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Sunday, 3 November, 2024
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कैसे एक बी.एड. का छात्र बना आईएस का पहला भारतीय आत्मघाती हमलावर

एक दशक से भी कम समय में, फैयाज़ कागज़ी महाराष्ट्र में बी.एड का छात्र बनने के लिए निकला फिर बना लश्कर रिक्रूटर और आखिरकार सऊदी अरब में आईएसआईएस के लिए मारा गया।

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नई दिल्ली :वह आतंकवादी संगठनों के लिए एक सफल भर्तीकर्ता था, पाकिस्तान के आईएसआई के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति था, और भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार यह वह व्यक्ति है जिसने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के प्रमुख संचालक अबू जुन्दाल को प्रशिक्षित किया था। फैयाज कागज़ी महाराष्ट्र में बीड जिले का एक मूल निवासी था। लेकिन 4 जुलाई 2016 को जेद्दाह में यूएस वाणिज्यिक दूतावास के बाहर एक आत्मघाती हमले से कुछ दिन पहले उसका नाम दुबारा इंटेल इंटरसेप्ट्स की लिस्ट में आया, इससे पहले 2011 से पांच साल तक के लिए फ़ैयाज़  का नाम खुफिया एजेंसियों के रडार पर नहीं था।

भारतीय जांचकर्ता अब कहते हैं कि वह आत्मघाती हमलावर कागज़ी ही था, जो अपनी मृत्यु के समय वह 40 वर्ष का था, और उसने कथित तौर पर इस्लामी राज(आईएसआईएस) के आदेश पर हमला किया था। डीएनए प्रोफाइलिंग, जो इस साल अप्रैल में पूरी हुई थी, ने कथित रूप से स्पष्ट किया है कि आत्मघाती हमलावर वास्तव में बीड मूल का निवासी था। उसकी पहचान डीएनए के नमूने के आधार पर की गई थी जो कि अक्टूबर 2017 में महाराष्ट्र एटीएस द्वारा उसके परिवार से एकत्रित किये गये थे।

कागज़ी ने कथित तौर पर वाणिज्य दूतावास के सामने एक मस्जिद के बाहर अपनी कार पार्क की और बाद में जल्द ही उसने अपनी डिवाइस में विस्फोट कर दिया। सऊदी अरब में विदेशियों को टारगेट करने के लिए वर्षों में यह पहली बमबारी थी।

छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता, लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख भर्तीकर्ता

2003 में औरंगाबाद में कागज़ी मौलाना आजाद कॉलेज से बी.एड. की पढ़ाई कर रहा था जब उसने नशे की लत से प्रभावित युवाओं के साथ जुड़ना शुरू किया। जांचकर्ताओं का मानना है कि कागज़ी ने लश्कर-ए-तैयबा के लिए लोगों की भर्ती के लिए अपने काम को एक नकाब की तरह इस्तेमाल किया था। वह कथित रूप से आतंकवादी संगठन के सदस्यों के संपर्क में बहुत जल्द आ गया था जब वह बीड से बी.एससी. कर रहा था।

एक सूत्र ने कहा कि “औरंगाबाद में अपने प्रवास के दौरान उसने 300 रुपये प्रतिमाह पर कागज़ी दरवाज़ा में एक कमरा किराये पर लिया और एक पुस्तकालय शुरू किया जिसके लिए वह लोगों से प्राप्त फण्ड से किताबें खरीदता था। इस तरह उसने कई युवाओं का विश्वास जीता।”

जांचकर्ताओं का कहना है कि इसी समय कागज़ी जुन्दाल से मिला था और उसे एलईटी के प्रमुख नेताओं से मिलवाया था।

एक सूत्र ने कहा कि “2002 के गुजरात दंगों में मुसलमानों की हत्याओं का बदला लेने के लिए कागज़ी ने जुन्दाल को कट्टरपंथी इस्लाम में शामिल होने के लिए उकसाया था। गुजरात के जलते रात दिन नाम की एक किताब जुन्दाल को दी गयी थी और कागज़ी ने उसे दंगे के बहुत सारे वीडियो और फोटो दिखाए थे।”

कागज़ी को एक कोड नाम दिया गया था – अर सलान, और उसे आरएसएस कार्यकर्ताओं पर निशाना साधने के लिए कहा गया था।

प्रशिक्षण और पतन

भारतीय जांचकर्ताओं का कहना है कि 2006 से कुछ समय पूर्व कागज़ी हथियारों के प्रशिक्षण के लिए पहले पाकिस्तान गया था। इस समय, कथित तौर पर उसने अपने परिवार के सदस्यों को बताया कि वह दुबई में काम कर रहा था।

अपने हैंडलर्स को प्रभावित करने के लिए कागज़ी और उसके सहयोगियों ने कथित तौर पर 19 फरवरी 2006 को मुंबई-अहमदाबाद कर्णावती एक्सप्रेस के कोच एससी -1 में विस्फोटक रखे थे। अहमदाबाद के कालूपुर रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट हुआ, जिसमें 14 से ज्यादा लोग घायल हो गए।

यह जुन्दाल था जिसने जांचकर्ताओं को बताया कि बमबारी के लिए कागज़ी की सराहना की गयी थी और उसे पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक सुरक्षित घर में भेज दिया गया था। वहां जाने के बाद कागज़ी कथित तौर पर कुछ महीनों के लिए शांत रहा और फिर जिहादी वेबसाइटों पर काम करना शुरू कर दिया।

एक सूत्र ने कहा कि “फेसबुक पर प्रोपगंडा वीडियो और पेजों के जरिये कागज़ी युवाओं की भर्ती में माहिर बन गया था।”

इस समय मुंबई हमलों की योजना शुरू हुई थी। कागज़ी ने जिंदाल और अपने गृहनगर बीड के मसूद अज़हर से एक प्रमुख हैंडलर बनने के लिए कथित तौर पर प्रशिक्षण के लिए कहा। महाराष्ट्र जाना और वहां मराठी भाषा का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तानी आत्मघाती हमलावरों को सहूलियत देना उनके इरादे में शामिल था।

सूत्रों के अनुसार, आत्मघाती दस्ते में मसूद का शामिल होना कागज़ी के लिए परेशानी भरा था क्योंकि उसे डर था कि अगर ऑपरेशन असफल रहा तो मसूद की उपस्थिति जांचकर्ताओं को वापस बीड तक खींच ले जाएगी।

एक सूत्र ने कहा कि “उसे डर था कि यदि हमलावर पकड़ लिए जाते हैं तो जांच एजेंसियां भारत में मसूद के परिवार को परेशान करना शुरू कर देंगी। उसे यह भी डर था कि जांचकर्ता अंततः उसके परिवार तक भी पहुँच जायेंगे। इसलिए वह मसूद को बाहर करना चाहता था।”

मसूद को बाहर रखने के लिए कागज़ी खालिद से मिला लेकिन मुंबई हमले के मास्टरमाइंड ज़की-उर-रहमान-लखवी के लिए निर्देशित कर दिया गया।

एक सूत्र ने कहा कि “जब कागज़ी ने समस्या के सम्बन्ध में लखवी से मुलाकात की तो वह नाराज़ हुआ और दोनों में विवाद हो गया। तब लखवी ने भारत में भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति को ऑपरेशन के लिए न भेजने की कसम खा ली। इस खींचतान के बाद कागज़ी ने पाकिस्तान छोड़ दिया।”

सऊदी के लिए पलायन, आईएसआईएस से संबंध

एजेंसियों द्वारा प्राप्त किये गये इंटेलिजेंस इनपुट ने बताया कि अंत में आईएसआई ने कागज़ी को पाकिस्तान से बाहर निकालकर सऊदी तक जाने की सुविधा प्रदान की थी।

एक सूत्र ने बताया, “ऐसा कोई रास्ता नहीं था कि कागज़ी पाकिस्तान को स्वयं ही छोड़ दे। लखवी के साथ अपने मनमुटाव के बाद पाकिस्तान में रहना उसके लिए सुरक्षित नहीं था। आईएसआई ने सऊदी जाने के लिए उसकी मदद की। उसने कागज़ी के प्रवास की भी व्यवस्था की, क्योंकि बाद में ऑपरेशन के लिए उसे इस्तेमाल करने की योजना थी।”

सऊदी में कागज़ी ने एक मदरसे में पढ़ाना शुरू किया और एक पाकिस्तानी महिला से शादी कर ली, जिससे उसने एक लड़का पैदा किया। वह खुफिया एजेंसियों की पहुँच से पूरी तरह से बाहर चला गया। जुंदाल, जो कि 2011 में सऊदी में कागज़ी के पास गया था, के संपर्क में आने के बाद कागज़ी फिर इंटरसेप्ट्स की नज़रों में आ गया।

एक सूत्र ने कहा कि “जुंदाल कागज़ी का पुराना दोस्त था। हालांकि कागज़ी अब एलईटी के लिए काम नहीं कर रहा था और जुंदाल से वहां रहने के दौरान किसी के संपर्क में नहीं रहने के लिए कहा गया था, फिर भी उसने जून 2011 में कागज़ी से संपर्क किया और इसे अपने हैंडलर मुजम्मिल से छुपाया।” उस महीने जुंदाल को सऊदी अरब में गिरफ्तार कर लिया गया और भारत भेज दिया गया।

सूत्रों के मुताबिक, कागज़ी को आईएसआईएस में जाने की सुविधाएँ आईएसआई ने प्रदान की। एक जांचकर्ता ने बताया, “जब भारतीय मूल के आतंकवादी सीरिया, इराक अफगानिस्तान में आईएस के लिए लड़ते मरते हैं तो आईएसआई को आईएस के लिए मैनपॉवर के सक्षम आपूर्तिकर्ता के रूप में पहचान मिलती है और इस प्रकार यह उनके साथ समन्वय की अपनी प्रणाली को खुला रखता है।”

जांच एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि उन्होंने सऊदी में अधिकारियों के साथ कागज़ी की उपस्थिति की जानकारी साझा की थी लेकिन उसे निर्वासित नहीं किया जा सका।

एक सूत्र ने बताया, “कागज़ी एक बेहद प्रेरित कार्यकर्ता था जो आईएसआई के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ था। यही कारण है कि 2011 में भारतीय अधिकारियों द्वारा कागज़ी की उपस्थिति के बारे में सऊदी को जानकारी देने के बावजूद उसे गिरफ्तार और निर्वासित नहीं किया गया था। वास्तव में, आईएसआई ने हस्तक्षेप किया था और राजनयिक प्रणाली के माध्यम से कागज़ी को बचाया था।”

2011 के बाद कागज़ी फिर से छुप गया और खुफिया एजेंसियों द्वारा किसी भी इंटरसेप्ट्स में सामने नहीं आया। यह पिछले ही महीने एक डीएनए परीक्षण ने पुष्टि की कि वह कागज़ी ही था जिसने जेद्दाह में खुद को उड़ा दिया था।

Read in English: The small-town boy who became India’s first ISIS suicide bomber

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