नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बुधवार को बिलकिस बानो गैंगरेप केस की सुनवाई के लिए एक नया बेंच गठित करने के लिए तैयार हो गया है. बिलकिस बानो रेप केस के 11 आरोपियों को समय से पहले 2022 में रिहा कर दिया गया था.
गुजरात दंगों में गैंग रेप और अपने परिवार की हत्या के 11 दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो ने नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने वकील शोभा गुप्ता के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने वाली बानो को आश्वासन दिया कि नई बेंच का गठन किया जाएगा.
गुप्ता ने मामले की जल्द सुनवाई करने की बात कही और कहा कि एक नई बेंच गठित करने की जरुरत है.
सीजेआई ने कहा, ‘मेरे सामने एक बेंच गठित किया जाएगा. आज शाम मामले को देखेंगे.’
इससे पहले 24 जनवरी को गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो गैंग रेप मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली बानो की याचिका पर शीर्ष अदालत में सुनवाई नहीं हो सकी थी क्योंकि इससे संबंधित न्यायाधीश किसी और मामले की सुनवाई कर रहे थे.
दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका के अलावा, गैंग रेप पीड़िता ने एक अलग याचिका भी दायर की थी जिसमें एक दोषी की याचिका पर शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश पर विचार की मांग की गई थी.
2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्य भी मारे गए थे.
गैंग रेप और हत्या के सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने उनकी सजा में छूट दी थी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था.
हालांकि, 13 मई, 2022 के आदेश के खिलाफ बानो की समीक्षा याचिका को शीर्ष अदालत ने पिछले साल दिसंबर में खारिज कर दिया था.
क्या था पूरा मामला
2002 में गुजरात दंगो के दौरान 21 वर्षीय बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप किया गया था और उनकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के नौ सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.
जिन 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, उन्हें गुजरात सरकार की 1992 की छूट नीति के तहत 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया था. अपराधी 15 साल से अधिक समय से जेल में थे, और उनके ‘अच्छे व्यवहार’ के कारण उन्हें छोड़ दिया गया था.
बता दें कि मामले के आरोपियों को रिहा किये जाने के बाद से ही बिलकिस बानो लगातार कोर्ट के चक्कर लगा रही है और अपने लिए न्याय की मांग कर रही है.
इससे पहले 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी की याचिका को सुनते हुए कहा था कि सज़ा 2008 में मिली, इसलिए रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कड़े नियम लागू नहीं होंगे. 1992 के नियम लागू होंगे.
गुजरात सरकार ने इसी आधार पर 14 साल की सज़ा काट चुके लोगों को रिहा किया था. अब बिलकिस बानो 13 मई के आदेश पर पुनर्विचार की मांग कर रही हैं.
इसके जवाब में, गुजरात सरकार ने अक्टूबर में शीर्ष अदालत को बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उम्रकैद की सजा का सामना कर रहे 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को मंजूरी दे दी थी.
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