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Saturday, 16 November, 2024
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‘बाबू समझो इशारे’– मोदी की IAS की आलोचना ने चौंकाया लेकिन बहुत से लोगों ने आत्ममंथन करने को कहा

भारत के विकास में निजी क्षेत्र के योगदान के लिए उसके प्रति सम्मान जताते हुए बुधवार को मोदी ने सवाल उठाया कि किस तरह, ‘हर चीज़ बाबुओं के हवाले करके, हमने सत्ता का केंद्र विकसित कर दिया है’.

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नई दिल्ली: 2016 में आईएएस एसोसिएशन ने अधिकारियों के लिए ‘बाबू’ शब्द के बढ़ते इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई थी. आईएएस एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष और कई अन्य सेवारत अधिकारियों ने इस शब्द को भारतीय सिविल सर्वेंट्स के लिए ‘गाली’ करार दिया था.

पांच साल बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईएएस अधिकारियों को ‘बाबू’ कहा और संसद के तल पर ‘बाबू संस्कृति’ का उपहास किया, तो दबे शब्दों में हैरानी का इज़हार किया जा रहा है, जबकि कुछ ने कहा है कि ये इस समुदाय के लिए अपने अंदर झांकने का आह्वान है जिसकी बहुत ज़रूरत थी.

बुधवार को मोदी ने भारत की तरक्की और विकास में निजी क्षेत्र के योगदान के लिए उसके प्रति सम्मान जताया और साथ ही सवाल उठाया कि किस तरह, ‘हर चीज़ बाबुओं के हवाले करके, हमने सत्ता का केंद्र बना दिया है’.

मोदी ने कहा, ‘सब कुछ बाबू ही करेंगे. आईएएस बन गए मतलब वो फर्टिलाइज़र का कारखाना भी चलाएगा, केमिकल का कारखाना भी चलाएगा, आईएएस हो गया तो वो हवाई जहाज़ भी चलाएगा, ये कौन सी बड़ी ताकत बनाकर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश दे करके, हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी तो देश के हैं, तो देश का नौजवान भी तो देश का है’.

ज़्यादातर अधिकारियों के लिए पीएम का बयान एक ऐसा दुर्लभ अवसर था, जब देश के सर्वोच्च कार्यालय से पूरे आईएएस समुदाय की सार्वजनिक रूप से निंदा की गई थी.

लेकिन, इस बयान ने बहुत से लोगों को हैरान किया, चूंकि प्रधानमंत्री के शासन के मॉडल में कुछ चुनिंदा आईएएस अधिकारियों पर बहुत अधिक भरोसा किया जाता है- जो अक्सर मंत्रियों की कीमत पर होता है.

कुछ चुनिंदा अफसरों की सेवाएं बढ़ाने से लेकर पीएमओ समेत अहम पदों पर, उन्हें उनके नियमित कार्यकाल से कहीं आगे तक बनाए रखने और सचिवों यहां तक कि देशभर के ज़िलाधिकारियों के साथ, सीधा संवाद कायम करने तक- पीएम मोदी देश और उससे पहले अपने गृह राज्य गुजरात पर शासन करने के लिए आईएएस अधिकारियों से अपनी घनिष्ठता पर भरोसा करने के लिए जाने जाते रहे हैं.


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एक ‘चिंतित समुदाय’

सचिव स्तर के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि उन्हें इससे पहले कोई ऐसा मौका याद नहीं है, जहां प्रधानमंत्री ने ‘आईएएस के मौलिक आधार पर इस तरीके से सवाल खड़े किए हों’.

अधिकारी ने कहा, ‘ऐसी छिटपुट मिसालें हैं जहां राजनीतिज्ञों ने कुछ विशेष अधिकारियों की निंदा की है…बतौर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब एक प्रेस कांफ्रेंस में, अपने विदेश सचिव को डांट लगाई थी, तो उसे अधिकारियों के अपमान के तौर पर देखा गया था लेकिन फिर भी वो सिर्फ एक अधिकारी का मामला था’.

एक पूर्व आईएएस अधिकारी टीआर राघवन, जो थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) में अकाउंटेबिलिटी इनीशिएटिव के साथ सलाहकार हैं, भी इससे सहमत थे.

उन्होंने कहा, ‘ये कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पीएम ने जो कहा है वो आईएएस के लिए मौत की घंटी होगी’.

उन्होंने ये भी कहा, ‘विशेषज्ञों की आवश्यकता का ये सारा तर्क नया नहीं है लेकिन ये आलसी नौकरशाही पर एक टिप्पणी है, जो दशकों से राजनीतिज्ञों के आगे घुटने टेकती रही है…उन्हें खुद से पूछना चाहिए कि घुटने टेकने से उन्हें क्या हासिल हुआ है’.

भारत सरकार में पूर्व केंद्रीय सचिव अनिल स्वरूप ने कहा कि इस टिप्पणी को बिना सोचे-समझे कही गई बात की तरह नहीं देखना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा, ‘जब मैं सरकार में काम कर रहा था, तो आईएएस अधिकारियों के मामले में पीएम बहुत स्पष्टवादी थे. उनका बयान हमारे लिए चिंता और आत्ममंथन का विषय है’. उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो उनके साथ 5-6 साल से काम कर रहे हैं. उन्हें अब आत्ममंथन करने की ज़रूरत है कि आईएएस में क्या खराबी आई है’.


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ऐसा पहली बार नहीं

2014 में दिल्ली आने के बाद से मोदी ने कई मौकों पर- निजी तौर पर या घुमा फिराकर भ्रष्टाचार और यथास्थिति बनाए रखने को लेकर सिविल सेवाओं पर निशाना साधा है.

अपने 73वें स्वतंत्रता दिवस भाषण में उन्होंने भ्रष्टाचार की तुलना ‘दीमकों’ से की और कहा कि उनकी सरकार ने भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों को मलाईदार विभागों से हटाने के लिए कई कदम उठाए हैं.

उन्होंने कहा, ‘आपने देखा होगा कि पिछले पांच सालों में और इस बार सत्ता में आने के बाद हमने कई लोगों को बाहर किया है, जो सरकार में मलाईदार विभागों के मज़े ले रहे थे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो लोग जो हमारे प्रयासों की राह में रोड़ा हुआ करते थे, हमने उनसे कहा कि वो अपना बोरिया-बिस्तर समेट लें, (क्योंकि) देश को (उनकी) सेवाओं की ज़रूरत नहीं है’.

2019 में सत्ता में वापस आने के बाद सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ, बंद कमरे में हुई एक बैठक में मोदी ने कथित रूप से कहा था कि अधिकारियों ने उनकी सरकार के पांच साल ‘खराब’ कर दिए हैं और वो उन्हें अगले पांच साल खराब नहीं करने देंगे.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी पिछले साल, इसी तरह की टिप्पणियां की थीं.

नागपुर में एक आयोजन में गडकरी ने कहा, ‘परसों मैं एक सबसे बड़े मंच पर था, जहां वो (अधिकारी) कह रहे थे कि वो ये शुरू करेंगे, वो शुरू करेंगे. मैंने उनसे कहा कि आप क्यों शुरू करेंगे? अगर आपके अंदर वो प्रतिभा थी, तो फिर आप यहां एक आईएएस अफसर के नाते क्यों काम कर रहे हैं? आपको कोई बड़ा कारोबार शुरू करना चाहिए था. आपको उनकी सहायता करनी चाहिए, जो ये कर सकते हैं. आपका काम चीज़ों को सरल और सुविधाजनक बनाना है. आप इसमें खुद शामिल नहीं होंगे’.

यथास्थिति बनाए रखने और सिविल सर्वेंट्स में अनुभव की कथित कमी की समस्या से निपटने के लिए जिन्हें नियमित रूप से अलग-अलग विभागों में भेज दिया जाता है, मोदी सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी लेटरल एंट्री स्कीम भी शुरू की, ताकि विशेषज्ञों को निर्णय की प्रक्रिया में शामिल किया जा सके. पिछले हफ्ते और आवेदन आमंत्रित करके, उसने इस स्कीम को विस्तार दिया है.


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‘आत्ममंथन की ज़रूरत’

आईएएस अधिकारी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि सिविल सर्विस सिस्टम जवाबदेही, कार्यकाल के स्थायित्व और अक्षमता जैसी प्रमुख समस्याओं से ग्रस्त है लेकिन कुछ इस मामले में ‘द्विअर्थी’ बातों की ओर इशारा करते हैं.

एक अधिकारी ने कहा कि ये सही है कि सरकार को अलग-अलग क्षेत्रों में दखलअंदाज़ी के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है लेकिन उसे अंतर-क्षेत्रीय हस्तक्षेप और राजनीतिक जुड़ाव की भी ज़रूरत होती है, जिसके लिए ये सरकार भी आईएएस अधिकारियों का इस्तेमाल करती है. ‘तब फिर ऐसे में आईएएस अधिकारियों के प्रति तिरस्कार की आम भावना को क्यों दोहराया जाता है? सरकार को इन बारीकियों को समझना चाहिए’.

अधिकारी ने कहा कि पीएम अभी भी चुनिंदा अफसरों पर बेहद भरोसा करते हैं और उनके गुण, योग्यता या निष्ठा के लिए उन्हें पुरस्कृत करते हैं.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘बहुत से ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें रिटायरमेंट के बाद भी उनके कामकाज या निष्ठा के लिए पुरस्कृत किया गया है…मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत है’.

उन्होंने ये भी कहा, ‘लेकिन अगर वो किसी काम के नहीं हैं, तो फिर उन्हें पुरस्कृत क्यों किया जाता है? लेटरल एंट्री एक चीज़ है लेकिन विशेषज्ञों को आयोगों और ट्रिब्युनल्स का अध्यक्ष नियुक्त करने से, सरकार को कोई नहीं रोक सकता. तब फिर ये सरकार आईएएस अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद भी काम पर क्यों रखती रहती है? वहां पर एक्सपर्ट्स को क्यों नहीं लाती?’

फिर भी, दिप्रिंट से बात करने वाले ज़्यादातर अधिकारियों का कहना था कि आईएएस अधिकारियों को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है.

रघुनंदन ने कहा, ‘इस अपमान के खिलाफ आईएएस समुदाय इसलिए नहीं बोल पाएगा कि उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘उन्होंने दशकों से अपनी आवाज़ नहीं उठाई है, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें याद करना चाहिए, कि अगर आप निर्विवाद रूप से निष्ठा दिखाने लगें तो भी राजनीतिक कार्यकारी की नज़र में आप तिरस्कृत हो सकते हैं.’

एक और आईएएस अधिकारी ने जो अभी भी सरकार में सेवारत हैं, एक ज़्यादा व्यवहारिक समस्या का ज़िक्र किया.

अधिकारी का कहना था, ‘मुझे लगता है कि बहुत समय से आईएएस समुदाय में, दिखावटी तौर पर नैतिक बनने का रुझान रहा है, जहां उन्होंने निजी क्षेत्र को सीधे-सीधे, भ्रष्ट और लालची कहकर खारिज कर दिया है और मुनाफा कमाने को एक बुराई के रूप में देखा है’.

उन्होंने कहा, ‘पीएम की टिप्पणी से बहुत साफ हो जाता है कि अब हम इस रवैये के साथ नहीं रह सकते और सरकार में ताकतवर पदों पर आसीन होने की हैसियत से हमें ज़्यादा सार्थक तरीके से निजी क्षेत्र के साथ जुड़ना होगा. इस बयान से अगर मैं कुछ समझता हूं तो वो ये कि अब समय है कि आईएएस अफसर अपनी हेकड़ी खत्म करें’.

इसी महीने प्रकाशित हुए सीपीआर के एक सर्वेक्षण में इस दावे की पुष्टि होती है कि अधिकांश आईएएस अधिकारी निजी क्षेत्र को ‘बहुत उपेक्षा और संदेह’ की नज़र से देखते हैं.

1958 की एक हिंदी फिल्म चलती का नाम गाड़ी के एक लोकप्रिय गीत का हवाला देते हुए, अधिकारी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि निजी क्षेत्र के साथ सहयोगी जैसा बर्ताव किया जाना है और बाबू की बेवक़ूफी होगी अगर वो इशारा नहीं समझता ’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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