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Monday, 23 December, 2024
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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को सशर्त जमानत, चार हफ्ते दिल्ली से रहना पड़ेगा बाहर

आजाद पर 20 दिसंबर को जामा मस्जिद में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान लोगों को भड़काने का आरोप है.

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नई दिल्ली: भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को जमानत दे दी है. उन पर 20 दिसंबर को जामा मस्जिद में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान लोगों को भड़काने का आरोप है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने आजाद को कुछ शर्तों के साथ राहत दी है जिसमें उन्हें चार हफ्ते दिल्ली से बाहर रहना पड़ेगा.

आजाद को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि वह जामा मस्जिद, शाहीन बाग नहीं जा सकते और चार हफ्तों तक दिल्ली नहीं आ सकेंगे और चुनावों तक कोई धरना आयोजित नहीं करेंगे.

आजाद के संगठन ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ 20 दिसंबर को पुलिस की इजाजत के बिना ही जामा मस्जिद से जंतर-मंतर तक विरोध मार्च का आह्वान किया था.

इस मामले में गिरफ्तार किये गए 15 अन्य लोगों को नौ जनवरी को अदालत ने जमानत दे दी थी.

ऑल इंडिया बहुजन समन्वय समिति के कोऑर्डिनेटर, सामाजिक कार्यकर्ता कुश अंबेडकरवादी ने आजाद को चार हफ्ते दिल्ली से बाहर रहने वाले आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट कर इसे दिल्ली चुनाव से दूर रखने की साजिश बताया है.

संगठन ने आजाद को दिल्ली से चार हफ्ते बाहर रखने के आदेश को अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ बताया है और इसे बहुजनों की आवाज दबाने की साजिश करार दिया है.

चंद्रेशेखर आजाद की जमानत पर सुनवाई जज कामिनी लाउ की अदालत में शुरू हुई. जिसमें अभियोजन पक्ष ने कहा उन्होंने धरने की इजाजत के लिए ईमेल किया था लेकिन नहीं दी गई थी. इस पर जज ने कहा बेशक आप अनुमति नहीं देंगे. अगर ऐसा कुछ घटता है, तो आप नहीं चाहते कि यह आप पर आए.

जज लाउ ने कहा नियम और शर्तें तब लागू होती हैं जब आप विरोध के लिए अनुमति देते हैं. यदि आप अनुमति नहीं देते हैं, तो नियम और शर्तें कोई मायने नहीं रखती. कुछ मामलों में आप लोगों को गिरफ्तार करते हैं, दूसरों में नहीं. यह भेदभाव है.

जज ने आजाद के वकील प्राचा से आजाद द्वारा सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा भेदभाव करने वाली पोस्ट पढ़ने को कहा. प्राचा ने आंबेडकर का जिक्र करने वाली पोस्ट पढ़ते हुए कहा, ‘आंबेडकर ने कहा था कि मेरे मरने के बाद मत सोचना कि मैं मर गया हूं, मैं तब तक जीवित रहूंगा जब तक संविधान जीवित है.’

प्राचा ने बताया कि यह लोगों को संविधान को बचाए रखने के लिए उकसावा हो सकता है.

उन्होंने आजाद की दूसरी सोशल मीडिया पोस्ट को पढ़ी. जिसमें आजाद ने लिखा है, ‘जब मोदी डरते हैं तो पुलिस को आगे कर देते हैं.’

जज लाउ ने कहा ऊपर की पोस्ट ‘समस्यात्मक’ हो सकती है. जज ने कहा, ‘हमारी संस्थाओं का सम्मान होना चाहिए.’

इस पर प्राचा ने स्पष्ट किया कि यह पोस्ट धारा 144 लागू करने को लेकर थी.

जज ने कामिनी लाउ ने कहा, लेकिन उस समय धारा 144 की जरूरत थी. हमें याद रखना चाहिए कि जब हम अधिकारों की बात करते हैं, तो हमें अपने कर्तव्यों को याद रखना चाहिए. मेरा अधिकार तब समाप्त हो जाता है जब यह दूसरों का अतिक्रमण करता है.

इसके बाद प्राचा ने और भी ट्वीट पढ़े. उनमें से एक यह है कि भीम आर्मी का कोई भी व्यक्ति हिंसा में शामिल नहीं होगा.
प्राचा ने आजाद के अन्य ट्वीट का जिक्र किया, ‘अंबेडकर के लोग हिंसा नहीं करते इसमें आरएसएस के लोग शामिल होते हैं.’

जज लाउ ने कहा आरएसएस का जिक्र करने पर कहा कि आरएसएस का नाम क्यों, आप केवल अपनी बात कीजिए. किसी और का नाम लेना भड़काऊ हो सकता है. जज लाउ ने कहा, हमारी अपनी विचारधारा है, आरएसएस की अपनी है, दूसरों की अपनी विचारधारा है, जो कि ठीक है.

इसके बाद प्राचा ने कुछ अन्य ट्वीट्स पढ़ें. जो जज लाउ को ठीक लगे.

जज लाउ ने कहा, उनका (अभियोजन पक्ष) सवाल यह है कि अगर उन्हें (आजाद) छोड़ दिया जाता है, तो हिंसा भड़काने का खतरा है.

न्यायाधीश ने पूछा कि कितने अलग-अलग लोगों को विरोध प्रदर्शन के लिए बुलाया गया. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान के बारे में उनकी चिंता को यह दोहराता है.

प्राचा ने दोहराया कि आजाद द्वारा कोई हिंसा, उकसावा नहीं किया गया. साथ ही वह शांति का आह्वान कर रहे थे.

जज लाउ ने कहा – लेकिन अगर विरोध प्रदर्शन से नुकसान होता है तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. प्राचा ने कहा कि यहां ऐसा नहीं है.

प्राचा ने सवाल करते हुए ताजा एफआईआर की वह बातें पढ़ी ‘जहां यह कहा गया है कि आजाद ने भड़काऊ भाषण दिए हैं.’ प्राचा ने आजाद के जामा मस्जिद पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन के आह्वान का भी जिक्र किया.

प्राथमिकी में कहा गया है कि एक निश्चित हालात के बाद लोगों को तितर-बितर कर दिया गया. प्राचा का कहना है कि आजाद का आह्वान 4.5 घंटे के बाद समाप्त हो गया.

संपत्ति के नुकसान की बात पर प्राचा ने कहा कि यह एक जन आंदोलन है, जिसमें कोई विशेष कॉल नहीं की गई.

न्यायाधीश लाउ ने प्राचा से पूछा कि वह क्या सुझाव देते हैं कि अगर आजाद को रिहा किया जाता है, तो वह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि कोई नुकसान, असुविधा नहीं होगी?

जज लाउ ने कहा कि लोगों को कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए. बहुत से लोगों ने अदालतों से गुहार लगाई है कि वे विरोध के कारण पीड़ित हैं. लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए. आप लाखों और लाख में जाकर इकट्ठा होकर असुविधा नहीं पैदा नहीं कर सकते.

जज ने सवाल करते हुए कहा विरोध प्रदर्शनों का हालिया चलन है जो अंतिम उपाय के रूप में पहले आता है. लोग बिना संवाद किए, पहले ही विरोध कर रहे हैं. पहले बातचीत की कोशिश क्यों नहीं की गई?

प्राचा ने कहा, ‘हम परमिशन की मांग करते हैं. उन्हें हमें बताना चाहिए कि केवल 10 लोग ही विरोध कर सकते हैं. क्यों एक पक्ष को अनुमति दी जाती है तो दूसरे पक्ष को अस्वीकार किया जाता है?

प्राचा अंततः कहते हैं, उस स्थिति में, ‘मैं यह आश्वासन दे सकता था कि मेरे पास अपने सभी भाषणों को रिकॉर्ड करने के लिए एक वीडियोग्राफर होगा, और एक रिकॉर्ड रखेगा.’

जज लाउ ने पुलिस को लताड़ा था, पूछा था- क्या जामा मस्जिद पाकिस्तान में है

इससे एक दिन पहले दरियांगज हिंसा मामले में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद की जमानत याचिका को लेकर अदालत ने पुलिस को लताड़ा था और आज़ाद की हिरासत पर सवाल खड़ा किया था. जज कामिनी लाउ ने आज के लिए सुनवाई स्थगित करते हुए कहा था कि आप ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे जामा जस्जिद पाकिस्तान में है.

न्यायाधीश कामिनी लाउ ने अभियोजक से पूछा था- मैं चाहती हूं कि आप मुझे बताएं कि किस कानून के तहत किसी को धार्मिक स्थलों के बाहर जाना प्रतिबंधित है?

जज लाऊ ने सवाल उठाया था कि आपत्तिजनक बयान क्या हैं. अवैध क्या है? मुझे कानून के बारे में बताएं. जांच ने क्या दिखाया है? उन्होंने कहा कि धरने में, विरोध प्रदर्शन में क्या गलत था? यह संवैधानिकों अधिकारों में से एक है.

सोशल मीडिया पर आजाद द्वारा की पोस्ट की बात करते हुए जज ने कहा था कि पोस्टों को देखने से पता चलता है कि इनमें कहीं भी हिंसा की बात नहीं है. हिंसा कहां है? किसी पोस्ट में गलत क्या है?

उन्होंने कहा था कि पुलिस से सवाल किया कि कौन कहता है कि आप विरोध नहीं कर सकते? क्या आपने संविधान पढ़ा है?

 

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