जींद/रोहतक/हिसार/रेवाड़ी: ‘ये 9 साल की मोहिनी है. इसके परिवार की तीन पीढ़ियों ने हमें कम से कम 20 लाख रुपए का फायदा करवाया है. ये भैंस हमारे लिए बेश्कीमती है. हम इसको करोड़ों रुपए मिलने पर भी नहीं बेचेंगे. खट्टर और बादल से (हरियाणा व पंजाब) से अवॉर्ड जीत चुकी है ये. म्हारे बालकों तै ज्यादा अवॉर्ड तो म्हारी भैंस ल्यावैं है.’ (हमारे बच्चों से ज्यादा तो हमारी भैंस अवार्ड लाती है) कहते हुए जींद जिले से 10-12 किलोमीटर बसे बीबीपुर गांव के किसान जसवीर हंस पड़ते हैं.
सांझ के वक्त जब हम इस गांव में पहुंचे तब भैंसें जोहड़ (तालाब) में पानी पी रही थीं और उनके मालिक मुंडेर पर लट्ठ लिए हुए उन्हें इत्मीनान से देख रहे थे. दूर क्षितिज पर ढलते सूरज की भगवा किरणें आसमान में किसी कविता की भांति प्रतीत हो रहीं थीं.
हिंदी साहित्य, ग्रामीण जीवन को उकेरित करने वाले ऐसे अनेकों दृश्यों से भरा पड़ा है. लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई- गांव की इकोनॉमी में एक भैंस के महत्व को समझने के लिए हमने हरियाणा में लगभग 500 किलोमीटर की यात्रा तय की. इस दौरान हम देश की बेहतरीन भैंसों और हुक्का पीते उनके मालिकों व ऊपले बनाती उनकी मालकिनों से मिले.
गहरे काले रंग वाली ये भैंसें ना सिर्फ अपने गांवों में चर्चित हैं बल्कि सोशल मीडिया पर अच्छी फैन-फॉलोइंग भी रखती हैं. गंगा, जमुना, सरस्वती और मोहिनी जैसे फिल्मी नामों वाली ये भैंसें अपने मालिकों के लिए किसी अदाकारा से कम नहीं हैं. ये किसान अपनी भैंसों के मिट्टी में लोटकर मस्ती करने के नजारे को देख जोर-जोर से हंसने लगते हैं तो कभी किसी काटड़े (पाड़ा) के उछलने पर उसके लाड़-प्यार करने लगते हैं.
अपने पशुओं की खूबियां बताते हुए वो गर्व से भर उठते हैं और उनकी आंखों में चमक आ जाती है. आमतौर पर एक भैंस की कीमत एक लाख के आस-पास होती है. लेकिन मुर्रा भैंसों की कीमत कभी दस लाख तो कभी पांच लाख तक पहुंचती है. ये उनके दूध देने की क्षमता और सुंदरता पर निर्भर करता है.
हिंदी के कई प्रचलित मुहावरों ने भले ही (‘काला अक्षर भैंस बराबर’ या फिर ‘भैंस के आगे बीन बजाना’) भैंस को एक बेवकूफ पशु के तौर पर स्थापित किया हो, लेकिन हरियाणा में भैंस को समझदार और भावुक पशु के तौर पर देखा जाता है. कई महिला किसानों ने हमसे किस्से साझा किए जब उन्हें दूर किसी रिश्तेदारी की शादी-ब्याह में अपनी भैंस को साथ ले जाना पड़ा. जसवीर को इस बात का गुरूर है कि उसकी भैंस उसकी मोटरसाइकिल या पैदल चलने की आवाज भी पहचान लेती है.
हरियाणा की मुर्रा बेल्ट में घूमने के दौरान हमें दो प्रसिद्ध देसी कहावतें पता चलीं. जिसके घर मुर्रा-उसका ऊंचा तुर्रा और जिसके घर काली- उसके घर दिवाली. मतलब भैंस को धन और पगड़ी से जोड़कर देखना. सरकारी कामकाज की भाषा में मुर्रा भैंस के लिए ‘ब्लैक गोल्ड’ यानी ‘काला सोना’ शब्द भी इस्तेमाल किया जाता है.
‘बालकों सै ज्यादा अवॉर्ड भैंस लाती है’
जसवीर का घर मोहिनी के जीते हुए अवॉर्ड व बड़ी-बड़ी तस्वीरों से भरा हुआ है. उन्हें अपनी भैंस का जन्मदिन बहुत अच्छे से याद है. ग्रामीण महिलाएं अक्सर अपने जन्मदिन की तारीख पूछने पर घर के किसी संदूक में रखे राशनकार्ड या आधार कार्ड को खोजने दौड़ पड़ती हैं. ऐसे में किसी किसान का अपनी भैंस का जन्मदिन मनाने वाला ट्रेंड हैरान करता है.
मोहिनी की खास बात है कि वो दुनिया की बेस्ट नस्ल कही जाने वाली मुर्रा फैमिली से आती है. इसे भैंसों की सबसे इलीट क्लास का दर्जा प्राप्त है.
मुर्रा नस्ल की भैंस की पहचान के बारे में हिसार के सिंघवा खास गांव के एक 80 वर्षीय बुजुर्ग सतबीर कहते हैं, ‘मुर्रा नस्ल को आप हजारों भैंसों के बीच पहचान सकते हैं. सुंदर मुंह, पतले पैर, काली पूंछ, गहरा काला रंग और घुमावदार काले सींग. इसकी सुंदरता देखते ही किसान खिल उठता है.’
सिंघवा खास हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे देश में मुर्रा भैंसों के लिए प्रसिद्ध है. 7 साल पहले इस गांव के एक किसान ने 25 लाख में अपनी भैंस बेची थी. उस भैंस की विदाई को याद करते हुए ग्रामीण बताते हैं कि वो परिवार ऐसे रो रहा था जैसे बेटी की शादी कर रहा हो.
केवल दूध ही नहीं, इन बेशकीमती भैंसों का वीर्य भी भारी मांग में है. कुरुक्षेत्र के एक किसान ने अपने मुर्रा बैल युवराज के वीर्य को बेचकर प्रति वर्ष 40 लाख रुपये से अधिक की कमाई की.
बदसूरत कहने के लिहाज से किसी की तुलना भैंस से करने वाले समाज के लिए ये बात भी शॉक से कम नहीं होगी कि भैंसों के भी ब्यूटी अवॉर्ड और रैम्प वॉक शो आयोजित कराए जाते हैं. दरअसल मुर्रा नस्ल की भैंसों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार समय-समय ये इवेंट करवाती है.
मोहिनी ऐसे कई अवॉर्ड में पहले नंबर पर रही है. इन इवेंट्स में कई बार मंत्री या मुख्य अतिथि के तौर पर आने वाले नेता अपनी तरफ से भी कई लाखों के इनाम दे जाते हैं. आमतौर पर 1100 रुपए से शुरू हुए ये इनाम पांच लाख तक पहुंचते हैं. गले में कंठी, सींगों पर झालर और पीठ पर सुंदर चादर ओढे इन भैंसों की तस्वीरें अपने फोन में दिखाते हुए इनके मालिक बच्चों की भांति चहक उठते हैं.
‘दूध दही का खाणा वो मेरा हरियाणा’ वाली बात इस रिपोर्ट के दौरान भी देखने को मिली जब हर किसान परिवार हमें दूध के गिलास भरकर पीने के लिए देता है.
‘एक ऑडी कार से महंगी है भैंस’
हाल ही में हिसार के लिताणी गांव के सुखबीर ढांढा ने 51 लाख में अपनी मुर्रा भैंस सरस्वती को बेचा है. इस भैंस के काटड़े-काटड़ी इतनी डिंमाड में हैं कि पेट में ही उनके दाम लग जाते हैं. सुखबीर के घर बंधी चार महीने की काटड़ी की कीमत साढ़े चार लाख है.
भैंस बेचने और खरीदने का व्यवसाय अनऑर्गेनाइज्ड है. ऐसे में किसान ने जो रकम तय की है वही भैंस का मूल्य हो जाता है. इस धंधे में भैसों की बढ़ती चोरियों और उधारी के डर के चलते सुखबीर अपनी इस भैंस को बेच रहे हैं. ये डर राज्य में फैली प्राइवेट डेयरी मालिकों का भी है.
जींद की एक निजी डेयरी के मालिक गुलशन प्रूथी दिप्रिंट को बताते हैं, ‘अब दूध बेचने में कोई फायदा नहीं रहा. सिथेंटिक दूध के बिजनेस के चलते असली दूध के दाम चार साल से ज्यों के त्यों हैं. लेकिन भैंस की बिनौले, खल और चारा लगातार महंगा हो रहा है. ऐसे में एक डेरी चलाना घाटे का सौदा साबित हो रहा है.’
सुखबीर ने जब अपनी भैंस को बेचने की घोषणा सोशल मीडिया पर की तो इससे सरस्वती के प्रशसंक नाराज हो गए. नाराजगी दूर करने के लिए सुखबीर एक प्रोग्राम का इंतजाम कर रहे हैं ताकि सरस्वती के चाहने वाले आखिरी बार उसे देख सकें.
सरस्वती के नाम 33 लीटर से ज्यादा दूध देने का वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज है. सुखबीर कहते हैं, ‘मेरी सरस्वती ने पाकिस्तान की भैंस का रिकॉर्ड तोड़ा है. इस भैंस की बदौलत मैं करोड़ों कमा पाया. 51 लाख तो बहुत कम हैं.’ सरस्वती को तमिलनाडु के किसी किसान को बेचा गया है.
‘मतलब एक ऑडी कार की कीमत से भी ज्यादा है आपकी भैंस.’ मेरे सवाल पर एक ग्रामीण बुजुर्ग कहते हैं, ‘ऑडी दूध नहीं दे सकती ना? ऑडी तो शहर के हर घर के गैराज में पड़ी मिलेगी. हमारी मुर्रा की तरह शान से घर के दरवाजे पर नहीं.’
हाल-फिलहाल हरियाणा सरकार ने मुर्रा नस्ल को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. जैसे एनिमल हस्बैंडरी विभाग का एक सामेकित मुर्रा विकास कार्यक्रम. जिसके तहत गांव-ब्लॉक स्तर की सार्वजनिक जगहों पर भैंसों के दूध सैंपल के जरिए उन्हें इनाम दिया जाता है. 15-18 किलो दूध पर 15,000 रुपए, 18-22 किलो दूध पर 18,000 रुपए 22-25 किलो दूध पर 20,000 रुपए और 25 किलो से ऊपर दूध के लिए 30,000 रुपए की धनराशि दी जाती है.
इसके इतर युवाओं को पशुपालन की तरफ आकर्षित करने के लिए विभागीय डेयरी प्रशिक्षण नाम की एक ट्रेनिंग आयोजित कराई जाती है. जिसमें बेरोजगार युवाओं को पशुपालन के बेस्ट तरीके और उससे होने वाली कमाई के बारे में बताया जाता है.
भैंसों को बचपन से ही इस तरह के मिल्क ब्यूटी अवॉर्ड्स के लिए तैयार करने के लिए उनकी ग्रूमिंग शुरू हो जाती है. बकायदा रोजाना उन्हें नहलाना, उनके सींगों को घुमावदार तरीके से काला तेल लगाना, उनके शरीर पर तेल की मालिश करना, उनके खुर समय-समय पर कटवाना.
मुर्रा भैंस क्या हैं?
भैंसों की इलीट नस्ल मुर्रा, हरियाणा के फतेहाबाद, गुड़गांव, जींद, झज्जर, हिसार और रोहतक जिले में पाई जाती है. यह नस्ल पंजाब के नाभा और पटियाला जिलों में भी मिलती है.
मुर्रा भैंस ज्यादा दूध देने के लिए विशेष रूप से मांग में रहती है. हर दिन लगभग 7 लीटर दूध देती हैं. दूध का उपयोग मोजरेला चीज और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है.
भारत में वैश्विक भैंस की आबादी का 57 प्रतिशत हिस्सा है और देश में 13 मान्यता प्राप्त नस्लें हैं.
महिला किसान के लिए हैशटैग- लाइफलाइन
रेवाड़ी जिले की महिला किसान कविता की भैंस का कोई फैंसी नाम तो नहीं है. लेकिन वो इसे अपनी बेस्ट फ्रेंड जरूर कहती हैं. वो बताती हैं, ‘हमारी भैंस बाहरी लोगों से घर की रखवाली भी कर लेती है. 19 किलो दूध देती है. अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यारी लगती है. खेती से होने वाली कमाई छह महीने या एक साल में जाकर हाथ में आती है. लेकिन भैंस पालकर घर के हर छोटे बड़े खर्चे निकाले जा सकते हैं.’ कविता अपनी भैंस पर हर महीने 7 हजार रुपए खर्च करती हैं और कम से कम 12 हजार रुपए की बचत कर लेती हैं. लेकिन ये तब संभव है जब किसान के पास अपनी जमीन हो. बिना जमीन वाले किसान के लिए खर्चा बढ़ जाता है क्योंकि उसे चारे और दलिए के लिए गेंहू पर अलग से खर्च करना पड़ता है.
एनिमल हसबेंडरी जींद विभाग के डिप्टी डायरेक्टर रविंदर हुड्डा भैंस को एक ग्रामीण महिला की ‘लाइफलाइन’ बताते हैं.
रविंदर हुड्डा दिप्रिंट से कहते हैं, ‘भैंस पालन ग्रामीण जीवन की रीढ़ की हड्डी की तरह है. एक ग्रामीण महिला भैंस पालन के जरिए अपने घर के हर छोटे-बडे़ खर्च संभाल सकती है.’
हरियाणा डेयरी डेवलपमेंट को-ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के तहत आने वाले वीटा मिल्क प्लांट के अधिकारी भी इस बात की तस्दीक करते हैं. जींद वीटा प्लांट के एक अधिकारी ने बताया, ‘हम महीने की 1, 11 और 21 तारीखों को दूध की पेमेंट करते हैं. हर दस दिन में मिलने वाले खर्च से महिला किसान अपनी गृहस्थी अच्छे से चला लेती है. हमारी को-ऑपरेटिव सोसाइटी गांव के आखिरी किसान तक पहुंच रखती हैं. एक तरह से भैंस पालन महिला किसान को सशक्त भी करता है.’
20 फीसदी कम हुई भैंसें- सरकारी आंकड़ें
हर पांच साल के अंतराल में होने वाली पशुगणना की 2017 की रिपोर्ट अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है. लेकिन साल 2012 की पशुगणना के मुताबिक हरियाणा में भैंसों की संख्या 60.85 लाख थी. 2007 में ये संख्या 59.50 लाख थीं. सरकारी अधिकारी बताते हैं कि इस बार की गणना में भैंसों की संख्या में लगभग 20 फीसदी कमी आई है.
भैसों की संख्या में हो रही कमी के पीछे के कई कारण बताते हुए रविंदर हुड्डा कहते हैं, ‘पिछले सालों में आंध्र प्रदेश राज्य ने बड़े पैमाने पर हरियाणा से मुर्रा भैंसों की खरीदारी की है. पहले किसान परिवार कई भैंसें एक साथ पालते थे. शहरों में भी ब्यूरोक्रेट्स के घर एक भैंस बंधी होती थी. लेकिन, कॉलोनी कल्चर के चलते शहरों से भैंसें गायब हुई. सरकार ने भी शहरों की रिहायसी इलाकों में भैंस पालने की अनुमति नहीं दी.’
रविंदर हुड्डा मानते हैं कि आने वाले पांच सालों में इस संख्या में बढ़ोतरी होगी. बेरोजगारी के चलते युवा वापस पशुपालन की तरफ लौटेंगे. डिजिटल इंडिया के तहत जब गांव-गांव को इंटरनेट से जोड़ा गया है, तो किसानी व पशुपालन के व्यवसाय में भी ग्लैमर की गुजाइंश पैदा होगी. यूट्यूब पर हरियाणा के किसानों व डेयरी मालिकों ने अपने चैनल बनाए हुए हैं. जहां वो अपनी भैंसों की खास वीडियो अपलोड करते हैं. इन वीडियो के टाइटल कुछ इस तरह होते हैं- 2020 की पांच बेस्ट भैंसें या फिर हरियाणा की सबसे महंगी भैंस.
80 फीसदी से अधिक दूध मुर्रा भैंसों का है
कई सरकारी रिपोर्ट्स बताती हैं कि डेयरी से जुड़े एंटरप्रेन्योर्स की वजह से ग्रामीण इकोनॉमी अच्छे तरीके से प्रभावित किया है. हरियाणा राज्य में साल 2018-19 में दूध उत्पादन 10,72,6000 टन रहा है. जिसका 80 फीसदी हिस्सा भैंसों के दूध का है. हरियाणा में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 878 ग्राम प्रतिदिन है जो राष्ट्रीय औसत (329 ग्राम प्रतिदिन) से बहुत ज्यादा है.
जींद वीटा प्लांट के अधिकारी भी इस बात पर जोर देते हैं कि उनके प्लांट में आने वाला 80 फीसदी से अधिक दूध मुर्रा भैंसों का है. जींद जिले को डेयरी का हब कहा जाता है. यहां 700 से भी अधिक दूध की डेयरी हैं. लेकिन बढ़ती महंगाई के असर इन डेयरी मालिकों के माथे पर आए पसीनों पर देखा जा सकता है. उन्हें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए ये व्यवसायन फायदे का सौदा नजर नहीं आता.
Main ve murha pale hai, par ye kabal 7 letar dudh deti hai, kirpyaa batlay iske Dite me kya aur kitne maatra me khane ko de.