आगरा: वर्ष 1666 की बात है जब मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी मुगल बादशाह औरंगजेब के निमंत्रण पर आगरा पहुंचे. लेकिन यह मुलाकात अच्छी नहीं रही. बताया जाता है कि शिवाजी खुद को राजाओं के समान सम्मान न मिलने पर नाराज हो गए, और आवेश में आकर औरंगजेब का दरबार छोड़कर चले गए.
इसके बाद, औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के जरिये शिवाजी के पास संदेश भेजा कि वे शांत हो जाएं और उनसे मिलने आएं. जब शिवाजी ने खुद को एक राजा का जैसा दर्जा न दिए जाने तक ऐसा करने से मना कर दिया तो औरंगजेब ने उन्हें घर में ही नजरबंद करने का आदेश जारी कर दिया.
बाद में शिवाजी के फलों के टोकरे में बैठकर वहां से बच निकलने का किस्सा तो हम सभी ने पढ़ा-सुना होगा.
लेकिन उनका आगरा में कुछ समय कैद रहना, एक ऐसी वजह है जिसने केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों को शहर के साथ शिवाजी के कनेक्शन पर जश्न मनाने को प्रेरित किया है.
इसी माह योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने शहर के कोठी मीना बाजार इलाके में मराठा सम्राट की 60-100 फुट ऊंची प्रतिमा बनाने का प्रस्ताव रखा. ऐसा माना जाता है कि यहीं पर एक कोठी या हवेली थी, जिसमें शिवाजी को नजरबंद रखा गया और इसके नाम पर ही इलाके का नाम कोठी मीना बाजार पड़ा था.
इस क्षेत्र में शिवाजी को समर्पित एक संग्रहालय बनाने की भी योजना है.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, प्रस्तावित स्मारकों की घोषणा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राज्य के मंत्री योगेंद्र उपाध्याय के बीच कई बैठकों के बाद की गई है.
प्रस्तावित स्मारक के बारे में दिप्रिंट को जानकारी देते हुए उपाध्याय ने कहा कि कोठी के बड़े हॉल को एक संग्रहालय में बदल दिया जाएगा, और दूसरों को प्रेरित करने वाली मराठा योद्धा के जीवन की घटनाओं को कोठी मीना बाजार मैदान में लाइट एंड साउंड शो के जरिये दर्शाया जाएगा.
उपाध्याय ने कहा कि हर साल 17 अगस्त को कोठी मीना बाजार से शिवाजी की राजधानी रायगढ़ तक वार्षिक यात्रा के आयोजन की भी योजना बनाई जा रही है. यह यात्रा मराठा योद्धा शिवाजी के वंशज निकालेंगे.
एक सवाल के जवाब में, उपाध्याय ने कहा कि शिवाजी ने आगरा से रायगढ़ लौटने के लिए जो रास्ता अपनाया था, उस पर भी शोध किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मराठा शासक आगरा में एक मंदिर में पहुंचे थे और अपने बेटे संभाजी के साथ साधु का भेष धारण करके वहां रुके थे. इसके बाद ही वह मथुरा होते हुए अंतत: रायगढ़ रवाना हुए थे.
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शिवाजी को कहां बंदी बनाकर रखा गया था?
पहले यह माना जाता था कि शिवाजी को आगरा के किले में कैद किया गया था, और 12 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने किले की खुदाई के दौरान कुछ भूमिगत कमरे होने का दावा किया गया, जिसके बारे में कहा गया कि उन्हें वहीं रखा गया था.
हालांकि, इतिहासकार राज किशोर राजे ने दिप्रिंट को फोन पर बताया कि 2003 में उनकी तरफ से दायर एक आरटीआई के जवाब में एएसआई ने कहा था कि इसे साबित करने वाला कोई सबूत नहीं है.
इतिहासकार ने अपनी तरफ से दायर आरटीआई और उस पर एएसआई के जवाब की प्रतियां भी दिप्रिंट के साथ साझा कीं.
2019 में हिंदी समाचारपत्र दैनिक जागरण में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके पर्याप्त प्रमाण हैं कि शिवाजी को आगरा के किले में नहीं, बल्कि मौजूदा कोठी मीना बाजार इलाके की एक हवेली में हिरासत में रखा गया था.
यह हवेली फिलहाल एक विवादित संपत्ति है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जहां वृंदावन स्थित पाठक वृंदावन ट्रस्ट, कोठी मीना बाजार और उसकी 30 बीघा जमीन पर अपना अधिकार जताता है, वहीं यूपी सरकार का कहना है कि इस संपत्ति को खाली करा लिया गया है.
निष्क्रांत (खाली पड़ी) संपत्ति अधिनियम, 1950 के तहत निष्क्रान्त शब्द से आशय ऐसे व्यक्तियों से है जो देश के विभाजन के समय अपनी काश्तकारी या जमादारी की भूमि भारत छोड़कर पाकिस्तान में चले गए. 1 मार्च, 1947 को या उसके बाद इनकी भारतीय संपत्ति से देखरेख व नियंत्रण समाप्त गया.
निष्क्रान्त संपत्ति से आशय उस निष्क्रान्त व्यक्ति की संपत्ति से है जो 14 अगस्त 1947 के बाद किसी निष्क्रांत व्यक्ति से हासिल संपत्ति को उस संपत्ति के स्वामी की हैसियत से अथवा न्यासी या लाभार्थी या फिर काश्तकार के रूप में धारण करता है.
हिंदी अखबार अमर उजाला की वेबसाइट पर 2021 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पाठक वृंदावन ट्रस्ट ने 15 सितंबर 1892 को तत्कालीन मालिकों द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौते के तहत संपत्ति का अधिग्रहण किया था. हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने 1902 में इस समझौते का स्वीकार करने से इनकार कर दिया, और हवेली को बाद में निष्क्रांत संपत्ति घोषित कर दिया गया.
इसके बाद अनेक अदालती मुकदमों में दायर अपीलों पर आगरा के तत्कालीन प्रथम अपर जिला न्यायाधीश ने 12 मई 1994 को ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाया. न्यूज रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इसके बाद सरकार ने 10 वर्षों तक इस मामले की पैरवी नहीं की.
हालांकि, 2003 में जब ट्रस्ट ने जमीन पर निर्माण करना चाहा, तो आगरा प्रशासन ने कथित तौर पर इसे रोक दिया, जिसके बाद ट्रस्ट की तरफ से अवमानना याचिका दायर की गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि मामला फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है.
प्रतिमा और संग्रहालय
इस बीच, शिवाजी की एक प्रतिमा लगाने और उन्हें समर्पित एक संग्रहालय बनाने की घोषणा किया जाना भाजपा की तरफ से मराठा शासक के आगरा कनेक्शन को उजागर करने के प्रयासों की ताजा कड़ी है.
पिछले महीने शिवाजी की 393वीं जयंती मनाई गई, जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हुए.
2001 में, आगरा किले के सामने शिवाजी की एक प्रतिमा स्थापित की गई थी. कथित तौर पर प्रतिमा का अनावरण पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने किया था.
2020 में मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य में आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने भी आगरा में निर्माणाधीन ‘मुगल संग्रहालय’ का नाम बदलकर ‘शिवाजी संग्रहालय’ करने की घोषणा की थी.
(अनुवाद- रावी द्विवेदी | संपादन- इन्द्रजीत)
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