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Friday, 20 December, 2024
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गर्भपात का काला बाज़ार, दलाल, स्कैन वैन — हरियाणा में ‘बेटी बचाओ’ या ‘बेटी हटाओ’

बेटी बचाओ ने कुछ लाभ कमाए हैं, लेकिन दिप्रिंट की एक जांच में पाया गया कि बेटों के लिए हरियाणा की 9 साल की भूख कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते रैकेट को बढ़ावा दे रही है. लिंगानुपात और एफआईआर दोनों कम हो रहे हैं.

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जिंद/हिसार/रोहतक: हरियाणा के रोहतक में एक सामुदायिक केंद्र के बाहर दोपहर की चिलचिलाती धूप में कपड़े में लिपटी एक छोटी सी गठरी पड़ी थी. समय रहते राहगीरों की नज़र उस पर पड़ी और उन्होंने पुलिस को फोन किया. महज़ तीन दिन के लगभग बेजान शिशु को अस्पताल ले जाया गया. दो हफ्ते बाद, उसके माता-पिता का पता मालून नहीं हैं, लेकिन उनका उद्देश्य साफ है — उन्हें लड़की नहीं चाहिए.

रोहतक के एक अन्य हिस्से में एक और बच्चे की कहानी अलग तरह से सामने आई. कुछ महीने पहले 28-वर्षीय पूजा सोनी को एक असंभव विकल्प का सामना करना पड़ा — या तो वे अपनी कन्या भ्रूण का गर्भपात कराएं, या बिना किसी नौकरी, शैक्षिक योग्यता, संसाधनों के खुद उसकी देखभाल करें. उन्होंने अपनी दो बड़ी बेटियों को पीछे छोड़ते हुए बाद वाला विकल्प चुना. कीमत भारी है, लेकिन वे अपने बच्चे को, जो अब छह महीने की है, मारना बर्दाश्त नहीं कर सकीं.

युवा मां की बाईं बांह पर “भोली पूजा” गुदा हुआ है. उन्होंने कहा, “मैंने यह टैटू गर्भधारण के बाद बनवाया था. हम सभी बहुत खुश थे”, लेकिन जब उन्हें लिंग के लिए प्रसव पूर्व निदान परीक्षण (पीएनडीटी) में “धोखा” दिया गया, तो झगड़े और मारपीट शुरू हो गई. उनकी दाहिनी बांह पर अभी भी लोहे से जलने के निशान हैं, जो कथित तौर पर उनकी सास द्वारा गर्भपात से इनकार करने के बाद दिया गया था.

हरियाणा के जिलों में यात्रा करते समय, “बेटी बचाओ”, “जन्म का अधिकार” और “कन्या भ्रूण हत्या एक अपराध है” संदेशों आपका पीछ करते हैं — चाहे वो ट्रैफिक सिग्नल के पास के साइन बोर्ड हों, दुकानों के सामने हों या दीवारों पर बनी ग्राफिटी हों.

लेकिन कन्या भ्रूण हत्या और शिशुहत्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में हरियाणा के पानीपत में शुरू की गई योजना “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” ने बेटों की गहरी इच्छा को रोकने के लिए कुछ नहीं किया है. कई लोगों के लिए, यह अभी भी “बेटी हटाओ” है.

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ संदेश पूरे हरियाणा में एक आम दृश्य है | फोटो: बिस्मी तस्कीन/दिप्रिंट

कानूनों और वादों के बावजूद, हाल के वर्षों में हरियाणा में लिंग अनुपात में गिरावट आई है, जबकि यह 2015 में 1,000 लड़कों में से 876 लड़कियों से बढ़कर मार्च 2024 तक 914 हो गई, यह 2022 में 942 से तेज़ी से गिरकर 2023 में 921 हो गई.

दिप्रिंट द्वारा एक्सक्लूसिव तौर पर हासिल किए गए हरियाणा की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ टीम के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले पांच साल में प्री-कंसेप्शन और प्री-नेटाल डायग्नोस्टिक तकनीक (पीएनडीटी) अधिनियम और गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत मार्च 2024 तक कुल 1,189 एफआईआर दर्ज की गई हैं. इसका अनिवार्य रूप से मतलब यह है कि पिछले छह साल में अंतर-राज्यीय छापे सहित केवल उतने ही छापे मारे गए.

Graphic by Soham Sen
चित्रण : सोहम सेन

हालांकि, वरिष्ठ डॉक्टर बताते हैं कि यह डेटा पुलिस के डेटा से थोड़ा भिन्न हो सकता है. एमटीपी उल्लंघनों की शिकायत शिकायतकर्ताओं द्वारा सीधे पुलिस से की जा सकती है, जबकि पीएनडीटी उल्लंघनों के लिए एक औपचारिक प्रक्रिया होती है. इसके अलावा, एमटीपी उल्लंघन अक्सर पीएनडीटी छापों के दौरान उजागर होते हैं, क्योंकि लिंग चयन के सबूत के साथ अवैध गर्भपात सामग्री भी मिल सकती है.

दिप्रिंट की जांच में यह भी पाया गया कि घरों और क्लीनिकों में बंद दरवाजों के पीछे एक भयावह प्रवृत्ति पनपती है. कन्या भ्रूण हत्या की तेज़ी से बढ़ती मांग काले बाज़ार को बढ़ावा दे रही है. सख्ती के बावजूद अवैध लिंग परीक्षण और पिछले दरवाजे से फल-फूल रहे हैं. इसकी सुविधा चीन से आने वाली सस्ती, पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनें, रात-रात भर काम करने वाले डॉक्टर, साथ ही नर्सें और अवैध लिंग-निर्धारण और गर्भपात सेवाओं के लिए दलाल के रूप में काम करने वाले अन्य लोग हैं. इनमें से कई नेटवर्क पहचान से बचने के लिए राज्य की सीमाओं के पार काम करते हैं.

हिसार के अलीपुर की 26-वर्षीय इस महिला की शादी के 7 साल के भीतर चार बेटियां हैं, जिनकी उम्र 1 से 5 साल के बीच है. अब, वे फिर से छह महीने की गर्भवती हैं | फोटो: बिस्मी तस्कीन/दिप्रिंट

हरियाणा के कई गांवों में जहां 25 मई को सभी 10 सीटों पर मतदान होना है, दिप्रिंट ने ऐसी कई महिलाओं से मुलाकात की जो एक के बाद एक बच्चे को जन्म दे रही हैं और गर्भपात का सामना कर रही हैं और परिवार में केवल एक पुरुष उत्तराधिकारी के लिए अपने स्वास्थ्य को खतरे में डाल रही हैं.

हरियाणा की एक नर्स, जो कभी ‘दलाल’ के नाम से मशहूर थीं, ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “इसमें शामिल पैसा बहुत बड़ा है. ये चीज़ें इसलिए होती हैं क्योंकि लोग अभी भी लड़का चाहते हैं. दो लड़कियां होने पर वे बेचैन हो जाते हैं. लोग लाखों में भुगतान करने को तैयार हैं. यहां तक कि गरीब भी लिंग निर्धारण के लिए कुछ भी बेचने को तैयार रहते हैं.”


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एफआईआर और जन्म दर में गिरावट

सतही स्तर पर हरियाणा की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्कीम और उससे जुड़े डॉक्टर और कानूनी लोग एक अच्छी तरह से काम करने वाले प्रणाली के जैसे लगते हैं.

क्रमशः लिंग चयन और अवैध गर्भपात को रोकने के उद्देश्य से कानूनों को लागू करने के लिए ज़मीनी स्तर पर प्रयास जोरों पर हैं.

पीएनडीटी नोडल अधिकारी के रूप में सेवारत डॉक्टर यह सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं कि कानूनी दिशानिर्देशों का पालन किया जाए, सहायक नर्स दाइयों और आशा कार्यकर्ता गर्भधारण की निगरानी करते हैं, जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग जागरूकता को बढ़ावा देते हैं और अल्ट्रासाउंड केंद्रों की निगरानी करते हैं.

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के हरियाणा परियोजना समन्वयक गिरधारी लाल सिंघल के अनुसार, पहले भी अवैध लिंग निर्धारण पर रोक लगाने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन 2015 के बाद से वे अधिक व्यवस्थित और प्रभावी हो गए हैं.

 

रोहतक के समरगोपालपुर गांव में आगनवाड़ी केंद्र में ‘बेटी बचाओ’ की शपथ लेती महिलाओं की फाइल फोटो | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “पहले सीएम कार्यालय द्वारा कोई सीधी निगरानी नहीं थी और केवल स्वास्थ्य सेवाएं ही सब कुछ प्रबंधित करती थीं. 2015 से पहले कम गिरफ्तारियां होती थीं, लेकिन उसके बाद से हर शिकायत पर एफआईआर दर्ज होती है और गिरफ्तारियां होती हैं. अब एक निर्धारित प्रोटोकॉल है और एक पैटर्न का पालन किया जाता है.”

सिंघल ने कहा कि छापेमारी में अब गर्भवती महिलाओं को भी अनिवार्य रूप से धोखेबाज़ के रूप में शामिल किया जाता है, जिससे नतीजे अधिक विश्वसनीय हो जाते हैं.

हालांकि, डेटा कन्या भ्रूण हत्या विरोधी कानूनों के तहत दर्ज एफआईआर में उतार-चढ़ाव दिखाता है, जिसमें आम तौर पर गिरावट की दिखाई देती है. 2016 में 271 के उच्चतम स्तर से, इन कानूनों के तहत एफआईआर 2023 में घटकर सिर्फ 85 रह गईं जो मार्च 2024 तक 15 थीं. इस बीच, इस क्षेत्र में लिंग अनुपात 2020 से लगातार गिर रहा है.

दिप्रिंट द्वारा प्राप्त हरियाणा नागरिक पंजीकरण डेटा के अनुसार, राज्य के 22 जिलों में लिंगानुपात भिन्न-भिन्न है, जबकि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले चरखी दरदरी (1055) और फतेहाबाद (993) हैं और सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम (दोनों 871) हैं, इसके बाद रोहतक (879), कैथल (886), पानीपत (887), जिंद (890), फरीदाबाद (898), रेवाड़ी (900), और हिसार (911) है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जन्म के समय सामान्य लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 930 से 980 महिलाओं तक होता है. इस सीमा से नीचे की कोई भी चीज़ लिंग-चयनात्मक गर्भपात या शिशुहत्या की संभावित व्यापकता का सुझाव देती है.

छापों की संख्या में कमी क्यों?

डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों का सुझाव है कि जहां ज़मीनी स्तर पर प्रवर्तन तेज़ हो गया है, वहीं लिंग चयन स्कैन और अवैध गर्भपात के अपराधी अंडरग्राउंड हो गए हैं. परिणामस्वरूप, छापेमारी के लिए ज़रूरी सूचना का प्रवाह कम हो गया है.

छापों की कम संख्या पर हिसार के महाराजा अग्रसेन सिविल अस्पताल में पीएनडीटी के नोडल अधिकारी डॉ. प्रभु दयाल ने कहा, “सिंडिकेट ने अपनी कार्यप्रणाली बदल दी है और गुप्त मुखबिरों से शायद ही कोई सूचना मिलती है. पहले, (एक मामले में) केवल एक ही दलाल होता था, लेकिन अब कई हो गए हैं और पैसे के लेन-देन पर नज़र रखना लगभग असंभव है.”

Sex determination is stricly prohibited in India | Photo: Commons
भारत में लिंग परीक्षण जांच सख्त रूप से वर्जित है | फोटो: कॉमन्स

दयाल ने 2021 में संशोधन के बाद एमटीपी अधिनियम के दिशानिर्देशों में बदलाव की ओर भी इशारा किया.

उन्होंने कहा, “पहले, गर्भधारण (12 से 20 सप्ताह तक) को समाप्त करने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह की ज़रूरत होती थी, लेकिन अब इसके लिए केवल एक डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ती है. इसका मतलब यह है कि अवैध गर्भपात के बारे में जानकारी प्राप्त करने की संभावना भी कम हो गई है.”

डॉ. प्रभु दयाल, नोडल अधिकारी पीएनडीटी, महाराजा अग्रसेन सिविल अस्पताल, हिसार | फोटो: बिस्मी तस्कीन/दिप्रिंट

दयाल के अनुसार, महिलाओं और उनके परिवारों से सहयोग की कमी एक और बाधा है. कई गर्भवती महिलाएं एएनएम के साथ पंजीकरण कराने से बचती हैं, भले ही यह गर्भावस्था के 12 सप्ताह के भीतर “अनिवार्य रूप से” किया जाना होता है, जिससे उन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है.

दयाल ने कहा, “यहां तक ​​कि अगर हमें ऐसे मामले का पता चलता है, जहां लिंग निर्धारण के बाद गर्भपात हुआ है, तो यह बहाना बनाया जाता है कि रोगी अस्वस्थ है और (गर्भावस्था समाप्त) किसी चिकित्सीय स्थिति के कारण हुई है. तब यह पता लगाना असंभव है कि गर्भपात लिंग निर्धारण परीक्षण का परिणाम है.”

एमटीपी अधिनियम के उल्लंघन के विपरीत, जहां पुलिस सीधे शिकायत पर कार्रवाई कर सकती है, पीएनडीटी अधिनियम के तहत अवैध लिंग निर्धारण से निपटने के लिए अधिक जटिल प्रक्रिया की ज़रूरत होती है.

सबसे पहले, एक औपचारिक शिकायत को पहले “उचित प्राधिकारी” (प्रत्येक राज्य यह निर्धारित करता है कि यह कौन है) या उनके द्वारा नामित एक अधिकारी के पास दर्ज कराना होता है. इसके बाद प्राधिकारी से हरी झंडी मिलने के बाद पुलिस डिकॉय की मदद से छापेमारी कर सकती है. अगर अवैध गतिविधि का सबूत मिलता है, तो “प्राधिकरण” एफआईआर दर्ज करता है.

चलती वैन, चीन की मशीनें और नए केंद्र

दिप्रिंट से बात करने वाले डॉक्टरों और पूर्व “दलालों” के अनुसार, जब निगरानी और कार्रवाई तेज़ होने लगी, तो हरियाणा में लिंग निर्धारण की संदिग्ध दुनिया भी एक पूर्ण रूप से करोड़ों रुपये के रैकेट में विकसित हो गई है.

वो दिन गए जब स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट और अन्य डॉक्टर मुख्य रूप से अल्ट्रासाउंड केंद्रों और अस्पतालों में जांच करते थे. इसके बजाय, कई लोग अब व्यापार के नई मशीनों में निवेश कर रहे हैं, जैसे छोटी, पोर्टेबल, चीन की निर्मित अल्ट्रासाउंड मशीनें जिनकी कीमत लगभग 3-4 लाख रुपये है.

बाज़ार में दोबारा निवेश करना मुश्किल नहीं है. हर एक जांच की लागत 50,000 रुपये से अधिक है और अगर, एमटीपी सौदे का हिस्सा है तो कीमत बढ़ जाती है. यहां तक कि एमटीपी गोलियां भी अधिक महंगी हो गई हैं, प्रतिबंध के कारण उनकी कीमत 500-600 रुपये से दोगुनी होकर 1,000 रुपये हो गई है.

डॉ. दयाल ने कहा, “आजकल, वो चलती वैन और झोला छापों के छोटे अस्थायी क्लीनिकों में भी परीक्षण करते हैं.”

अस्पतालों और अल्ट्रासाउंड केंद्रों की जांच बढ़ा दी गई है, समय के साथ नहीं चलने की कीमत चुकानी पड़ सकती है.

कानून के जाल में फंसे लोगों में अनंत राम जनता अस्पताल के मालिक, हिसार के जाने-माने डॉक्टर अनंत राम भी शामिल हैं, जो वर्तमान में पीएनडीटी अधिनियम के तहत पांच लंबित मामलों का सामना कर रहे हैं, जिनमें से एक हाल ही में 2023 का है.

अपने लाइसेंस को निलंबित करवाने और लिंग-निर्धारण मामले में पिछले छह महीने जेल में रहने के बाद, राम ने अब हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के उप सचिव के रूप में राजनीतिक भूमिका के लिए अपने डॉक्टर के कोट को बदल दिया है.

डॉ. अनंत राम, जो अब जेजेपी के नेता हैं, कहते हैं कि पीएनडीटी अधिनियम को खत्म करने से कन्या भ्रूण हत्या के मुद्दे से निपटने में मदद मिल सकती है | फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया, साथ ही उन कानूनों के खिलाफ भी दलील दी, जिन्होंने उन्हें फंसाया था. राम ने दावा किया कि पीएनडीटी अधिनियम को खत्म करने से वास्तव में कन्या भ्रूण हत्या से निपटने में मदद मिल सकती है क्योंकि इससे गर्भधारण को ट्रैक करना आसान हो जाएगा.

फरवरी 2023 में एक अन्य डॉक्टर, रेडियोलॉजिस्ट उर्मिल धत्तरवाल, जो कभी कौन बनेगा करोड़पति की प्रतियोगी थीं, को लिंग निर्धारण रैकेट में कथित संलिप्तता के लिए हांसी के धत्तरवाल अस्पताल में छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया गया था.

नई कार्यप्रणाली अधिक चुस्त और गुप्त दोनों है, जिसमें दलालों का एक नेटवर्क, विभिन्न अस्पतालों से जुड़े सीमा पार संपर्क, प्रयोगशाला तकनीशियन और झोला छाप शामिल हैं जो पुरानी समझ और नई तकनीक के मिश्रण से सिस्टम को संचालित करते हैं. कुछ अल्ट्रासाउंड संचालक जांच से बचने के लिए उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे पड़ोसी क्षेत्रों में चले गए हैं.

जींद के सिविल अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ गोपाल गोयल ने कहा, “वो शुरुआती दिनों में गर्भवती महिला को दूसरे राज्यों में ले जाते हैं. एएनएम या स्वास्थ्य अधिकारी उन्हें ट्रैक नहीं कर सकते. यहां के अल्ट्रासाउंड केंद्र अब ये परीक्षण नहीं करते हैं. वर्तमान में (जींद में) केवल 35 कार्यात्मक और प्रमाणित अल्ट्रासाउंड केंद्र हैं और वे लगातार हमारे रडार में हैं. आजकल जांच ज्यादातर दिल्ली-यूपी सीमाओं और पड़ोसी क्षेत्रों में की जा रही हैं.”

इन परीक्षणों को सुविधाजनक बनाने में “दलालों” की एक सीरीज़ होती है, जो आमतौर पर अस्पताल के कर्मचारी या स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता होते हैं, जो रणनीतिक जानकारी तब तक देते हैं जब तक कि अवैध लिंग निर्धारण स्कैन किसी ऐसे स्थान पर नहीं किया जाता है जिसे अधिकारियों के लिए ट्रैक करना मुश्किल होता है.

डॉ. दयाल ने कहा, “नर्सों और अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा आशा कार्यकर्ता और एएनएम भी पैसे के कारण दलाल बन जाते हैं.”

हरियाणा के डॉक्टरों के अनुसार, जबकि लिंग निर्धारण का आदर्श समय गर्भावस्था के 12 सप्ताह के बाद है, कुछ आरोपी व्यक्ति इस प्रक्रिया से इतने अच्छे से वाकिफ हैं कि वे इससे पहले भी भ्रूण के लिंग का निर्धारण कर सकते हैं.

इन अवैध प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए, एक सेवानिवृत्त डॉक्टर, जो अब एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, डॉ. रमेश पुनिया ने पीएनडीटी अधिनियम के तहत सख्त दंड का आह्वान किया. उन्होंने कहा, “वर्तमान में अधिनियम के तहत, सज़ा केवल तीन से पांच साल तक है, जिसमें 10,000 रुपये से 50,000 रुपये तक का जुर्माना है.”


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‘गर्भपात करवाओ, या वापस मत आना’

जब पूजा सोनी तीसरी बार गर्भवती हुईं तो उनकी खुशियां काफूर हो गईं. वे पहले से ही दो बेटियों की मां हैं और उनके पति और उनके परिवार के पास तीसरी के लिए कोई जगह नहीं थी.

गर्भावस्था की शुरुआत में उनके पति धर्मेंद्र, उन्हें सोनीपत जिले के जागसी गांव में एक छोटे क्लिनिक में स्कैन के लिए अपने रोहतक घर से बहुत दूर ले गए. बाद में उसे एहसास हुआ कि “डॉक्टर” एक झोलाछाप था जो कि भ्रूण के लिंग का स्कैन करने आया था.

पूजा सोनी गर्भावस्था को समाप्त करने से इनकार करने के कारण अपने पति और ससुराल वालों के कारण लगी चोटों को दिखाती हैं | फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

पूजा ने कहा, “डॉक्टर ने मेरा अल्ट्रासाउंड किया और मेरे पति ने मुझे बाहर कार में इंतज़ार करने के लिए कहा. मैंने उनसे पूछा कि डॉक्टर ने मुझसे मेरा आधार कार्ड और अन्य जानकारी क्यों नहीं ली गई, जो आमतौर पर होता है. फिर, उन्होंने मुझे बताया कि उसने लिंग निर्धारण परीक्षण कराया है और मेरे गर्भ में कन्या भ्रूण है.”

घर वापसी की यात्रा शायद पूजा की सबसे लंबी कार यात्रा थी. धर्मेंद्र ने एक भयावह अल्टीमेटम दिया, उन्होंने कहा- “घर जा के गर्भपात करवा के आ इस बच्ची का. नहीं करवाएगी तो वापस मत आना.”

28-वर्षीय महिला खोई हुई और असहाय महसूस कर रही थीं, लेकिन वो एक बात जानती थीं — विवाहित महिलाएं तालमेल बिठाती हैं और अपने पति का घर नहीं छोड़ती हैं. 19 साल की उम्र में शादी हो गई और अपने माता-पिता को शर्मिंदा होने के डर से, जिन्होंने दहेज के लिए भारी कर्ज लिया था, वे अपने पति के साथ तब तक रहीं जब तक कि वे गर्भपात का दबाव सहन करने में असमर्थ नहीं हो गईं.

पूजा ने अपने हाथों और बाहों पर निशान दिखाते हुए कहा, “ऐसा नहीं है कि उन्होंने मुझे पहले नहीं पीटा, लेकिन फिर वो माफी मांग लेता था और हमारे कुछ अच्छे दिन भी रहे, लेकिन जब मैंने गर्भपात के लिए गोली लेने से इनकार कर दिया तो मारपीट बढ़ गई, वो मुझे भूखा रखते थे और मुझसे घर का सारा काम करवाते थे. एक दिन, जब मैं सात महीने की गर्भवती थी पति और मेरी सास ने मुझे लोहे से जला दिया.”

पूजा अपनी बेटी के साथ | फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

पिछले अक्टूबर की घटना ब्रेकिंग पॉइंट बन गई. आखिरकार पूजा अपने भाई मनोज सोनी के पास पहुंची.

उसकी हालत से चिंतित होकर, उसने उससे रोहतक के महिला थाने में जाने का आग्रह किया, लेकिन बाद में ही परिवार को उसकी गंभीरता का एहसास हुआ कि उसने क्या सहा है.

मनोज ने कहा, “जब पूजा कपड़े बदल रही थी, तो हमारी मां ने उसके शरीर पर जलने के निशान देखे और हम तुरंत उसे हिसार के सरकारी अस्पताल ले गए.”

हिसार सिविल अस्पताल में डॉ. दयाल ने तुरंत स्थिति के बारे में रोहतक पुलिस को सूचित किया. क्लिनिक पर छापेमारी के बाद “झोलाछाप” डॉक्टर और धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया.

डॉ. दयाल ने कहा, “उसमें सभी बाधाओं के खिलाफ खड़े होने और अपने बच्चे के लिए लड़ने का साहस था.”

लेकिन अपने मायके में पूजा, जिसने केवल पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की है, को चिंता है कि क्या उसे कभी अपनी बड़ी बेटियां वापस मिलेंगी और अगर वो ऐसा करती है तो वो उन्हें कैसे खिलाएगी.

पूजा सोनी अपने मायके में | फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

अलीपुर की महिलाएं

संकरी गलियों में घूमती भैंसों और खेतों में एक साथ काम करते पुरुषों और महिलाओं के साथ, अलीपुर हिसार के किसी भी अन्य गांव जैसा ही लगता है, लेकिन 5,000 से अधिक आबादी वाले गांवों के 2023 प्रसव पूर्व आंकड़ों के अनुसार, यह जिले के सबसे खराब लिंगानुपात — प्रति 1,000 लड़कों पर 588 लड़कियों — का संदिग्ध गौरव रखता है. इसके विपरीत, जिले का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला गांव, भगाना, 1515 के अनुपात का दावा करता है.

जहां अलीपुर का विषम लिंगानुपात जिले भर के डॉक्टरों के लिए चिंता का विषय है, वहीं गांव की स्वास्थ्य सेवा इकाई के कर्मचारी अवैध लिंग निर्धारण या गर्भपात से जुड़े किसी भी संबंध पर विवाद करते हैं. डॉ. महेंद्र (वे सरनेम यूज़ नहीं करते) और क्लिनिक की कई आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये संख्याएं गांव में पुरुषों के जन्म की अधिक संख्या को दर्शाती हैं. वे इसे एक अस्थायी चीज़ मानते हैं.

हालांकि, छायादार आंगन में खड़ी या खिड़कियों से बाहर झांकती कईं महिलाओं के पास साझा करने के लिए दर्दनाक कहानियां हैं. कोई भी भ्रूणहत्या के बारे में बात नहीं करता है, लेकिन वे गर्भावस्था, ‘गर्भपात’ और प्रसव के निरंतर चक्र में फंसने को सहजता से याद करते हैं. कई लोग इसे अपनी नियति मानते हैं, एक बोझ जो उन्हें घर के काम और खेत के काम के साथ-साथ तब तक उठाना पड़ता है जब तक कि वे एक बेटे को जन्म न दे दें.

23-वर्षीया निवासी, जो सात महीने की गर्भवती हैं, की पहले से ही 3 और 4 साल की दो बेटियां हैं. वे कहती हैं कि उनके दो गर्भपात हुए हैं —एक दो महीने में और दूसरा सात महीने में.

उन्होंने सात महीने की गर्भावस्भा के बारे में कहा, “बच्चे को पोषक तत्व नहीं मिल रहे थे और उसका विकास नहीं हो रहा था. यह एक लड़की थी.” उन्होंने आगे कहा, “डॉक्टर ने कहा कि कोई हलचल नहीं हो रही है और मुझे गर्भपात करना होगा.” महिला, जो केवल पांच साल में अपनी सभी गर्भावस्थाओं और जन्मों से गुज़र चुकी है, ने यह भी कहा कि उन्हें निम्न बीपी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं थीं.

अलीपुर की रहने वाली 30 वर्षीय महिला का कहना है कि उनके पास बेटे के लिए प्रयास करते रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उनकी पहले से ही 4 बेटियां हैं | फोटो: बिस्मी तस्कीन/दिप्रिंट

इसी तरह 30 साल की महिला की 9, 6, 3 और 9 महीने की चार बेटियां हैं. वे कहती हैं, “इस बार, मेरे पति ने मुझसे कहा है कि हमें एक बेटे की ज़रूरत है. मैं बच्चे को जन्म देना बंद करना चाहती हूं, लेकिन मैं क्या कर सकती हूं?”

पास ही, एक अन्य 26-वर्षीया महिला भी ऐसी ही कहानी कहती हैं. अब छह महीने की गर्भवती, उनकी भी चार बेटियां हैं, सभी की उम्र 1 से 5 साल के बीच है, जिनका जन्म शादी के सात साल के भीतर हुआ है.

गांव की आशा कार्यकर्ता सुलोचना ने दावा किया कि मेडिकल सेंटर अलीपुर में सभी गर्भधारण पर सावधानीपूर्वक नज़र रखता है.

उन्होंने कहा, “हम पहले तीन महीनों के भीतर सभी विवरण नोट कर लेते हैं. भले ही वे किसी अन्य स्थान पर बच्चे को जन्म देते हैं और बाद में वापस आते हैं, हम लिंग सहित जन्म को भी रिकॉर्ड करते हैं.”

हालांकि, सुलोचना चिकित्सीय गर्भपात और गर्भपात का सटीक दस्तावेजीकरण करने में कठिनाई को स्वीकार करती हैं.

उन्होंने आगे कहा, “अगर कोई झूठ बोलता है या महिला को हमारे नोट करने से पहले दूसरे गांव भेज देता है और फिर गर्भपात के बाद वो वापस आ जाती है, तो ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे हम जान सकें, जब तक कि महिला हम पर विश्वास नहीं करना चाहती.”

डॉ. दयाल गुप्त चिकित्सा गर्भपात पर नज़र रखने की सीमाओं को भी पहचानते हैं, जब तक कि अत्यधिक रक्तस्राव जैसी जटिलताओं के लिए अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत न हो। फिर भी, उत्तर की गारंटी नहीं है.

उन्होंने कहा, “जब किसी महिला को अत्यधिक रक्तस्राव के कारण भर्ती कराया जाता है, तो यह हमारा कर्तव्य है कि हम पहले उनकी देखभाल करें और फिर सवाल पूछें. जब तक वे शिकायत न करें, आपके पास यह साबित करने का कोई तरीका नहीं है कि उसने गोली ली है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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