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Sunday, 22 December, 2024
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मुंबई का हो रहा ‘कायापलट,’ सड़कों से पार्कों तक हैरिटेज की वापसी कर रही है BMC

बृहन्मुंबई नगर निगम का हेरिटेज सेल मुंबई के हेरिटेज स्ट्रीट फ़र्नीचर - मील के पत्थर को बैंडस्टैंड में पुनर्स्थापित करने के मिशन पर है.

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प्राइवेट बैंक में काम करने वाले मल्हारी पवार मुंबई के शिवाजी पार्क में पेड़ों के एक झुंड के नीचे बैठे आराम कर रहे थे. लंच करने के बाद उनका ये एक छोटा सा ब्रेक था. पास ही में एक छोटा, लेकिन भव्य पानी का फव्वारा था. उसके दोनों ओर दो बड़े सुंदर नक्काशीदार बेसिन थे. उन्होंने तकरीबन एक फुट दूर नीले रंग की नॉब को घुमाया और उसमें से पानी निकलने लगा. उन्होंने अपनी बोतल भरी और बड़ी तल्लीनता के साथ पानी का एक घूंट लिया.

यह पत्थर से बने मुंबई के उन कई प्याऊ में से एक है, जो 1800 के दशक के अंत और 1900 के शुरुआती दिनों के बीच इस शहर में लगाए गए थे. ज्यादातर शहर के पुराने ट्राम रास्तों पर लगे इन प्याऊ को व्यापारियों ने राहगीरों को फ्री में पानी मुहैया कराने के परोपकारी भाव के साथ बनाया था.

समय के साथ-साथ मुंबई के प्याऊ और शहर के अन्य हेरिटेज स्ट्रीट फर्नीचर- मसलन प्राचीन माइलस्टोन और बैंडस्टैंड जीर्ण-शीर्ण हो गए. अगर कहें कि एक आधुनिक महानगर के रूप में शहर के तेजी से होते कायापलट में ये पुराने अवशेष कहीं खो गए तो गलत नहीं होगा. लेकिन पिछले चार-पांच सालों में बीएमसी के प्रयासों से शहर की सड़कों पर खड़े ये हेरिटेज स्ट्रक्चर और इनसे जुड़ी कहानियां एक बार फिर जीवंत हो उठी हैं.

बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के हेरिटेज सेल ने अब तक दक्षिण मुंबई के कोलाबा से सायन तक, औपनिवेशिक युग के 15 मील के पत्थरों को बहाल किया है. सायन बॉम्बे का आखिरी प्वाइंट था. शहर के आखिरी कुछ बचे हुए बैंडस्टैंड में से एक कूपरेज बैंडस्टैंड दक्षिण मुंबई के फोर्ट इलाके में स्थित है. इसे एक बार फिर से लाइव म्यूजिक परफॉर्मेंस देने के लिए तैयार किया गया है. बैंडस्टैंड बैंड के म्यूजिक बजाने के लिए एक ढंकी हुई सार्वजनिक जगह होती है. मुट्ठी भर प्याऊ एक बार फिर से राहगीरों को पानी पिलाने के लिए शुरू किए जा चुके हैं. इसके अलावा बहुत से प्याऊ की मरम्मत का काम चल रहा है.

बीएमसी आमतौर पर अवैध झोपड़ियों और जर्जर हो चुकी इमारतों को ध्वस्त करने के लिए चर्चा में रहता है. लेकिन अब इसने बहुत सी हेरिटेज साइट के पुनर्निर्माण और नवीकरण करने का काम शुरू किया है.

बीएमसी के हेरिटेज सेल को संचालन करने वाले संजय सावंत ने कहा, ‘मील के पत्थरों की बहाली का काम पूरा कर लिया गया है. जिन जगहों से ये पत्थर पूरी तरह से गायब हो चुके हैं, वहां हमने पत्थरों पर नक्काशी कर नए माइलस्टोन बनाए है. अब हम प्याऊ पर ध्यान दे रहे हैं. उनमें पीने का पानी वापस लाने की कवायद चल रही है.

उन्होंने बताया, ‘हमने मेट्रो फव्वारा (दक्षिण मुंबई में मेट्रो सिनेमा के बाहर फिट्जगेराल्ड वाटर फाउंटेन) और फोर्ट के प्रतिष्ठित फ्लोरा फाउंटेन और कूपरेज बैंडस्टैंड को बहाल किया, जो शहर के मनोरंजन और संस्कृति का एक हिस्सा रहा था.’


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संस्कृति को आकार देने वाली विरासत, तब और अब

70 साल की रानाजा थट्टे का घर कूपरेज गार्डन बैंडस्टैंड के सामने है. जब भी वह अपनी छत पर बैठती हैं और बैंडस्टैंड से लाइव संगीत सुनती हैं, तो उन्हें लगता है मानो वह पुराने समय में वापस चली गई हों.

1960 और 1970 के दशक के आखिर में उनके पिता उन्हें हर रविवार शाम को बगीचे में बैंडस्टैंड पर लाइव परफॉर्मेंस सुनने के लिए ले जाते थे. थट्टे याद करते हुए बताती हैं, ‘और मेरी शाम एक गुब्बारा खरीदने के साथ पूरी होती थी.’

लेकिन फिर धीरे-धीरे वीकली म्यूजिक परफॉर्मेंस बंद होती चली गईं और 1867 में एस्प्लेनेड फी फंड कमेटी द्वारा बनाया गया बैंडस्टैंड बेकार हो गया.

वास्तु विधान प्रोजेक्ट्स से जुड़े राहुल चेंबूरकर ने कहा, ‘लकड़ी से बना इसका ढांचा पूरी तरह से सड़ चुका था. हमें पहले इसके ऐतिहासिक संदर्भों को समझना था. उसके बाद हमने पूरी संरचना को तोड़ा और फिर उसे समेटा.’ वास्तु विधान प्रोजेक्ट्स ने न केवल कूपरेज बैंडस्टैंड को ठीक करने, बल्कि मुंबई के माइलस्टोन और अधिकांश प्याऊ को बहाल करने के लिए भी बीएमसी के साथ भागीदारी की है.

चेंबूरकर ने बताया, ‘हमने जमीन पर एक पत्थर का आधार बनाया और पारंपरिक लकड़ी के शिल्प कौशल का इस्तेमाल करके ढांचे को फिर से खड़ा कर दिया. लकड़ी का काम कर रही टीम ने इसे तैयार करते समय पारंपरिक तरीके से जोड़ने वाली तकनीक का इस्तेमाल किया, जो भारत के लिए बेहद अनोखी है. हमने लकड़ी के काम में एक भी कील नहीं लगाई थी. यह इस पूरे ढांचे की खासियत है.’

फिर से तैयार किया गया यह बैंडस्टैंड 2018 में सार्वजनिक तौर पर खोल दिया गया था. तब से यह संगीत कार्यक्रमों की मेजबानी करता रहा है लेकिन यहां अभी भी रेगुलर परफॉर्मेंस नहीं दी जाती है जैसी थाटे के बचपन के समय में होती थीं. नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स ने इस महीने मार्च में यहां एक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित करने के लिए बीएमसी का सहयोग किया था.

वह कहती हैं, ‘जैसे पहले होता था, उन्हें हर रविवार को सभी के लिए मुफ्त संगीत समारोह शुरू करना चाहिए. बच्चे इसका पूरा आनंद उठाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं है कि बैंडस्टैंड का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. लोग अपने तरीके से इस जगह का इस्तेमाल करते हैं. कुछ वहां योगा करते हैं तो कुछ मेडिटेशन करते नजर आ जाएंगे.’

बीएमसी के सावंत ने कहा, शहर के अन्य बैंडस्टैंड जिनमें से एक वीरमाता जीजाबाई भोसले उद्यान (बाइकुला चिड़ियाघर) में है. ठीक-ठाक स्थिति में है. लेकिन बांद्रा बैंडस्टैंड को बहाल करने की जरूरत है.

सेंट थॉमस कैथेड्रल में ‘जीरो पॉइंट’ पट्टिका/दिप्रिंट/ रीति अग्रवाल

बैलगाड़ियों वाली मुंबई की कहानी बयां करते ओबिलिस्क

फोर्ट के सेंट थॉमस कैथेड्रल में एक सैलानी चर्च के बाहर एक पट्टिका पर लिखी जानकारी पढ़ने और एक तस्वीर खींचने में व्यस्त हैं.

यह चर्च हॉर्निमन सर्कल के पास एक बाईलेन के कोने में बना है. इस सर्कल को किसी समय में आने-जाने के साधनों के लिए सिर्फ बैलगाड़ियों और घोड़ा गाड़ियों के लिए जाना जाता था. सैलानी जिस पट्टिका को इतने ध्यान से देख रहा था, बताता है कि यह शहर का ‘जीरो मील’ था.

गिरजाघर के सुरक्षा गार्ड सौरभ पाटकर ने बताया, ‘कुछ साल पहले जब चर्च में कुछ बहाली का काम चल रहा था, तो इस पट्टिका की भी मरम्मत की गई ताकि इसे आसानी से पढ़ा जा सके. पिछले कुछ महीनों से यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. लोग पट्टिका पढ़ने और तस्वीर लेने आते हैं और फिर चर्च को अंदर से देखने जाते हैं.’

चेंबूरकर ने कहा कि बॉम्बे जैसा कि तब अस्तित्व में था, में एक बैटलमेंट वॉल थी, जिसके अंदर एक पारंपरिक शहर था.

उन्होंने बताया, ‘वहां गेट थे और सेंटर में एक चर्च था- सेंट थॉमस कैथेड्रल. और फिर बैटलमेंट वॉल को ढहा दिया गया और शहर का विस्तार सायन तक कर दिया गया. ट्राम आने से पहले आने-जाने के लिए विक्टोरिया या बैलगाड़ी का इस्तेमाल किया जाता था या फिर लोग पैदल ही आया-जाया करते थे. दूरी को मापने की इकाई मील थी और जीरो मील सेंट थॉमस कैथेड्रल था. शहर भर के अन्य सभी माइलस्टोन में लिखा होता था-‘सेंट थॉमस कैथेड्रल से एक मील’, ‘सेंट थॉमस कैथेड्रल से दो मील’, और इसी तरह आगे..

गाड़ियों के आने से ट्राम धीरे-धीरे मुंबई की सड़कों से गायब हो गए और मील के पत्थरों का अब कोई इस्तेमाल नहीं था. वो बेकार हो चुके थे. वे उस समय की बुनियादी ढांचा प्रबंधन प्रणाली की एक झलक देते हुए बस ऐतिहासिक निशान बन कर रह गए. जब तक बीएमसी और वास्तु विधान ने इस साल इन्हें फिर से बहाल करने का काम पूरा नहीं किया था, तब तक उनकी उपेक्षा होती रही. बीएमसी के मुताबिक उन्होंने 11 माइलस्टोन को फिर से बहाल किया है. इसके अलावा पूरी तरह से गायब हो चुके पांच अन्य को पत्थर और नक्काशी के साथ फिर से तैयार किया जा रहा है.

चेंबूरकर ने कहा कि सभी मील के पत्थरों में एक क्यूआर कोड भी है और इन सभी माइलस्टोन की जानकारी के साथ एक ऐप लॉन्च करने की योजना है.

‘विरासत की छोटी-छोटी निशानियां’

मुंबई के एक वरिष्ठ कला शिक्षक गंगाधरन मेनन को हाल ही में उस समय इन माइलस्टोन के बारे में पता चला था, जब उन्हें बहाल किया गया, एक सर्किट में बांधा गया और शहर भर में कई हेरिटेज वॉक का हिस्सा बनाया गया.

मेनन ने कहा, ‘एक शहर जो अपनी छोटी चीजों की देखभाल नहीं करता है वह वास्तव में अपना काम नहीं कर रहा होता है. यह सिर्फ तभी हुआ जब प्याऊ और बैंडस्टैंड बहाल किए गए. आज शहर की धरोहर को इसकी संस्कृति के साथ प्रासंगिक बना रहे हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘धरोहर की खूबियां इसकी छोटी-छोटी बारीकियों में छिपी होती हैं.’

उदाहरण के तौर पर हर प्याऊ की अपनी अनोखी खूबियां हैं. यहां एक छाता, एक घंटाघर, हर एक में एक अलग वाटर डिस्पेंसिंग सिस्टम, जानवरों की प्यास बुझाने के लिए पानी इकट्ठा करने के लिए तल में बनाई गई एक जगह है.

चेंबूरकर बताते हैं, ‘दुर्भाग्य से प्याऊ के लिए कोई उचित दस्तावेज नहीं थे. वे स्ट्रीट फ़र्नीचर थे, इनके लिए कोई बेहतरीन डिज़ाइनर नहीं था. फिर भी उन्हे काफी पेचीदे तरीके से बनाया गया था. हमने इनका उचित दस्तावेजीकरण किया और महसूस किया कि द्वीप शहर में लगभग 100 प्याऊ होंगे. मुंबई उपनगर पहले गांव थे और कुओं पर निर्भर रहते थे.’

उन्होंने कहा, ‘0हमने लगभग 50 प्याऊ को ढूंढ़ निकाला हैं. इनमें से तकरीबन 25 को कुछ प्रयासों से पुनर्जीवित किया जा सकता है. चार को बहाल कर दिया गया है और बीएमसी के साथ 18 अन्य को बहाल करने की योजना है.’

ठीक किए गए प्याऊ एक बार फिर से राहगीरों के लिए मुफ्त पानी पीने के ठिकाने बन गए हैं.

शिवाजी पार्क में रामजी सेतिबा प्याऊ से पवार का बोतल भरना इसका प्रमाण है.

वह कहते हैं, ‘करीब 20 दिन पहले किसी ने नल चुरा लिया था. फिर भी शिवाजी पार्क में आने वाला हर व्यक्ति यहां से पानी की बोतल भरता है क्योंकि फ्री पीने के पानी का कोई दूसरा विकल्प नहीं है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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