नई दिल्ली: तेलंगाना के कृषि वैज्ञानिक महालिंगम गोविंदराज ने आयरन और जिंक से भरपूर मोती बाजरा की एक नई वैरायटी विकसित करने के लिए फील्ड रिसर्च एंड अप्लीकेशन पर 2022 का प्रतिष्ठित नॉर्मन ई. बोरलॉग अवॉर्ड जीता है.
धनशक्ति नामक मोती बाजरा वैरायटी की यह पहली बायोफोर्टिफाइड किस्म है, जिसकी खेती 2014 में शुरू की गई थी.
वर्ल्ड फूड प्राइज फाउंडेशन की तरफ से 30 अगस्त को जारी एक बयान के मुताबिक, ‘भारत और अफ्रीका में बायोफोर्टिफाइड फसलों, खासकर बाजरे को लोकप्रिय बनाने में गोविंदराज का उत्कृष्ट योगदान रहा है.’
इसमें कहा गया कि एक दशक से अधिक समय से गोविंदराज के नेतृत्व में अच्छी उपज, हाई-आयरन और हाई-जिंक वाली मोती बाजरा किस्मों को विकसित और प्रसारित किया जा रहा है, जिसने हजारों किसानों और उनके समुदायों के बेहतर पोषण में खासा योगदान दिया है.
गोविंदराज फिलहाल हार्वेस्टप्लस में फसल विकास पर काम करने वाले एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, जो संस्थान बायोफोर्टिफाइड फसलों के उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने पर काम करता है. बायोफोर्टिफिकेशन फसलों की उत्पादकता और सूक्ष्म पोषक तत्व बढ़ाने के लिए सेलेक्टिव ब्रीडिंग की एक प्रक्रिया है.
अवार्ड की शुरुआत 2011 में नॉर्मन ई. बोरलॉग की स्मृति में की गई थे, जिन्होंने 1940 और 1950 के दशक में मैक्सिको के एक युवा वैज्ञानिक के तौर पर भूख और गरीबी मिटाने की वैश्विक लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
आयोवा, अमेरिका में रॉकफेलर फाउंडेशन की तरफ से 10,000 डॉलर का यह पुरस्कार हर अक्टूबर में 40 वर्ष से कम उम्र के किसी वैज्ञानिक के किसी व्यक्तिगत स्तर के काम को मान्यता देने के लिए प्रदान किया जाता है.
भारत ने 1960 के दशक के मध्य में हरित क्रांति के दौरान बोरलॉग द्वारा विकसित उच्च उपज वाली गेहूं की बौनी किस्मों को अपनाया, जिसने देश को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया.
गोविंदराज ने दिप्रिंट को बताया, ‘डॉ. बोरलॉग के नाम पर कोई अवार्ड हासिल करना बेहद सम्मान की बात है, जो हमेशा से एक प्रेरणास्रोत रहे हैं और जिनके नक्शेकदम पर चलते हुए ही मैंने किसानों के लिए नई किस्मों को तैयार किया है.’
उन्होंने बताया, ‘2014 में धनशक्ति नामक किस्म की खेती शुरू होने के बाद से हमने भारत और वेस्ट अफ्रीका में मोती बाजरा की लगभग 10 बायोफोर्टिफाइड वैरायटी जारी की हैं. अब निजी क्षेत्र इन बीजों को किसानों को बेच रहा है.’
उन्होंने कहा कि बाजरे के अलावा बायोफोर्टिफिकेशन की तकनीक—जिस पर 2003 से हॉवर्थ बौइस के नेतृत्व में शुरुआती काम किया गया था—को चावल, गेहूं, मक्का, कसावा और मकई जैसे अन्य उपजों के लिए भी अपनाया जा रहा है.
वर्ल्ड फूड प्राइज फाउंडेशन के मुताबिक, 200 ग्राम धनशक्ति महिलाओं को दैनिक आधार पर उनके लिए जरूरी आयरन की 80 फीसदी से अधिक मात्रा प्रदान कर सकती है, जबकि बाजरा की नियमित किस्मों से केवल 20 प्रतिशत ही आयरन मिलता है.
अनुमान है कि 2024 तक 90 लाख से अधिक भारतीय बाजरे की बायोफोर्टिफाइड किस्में उपभोग कर रहे होंगे, जिससे निश्चित तौर पर पोषण मानकों में सुधार होगा. वेस्ट अफ्रीका के किसानों ने भी 2019 से नई बायोफोर्टिफाइड किस्मों को अपनाना शुरू कर दिया है.
हार्वेस्टप्लस के मुताबिक, पहली बायोफोर्टिफाइड खाद्य फसल, विटामिन-ए से भरपूर शकरकंद, 2004 में जारी की गई थी. तबसे 60 से अधिक देशों में 12 भिन्न मुख्य फसलों की सैकड़ों बायोफोर्टिफाइड किस्में या तो जारी की जा चुकी हैं गई हैं या फिर परीक्षण के चरणों में हैं.
विश्व स्तर पर, बायोफोर्टिफिकेशन का उपयोग अब भुखमरी या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के खिलाफ जंग के कई तरीकों में से एक के तौर पर किया जाता है. अन्य रणनीतियों में आहार विविधता को बढ़ावा देना, खेती के बाद खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन, और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं जैसे समूहों को विटामिन, आयरन और फोलिक एसिड की खुराक प्रदान करना आदि शामिल है.
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