पटना: कोविड-19 संकट के दौरान प्रवासी श्रमिकों की ‘सुध नहीं लेने’ के लिए आलोचनाएं झेल रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक और विवाद में घिर गए हैं, जो इस सप्ताह सामने आए पुलिस मुख्यालय के उस पत्र पर केंद्रित है जिसमें भारी संख्या में प्रवासी मज़दूरों के आगमन से कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी होने की आशंका जताई गई है.
यह पत्र अपर पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) अमित कुमार ने 29 मई को सभी पुलिस अधीक्षकों को भेजा था. लेकिन कुमार ने 4 जून को एक अन्य पत्र जारी कर कहा कि पूर्व का पत्र गलती से जारी हो गया था, जिसे वापस लिया जाता है. दिप्रिंट के पास दोनों पत्रों की कॉपी मौजूद है.
पहले पत्र में कोविड लॉकडाउन के कारण बीते दो महीनों के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों के राज्य में वापस लौटने का उल्लेख है.
पत्र में कहा गया है, ‘गंभीर वित्तीय और आर्थिक चुनौतियों के कारण, सभी तनाव और चिंता में डूबे हैं. राज्य सरकार के प्रयासों के बावजूद उनमें से सभी को वांछित रोज़गार उपलब्ध कराना संभव नहीं दिखता है. वे (प्रवासी मज़दूर) खुद को और परिवार को सहारा देने के लिए अनैतिक और गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं. इसका कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.’ पत्र में सभी पुलिस अधीक्षकों को संभावित स्थिति से निपटने के लिए योजना तैयार करने को कहा गया है.
बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने दिप्रिंट से बातचीत में उक्त पत्र को ‘निर्णय संबंधी भूल’ करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘जिलों से सूचनाएं मिलती रहती हैं और हम उनका विश्लेषण करते हैं, पर ये पत्र निर्णय संबंधी भूल का परिणाम था. जैसे ही हमें अपनी गलती का एहसास हुआ, हमने पत्र वापस ले लिया.’
लेकिन अन्य पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि समस्या दरअसल पत्र को लेकर नहीं थी. एक पुलिस अधिकारी ने अपना नाम नहीं दिए जाने का आग्रह करते हुए कहा, ‘पत्र को राजनीतिक कारणों से वापस लिया गया.’
‘कहां हैं नौकरियां?’
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पत्र सामने आने का इससे बुरा वक्त नहीं हो सकता था.
बुधवार को पंचायत सदस्यों को संबोधित करते हुए कुमार ने बाहर से लौटे श्रमिकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत रोज़गार देने का भरोसा दिलाया था. उन्होंने प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा के लिए अन्य राज्यों को भी ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि उन्हें रोज़गार के लिए वापस उन राज्यों में नहीं जाना चाहिए.
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हालांकि, ऐसी खबरें मिल रही हैं कि प्रवासी श्रमिक उन शहरों में वापस लौटना चाहते हैं जहां वे कोविड संकट से पूर्व काम कर रहे थे.
राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने सवाल किया, ‘सरकार सिर्फ आंकड़े और दावे पेश कर रही है. उनका दावा है कि प्रवासी मज़दूरों के लिए 4 करोड़ मानव दिवस सृजित किए गए हैं. सच्चाई ये है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं में पहले से ही लोग नियोजित हैं. अतिरिक्त रोज़गार कहां है?’
शनिवार सुबह तक, बिहार में कोविड के 4,596 मामले थे और इनमें से 75 प्रतिशत मामले प्रवासी श्रमिकों से संबद्ध थे.
‘नीतीश ने श्रम की महत्ता का मज़ाक उड़ाया’
विवादास्पद पत्र के मुद्दे पर नीतीश कुमार पर हमला करते हुए बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा, ‘क्या नीतीश सरकार प्रवासी मज़दूरों को अपराधी मानती है?’
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने श्रम की महत्ता और मानव गरिमा का मज़ाक उड़ाया है.
यादव ने कहा, ‘प्रवासियों से अपने ही राज्य में दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जा रहा है.’ उन्होंने सरकार को चुनौती दी कि वो बाहर से लौटे प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार देने के अपने वादे से संबंधित विवरण सार्वजनिक करे.
यादव ने कहा कि पुलिस मुख्यालय ने मुख्यमंत्री कुमार के दबाव में पत्र वापस लिया है, जिनके जिम्मे में राज्य का गृह मंत्रालय भी है.
दूसरी ओर भाजपा प्रवक्ता रजनी रंजन पटेल का कहना है कि बिहार की एनडीए सरकार ने ‘नकदी के हस्तांतरण और तीन महीने तक मुफ्त राशन समेत वापस लौटे प्रवासी मज़दूरों के लिए हरसंभव उपाय किए हैं.’
विवादित पत्र के बारे में उन्होंने कहा, ‘तेजस्वी गलती से जारी हुए एक पत्र पर राजनीति कर रहे हैं.’
एक अन्य भाजपा नेता ने कहा, ‘वापस लिए जाने के बावजूद, पत्र ने चुनावों के दौरान सरकार पर हमले के लिए विपक्ष को एक मुद्दा दे दिया है.’
बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं.
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