नई दिल्ली: अगर 2022-23 में शिक्षा क्षेत्र के लिए जारी किए गए फंड को देखा जाए तो कह सकते हैं कि स्कूली शिक्षा पर सरकारी खर्च पूर्व-कोविड स्तरों पर लौट रहा है. शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा के लिए अपने कुल 1,04,277.22 करोड़ रुपये के बजट का 56 प्रतिशत (58,928.02 करोड़ रुपये) जारी किया, जो अब तक का सबसे अधिक है. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है.
सरकार की अनुदान मांगों की रिपोर्ट से पता चला है कि फरवरी के पहले हफ्ते तक शिक्षा मंत्रालय ने बजट के 38,627.18 करोड़ रुपये का उपयोग किया था.
मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग ने अकेले मार्च में लगभग 19,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त फंड का उपयोग किया था. सूत्रों ने आगे कहा कि मंत्रालय के लिए यह उपयोगी आंकड़ा है, लेकिन राज्यवार आंकड़ों को जोड़ने में अधिक समय लगेगा और यह अभी भी उपलब्ध नहीं है.
सूत्रों ने कहा कि फंड को कोविड के बाद सीखने के तरीकों के साथ-साथ स्कूल के बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने और डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देने की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए जारी किया गया था.
मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ”सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) हस्तक्षेप जो कोविड से पहले ज़रूरी था, उसे भी मजबूत किया गया है, जिसमें कक्षाओं में स्मार्टबोर्ड लगाना, इंटरनेट सुविधाएं और स्कूलों में कंप्यूटर देना, शिक्षकों के लिए वित्तीय सहायता, शिक्षकों की ट्रेनिंग और कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों (केजीबीवी) आदि की बेहतरी भी इसके अंतर्गत शामिल है.”
केजीबीवी उच्च प्राथमिक आवासीय विद्यालय हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) की लड़कियों के लिए हैं.
मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, फंड का सबसे बड़ा हिस्सा – 32,514.69 करोड़ रुपये (जारी किए गए कुल फंड का 55 प्रतिशत से अधिक) – समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए), मोदी सरकार की प्रमुख शिक्षा योजना के लिए जारी किया गया था. सूत्रों ने बताया कि यह वित्त वर्ष 2023 के लिए 32,151.66 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से थोड़ा अधिक था और राज्यों की इसी मांग के कारण इसे जारी किया गया था.
वित्तीय वर्ष की योजना के लिए वास्तविक बजट आवंटन 37,383 करोड़ रुपये था.
इससे पहले 2019-20 में स्कूली शिक्षा के लिए आवंटन सबसे ज्यादा (52,592.48 करोड़ रुपए) था. सूत्रों ने कहा कि उस दौरान भी सबसे बड़ा हिस्सा – 32,376.53 करोड़ रुपये या जारी किए गए कुल फंड का 61.56 प्रतिशत – समग्र शिक्षा अभियान के पास गया.
‘वापस सामान्य करने के लिए’
एसएसए स्कूली शिक्षा एक व्यापक कार्यक्रम है जो प्री-स्कूल से लेकर कक्षा 12वीं तक है. इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना, सीखने के परिणामों को बढ़ाना, स्कूली शिक्षा में सामाजिक और लैंगिक अंतर को कम करना और स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर समानता और समावेश सुनिश्चित करना है. यह बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के कार्यान्वयन में भी राज्यों का समर्थन करता है.
यह योजना, जिसने 2019 में तीन मौजूदा कार्यक्रमों – सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और शिक्षक शिक्षा को समाहित कर लिया, इसमें हमेशा स्कूल शिक्षा बजट का सबसे बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ है.
एसएसए के अलावा, स्कूल शिक्षा विभाग मध्याह्न भोजन योजना (अब नाम बदलकर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण), शिक्षक प्रशिक्षण योजनाओं जैसी योजनाओं को प्रायोजित करता है, साथ ही राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) जैसे स्वायत्त निकायों और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को सहायता प्रदान करता है.
2021-22 में, मंत्रालय को 51,969.95 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान के मुकाबले कुल स्कूली शिक्षा बजट के 5,146 करोड़ रुपये वापस करने पड़े. सूत्रों ने इसे महामारी के कारण लगे प्रतिबंधों को जिम्मेदार ठहराया, यह कहते हुए कि राज्यों ने स्कूल बंद होने के कारण अधिक फंड की मांग नहीं की.
मंत्रालय के सूत्रों ने इसे “वापस सामान्य” स्थिति के रूप में देखा है. इसके अलावा, मंत्रालय को यह भी उम्मीद है कि उच्च बजट से कोविड के बाद के कार्यों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
फरवरी 2022 में मंत्रालय ने सभी राज्यों को एक कोविड रिकवरी प्लान भेजा था, जिसमें महामारी के कारण हुए सीखने के नुकसान की भरपाई के लिए छात्रों के लिए कोर्स आयोजित करने को कहा था.
मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इसने पोस्ट-कोविड रिकवरी गतिविधियों के लिए भी फंड निर्धारित किया था.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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