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Wednesday, 8 May, 2024
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हरियाणा के स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाजों को नकद और नौकरी, फिर भी खट्टर खेल नीति विपक्ष के लिए पंचिंग बैग क्यों

जब से खट्टर सत्ता में आए हैं, तब से उनकी सरकार को पदक विजेता खिलाड़ियों को 'अच्छी नौकरी' और पैसे से सम्मानित नहीं करने के लिए विपक्ष की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.

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चंडीगढ़: पिछले महीने दिल्ली में हुई अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (आईबीए) की महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप 2023 में हरियाणा के मुक्केबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया. अपनी झोली में चार स्वर्ण के साथ भारत पदक तालिका में शीर्ष पर रहा था.

चार स्वर्ण पदक विजेताओं में से नीतू घनघास (48 किग्रा वर्ग) और स्वीटी बूरा (81किग्रा वर्ग) हरियाणा से हैं. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को खेल और युवा मामलों के विभाग में पिछले सप्ताह ग्रुप बी पदों के लिए ऑफर लैटर और 40-40 लाख रुपये के चेक सौंपे.

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी में हरियाणा की हिस्सेदारी 2.1 प्रतिशत है. लेकिन भारतीय खेलों में यह राज्य किसी पावर हाउस से कम नहीं है. 2020 के टोक्यो ओलंपिक में राज्य के नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण, रवि कुमार दहिया ने रजत और बजरंग पुनिया ने कांस्य पदक अपने नाम किया था. कुल मिलाकर व्यक्तिगत पदक जीतने के मामले में राज्य का योगदान आधा रहा था.

2016 के रियो ओलंपिक में भी तस्वीर अलग नहीं थी. भारत को मिले आधे पदकों पर राज्य के खिलाड़ियों का दबदबा था. 2018 एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों (CWG) में हरियाणा के खिलाड़ियों ने कुल पदकों में क्रमशः एक-चौथाई और एक-तिहाई योगदान दिया.

लेकिन 2014 में खट्टर के सत्ता में आने के बाद से उनकी सरकार को पदक विजेता खिलाड़ियों को ‘अच्छी नौकरियों’ और पैसे से सम्मानित नहीं करने के लिए विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. जहां खिलाडिय़ों को सरकारी नौकरी देने की नीति में कई बार बदलाव किया गया. वहीं फरवरी में हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) की भर्ती में खेल कोटा खत्म कर दिया गया. चुनाव महज एक साल दूर रह गए हैं. ऐसे में विपक्ष की ओर से आने वाली ये आवाजें और तेज होने लगी हैं.

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हरियाणा ने पदक विजेता खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने की अपनी नीति में पिछले पांच साल में चार बार बदलाव किया है. मुख्यमंत्री के पास खेल विभाग का प्रभार है.

विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस सरकार ने बुनियादी ढांचे का निर्माण करके और पदक विजेता खिलाड़ियों को नौकरी और नकद के साथ सम्मानित करके एक ऐसा माहौल बनाया, जिसने खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया.’

उन्होंने कहा, ‘इससे दोहरा उद्देश्य पूरा हुआ. इस नीति का नाम ‘पदक लाओ, नौकरी पाओ’ रखा गया. जहां पंजाब के युवाओं को ड्रग्स की ओर धकेला जा रहा था, वहीं हरियाणा के लोगों ने खेल के प्रति ऊर्जा का संचार किया क्योंकि वे जानते थे कि एक अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में पदक जीतना, एक अच्छी नौकरी और पुरस्कार राशि पाने का टिकट है. लेकिन इस सरकार ने नीति को तोड़-मरोड़ दिया, जिससे खिलाड़ियों को नुकसान पहुंचा है.’

हुड्डा ने आगे बताया कि उनकी सरकार ने अपने प्रदर्शन से देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) का पद तक दिया था.

उन्होंने आगे कहा, ‘डीएसपी का पद पाने वालों में संदीप सिंह, भारतीय हॉकी कप्तान सरदार सिंह, मुक्केबाज विजेंद्र सिंह, अखिल कुमार और जितेंद्र कुमार, राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता और हॉकी स्टार ममता खरब, टी-20 विश्व कप विजेता जोगिंदर शर्मा, पहलवान योगेश्वर दत्त, गीतिका जाखड़ और एवरेस्ट पर्वतारोही ममता सोढा शामिल हैं. लेकिन यह सरकार निचले पदों पर नौकरियों की पेशकश कर रही है जो खिलाड़ियों को आकर्षित नहीं करती हैं.’

कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्होंने अकादमी स्थापित करने के लिए क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग को भी जमीन दी थी.

उधर खट्टर के मीडिया सलाहकार अमित आर्य की राय विपक्ष से काफी अलग थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जब से बीजेपी सरकार सत्ता में आई है, तब से बेहतरीन खिलाड़ियों को पदक जीतने के कुछ ही दिनों में नौकरी और नकद राशि दे दी जाती है.’

उन्होंने आगे कहा, नीतू घनघस और स्वीटी बूरा का उदाहरण लें. उन्हें पदक जीतने के तीन दिनों के भीतर नौकरी और 40-40 लाख रुपये दिए गए थे. लेकिन पहले खिलाड़ियों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता था. आज खिलाड़ियों को जो नकद पुरस्कार दिए जा रहे हैं, वो दुनिया में सबसे ज्यादा राशि वाले पुरस्कार हैं.’

विपक्ष के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर आर्य ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि खिलाड़ियों को उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में नौकरी मिले.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, जो 2021 की नीति में आखिरी बार संशोधन करने वाली प्रक्रिया से जुड़े हुए थे, ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि कानूनी मसलों के चलते उत्कृष्ट खिलाड़ियों के लिए सरकार ने हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) या हरियाणा पुलिस सेवा (एचपीएस) पदों के अपने प्रस्ताव को खत्म करने का फैसला किया था.

उन्होंने कहा कि हरियाणा सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) ऑफिसर्स एसोसिएशन ने इस आधार पर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख किया था कि खिलाड़ियों के पास एक कार्यकारी अधिकारी के रूप में कर्तव्यों का पालन करने के लिए जरूरी स्किल नहीं होती है. हाईकोर्ट ने फरवरी 2019 के आदेश में हरियाणा से नियमों पर पुनर्विचार करने को कहा था.

दिप्रिंट से बात करते हुए खेल और युवा मामलों के विभाग के निदेशक पंकज नैन ने कहा कि हालिया 2021 नीति के तहत 19 खिलाड़ियों को ग्रुप ए की नौकरी की पेशकश की गई थी. इनमें से 15 खिलाड़ियों ने अपने पदों को संभाल लिया है. इसी तरह 41 खिलाड़ियों को ग्रुप बी की नौकरी की पेशकश की गई, जिनमें से 25 ने काम करना शुरू कर दिया है. ग्रुप सी की नौकरी पाने वाले 156 खिलाड़ियों में से 139 ने ड्यूटी ज्वाइन कर ली है.

उन्होंने कहा, ग्रुप सी की नौकरी करने वालों को खेल विभाग के अलावा शिक्षा, पंचायत और पुलिस विभाग में भी समायोजित किया गया है.

पिछले महीने बजट सत्र के दौरान हरियाणा विधानसभा में रखी गई अपनी रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पाया था कि 2004-05 से 2015-16 तक अपेक्षित योग्यता न होने वाले खिलाड़ियों को 41.30 करोड़ रुपये नकद पुरस्कार दिए गए थे.

पिछले गुरुवार को खट्टर ने एक समीक्षा बैठक में अधिकारियों से खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उनके प्रदर्शन को बढ़ावा देने के लिए सभी सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए कहा था.


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खेल नीति में बदलाव

5 सितंबर 2018 को अधिसूचित अपनी नीति में खट्टर सरकार पूर्ववर्ती हुड्डा प्रशासन की ओर से खिलाड़ियों को दी जाने वाली पेशकश से एक कदम आगे निकल गई.

ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों में स्वर्ण पदक विजेताओं को आठ साल की वरिष्ठता के साथ हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) या हरियाणा पुलिस सेवा (एचपीएस) में नियुक्त किया जाना है. इसी तरह, रजत पदक विजेताओं के लिए चार साल की वरिष्ठता वाले एचसीएस या एचपीएस पदों और कांस्य जीतने वालों के लिए बिना वरिष्ठता वाले एचसीएस या एचपीएस पदों का आश्वासन दिया गया था.

विश्व कप के पदक विजेताओं के लिए नीति के अंतर्गत स्वर्ण पदक पाने वाले खिलाड़ियों के लिए चार साल की वरिष्ठता के साथ HCS या HPS नौकरियों की पेशकश की गई है. रजत पदक पाने वालों के लिए वरिष्ता के बिना HCS या HPS के पद और कांस्य पदक विजेताओं के लिए HCS और HPS को छोड़कर समूह A पदों का ऑफर दिया गया है. जहां तक टीम स्पर्धाओं की बात है, स्वर्ण पदक पाने वाले खिलाड़ियों के लिए एचसीएस या एचपीएस की नौकरियां, रजत पदक विजेताओं के लिए समूह ए की नौकरियां और कांस्य पाने वालों के लिए समूह बी की नौकरियों की पेशकश की गई है.

इसी तरह, नीति में नकद पुरस्कारों के अलावा एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और अन्य खेल आयोजनों में पदक विजेताओं को दी जाने वाली नौकरियों के विवरण का भी उल्लेख किया गया है.

5 सितंबर 2019 को एक और अधिसूचना जारी की गई जिसमें ओलंपिक या पैरालंपिक में स्वर्ण जीतने पर 6 करोड़ रुपये, रजत के लिए 4 करोड़ रुपये, कांस्य के लिए 2.5 करोड़ रुपये और भागीदारी के लिए 15 लाख रुपये दिए जाने हैं. एशियन और पैरा एशियन गेम्स के लिए गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडलिस्ट्स को क्रमश: 3 करोड़, 1.5 करोड़ और 75 लाख रुपए आवंटित किए गए. पॉलिसी के तहत विश्व कप में स्वर्ण पाने पर 40 लाख रुपये, चांदी के लिए 30 लाख रुपये और कांस्य के लिए 20 लाख रुपये की नकद धनराशि देने की बात कही गई है.

3 और 10 सितंबर 2019 को मामूली बदलाव करने के बाद हरियाणा सरकार ने 26 फरवरी 2021 को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से नीति में बड़े संशोधन किए. उसने खेल और युवा कल्याण विभाग में पदक विजेताओं के लिए एचसीएस या एचपीएस पदों को ग्रुप ए (डिप्टी डायरेक्टर), बी (सीनियर कोच) और सी (जूनियर कोच) पदों से बदल दिया.

हरियाणा के उत्कृष्ट खिलाड़ी (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 2018 को रद्द करते हुए, हरियाणा के उत्कृष्ट खिलाड़ी (ग्रुप ए, बी और सी) सेवा नियम- 2021 लाया गया. अब खिलाड़ियों को एलीट एचपीएस और एचसीएस पद नहीं मिल सकते हैं.

ग्रुप ए पद एशियाई और ओलंपिक स्वर्ण विजेताओं के लिए आरक्षित हैं. ग्रुप बी और सी पद रजत और कांस्य विजेताओं के लिए आरक्षित हैं. विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेलों के विजेताओं के लिए नीति ने स्वर्ण और रजत पदक विजेताओं के लिए ग्रुप बी की नौकरी और कांस्य विजेताओं के लिए ग्रुप सी की नौकरी देने की बात कही गई है.

इस संशोधित नीति के तहत ही नीतू और स्वीटी को ग्रुप बी की नौकरी और प्रत्येक को उनकी जीत के लिए 40 लाख रुपये दिए गए थे.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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