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Friday, 22 November, 2024
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‘बेहतर होता मुझे मार देते’- गौ रक्षकों के शिकार व्यक्ति ने कहा कि अब कभी मीट ट्रांसपोर्ट नहीं करूंगा

गुरुग्राम में पिछले हफ्ते भीड़ ने मीट लेकर जाने के कारण 25 वर्षीय लुकमान खान को हथौड़ों से बुरी तरह पीटा था. अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वह अपने हाथ से खाना खाने, अकेले चल-फिर पाने में कब सक्षम होगा.

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नूंह: 25 साल के लुकमान खान जिन्हें गुरुग्राम में मीट ट्रांसपोर्ट करने के कारण आठ से 10 लोगों की भीड़ ने हथौड़ों से पीटा था, उनके लिए जिंदगी अब शायद कभी पहले की तरह सामान्य नहीं हो पाएगी.

बकरीद से एक दिन पहले 31 जुलाई को लुकमान तथाकथित गौ रक्षकों की लिंचिंग का शिकार होते हुए बचा जिसने उसे तब पकड़ लिया था जब वह गुरुग्राम के सदर बाजार में भैंस का मांस पहुंचाने जा रहा था.

अब, वह सीधे चल भी नहीं सकता है और नहीं जानता कि कब अपने हाथ से खाने और बिना सहारे के चलने में सक्षम हो पाएगा.

उसने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्होंने मुझे करीब तीन घंटे तक पीटा. बेहतर होता कि मेरी ये हालत करने के बजाये मुझे मार ही देते.’

लुकमान के चेहरे और पसलियों पर चोट के निशान हैं, जहां उसे हथौड़े से मारा गया था. उसके पैर, हाथ और सिर पर कई पट्टियां बंधी है और भीड़ के हमले के कारण उसके माथे पर खून और दवा दोनों की वजह से चोट के निशान नीले-काले पड़े चुके हैं.

वह पिछले एक साल से मीट ट्रांसपोर्टर के तौर पर काम कर रहा था और महीने में लगभग 3,500 रुपये कमा लेता था लेकिन लुकमान ने अब फिर इस काम को न करने की कसम खाई है.

उसने कहा, ‘जो कुछ हुआ मैं उसी के बारे में सोचता रहता हूं. उन्होंने मुझे बहुत बुरी तरह पीटा. मैं यह काम फिर कभी नहीं करूंगा.’

भाजपा शासित राज्य हरियाणा में 2015 से ही गौवध और गाय के मांस की बिक्री पर सख्त पाबंदी है और स्व-घोषित गौ रक्षक अक्सर इस कानून के नाम पर हिंसा करते रहते हैं.

लुकमान ने बताया, ‘उन्होंने कम से कम 50 बार मुझसे ‘जय श्री राम’ बोलने को कहा. जब मैंने कहा कि यह मेरे धर्म में नहीं है और इसके बजाय अल्लाह का नाम लिया तो उन्होंने मुझे और भी ज्यादा पीटा.’

भीड़ उसे कथित तौर पर जिंदा जलाने के लिए श्मशान घाट ले जाने से पहले सोहना चौक में एक सड़क पर लेकर पहुंची थी. तब कहीं जाकर पुलिस ने इस मामले में हस्तक्षेप किया.

उसने बताया, ‘मैंने उन्हें यह कहते सुना है कि ‘वह’ एक मुसलमान है, इसे जला दो और फिर मैं बेहोश हो गया.’

लुकमान के मुताबिक इस घटना ने एक बात साफ कर दी: ‘मुसलमान होना इस देश में एक अपराध है. मैंने खुद इसका अनुभव कर लिया है.’

लुकमान के मामले में अब तक चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. घटना का एक वीडियो वायरल होने के बाद बादशाहपुर के थानेदार (एसएचओ) का तबादला भी कर दिया गया, जिसमें पुलिसकर्मी हाथ पर हाथ धरे चुपचाप यह घटना होते देख रहे हैं.

लुकमान खान जिन्हें भीड़ ने पीटा है. उन्हें काफी चोट आई है | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

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भीड़ हिंसा पर एक नज़र

हरियाणा के नूंह में- जहां डेयरी फार्मिंग, कृषि और मवेशी व्यापार आय के प्राथमिक स्रोत हैं- गाय से जुड़ी भीड़ हिंसा कोई नई बात नहीं है. तहसील की आबादी में बड़ी संख्या में ऐसे मुसलमान हैं जो मांस ट्रांसपोर्ट करने के काम में लगे हैं.

यहां तक कि घसेरा के अपने गांव के अंदर भी लुकमान गौ रक्षकों के हमले के शिकार होने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं.

एक साल पहले जून में 35 वर्षीय मीट ट्रांसपोर्टर शाहिद कुरैशी भी जब उसी रास्ते से गुरुग्राम के उसी बाजार में जा रहे थे, उनके साथ भी इसी तरह की घटना हुई थी.

शाहिद ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब मैंने लुकमान के साथ हुई घटना के बारे में सुना तो मुझे रोना आ रहा था. मुझे रह रहकर आज भी उस दिन की घटना याद आ जाती है जब मुझ पर हमला किया गया था.’

वह अब भी बिना मदद के उठ-चल नहीं पाता है. अक्सर उसे चक्कर आने लगते हैं और हमले के कारण उसके पैरों में अब भी कई बार सूजन आ जाती है.

शाहिद कुरैशी जिन्हें भीड़ ने एक साल पहले पीटा था | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

शाहिद के मुताबिक, बादशाहपुर से आगे इस्लामपुर गांव में एक फ्लाईओवर के नीचे उन्हें भीड़ ने रोका और पीटा था, इसी जगह पर लुकमान पर हमला हुआ.

उसने बताया, ‘मेरा शरीर आज भी याद दिलाता रहता है कि मेरे साथ क्या हुआ था. मैंने सदर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई थी लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. मेरे पास पुलिस कार्रवाई के लिए ताकत या संसाधन नहीं हैं.’

शाहिद के मामले ने उस तरह से मीडिया का ध्यान आकृष्ट नहीं किया, जैसा लिंचिंग और भीड़ हिंसा के कई अन्य मामलों में हुआ.

गुरुग्राम स्थित मीट मार्केट के मजदूरों और दुकान मालिकों ने दिप्रिंट को बताया कि गौ रक्षकों द्वारा मांस की आपूर्ति करने वाले ड्राइवरों का उत्पीड़न आम बात है और ज्यादातर मामले तो प्रकाश में ही नहीं आते हैं.

इतिहास के आईने में देखें तो लुकमान और शाहिद पर हमलों की विडंबना एकदम स्पष्ट हो जाती है. 1947 में विभाजन के कुछ समय बाद महात्मा गांधी ने घसेरा की यात्रा की थी और गांव के मुसलमानों को पाकिस्तान न जाने के लिए प्रेरित किया था.

नूंह में मुसलमानों का एक बड़ा तबका मेव मुसलिमों का हैं, जो इस्लाम के एक ऐसे स्वरूप का अनुपालन करते हैं जिसमें तमाम हिंदू प्रथाएं शामिल हैं. गांधी ने मेवातियों, जिन्हें उन्होंने देश की ‘रीढ़’ बताया था, से भारत में सम्मानित जीवन देने का वादा किया था.

लुकमान के पिता बिलाल खान ने दिप्रिंट से कहा, ‘गांधी ने एक गलती की थी जब उन्होंने यह कहा था कि भारत में उन्हें स्वीकारा जाएगा. उन्हें नहीं पता था कि मोदी सरकार आएगी और मुसलमानों से छुटकारा पाना चाहेगी.’

बिलाल ने बताया कि उनका परिवार कम से कम सौ साल से घसेरा में रह रहा है और अल्पसंख्यक हिंदू पड़ोसियों के साथ कभी संघर्ष की स्थिति नहीं आई.

लुकमान के पिता बिलाल खान | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

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मांस आपूर्तिकर्ता विरोध जताते हैं लेकिन न्याय की उम्मीद नहीं

लुकमान पर हमले के बाद से, स्थानीय मांस आपूर्तिकर्ताओं ने अपना काम रोक दिया है, डर और विरोध दोनों ही वजहों से.

हारून कुरैशी पिछले आठ वर्षों से गुरुग्राम के सदर बाज़ार में मांस की आपूर्ति कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि वह तब तक मांस की आपूर्ति नहीं करेंगे, जब तक कि लुकमान और उनके परिवार को मुआवजा या न्याय नहीं मिल जाता.

हारुन ने बताया, ‘मैंने हमेशा केवल भैंस काटी है. कभी एक भी गाय का वध नहीं किया. मैं कानून का सम्मान करता हूं. मैं इसका उल्लंघन करके कभी किसी की जान जोखिम में नहीं डालना चाहूंगा.’

गुरुग्राम बाजार के मांस आपूर्तिकर्ताओं और दुकान मालिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को पुलिस से मिलकर मांग की कि लुकमान मामले में सभी आरोपियों पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया जाए और उसे पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं.

हालांकि, गांव में उनके घर पर न्याय की उम्मीद धुंधली हो चुकी है.

बिलाल ने कहा, ‘इस सबमें कुछ नहीं होगा. देखिए न लिंचिंग के अन्य मामलों में क्या हुआ है. पीड़ितों को न्याय का भरोसा तक नहीं मिलता है.’

बूचड़खाना जहां से लुकमान और शाहिद मीट ट्रांसपोर्ट करत थे | | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

हरियाणा में लिंचिंग पीड़ितों के लिए न्याय का अभाव

यदि कोई पहलू खान की पत्नी जयभूना की स्थिति को देखे तो बिलाल की बात सही ही नज़र आती है, जो खुद मॉब लिंचिंग पीड़ितों के साथ न्याय के अभाव का जीता-जागता उदाहरण है.

पहलू खान को लगभग 200 स्वघोषित गौ रक्षकों की भीड़ ने इस संदेह के आधार पर पीटकर मार डाला था कि वह मवेशियों को वध के लिए ले जा रहा था, जबकि उसने भीड़ को डेयरी फॉर्मिंग के लिए दी गई अनुमतियों को दिखाया था.

राजस्थान के अलवर में उसकी हत्या की घटना उस समय हुई जब वह जयपुर से वापस लौट रहे थे.

इस मामले से लोगों में नाराज़गी बढ़ी और डेयरी फार्मिंग और मांस की आपूर्ति में शामिल मुसलमानों के लिए जोखिम भी सामने आया. उसकी मौत के तीन साल बाद भी इस मामले में केवल दो किशोरों की गिरफ्तारी हुई है.

पहलू खान ने मरने से पहले जिन छह अन्य लोगों का नाम लिया था, 2019 में अपने ऊपर लगे आरोपों से बरी हो चुके हैं.

घसेरा से 24 किलोमीटर दूर जयसिंहपुर गांव में रहने वाली जयभूना ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरा ध्यान अभी बचे रह गए दो बच्चों की शादी कराने पर है. न्याय के लिए ठोकरे खाने का अब कोई फायदा नहीं है.’

उसके आठ में से छह बच्चों की शादी हो चुकी है और वे घर से बाहर चले गए है. जयभूना को सरकार की तरफ से कोई वित्तीय सहायता या मुआवजा नहीं मिला है और न ही इसकी उम्मीद है.

उन्होंने बताया, ‘मैंने बीती बातों को अपने दिमाग से निकाल दिया है. मैं कोर्ट तभी जाती हूं जब मुझे बुलाया जाता है. अन्यथा अपनी भैंसों का दूध दुहकर कुछ पैसे कमाने पर ध्यान देती हूं.’

पहलू खान की पत्नी जयभानू खान | फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

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मोदी सरकार में गौ रक्षकों की गतिविधियां बढ़ीं: रिपोर्ट

नागरिक समाज समूह पीपुल्स यूनियन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) की एक तथ्यान्वेशी रिपोर्ट में कहा गया है कि गौ रक्षक समूह अक्सर ‘सशस्त्र होते हैं, राजमार्गों पर गश्त करते हैं, कुछ प्रमुख जगहों पर अपनी निजी चौकियों के जरिये एक संगठित नेटवर्क बना रखा है और आपराधिक घटनाओं में संलग्न हैं.’

न्यूयॉर्क स्थित अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इन गतिविधियों को बढ़ावा मिला है. 2015 और 2018 के बीच इस तरह के हमलों में कम से कम 44 लोग मारे गए. इसमें से 36 मुस्लिम थे.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि गौ रक्षक ज्यादातर मुस्लिमों और दलितों को निशाना बनाते हैं- जिन्हें बीफ खाने वाला समुदाय माना जाता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने लिंचिंग मामलों पर डाटा जारी नहीं किया है और इसलिए इन मामलों में सजा की दर के बारे में कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है.

हरियाणा ने 2018 में गोरक्षा के लिए 30 करोड़ रुपये आवंटित किए थे और असली गौ रक्षकों को आईडी कार्ड देने का प्रस्ताव दिया था.

यह पूछे जाने पर कि राज्य में गौ रक्षक समूह कैसे काम करते हैं, गुरुग्राम के अपराध शाखा के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रीतपाल सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये न तो सरकारी और न ही राजनीतिक इकाई हैं. ये खुद को गाय के रक्षक के रूप में पेश करते हैं लेकिन मांस के व्यापार में शामिल लोगों को डराने और परेशान करने के लिए आपराधिक तरीके अपनाते हैं.’

सिंह ने जिले में गो रक्षा के कोई बड़ा मसला होने की बात से इनकार भी किया. उन्होंने कहा, ‘केवल यही एक मामला है जो हमारी नज़र में आया है. इसके अलावा कभी कोई ऐसी समस्या नहीं हुई.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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