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Friday, 22 November, 2024
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बजट, चुनाव अभियान, पेगासस पर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट- इस हफ्ते उर्दू प्रेस में क्या सुर्खियों में रहा

दिप्रिंट का राउंड-अप बता रहा है कि उर्दू मीडिया ने इस सप्ताह विभिन्न न्यूज इवेंट को कैसे कवर किया और उनमें से कुछ पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.

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नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 और आम बजट 2022-23 के अलावा बजट बाद विश्लेषण इस हफ्ते अधिकांश समय उर्दू अखबारों में सुर्खियों में छाया रहा. इसके अलावा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और खासकर उत्तर प्रदेश से जुड़ी खबरें लगभग हर दिन पहले पन्ने पर छाई रहीं.

दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि इस हफ्ते कौन-सी खबरें उर्दू अखबारों की पहले पन्ने की सुर्खियों में शुमार रहीं और उनमें से कुछ पर उनका संपादकीय रुख क्या रहा.


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आम बजट

आम बजट 2022-23 इस हफ्ते उर्दू मीडिया में मुख्य आकर्षण रहा. इंकलाब ने 2 फरवरी को अपने पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा, ‘आम बजट में आम आदमी को कोई राहत नहीं.’ सियासत ने अपनी हेडलाइन में यह बात प्रमुखता से उभारी कि चमड़े के सामान और ट्रांसफॉर्मर जैसी चीजें सस्ती होंगी और साथ ही महंगी होने वाली कुछ वस्तुओं का भी जिक्र किया. अखबार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी दोनों के बयानों को प्रमुखता से छापा गया. इसमें जहां मोदी ने बजट को आम भारतीयों के लिए अवसर लाने वाला बताया, वहीं राहुल गांधी ने कहा कि इसमें आम भारतीय के लिए कुछ भी नहीं है.

हालांकि, रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने इसे एक ऐसा बजट बताया, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से अर्थव्यवस्था को आर्थिक और सामाजिक मजबूती देने वाला साबित होगा. 3 फरवरी के अंक में रोजनामा ने पहले पेज पर राज्य सभा में विपक्षी सदस्यों की तरफ से की गई बजट की आलोचना को प्रमुखता से छापा जिनका कहना था कि सरकार बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और कोविड के कारण उपजी स्थिति से लोगों को राहत दिलाने में नाकाम रही है.

इंकलाब ने 2 फरवरी को अपने संपादकीय में लिखा कि बजट से समाज के हर वर्ग के लिए सफलता की उम्मीद करना वास्तविकता से परे है, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर प्रभावी ढंग से कुछ कदम उठाए जा सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इस संदर्भ में अखबार ने ईंधन की कीमतें घटाने और मनरेगा आवंटन में बढ़ोतरी की जरूरत बताई.

रोजनामा के संपादकीय का शीर्षक कुछ इस तरह था— ‘बजट: आम आदमी की समस्याएं बरकरार.’ अखबार ने तर्क दिया कि बजट में बेरोजगारी और महंगाई पर काबू पाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. इसमें इस बात को लेकर भी आलोचना की गई कि इस ‘बजट में पीपीपी पर फोकस किया गया है जो एक तरह से निजीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाला एक और शब्द है.’

सियासत ने अपने संपादकीय में लिखा, ‘बजट में आम आदमी के लिए कुछ भी नहीं है.’ साथ ही यह बात रेखांकित की कि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उम्मीद की जा रही थी कि सरकार आय और रोजगार के साधन बढ़ाने के संबंध में कोई घोषणा करेगी.

3 फरवरी को अपने संपादकीय में इंकलाब ने दलील दी कि बेरोजगारी की स्थिति और कोविड महामारी से लगे झटकों के मद्देनजर आंकड़ों को समझने और उनका विश्लेषण करने के कई अन्य तरीके हो सकते थे लेकिन बजट ऐसे अहम और जरूरी कदम उठाने में नाकाम रहा जिनकी इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है. उसी दिन रोजनामा के संपादकीय में पोस्ट ऑफिस संस्थानों को कोर बैंकिंग सुविधा में बदलने की घोषणा को देरी से उठाया गया ही सही लेकिन एक स्वागतयोग्य कदम बताया, साथ ही कहा कि यह 2016 में अचानक नोटबंदी के फैसले के बाद बैंकों के प्रति उभरे अविश्वास से उबरने का एक अच्छा उपाय है.

रोजनामा ने 3 फरवरी को अपने पहले पेज की रिपोर्ट में बताया कि रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण में यह दर 8.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है.


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विधानसभा चुनाव

उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव उर्दू अखबारों के पहले पन्ने पर सुर्खियों में रहे. दिल्ली से मेरठ जाते समय एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की कार पर कथित तौर पर फायरिंग की खबर 4 फरवरी को सियासत और इंकलाब दोनों के पहले पन्ने पर सुर्खियों में रही. एक दिन पहले, इंकलाब ने अमित शाह द्वारा बदायूं में प्रचार के लिए घर-घर पर्चे बांटे जाने की खबर और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के इस बयान को प्रमुखता से छापा कि यह चुनाव ‘भाईचारे और भाजपा के बीच लड़ाई’ है. उसी दिन कांग्रेस नेता प्रियंका गाधी द्वारा उत्तराखंड में घोषणापत्र जारी किए जाने की खबर भी सुर्खियों में रही जहां उन्होंने कहा कि देश में मुद्रास्फीति और बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच चुकी है.

इंकलाब ने 1 फरवरी को अखिलेश यादव द्वारा करहल से अपना नामांकन दाखिल किए जाने की खबर के साथ-साथ इस सूचना को भी अपनी सुर्खी बनाया कि देश के निर्वाचन आयोग ने फिजिकल रैलियों पर प्रतिबंध 11 फरवरी तक बढ़ा दिया है.

सियासत ने 30 जनवरी को ‘यूपी में भाजपा कमजोर पड़ रही’ शीर्षक वाले अपने संपादकीय में लिखा कि महामारी के कारण चुनावी अभियान में प्रतिबंध लागू हैं लेकिन भाजपा की तरफ से अपने अभियानों— जिसमें से एक में खुद गृह मंत्री ने हिस्सा लिया, में कोविड संबंधी सुरक्षा मानदंडों जैसे मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना आदि का जमकर उल्लंघन किया जा रहा है. साथ ही यह दावा भी किया कि गठबंधन को लेकर तत्परता दिखाकर अखिलेश यादव ने भाजपा के पास बहुत कम विकल्प छोड़े हैं.

पेगासस

30 जनवरी को सियासत के पहले पन्ने पर एकमात्र खबर द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट को लेकर थी जिसमें कहा गया था कि भारत ने रक्षा सौदे के हिस्से के रूप में इजरायल से जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस खरीदा है. एक दिन बाद सहारा और इंकलाब दोनों के पहले पन्नों में यह रिपोर्ट छपी कि न्यूयॉर्क टाइम्स के खुलासे के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट में एक नई जनहित याचिका दायर की गई है.

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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