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Friday, 22 November, 2024
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बिलकिस बानो ने फिर खटखटाया SC का दरवाजा, दायर की पुनर्विचार याचिका, दोषियों की रिहाई को दी चुनौती

गुजरात में 2002 में हुए दंगों में गैंग रेप पीड़ित बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा एक बार फिर से खटखटाया है. उन्होंने अदालत द्वारा 13 मई के आदेश जिसमें 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किए जाने पर दोबारा विचार करने की मांग की है.

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नई दिल्ली: गुजरात में 2002 में हुए दंगों में गैंग रेप पीड़ित बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा एक बार फिर से खटखटाया है. उन्होंने अदालत द्वारा 13 मई के आदेश जिसमें 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया था, पर दोबारा विचार करने की मांग की है.

इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई के मामले में 1992 में बने नियम लागू होंगे. 11 दोषियों की रिहाई इसी आधार पर हुई थी. बिलकिस के वकील ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ से एक बार फिर इस मामले की सुनवाई की गुहार लगाई है. मामले को आज चीफ जस्टिस के सामने रखा गया. उन्होंने कहा कि वह विचार करेंगे कि रिव्यू पेटिशन को उसी बेंच के सामने लगाया जाए.

जिन 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, उन्हें गुजरात सरकार की 1992 की छूट नीति के तहत 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया था. अपराधी 15 साल से अधिक समय से जेल में थे, और उनके “अच्छे व्यवहार” के कारण उन्हें छोड़ दिया गया था.

गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को रिहा किए जाने के बाद देश भर में नाराजगी के बाद – विशेष रूप से उनके गांव में माला पहनाए जाने की तस्वीरें सामने आने के बाद – सीपीआई (एम) सदस्य सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर द्वारा शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई थी.

याचिका में कहा गया है, ‘इस जघन्य मामले में छूट पूरी तरह से सार्वजनिक हित के खिलाफ होगी और सामूहिक सार्वजनिक अंतरात्मा को झकझोर देगी, साथ ही पीड़िता (जिसके परिवार ने सार्वजनिक रूप से उसकी सुरक्षा के लिए चिंताजनक बयान दिए हैं) के हितों के खिलाफ भी है.’

इससे पहले 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी की याचिका को सुनते हुए कहा था कि सज़ा 2008 में मिली, इसलिए रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कड़े नियम लागू नहीं होंगे. 1992 के नियम लागू होंगे.

गुजरात सरकार ने इसी आधार पर 14 साल की सज़ा काट चुके लोगों को रिहा किया था.अब बिलकिस बानो 13 मई के आदेश पर पुनर्विचार की मांग कर रही हैं. उनका कहना है कि जब मुकदमा महाराष्ट्र में चला, तो नियम भी वहां के लागू होंगे गुजरात के नहीं.

इसके जवाब में, गुजरात सरकार ने अक्टूबर में शीर्ष अदालत को बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उम्रकैद की सजा का सामना कर रहे 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को मंजूरी दे दी थी.


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