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Friday, 22 August, 2025
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स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम के बाद बस्तर में आदिवासी को ‘पुलिस मुखबिर’ बताकर माओवादियों ने की हत्या

पुलिस के अनुसार, माओवादी कैडरों ने जन अदालत में सुनवाई के दौरान मनीष को ‘पुलिस मुखबिर’ बताते हुए मार डाला. भारी बारिश के कारण शव अभी बरामद नहीं हो सका है.

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नई दिल्ली: 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने के एक दिन बाद छत्तीसगढ़ के एक दूरस्थ गांव के आदिवासी की कथित तौर पर संदिग्ध माओवादियों ने हत्या कर दी. आरोप है कि माओवादियों ने उसे पुलिस मुखबिर करार दिया.

एक वीडियो में पीड़ित मनीष नुरेटी, कांकेर ज़िले के बिनागुंडा गांव का निवासी, एक ढांचे पर तिरंगा फहराते दिख रहा है, जो माओवादी स्मारकों जैसा दिखाई देता है. वीडियो में मनीष के साथ गांववाले भी मौजूद हैं और आसपास आदिवासी बच्चे राष्ट्रगान गा रहे हैं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि माओवादी कैडरों ने ‘जन अदालत’ में सुनवाई के दौरान मनीष की हत्या की. हत्या के एक दिन बाद माओवादियों के स्थानीय दल ने एक बैनर भी लगाया, जिसमें मनीष को मौत के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उसे पुलिस का मुखबिर बताया गया और दावा किया गया कि वह डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड्स के साथ सहयोग करता था.

बिनागुंडा गांव अबूझमाड़ जंगल के भीतर स्थित है, जिसे दशकों से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और उसकी सशस्त्र टुकड़ियों का गढ़ माना जाता है. यह संगठन आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के नाम पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करता रहा है.

बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुन्दरराज पट्टलिंगम ने दिप्रिंट से इस हत्या की पुष्टि की है.

उन्होंने कहा, “हमें जानकारी मिली है कि कांकेर ज़िले के छोटेबेठिया थाना क्षेत्र के बिनागुंडा गांव निवासी मनीष नुरेटी की माओवादियों ने हत्या कर दी है. एक छोटा वीडियो भी सामने आया है, जिसमें मनीष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते दिखाई दे रहा है.”

उन्होंने आगे कहा, “तथ्यों और विवरणों की जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी.”

हालांकि, कथित तौर पर सार्वजनिक रूप से हुई इस निर्मम हत्या के एक हफ्ते बाद भी छत्तीसगढ़ पुलिस मनीष का शव बरामद नहीं कर सकी है.

पुलिस के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को नाम न छापने की शर्त पर बताया, “लगातार बारिश और मानसून के चलते कोटरी नदी उफान पर है, जिसकी वजह से उस पार के गांवों तक पहुंचना संभव नहीं हो पा रहा है. शव अब तक बरामद नहीं हुआ है. शक है कि गांववाले, जो भयभीत हैं, उन्होंने ही अंतिम संस्कार कर दिया होगा.”

अबूझमाड़ जंगल के भीतर बसे बिनागुंडा और आसपास के गांव कांकेर के मैदानी हिस्सों से कोटरी नदी द्वारा अलग-थलग हैं. यह इलाका दशकों से माओवादियों का मजबूत गढ़ रहा है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों ने इस क्षेत्र में दबाव बनाया है.

पिछले साल इसी इलाके में हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने 29 माओवादी कैडरों को मार गिराया था.

दिप्रिंट ने पिछले साल अप्रैल में इन गांवों से रिपोर्ट की थी कि कैसे सुरक्षाबलों और माओवादियों की मुठभेड़ में स्थानीय आदिवासी बीच में फंस जाते हैं.

बरसात के मौसम में सुरक्षा बलों की पहुंच अक्सर सीमित हो जाती है, खासकर उन माओवादी इलाकों में जो गहरे जंगलों में नदियों से घिरे हैं जैसे दक्षिण बस्तर में इंद्रावती और उत्तर बस्तर में कोटरी नदी.

इस साल रायपुर में वामपंथी उग्रवाद पर समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भरोसा जताया था कि लगातार बारिश और नदियों के उफान के बावजूद सुरक्षाबलों के अभियान नहीं रुकेंगे.

उन्होंने कहा था कि सुरक्षा बल मानसून के दौरान भी अभियान जारी रखेंगे और मार्च 2026 तक देश से माओवाद का खात्मा करने के लक्ष्य की दिशा में काम करेंगे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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