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Tuesday, 19 November, 2024
होमदेश‘हमें टीका लगाना चाहते हैं तो पैसा दीजिए’: बिहार के महादलित कहते हैं कि चुनाव प्रचार ‘मॉडल’ पर अमल कीजिए

‘हमें टीका लगाना चाहते हैं तो पैसा दीजिए’: बिहार के महादलित कहते हैं कि चुनाव प्रचार ‘मॉडल’ पर अमल कीजिए

बिहार के महादलित टोलों में, ग्रामीणों में वैक्सीन के आर्थिक लाभ को लेकर ज़्यादा उत्सुकता दिखाई दी. प्रशासन का कहना है कि वो इस हिचकिचाहट को दूर करने के लिए काम कर रहा है.

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नवादा: जब कोविड-19 टीकाकरण टीम बिहार के नवादा ज़िले में, एक 35 वर्षीय महादलित महिला ललिता देवी के घर पहुंची, तो वो इतना नाराज़ हो गई, कि उसने टीम को भगा दिया.

ललिता को ये आपत्ति थी कि सरकार, लोगों को टीका लगवाने के लिए पैसा नहीं दे रही है.

उसने भोजपुरी में दिप्रिंट से कहा, ‘लॉकडाउन लगा देवे, तो सरकार हमरी के एगो रुपैया देवे? सुइया ले लेवे तो सरकार हमरी का एक रुपैया देवे? एक माटी का घर है, दिन रात कमइवे कि सुइया लइवे? काहे लेवे सुइया?’

31 मई की ये घटना अकेली नहीं है. अमरपुर मुशारी टोले में (गांव में जाति आधारित एक अलग जगह) हर कोई यही सवाल कर रहा है: बिना किसी आर्थिक प्रोत्साहन के, वो मुफ्त टीका क्यों लगवाएं?

दिप्रिंट के साथ चल रहीं आशा वर्कर्स, और सहायक नर्स मिडवाइफों (एएनएम) का कहना है, कि इन टोलों में ये सफाई देने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता, कि टीका उन्हें कोरोनायरस से बचाने में मदद कर सकता है.

नवादा में एक 54 वर्षीय एएनएम रानी उर्मिला ने कहा, ‘उनका मानना है कि कोरोना एक ‘एसी बीमारी’ है. वो कामगार वर्ग तक कभी नहीं पहुंचेगी. ‘तो फिर सरकार उन्हें मुफ्त टीका क्यों दे रही है? इसके पीछे क्या उद्देश्य है?’

राज्य के कई ज़िलों के महाटोलों में, दिप्रिंट ने पाया कि ग्रामीण लोग मुफ्त टीके के साथ, आर्थिक फायदों को लेकर ज़्यादा उत्सुक थे. ये बताने पर कि टीका उन्हें वायरस से बचाएगा, उनमें से अधिकतर लोग लड़ने पर उतारू हो गए.

अमरपुर, जिसमें क़रीब 160 घर हैं, नवादा सदर ब्लॉक की खारंत पंचायत का एक टोला है. 5,294 की आबादी वाली इस पंचायत में, नौ महदलित टोले हैं.

महादलित लोग दलित समुदाय के, सबसे ग़रीब सामाजिक समूह हैं, और बिहार की कुल आबादी में, इनकी संख्या 15 प्रतिशत है.

नवादा ज़िले में कुल 1,539 महादलित टोले हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, नवादा की महादलित आबादी 1,41,949 है.

प्रखंड विकास अधिकारी (बीडीओ) कुमार शैलेंद्र ने कहा, ‘बहुत सारी ग़लत जानकारियां हैं, कि अगर आपने टीका लगवा लिया, तो आपको कुछ दिन के लिए बुख़ार आएगा. हम टीमें भेज रहे हैं, लेकिन कोई आता ही नहीं है’.

एएनएम रानी उर्मिला ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘बीडीओ के दौरे को दस दिन बीत गए हैं, लेकिन अभी तक केवल नौ और लोगों ने टीके लगवाएं हैं. इसके साथ ही टोले में टीका लगवाने वालों की संख्या 24 पहुंच गई है. कोई टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं है. मुफ्त में भी नहीं’.


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‘टीकाकरण अभियान चुनावों की तरह होने चाहिए’

दिप्रिंट से बात करते हुए, रोहतास ज़िले के एक डोम (महादलित जाति) भांता ने, टीकाकरण अभियान की तुलना चुनावों से की.

उसने पूछा, ‘चुनाव के समय वो हमें पैसा देते हैं. अब मुफ्त टीके के साथ हमारी सहायता क्यों नहीं करते, जब इस लॉकडाउन के दौरान हम बेरोज़गार हैं’.

रोहतास जिले का एक डोम भंता, कोविड -19 वैक्सीन लेने से हिचकिचा रहा है./ज्योति यादव/दिप्रिंट
रोहतास जिले का एक डोम भंता, कोविड -19 वैक्सीन लेने से हिचकिचा रहा है./ज्योति यादव/दिप्रिंट

उसके पास खड़ी उसकी पत्नी ने कहा, ‘सभी जातियों में हमारी जाति सबसे नीची है. सरकार को हमसे बात करनी चाहिए. टीके के साथ उसे हमें कुछ लाभ देने चाहिएं’.

लेकिन ये लोग सिर्फ आर्थिक फायदों के ही तलबगार नहीं हैं, बहुत से लोगों में हिचकिचाहट भी है.

ख़ुद को अजय देवगन कहने वाले, एक महादलित व्यक्ति अजय मांझी ने कहा, ‘अगर हम संक्रमित हो गए तो भगवान से मदद मांगेंगे, सरकार के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे. अगर हम कोरोना से मर भी रहे हों, तब भी टीका नहीं लगवाएंगे’.

दूसरे ज़िलों में भी हिचकिचाहट

पूर्णिया ज़िला मजिस्ट्रेट राहुल कुमार ने भी बताया, कि अनुसूचित जातियों के सबसे ग़रीब समुदायों, और कुछ धार्मिक समूहों में भी टीकों को लेकर झिझक है, और आशा वर्कर्स को विरोध का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘अभी तक, हमने हमेशा आशा वर्कर्स और एएनएम्स के ज़रिए, कामयाबी के साथ महिला एवं बाल कल्याण-केंद्रित स्कीमें लागू की हैं. ये कार्यबल अभी तक सबसे ज़्यादा कारगर रहा है. लेकिन इस मरतबा, लोगों को समझाना पड़ता है, और आशा वर्कर्स को बहुत विरोध का सामना करना पड़ रहा है’.

उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे बहुत से कारण हैं. पहला तो ये, कि सभी जातियों और वर्गों में बहुत सारी ग़लत जानकारियां हैं. लेकिन सबसे ग़रीब दलित समुदाय, और कुछ धार्मिक संप्रदाय इस मामले में ज़्यादा सख़्त हैं. दूसरा ये, कि इसके साथ आर्थिक लाभ का मुद्दा भी जुड़ गया है’.

कुमार ने आगे कहा, ‘अब हमें विकास मित्रों और पीडीएस डीलरों को भी इस प्रयास में शामिल करना होगा, जिनका अपने समुदायों में काफी असर होता है’.


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समस्या से कैसे निपट रहा है नवादा प्रशासन

दिप्रिंट की टीम एक वैक्सिनेशन दल के साथ- जिसमें बीडीओ, एएनएम्स, और आशा वर्कर्स शामिल थे- अमरपुर टोला गई, ताकि बिहार के महादलितों में, टीकों के प्रति हिचकिचाहट को समझा जा सके.

टीम को देखते ही तक़रीबन आधे ग्रामीण, खेतों की ओर भाग खड़े हुए. बहुत कम महिलाएं और बच्चे घरों में रह गए, लेकिन ज़्यादातर ने आशा वर्कर्स को जवाब नहीं दिया.

टीम की अगुवाई, एक आशा वर्कर धन्नो देवी का पति, 47 वर्षीय महेंद्र मांझी कर रहा था.

मांझी उन 15 लोगों में से था, जिन्हें 26 मई को गांव में लगे, एक कैंप के दौरान टीके लगाए गए थे. 15 लोगों में आठ महिलाएं थीं, और सात पुरुष थे. अधिकतर पुरुषों का संबंध आशा कार्यकर्त्ताओं, या एएनएम्स के परिवारों से था.

ज़िला प्रशासन ने मांझी को एक रोल मॉडल के तौर पर चुना है, ताकि टोलों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित किया जा सके.

Mahendra Manjhi looking to convince people to take Covid-19 vaccination. | Photo: Jyoti Yadav/ThePrint
महेंद्र मांझी कोविड-19 वैक्सीन के फायदे लोगों को बताने में जुटे हैं/ ज्योति यादव/दिप्रिंट

इस तरीक़े के बारे में बात करते हुए, नवादा ज़िला मजिस्ट्रेट यशपाल मीणा ने कहा, ‘हम टोलों में से कुछ रोल मॉडल्स उठाएंगे. ये व्यक्ति फिर आगे दूसरे लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित करेगा’.

मीणा ने कहा कि टीके के प्रति रुझान हर रोज़ बढ़ रहा है. ‘इन क्षेत्रों में साक्षरता की कमी के कारण, यहां पर टीकाकरण अभियान, दूसरे इलाक़ों के मुक़ाबले धीमा चल रहा है’.

नवादा में 10 जून को 3,725 लोगों को टीके लगाए गए, जिनमें 3,660 लोग ऐसे थे, जिन्होंने पहली ख़ुराक ली, जबकि 65 लोगों का ये दूसरा डोज़ था. 1 जून को ज़िले में, सिर्फ 605 लोगों को टीके लगाए गए थे.

मीणा के अनुसार, ज़िले, सब-डिवीज़न और ब्लॉक स्तर के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, उन इलाक़ों ख़ासकर महादलित टोलों में जा रहे हैं जहां टीकाकरण कम हो रहा है, ताकि लोगों की चिंताओं को दूर करके, और अफवाहों पर सफाई देकर, उन्हें टीके लगवाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

प्रशासन टीकाकरण टीमों को महादलित टोलों, और पंचायतों में भी भेज रहा है, ताकि लोग ऐसी जगह टीके लगवा सकें, जो उनके लिए सबसे अधिक सुविधाजनक है.

मीणा ने आगे कहा, ‘पिछले 10 दिनों में अच्छी प्रगति के संकेत मिले हैं. महादलित टोलों में हम हर रोज़, 18+ तथा 45+ आयु वर्गों के ज़्यादा लोगों को टीके लगा रहे हैं’.


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