नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे ने सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान कोरोनावायरस का हवाला देते हुए आत्मसमर्पण के लिए और समय मांगा है. उनकी तरफ से मामले की पैरवी कर रहे वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनके दोनों मुवक्किलों की उम्र 65 वर्ष से अधिक है और उन्हें दिल की बीमारी भी है. ऐसे समय में जब अन्य जेलों से कैदी निकाले जा रहे हैं इस दौरान इन दोनों के जेल जाने की सजा वास्तव में मौत की सजा है.
वकील की दलील सुनकर सरकार की तरफ से पेश वकील और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह और ज्यादा समय लेने का एक तरीका है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर अपना आदेश फिलहाल सुरक्षित रख लिया है.
शीर्ष अदालत ने 16 मार्च को इन कार्यकर्ताओं की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुये कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ पहली नजर में कोई मामला नहीं बना है. हालांकि, न्यायालय ने इन कार्यकर्ताओं को जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिये तीन सप्ताह का वक्त दिया था.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जांच एजेंसी की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता का पक्ष सुनने के बाद कहा कि इस आवेदन पर बाद में आदेश सुनाया जायेगा. मेहता ने कहा कि यह सिर्फ समर्पण करने से बचने के प्रयास का तरीका है जबकि दोनों ही आरोपियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं.
आरोपियों के वकील का कहना था कि ये कार्यकर्ता पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें समर्पण करने के लिये अधिक समय की आवश्यकता है.
पुणे पुलिस ने कोरेगांव भीमा गांव में 31 दिसंबर 2017 की हिंसक घटनाओं के बाद एक जनवरी, 2018 को नवलखा, तेलतुंबडे और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ माओवादियों से कथित रूप से संपर्क रखने के कारण मामले दर्ज किये थे.