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Friday, 26 April, 2024
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मोदी सरकार कैबिनेट सचिव को लेटरल एंट्री भर्ती पैनल का प्रमुख बनाना चाहती थी

निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव के रूप में भर्ती करने के फैसले पर मोदी सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा था. इसीलिए सरकार ने यूपीएससी को ये काम सौंपने का फैसला किया है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तहत संयुक्त सचिव के रूप में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को भर्ती करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करना चाहती थी.

उच्च पद पर आसीन सूत्र ने दिप्रिंट ने बताया कि इस योजना की घोषणा होते ही इसे वापस वापस कर लिया गया था. जिसके परिणामस्वरूप योजना पर पुनर्विचार किया गया और सरकार ने भर्ती को स्वायत्त एजेंसी संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) को सौंपने का फैसला किया था.

केंद्र सरकार के एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘शुरुआत में, प्रस्ताव को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली समिति के माध्यम से निजी क्षेत्र से व्यक्तियों को शामिल करने का प्रस्ताव था.

लेकिन योजना की घोषणा के तुरंत बाद इसको विरोध का सामना करना पड़ा था. सरकार द्वारा भर्ती में संभावित पक्षपात के कारण सरकार के बाहर एक स्वायत्त एजेंसी को देने का निर्णय लिया गया था.

क्योंकि यूपीएससी स्वतंत्र निकाय है जो अपनी निष्पक्षता और अखंडता के लिए जाना जाता है. इसलिए इसे जिम्मा देने का निर्णय लिया गया. इसके अलावा सरकार में किसी अन्य निकाय पर यूपीएससी के जितना भरोसा नहीं किया जा सकता है.

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केंद्र सरकार की लैटरल एंट्री स्कीम

जून 2018 में केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने विभिन्न विभागों में 10 संयुक्त सचिव पदों के लिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों से आवेदन आमंत्रित किए थे.

हालांकि, एक महीने के बाद इस कार्य को यूपीएससी को सौंप दिया गया था.

यूपीएससी ने बाद में 89 उम्मीदवारों को सूची में शामिल किया, जिनका 1 अप्रैल से इंटरव्यू शुरू होना था.

सूत्र ने कहा ‘समझने वाली बात यह है कि जब से इस काम जिम्मा यूपीएससी को सौंपा गया था, तब से आलोचना कम हो गयी.’

विवाद

केंद्र सरकार ने जब से निजी क्षेत्र से प्रतिभाओं को शामिल करने के प्रस्ताव को पहली बार एक विज्ञापन के माध्यम से सार्वजनिक किया तब से इस मुद्दे का गहरा ध्रुवीकरण हो रहा है.

जबकि, कुछ लोगों ने नौकरशाही को सुधारने के लिए निजी प्रतिभाओं को लाने के विचार का दृढ़ता से समर्थन किया है. अन्य लोगों ने यह तर्क दिया है कि निर्णय लेने वाले उच्चतम पद पर जी-हजूरी करने वाले लोगों को सरकार में लाने का तरीका है.

कई विपक्षी पार्टियों ने जैसे कांग्रेस, सीपीआई (एम) और समाजवादी पार्टी ने इस योजना की आलोचना की और कहा कि यह स्कीम देश में शासन की कार्य प्रणाली के साथ छेड़छाड़ करने का एक साधन है जिसकी विश्वसनीयता काफी समय से कायम है.

कांग्रेस प्रवक्ता पीएल पुनिया (पूर्व आईएएस अधिकारी) ने कहा कि यह लैटरल एंट्री स्कीम सिर्फ कुशलता से चलने वाली प्रणाली में छेड़छाड़ करने के लिए है और आरएसएस, भाजपा और कुछ औद्योगिक घरानों में लोगों को सम्मलित करने के लिए है ताकि वे सीधे सरकार के निर्णय को प्रभावित कर सकें.

हालांकि, प्रस्ताव की आलोचना करने वाले कई लोगों ने विचार को लागू करने के लिए एक वैध निकाय (यूपीएससी )में अपना विश्वास जताया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए भारत सरकार के पूर्व सचिव अनिल स्वरूप ने कहा ‘मेरे लिए, यह महत्वपूर्ण नहीं है अगर इस तरह के सुधार आएंगे हैं. जब तक यूपीएससी करता है, तब तक ठीक है. लेकिन सरकार को यह नहीं कहना चाहिए कि कौन-कौन सी सेवा दे रहा है’.

(यह खबर अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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