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Friday, 22 November, 2024
होमदेशखून के धब्बे और गोलियों के निशान बयां करते हैं, जम्मू-कश्मीर स्कूल में मारी गई सिख प्रिंसिपल, हिंदू शिक्षक की दास्तान

खून के धब्बे और गोलियों के निशान बयां करते हैं, जम्मू-कश्मीर स्कूल में मारी गई सिख प्रिंसिपल, हिंदू शिक्षक की दास्तान

चार आतंकवादी, जिनमें से केवल दो के पास ही पिस्तौल थी, सुबह 11 बजे के करीब स्कुल में घुसे और उन्होंने लोगों की पहचान के लिए परेड करवाने के बाद उन दोनों को अलग करके मार डाला.

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श्रीनगर: गुरुवार की मनहूस सुबह करीब 11 बजे श्रीनगर के संगम ईदगाह इलाके के बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल के गेट से चार युवक पूरी लापरवाही का साथ गुजरे और 15 मिनट के भीतर वे अपने पीछे सदमे, अविश्वास की एक ऐसी आतंकित मनोदशा छोड़ गए, जिसने कश्मीरी पंडित समुदाय को लोगों को अपनी जन्मभूमि फिर से छोड़ने पर मजबूर कर दिया है.

इस शुक्रवार को दिप्रिंट ने उस स्कूल का दौरा किया जहां प्रधानाचार्य सतिंदर कौर और शिक्षक दीपक चंद की, बाज़ाब्ता पहचान करने के बाद, गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस घटना ने 1990 के दशक के दौरान कश्मीर के उन हालात की फिर से याद दिला दी है जब कश्मीरी पंडितों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया था.

एक दिन पहले ही एक पुलिसकर्मी द्वारा धोए जाने के बावजूद, प्रिंसिपल के कमरे के बाहर लगी फर्श की टाइलों में अभी भी खून के धब्बे दिखाई देते हैं, और दीवारों पर अब भी गोलियों के निशान हैं जो स्कूल में हुए मौत के तांडव की गवाही देते हैं.

एक कब्रगाह के ठीक सामने बने इस स्कूल में अब जो सन्नाटा पसरा है, वह सिर्फ इलाके में बनी मस्जिद से आने वाली अजान की आवाज से ही टूटता है.

शहर के बाहरी इलाके में और श्रीनगर की हलचल वाली जिंदगी से दूर बने इस स्कूल की जीर्ण-शीर्ण इमारत अपने आस–पास के ग्रामीण परिवेश के साथ काफी कुछ मेल खाती सी दिखती है.

स्कूल की दीवारों में गोली के छेद जहां प्राचार्य और शिक्षक की मौत हुई | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

जबरन बाहर निकाला गया, पहचान की गई और फिर गोली मार दी गई

स्थानीय लोगों और स्कूल में मौजूद एकमात्र देखरेख करने वाले शख्स (केयरटेकर) ने बताया कि ये चार आतंकवादी पहले प्रिंसिपल के कमरे में घुसे, जो कालीन से ढंका हुआ बड़ा सा कमरा है और जिसमें सिर्फ एक लकड़ी की मेज और कुर्सी थी, और उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर किया.

इसके बाद दो और आतंकी परिसर के भीतर ही बनी एक अन्य इमारत में गए जहां शिक्षक लोग मौजूद थे और उन्हें भी जबरन बाहर निकला

इसके बाद पिस्तौल से लैस इन आतंकवादियों ने उन्हें अपने पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा और फिर इस भीड़ में से एक हिंदू शिक्षक चंद को चुन कर निकाला गया.

फिर बाकी शिक्षकों को दूसरे कमरे में जाने और वहीं बने रहने के लिए कहा गया, जबकि चंद को प्रिंसिपल के कमरे में ले जाया गया जहां कौर पहले से खड़ी थीं.

आतंकियों ने सभी शिक्षकों के मोबाइल फोन भी इकठ्ठा कर के बाहर फेंक दिए थे.

इन चार लोगों ने कौर और चंद के साथ कुछ सेकंड तक बातचीत की और फिर लगातार पांच गोलियों की आवाज के साथ वहां छाया सन्नाटा टूटा.

इनमें से तीन गोलियां कौर को लगीं और अन्य दो गोलियां चंद के बदन में जा धंसी जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई. कौर उस जगह से कुछ कदम दूर जा गिरी जहां चंद खड़े थे.

बाकी के सभी कर्मचारी और शिक्षक अंदर ही कैद रहे और इनमें से कोई बाहर यह देखने नहीं निकल रहा था कि क्या हुआ है.

इसके बाद चारों आतंकवादी, जिनमें से केवल दो के पास पिस्तौल थी, स्कूल की दीवारों को फांद कर बाहर भाग गए और ग्रामीण परिदृश्य में घुल-मिल गए.

जिस स्थान पर दोनों की हत्या की गई थी, वहां एक स्थानीय निवासी | सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

यहां दहशत का आलम यह था कि कुछ स्थानीय लोगों द्वारा गोलियों की आवाज सुनकर दौड़ते हुए आने के बाद भी सभी कर्मचारी कमरे के अंदर ही रहे. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब इलाके के कई लोग इकट्ठा हो गए, तब जाकर बाकी के कर्मचारी यह देखने के लिए बाहर निकले कि आखिर हुआ क्या है?

स्थानीय लोगों ने ही एक वाहन की व्यवस्था की और कौर को अस्पताल ले गए, जो उस समय तक भी जीवित थीं और अपने जीवन की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही थीं.

शुक्रवार को जब दिप्रिंट ने स्कुल का दौरा किया तो वहां कोई भी शिक्षक मौजूद नहीं था.

पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक गुट रेजिस्टेंस फ्रंट ने इस घटना के बाद जारी किए गए एक बयान में दोनों को ‘कठपुतली’ बताते हुए उनकी हत्या की जिम्मेदारी ली है.

सुरक्षा बलों के सूत्रों ने इस तथ्य की ओर इशारा किया वे (आतंकी) खास तौर पर इस स्कूल में आए और लोगों से पहचान पत्र मांगे, जिससे पता चलता है कि वे जानते थे कि यहां एक सिख और हिंदू काम कर रहे थे, पर वे उनके चेहरे नहीं पहचानते थे.

जरूरतमंद छात्रों की सहायता के लिए कौर अपने पास से पैसे खर्च किया करती थीं

इस स्कूल की केयरटेकर ने प्रिंसिपल को एक गर्मजोशी से भरी महिला के रूप में याद किया.

कौर के बारे में बात करते हुए बुरी तरह से रोते हुए केयरटेकर ने कहा कि ‘वह एक बहुत ही दयालु महिला थी. उन्होंने कभी भी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया और यहां तक कि गरीब मुस्लिम बच्चों की मदद के लिए अपने वेतन से पैसा भी खर्च किया करती थीं.’

वह इस बात से चकित हैं कि कौर को निशाना बनाया गया और बताया कि अफवाह यह भी है कि उन्होंने चंद की रक्षा करने की कोशिश की और इसलिए उन्हें गोली मार दी गई.

हालांकि, स्कुल के किसी भी कर्मचारी या केयरटेकर ने वास्तव में हत्याओं को होते हुए देखा नहीं था.

इन अफवाहों की सत्यता के बारे में पूछे जाने पर रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा कि ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या उन्हें चंद को बचाने की कोशिश करने के लिए गोली मारी गई थी अथवा नहीं. चूँकि वहां वास्तव में इसे देखने के लिए कोई मौजूद नहीं था, इसलिए यह सिर्फ बातें हीं हैं. तथ्य यह है कि उन दोनों को निशाना बनाया गया और फिर गोली मार दी गई.’

दिप्रिंट ने श्रीनगर के अल्लाउचा बाग इलाके का भी दौरा किया जहां कौर अपने दो बच्चों, बैंक में काम करने वाले पति और अपनी सास के साथ रहती थी. इस इलाके में सिखों और मुसलमानों की मिश्रित आबादी है.

उनके पड़ोसी बिलाल अहमद ने कहा, ‘वह एक बहुत ही धर्मपरायण महिला थी. यहां तक कि अगर मैं उनसे दिन में चार बार भी मिलता तब भी वे हमेशा सलाम करती और बातें किया करती थी.’

उन्होंने कहा कि यहां सिख और मुसलमान इतने सालों से एक साथ शांति से रह रहे हैं.

उन्होंने अपना दुख और आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘मैं वाकई नहीं समझ सकता कि इस तरह की महिला को क्यों निशाना बनाया गया ?’

शौकत अहमद, जिनका परिवार कौर के बहुत करीब था, ने कहा कि जब वह कोविड से ग्रस्त थे, तो वह उनके घर की खिड़की पर आई और उनके परिवार की मदद के लिए उन्होंने कुछ पैसे के साथ कपड़े का एक टुकड़ा अंदर फेंक दिया.

वे कहते हैं, ‘वह एक बहुत है दयालु महिला थी. यहां तक कि वह एक मुस्लिम लड़की, जिसने अपने माता-पिता को खो दिया था, की शिक्षा और उसके व्यक्तिगत खर्चों को भी प्रायोजित कर रही थी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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