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Thursday, 25 April, 2024
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स्त्री-पुरुष समानता के मामले में बांग्लादेश ने भारत को 60 स्थान पीछे छोड़ा

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की लैंगिक असमानता रिपोर्ट में बांग्लादेश 48वें स्थान पर, जबकि भारत का 108वां स्थान.

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नई दिल्ली: भारत वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की इस साल की लैंगिक असमानता रिपोर्ट में बांग्लादेश से 60 स्थान पिछड़ गया है. दक्षिण एशिया के दो अन्य देश भी भारत से आगे हैं.

कुल 149 देशों के इस सर्वे में भारत को 108वां स्थान मिला है. वर्ष 2017 में भी भारत का यही रैंक था, जबकि 2016 में वह 21 स्थान ऊपर 87वें स्थान पर था. विगत के इन दो वर्षों में रैंकिंग में कुल 144 देश शामिल थे.

पिछले साल की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग में गिरावट के पीछे मुख्यत: राजनीतिक सशक्तिकरण, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा और बुनियादी साक्षरता के क्षेत्रों में लैंगिक असमानता बढ़ने को ज़िम्मेवार ठहराया गया था.

इस बार की सालाना रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई देशों के बीच बांग्लादेश 48वें स्थान के साथ सबसे अच्छी स्थिति में है. वर्ष 2017 में भी बांग्लादेश ही दक्षिण एशिया में लैंगिक असमानत रैंकिंग में सर्वश्रेष्ठ रहा था, हालांकि तब उसकी रैंकिंग एक पायदान ऊपर यानि 47 पर थी.

जेंडर गैप पर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ताज़ा रिपोर्ट में श्रीलंका और नेपाल को क्रमश: 100वें और 105वें स्थान पर रखा गया है. मालदीव का रैंक 113, जबकि भूटान का 122 है. अफ़ग़ानिस्तान को इस सर्वे में शामिल नहीं किया गया है.

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पाकिस्तान से बुरा हाल सर्वे में शामिल सिर्फ एक अन्य देश का बताया गया है. स्त्री-पुरुष समानता के मामले में दक्षिण एशिया के फिसड्डी देश पाकिस्तान का रैंक 148 है, जबकि सबसे नीचे 149वें स्थान पर गृहयुद्ध में फंसे देश यमन को रखा गया है.

यह लगातार दसवां साल है जब आइसलैंड पहले नंबर पर रखा गया है. दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: नॉर्वे और स्वीडन हैं.

विस्तार से अध्ययन

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया लैंगिक असमानता की खाई को 68 प्रतिशत पाट चुकी है. भारत के मामले में यह आंकड़ा दो अंक नीचे 66 प्रतिशत का है, जबकि पूरे दक्षिण एशिया की बात करें तो यह 65 प्रतिशत पर है.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रैंकिंग का आधार चार श्रेणियों में देशों के प्रदर्शन को बनाया गया है: महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और उन्हें मिलने वाले अवसर, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य एवं जीवन प्रत्याशा तथा राजनीतिक सशक्तिकरण.

सर्वे में संसाधनों और अवसरों तक पहुंच के मामले में स्त्री-पुरुष असमानता का आकलन किया जाता है, ना कि मात्र उपलब्ध संसाधनों का. इस तरह ये सुनिश्चित किया जाता है कि उच्च आर्थिक विकास और लैंगिक समानता को परस्पर संबद्ध नहीं मान लिया जाए. दूसरे शब्दों में, यदि लैंगिक असमानताओं की बात करें तो भारत जैसा तेज़ी से विकासमान देश भी पिछड़ सकता है.

चारों श्रेणियों में गिरावट

वैसे तो भारत का प्रदर्शन कुल मिलाकर पिछले साल जैसा ही आंका गया है, पर सर्वे की बुनियादी चारों ही श्रेणियों में यह नीचे फिसला है.

मसलन, आर्थिक भागीदारी और अवसरों के मामले में भारत को 2017 के 139 के मुक़ाबले इस साल 142वां रैंक मिला है.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट में नौकरियों और वेतन-भत्तों में बराबरी के साथ ही संबद्ध क्षेत्रों में करियर में प्रगित को लेकर भी स्त्री-पुरुष असमानताओं का आकलन किया जाता है. इस साल की सूची में मोरक्को और ईरान के बीच पड़ा भारत महिला-पुरुष बराबरी के मामले में सऊदी अरब से मात्र दो स्थान ऊपर है जिसे 145वां स्थान मिला है. इराक़ इस श्रेणी में अंतिम 149वें स्थान पर है.

यदि बात स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा की करें – इसमें ‘अनुपस्थित’ या सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों के चलते पिछड़ जाने वाली महिलाओं का अनुमान लगाया गया है – तो भारत नीचे से तीसरे स्थान या 147वीं रैंक पर है. इस श्रेणी में जन्म के समय लैंगिक अनुपात तथा पुरुषों और महिलाओं की जीवन प्रत्याशा के आंकड़े शामिल किए जाते हैं.

इस श्रेणी में भारत भले ही पिछले साल की 146वीं रैंक से एक पायदान नीचे गिरा हो, पर रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक असमानता में यह वृद्धि भारत को पिछले एक दशक में इस श्रेणी में सबसे कम सुधार करने वाला देश बनाती है.

हालांकि भारत महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में दुनिया के 20 शीर्ष देशों में शामिल है, पर इस समूह में वह बमुश्किल से अपनी जगह बचा पाया है. इस साल इस श्रेणी में भारत का स्थान 19वां है, जबकि पिछले साथ वह 15वें नंबर पर था.

उल्लेखनीय है कि पिछली साल की रिपोर्ट में इस बारे में भारत को आगाह भी किया गया था कि ‘महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण की श्रेणी के शीर्ष 20 देशों में बने रहने के लिए भारत को राजनीतिक नेतृत्व की एक नई पीढ़ी के साथ आगे बढ़ना होगा.’

महिलाओं की शिक्षा की श्रेणी में भी भारत दो स्थान नीचे गिरकर 114वें नंबर पर आ गया है. पिछले साथ उसका स्थान 112वां था.

हालांकि, रिपोर्ट में संतोष व्यक्त किया गया है कि इस गिरावट के बाद भी भारत ने ‘समान काम के लिए बराबर वेतन को लेकर प्रगति दर्ज की है और पहली बार कॉलेज स्तर की शिक्षा के मामले में पूर्ण स्त्री-पुरुष बराबरी का स्तर हासिल किया है. साथ ही प्राथमिक और उच्च विद्यालय स्तरों पर लगातार तीसरे वर्ष लैंगिक असमानता को पूरी तरह दूर रखने में सफल रहा है.’

भारत बनाम बांग्लादेश

बांग्लादेश और भारत में स्त्री-पुरुष बराबरी को लेकर इतना बड़ा अंतर रहने के बारे में रिपोर्ट के सहलेखक रॉबर्तो क्रोति ने जन्म के समय लैंगिक अनुपात को एक बड़ा कारक बताया है.

उन्होंने कहा कि इन दो देशों की रैंकिंग में इतने बड़े अंतर का ‘एक बड़ा कारण है जन्म के समय लैंगिक अनुपात. भारत इस मामले में 149 देशों के बीच 146वें नंबर पर है, पर बांग्लादेश का लैंगिक अनुपात नैसर्गिक स्तर पर है… अनुपस्थित महिलाओं के कारक ने ही वास्तव में भारत को पीछे रोक रखा है.’

क्रोति के अनुसार, “यहां तक कि ऊपर के स्तर पर राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में भी बांग्लादेश का प्रदर्शन भारत के मुक़ाबले बेहतर है… भारत के मुक़ाबले वरीय पदों पर वहां महिलाओं का अनुपात अधिक है.”

उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश में दो शीर्ष नेता महिलाएं हैं: पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया और वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना.

क्रोति के अनुसार कामकाज़ी वर्ग में महिलाओं की हिस्सेदारी बांग्लादेश में 35 प्रतिशत है, जबकि भारत में मात्र 28 प्रतिशत.

भारत में लैंगिक असमानता कम करने के उपायों के बारे में उन्होंने कहा, ‘श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए भारत को प्रयास करने होंगे. महिलाओं की तकनीकी कुशलता बढ़ी है, पर इससे आगे उपयुक्त कानून बनाने, जागरुकता बढ़ाने और अधिकारों एवं अवसरों को सुनिश्चित करने की भी ज़रूरत है.’

क्रोति ने कहा, ‘महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के बाद हम उम्मीद करेंगे कि लैंगिक समानता के एजेंडे को प्राथमिकता दी जाएगी, और फिर आगे चलकर कामकाज़ी वर्ग में महिलाओं की भागीदारी, भूमि अधिकार और उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर हमें प्रगति देखने को मिल सकेगी.’

उन्होंने कहा, ‘पर इसमें लंबा वक़्त लगेगा. भारत में पिछले एक दशक की अवधि में राज्य प्रमुख के पदों पर महिलाओं की 20 प्रतिशत भागीदारी रही. यह बहुत अच्छी उपलब्धि है, पर मानसिकता बदलने में लंबा समय लगेगा. इस वक़्त सरकार के सीनियर पदों पर महिलाओं की भागीदारी मात्र 13 प्रतिशत है.’

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

फोरम की इस बार की रिपोर्ट में एक नई बात है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आगमन और स्त्री-पुरुष असमानता पर इसके संभावित प्रभाव का अध्ययन. और, परिणाम उत्साहवर्द्धक नहीं हैं क्योंकि आंकड़ों से ज़ाहिर होता है कि ‘श्रम बाज़ार में आज पुरुषों और महिलाओं के करियर की बिल्कुल अलग राहों के मद्देनज़र आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने वालों के बीच एक स्थाई किस्म की व्यवस्थामूलक लैंगिक असमानता नज़र आती है.’

यह आकलन भारत के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने में सक्षम पेशेवरों के लिहाज से भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, पर इस क्षेत्र में रोज़गार पर पुरुषों का प्रभुत्व है. रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस के पेशेवरों में 78 प्रतिशत पुरुष और मात्र 22 प्रतिशत महिलाएं हैं.

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत को अभी बहुत काम करने होंगे वरना लैंगिंग असमानता और गहरे जड़ जमाती रहेगी, जिससे भारत के लिए विश्व रैंकिंग में ऊपर चढ़ना और कठिन हो जाएगा.

इस रिपोर्ट का अंग्रेजी संस्करण पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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