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Thursday, 25 April, 2024
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भाजपा MP राजीव चंद्रशेखर चाहते हैं द्वितीय विश्वयुद्ध का हिस्सा रहीं भारतीय मूल की जासूस नूर इनायत खान को मान्यता मिले

राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि नूर इनायत खान को ब्रिटेन और फ्रांस की तरफ से मान्यता दी गई थी और भारत को भी ऐसा करना चाहिए. साथ ही सुझाव दिया कि बच्चों के लिए बहादुरी पुरस्कारों का नाम उन पर रखा जाना चाहिए.

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बेंगलुरु: भाजपा के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की तरफ से काम करनी वाली भारतीय मूल की जासूस नूर इनायत खान को भारत में विशेष पहचान दिए जाने की मांग की है.

नूर इनायत खान हाल में तब सुर्खियों में आईं, जब वह लंदन में ब्लू प्लेक स्मारक से सम्मानित होने वाली भारतीय मूल की पहली महिला बनीं. ब्रिटेन में भारतीय मूल के चांसलर ऋषि सुनक ने भी जुलाई में कहा था कि ब्रिटेन की विविधता का जश्न मनाने के लिए उनका देश प्रभावशाली जातीय अल्पसंख्यक हस्तियों को समर्पित सिक्कों का एक सेट जारी करने पर विचार कर रहा है और नूर इनायत खान उस सूची में शामिल लोगों में एक थीं.

वह 18वीं शताब्दी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान की वंशज थीं और ऐसी पहली अंडरकवर महिला रेडियो ऑपरेटर थीं जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की तरफ से जर्मन कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था.


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चंद्रशेखर ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले 14 वर्षों से वह केंद्र सरकार से खान को मान्यता देने का अनुरोध कर रहे हैं.

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चंद्रशेखर ने कहा, ‘वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में दुश्मन के कब्जे वाले इलाके में कदम रखने वाली पहली महिला थीं. नूर इनायत खान को ब्रिटेन और फ्रांस की सरकारों द्वारा मान्यता दी जा चुकी है. उचित होगा कि भारत भी ऐसा ही करके उनके श्रद्धांजलि अर्पित करे. यह बच्चों के बहादुरी पुरस्कारों का नाम उन पर रख सकता है.’

चंद्रशेखर ने बताया कि भारत के दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यूपीए-1 में रक्षा मंत्री रहने के दौरान फ्रांस में नूर के स्मारक का दौरा किया था.

कैसे बनीं जासूस

नूर इनायत खान का जन्म 1914 में मास्को में भारतीय मूल के पिता हजरत इनायत खान और अमेरिकी मां ओरा रे बेकर के घर हुआ था. खान के माता-पिता का विवाह अमेरिका के रामकृष्ण आश्रम में हुआ था और उनकी मां ने शारदा अमीना खान का नाम अपनाया था.

प्रथम विश्व युद्ध के बाद उनका परिवार पहले पेरिस और फिर लंदन चला गया. और नूर, जो पेरिस में बच्चों की लेखक के रूप में काम करती हैं, ने वायरलेस ऑपरेटर के रूप में प्रशिक्षण के लिए ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स की ही एक शाखा वुमेंस ऑक्सीलियरी एयर फोर्स को ज्वाइन कर लिया. उन्हें ‘मेडलिन’ नाम दिया गया और विंस्टन चर्चिल के स्पेशल ऑपरेशन एक्जीक्यूटिव (एसओई) द्वारा पेरिस भेजी जानी वाली पहली रेडियो ऑपरेटर बनीं.


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यह अपने काम के प्रति उनका समर्पण ही था कि जब एसओई सदस्यों को नाजी पुलिस धड़ाधड़ गिरफ्तार कर रही थी, तब भी वह लंदन संदेश भेजती रहीं. आखिरकार एक दिन उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया. नाजियों ने 1944 में दक्षिणी जर्मनी के डकाऊ यातना शिविर में उन्हें मार डाला.

नूर का भारत से रिश्ता

बेलगावी के कन्नड़ लेखक चंद्रशेखर मांडेकोलू ने नूर इनायत खान-नाजी होरत्दा अर्धकाव्य (नाजी-विरोधी संघर्ष की एक दुखद गाथा) नामक किताब में उनके जीवन की तस्वीर पेश की है.

उन्होंने इसमें यह भी दर्शाया है कि नूर को भारतीय धार्मिक ग्रंथों से कितना लगाव था. उन्होंने दिप्रंट को बताया, ‘उनके पास उपनिषदों की एक प्रति दी थी, और जातक कथाओं की 20 कहानियों का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद भी किया था.’

मांडेकोलू ने टीपू सुल्तान से उनका रिश्ता बताते हुए कहते हैं कि नूर के दादा उस्ताद मौला बख्श खान, जो बड़ौदा के एक जाने-माने संगीतकार थे, ने वाडियार शासक के दरबार में प्रस्तुति दी थी. उनकी प्रसिद्धि के बारे में सुनकर टीपू ने अपनी पोती कासिम बी से उसकी शादी करा दी थी.

नूर अपनी मृत्यु के तीन-चौथाई सदी बाद भी एक लोकप्रिय हस्ती बनी हुई हैं. 2019 में अभिनेत्री राधिका आप्टे ने लिबर्टे: ए कॉल टू स्पाई नामक फिल्म में उनके ही चरित्र को चित्रित किया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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