरी के कुछ हिस्से को गिराने की योजना पर बिहार में विरोध शुरू

संसद के मुताबिक खुदा बख्श लाइब्रेरी ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ है. अब, एलिवेटेड रोड के लिए नीतीश सरकार की योजना के तहत इसके ऐतिहासिक कर्जन रीडिंग हॉल को तोड़ने की तैयारी की जा रही है.

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पटना: 1891 में जब इसे खोला गया था तब खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी अपनी तरह की ऐसी पहली लाइब्रेरी थी जिसमें आम लोग जा सकते थे. करीब 12 साल बाद भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन पटना में गंगा किनारे स्थित इस लाइब्रेरी का दौरा करने पहुंचे तो इसमें संग्रहित पांडुलिपियों को देखकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इसके विकास के लिए धन उपलब्ध कराया. आभार जताने के लिए लाइब्रेरी की तरफ से 1905 में कर्जन रीडिंग हॉल की स्थापना की गई.

तब से यह रीडिंग हॉल हमेशा चहल-पहल भरा रहा है, जहां आकर दुनियाभर के छात्र, विद्वान और शोधकर्ता अपने कैरियर को नया आयाम देने की कोशिश करते हैं.

लेकिन आज जब नई सड़कों और फ्लाईओवर के साथ पटना की तस्वीर बदल रही है, यदि एक एलिवेटेड रोड के निर्माण संबंधी बिहार पुल निर्माण निगम (पुल निर्माण निगम) के प्रस्ताव को नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने मंजूरी दे दी तो इस रीडिंग हॉल और लाइब्रेरी के कुछ अन्य हिस्सों का अस्तित्व खत्म हो सकता है.

प्रस्तावित नए एलिवेटेड कॉरिडोर को ऐतिहासिक गांधी मैदान के पास स्थित करगिल चौक को एनआईटी पटना और अंतत: गंगा नदी के तट के साथ बनने वाले 24 किलोमीटर लंबे महत्वाकांक्षी चार-लेन मार्ग से जोड़े जाने की योजना है.

खुदा बख्श लाइब्रेरी के पूर्व निदेशक और पटना यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. इम्तियाज अहमद ने दिप्रिंट से कहा कि उन्हें इस बात की ‘हैरानी है कि हमारी विरासत को ध्वस्त करने का ऐसा प्रस्ताव’ पेश किया गया है. अहमद अब भी लाइब्रेरी की गवर्निंग बॉडी में शामिल है, जिसके पदेन अध्यक्ष बिहार के राज्यपाल हैं.

अहमद ने कहा, ‘प्रस्ताव में (कर्जन रीडिंग हॉल के अलावा) पुस्तकालय के एक छोटे बगीचे को हटाने की भी तैयारी की गई है. यदि ऐसा हुआ तो जगह की कमी हो जाएगी और यहां आने वाले वीवीआईपी को सुरक्षा मुहैया कराने में मुश्किलें आएंगी.


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लाइब्रेरी की विरासत

लाइब्रेरी की स्थापना सीवान के शीर्ष जमींदार खानदान के सदस्य खान बहादुर मौलवी खुदा बख्श ने की थी. खुदा बख्श को अपने पिता से 1,400 पांडुलिपियां विरासत में मिली थीं और उन्होंने साधनहीन कुलीन लोगों से ऐसी और तमाम पांडुलिपियां जुटाने के लिए अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा उपमहाद्वीप की यात्रा में गुजार दिया. उन्होंने एक ट्रस्ट के जरिये इन्हें लोगों को समर्पित करने से पहले लगभग 4,000 पांडुलिपियां एकत्र कर ली थीं.

1969 में भारत सरकार ने संसद में पारित एक विधेयक के जरिये खुदा बख्श लाइब्रेरी को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के तौर पर मान्यता दी. यह केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की तरफ से वित्त पोषित है.

आज, लाइब्रेरी में 21,000 से अधिक पांडुलिपियां हैं, जिनमें ज्यादातर अरबी और फारसी में हैं. लेकिन साथ ही 100 से अधिक संस्कृत में भी हैं. इसमें 2.5 लाख से अधिक किताबें हैं- उनमें से कुछ बहुत दुर्लभ हैं और यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में भी इनका जिक्र है.

इसकी बेशकीमती विरासत में अमोरनामा की एकमात्र प्रति भी है, जो 16वीं शताब्दी में बनी मिनिएचर पेंटिंग का एक संग्रह है और इस पर मुगल बादशाह शाहजहां की मुहर है. यहां 14वीं सदी के ख्यात शायर हाफिज का एक दुर्लभ संग्रह भी है, जिनकी कुछ पंक्तियों को क्लासिक हिंदी फिल्म मुगल-ए-आज़म में लिया गया था.

इस लाइब्रेरी में मानव और पशुओं की शल्य चिकित्सा पर 12वीं शताब्दी की एक किताब भी है, जिसे स्पेन की एक लाइब्रेरी से हासिल किया गया था और हर्बल पौधों के लाभ बताने वाली 15वीं शताब्दी की एक पांडुलिपि भी है.

इसने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रतिष्ठित मेहमानों की मेजबानी की है और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी यहां आने वाले लोगों में शामिल थे. इसके अलावा दर्जनों राजदूत, विदेशी गणमान्य व्यक्ति समय-समय पर यहां आते रहते हैं.


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पटना में आक्रोश

खुदा बख्श लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़े जाने के प्रस्ताव पर पटना के लोगों में काफी नाराज़गी है.

पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर एन.के. चौधरी ने कहा कि बड़े बदलाव स्वीकार नहीं किए जाने चाहिए.

चौधरी ने कहा, ‘अगर कोई मामूली फेरबदल होता है जो लाइब्रेरी का कामकाज प्रभावित न करे तो इसे स्वीकार कर लिया जाना चाहिए. लेकिन किसी बड़े बदलाव का विरोध करना चाहिए. लगभग 2,400 साल पहले प्लेटो ने डॉकयार्ड के बजाये मनुष्यों को संवारने पर जोर दिया था. खुदा बक्श लाइब्रेरी जैसी संस्थाओं में इंसान बनाए जाते हैं.’

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (आईएनटीएसीएच) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इसमें छोटा-मोटा बदलाव भी न होने देने का आग्रह किया है और जरूरत पड़ने पर अदालत जाने की धमकी भी दी है.

आईएनटीएसीएच के पटना चैप्टर के प्रमुख जे.के. लाल ने कहा, ‘हम इन फ्लाईओवर और सड़कों के निर्माण के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आभारी हैं. लेकिन हमारी धरोहर को संरक्षित किया जाना चाहिए. यूरोप में सरकारें धरोहर में शामिल इमारतों को संरक्षित करती हैं, उन्हें ध्वस्त नहीं करती हैं. यह समझना होगा कि ऐसी इमारतें न केवल मौजूदा पीढ़ी के लिए धरोहर हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अहम हैं.’

यह पहला मौका नहीं है जब सरकार और आईएनटीएसीएच के बीच टकराव सामने आया है. 2016 में राज्य ने 200 साल पहले डच व्यापारियों द्वारा गंगा के किनारे बनाए गए ऐतिहासिक पटना कलेक्ट्रेट भवन को ध्वस्त करने की तैयारी की थी. विरोध के बावजूद नीतीश कुमार ने नई इमारत की आधारशिला रखी, जिसके बाद आईएनटीएसीएच ने कोर्ट का रुख किया और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इमारत ध्वस्त करने पर रोक लगाई.

अपनी पहचान उजागर न करने के इच्छुक एक सरकारी इंजीनियर ने कहा, ‘नीतीश कुमार नए स्ट्रक्चर और संस्थान बनाने में भरोसा करते हैं, उन्हें संरक्षित करने में नहीं. उन्होंने एक नए संग्रहालय, नए बिजनेस मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, एक नई यूनिवर्सिटी की तो पहल की है लेकिन मौजूद संस्थान खराब हाल में हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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