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Friday, 26 April, 2024
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न्याय में कितनी देरी हो सकती है इसका जीता जागता नमूना है बाबरी विध्वंस मामला

दिप्रिंट ने अदालत की सुनवाई में भाग लेने के लिए वहां दो दिन बिताए अभियोजन और बचाव पक्ष के वकीलों से बात की, अदालत के रिकॉर्ड, सबूत और बयानों के माध्यम से गुजरे और मुकदमे की स्थिति को जाना, जो हमें मिला वो इस प्रकार है.

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लखनऊ: गवाह संख्या 291 कोर्ट में साढ़े तीन घंटे की देरी से आखिरकार पहुंचता है. जैसे ही सीबीआई के अभियोक्ता ने कार्यवाही के लिए कागज निकाले वैसे ही गवाह ने एक दरख्वास्त की. उसने कहा कि वो आज इस मामले की सुनवाई में शामिल नहीं हो सकेगा, न ही वो अपना बयान दर्ज करा सकेगा, क्योंकि आज उसकी बेटी की सगाई है.

गवाह ने लिखित में अपनी अर्जी दी और जज से इजाज़त लेकर चला गया.

स्टेनोग्राफर जो कार्यवाही शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था, वो गवाह के बारे में कुछ लिख रहा था. पूरे कोर्ट रुम में सिर्फ उसी के कीबोर्ड की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. फिर उसने भी अपना सारा सामान समेट लिया. दिन के दो बज चुके थे और कोर्ट पूरे दिन के लिए स्थगित हो गई.

अयोध्या प्रकरन के कोर्ट रूम नंबर 8 में एक और सामान्य दिन है, यह लखनऊ के पुराने हाईकोर्ट बिल्डिंग के कोने में स्थित है. बत्तीस हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों, जिनमें भाजपा नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कई मौजूदा सांसदों पर नफरत को बढ़ावा देने, आपराधिक साजिश रचने और दंगा फैलाने का आरोप है.

19 अप्रैल 2017 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले की सुनवाई हर दिन की जाएगी और जो जज इसकी सुनवाई कर रहे हैं उनका ट्रांसफर नहीं किया जाएगा.

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अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल बाद भी इस मामले की सुनवाई बहुत ही धीमी गति से हो रही है. कार्यवाही अभी भी सबूत के स्तर पर है और परीक्षण किसी को भी देखे बिना चल रहा है.

सीबीआई द्वारा मामले में व्यापक चार्जशीट दायर करने के बावजूद, आरोप-मुक्त चरण में परीक्षण में देरी हुई, क्योंकि अधिकांश अभियुक्तों ने एजेंसी को उच्च न्यायालय में चुनौती दी और उन्हें स्टे मिला. जब परीक्षण फिर से शुरू हुआ, तो कई गवाह अचूक थे, अन्य लोग अदालत में पेश होने के लिए तैयार नहीं थे और समय के साथ स्वैच्छिक साक्ष्य सड़ गए थे.

न्यायाधीश एसके यादव, जो पिछले चार वर्षों से इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं. 30 सितंबर 2019 को सेवानिवृत्त होने वाले थे. लेकिन उनके अनुरोध पर, सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें फैसले की तारीख तक विस्तार दिया, जो उन्होंने अप्रैल 2020 में देने की उम्मीद की थी.

दिप्रिंट ने अदालत की सुनवाई में भाग लेने के लिए वहां दो दिन बिताए, अभियोजन और बचाव पक्ष के वकीलों से बात की, अदालत के रिकॉर्ड, सबूत और बयानों के माध्यम से गुजरे और मुकदमे की स्थिति को जाना. जो हमें मिला वो इस प्रकार है.

दो एफआईआर, दो कोर्ट और सालों की देरी

6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज की थी. पहली एफआईआर जिसकी संख्या 197/92 है – वो लाखों अज्ञात कारसेवकों पर दर्ज की गई थी, जो मस्जिद के ऊपर चढ़कर हथौड़ों से तोड़ रहे थे.

दूसरी एफआईआर जिसकी संख्या 198/92 है – ये आठ लोगों पर दर्ज की गई थी. इन आठ लोगों में भाजपा से आडवाणी, जोशी, भारती, विनय कटियार वहीं विश्व हिंदू परिषद से अशोक सिंघल, गिरीराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया और साध्वी रितंभरा शामिल हैं. आठ लोगों में से डालमिया, किशोर और सिंघल की मृत्यु हो चुकी है.

अन्य 47 एफआईआर मस्जिद गिराए जाने के बाद मीडियाकर्मियों पर हुए हमले को लेकर किए गए थे.

कोर्ट रूम नंबर 18 जहां बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुकदमे का ट्रायल चल रहा है | फोटो: अनन्या भारद्वाज | दिप्रिंट

पहली समस्या जो पैदा हुई वो सीबीआई और यूपी पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) के बीच मामलों के विभाजन की थी. कारसेवकों के खिलाफ एफआईआर 197 सीबीआई को सौंप दी गई, जबकि भाजपा और विहिप नेताओं के खिलाफ एफआईआर 198 सीआईडी ​​को सौंप दी गई. 27 अगस्त 1993 को ही यूपी सरकार ने सभी मामलों को सीबीआई को सौंप दिया था.

5 अक्टूबर 1993 को सीबीआई ने आठ लोगों सहित 40 व्यक्तियों के खिलाफ अपना पहला आरोप पत्र दायर किया.

दो साल की जांच के बाद, सीबीआई ने 10 जनवरी 1996 को एक पूरक आरोप पत्र दायर किया, जिसमें बाबरी मस्जिद पर एक बड़ी साजिश और एक सुनियोजित हमले का आरोप लगाया गया.

सीबीआई ने तब आपराधिक साजिश के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी) को शामिल किया, जिसमें शिवसेना के नेताओं बाल ठाकरे और मोरेश्वर सावे सहित नौ और लोगों के खिलाफ मामला दर्ज था.

1997 में लखनऊ के एक मजिस्ट्रेट ने 48 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों (आपराधिक साजिश सहित) को तैयार करने का आदेश दिया. लेकिन, उनमें से 34 ने संशोधन के लिए अपील करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया और उन्हें स्टे दे दिया गया.

चार साल तक कुछ नहीं हुआ.

12 फरवरी 2001 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आडवाणी, जोशी, भारती, यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह और अन्य के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप को हटाने का आदेश दिया, जिससे सीबीआई का मामला कमजोर हो गया.

4 मई को भ्रम को और बढ़ाते हुए लखनऊ की विशेष अदालत ने 197 और 198 एफआईआर को दो भागों में बांटा और कहा कि 21 आरोपियों पर रायबरेली में मुकदमा चलाया जाएगा, जबकि अन्य 27 पर लखनऊ में मुकदमा चलाया जाएगा.

सीबीआई ने आपराधिक साजिश के आरोप को छोड़ने के अपने फैसले की समीक्षा करने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया, लेकिन उसकी याचिका खारिज कर दी गई. 16 जून को, सीबीआई ने मुकदमे को फिर से शुरू करने के लिए एक नई अधिसूचना के लिए यूपी सरकार को लिखा.

जुलाई 2003 में, सीबीआई ने आडवाणी के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप को वापस ले लिया और रायबरेली अदालत में एक नया आरोप पत्र दायर किया. लेकिन जुलाई 2005 में, उच्च न्यायालय ने आडवाणी के खिलाफ नफरत भड़काने के आरोपों को खारिज कर दिया.

2010 तक दोनों मामलों में दो अलग-अलग अदालतों में बहस चल रही थी. 2011 में सीबीआई ने आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने पूरे मुकदमे को लखनऊ स्थानांतरित करने का फैसला किया.

अगले सात वर्षों के लिए, आरोपों के खिलाफ अदालतों में कई समीक्षा याचिकाएं दायर की गईं, जिसके कारण देरी हुई. सुप्रीम कोर्ट द्वारा 19 अप्रैल 2017 में हस्तक्षेप करने के बाद ही आडवाणी और अन्य को आपराधिक साजिश मामले में वापस लाया गया था.

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को गलत कहा और पहले के आदेश के खिलाफ अपील नहीं करने के लिए सीबीआई की भी खिंचाई की.

सीबीआई के वकील ललित सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘तकनीकी रूप से परीक्षण केवल 2010 के बाद शुरू हुआ. इससे पहले, यह आरोपों के निर्धारण के चरण में अटका हुआ था, क्योंकि अधिकांश अभियुक्तों ने इसे चुनौती दी थी.’

फिलहाल मामले के सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं.

मौखिक साक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण हैं

वकीलों ने कहा, विध्वंस के करीब 30,000-40,000 गवाहों के साथ मौखिक साक्ष्यों को मुकदमे में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए निर्धारित किया गया है.

यही कारण है कि सीबीआई सभी गवाहों को ट्रैक करने और उन्हें अदालत में पेश करने के लिए एक अतिरिक्त प्रयास कर रही है.

मौखिक साक्ष्य में गवाहों द्वारा पुलिस को दिए गए सभी बयान शामिल हैं, जबकि जांच चल रही है. वर्तमान में कोर्ट रूम नंबर 18 से सटे एक कमरे में फाइल धूल खा रही हैं.

हालांकि, कमरा हमेशा बंद रहता है या स्टाफ के सदस्य को गार्ड की ड्यूटी पर तैनात किया जाता है. कोर्ट रूम के बाहर एक पुलिस कांस्टेबल भी तैनात है, जो ज्यादातर समय यूट्यूब पर वीडियो देखकर गुजारता है.

सीबीआई के वकील ललित सिंह ने कहा, ‘बयानों के हजारों पन्ने हैं, जो गवाहों ने पुलिस को दिए थे, जो कि मामले में सीबीआई की जांच के आधार बने. वह सब मौखिक साक्ष्य है, जो मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण है. ये वही लोग हैं जिन्होंने घटना को देखा था.

सीबीआई ने जांच के दौरान 1,026 गवाहों की सूची तैयार की, जिसमें ज्यादातर मीडियाकर्मी और पुलिसकर्मी शामिल हैं.

जांच करने वाले एक सीबीआई अधिकारी ने कहा, ‘ये 1,026 लोग स्वैच्छिक बयानों के माध्यम से लाए गए थे, यह सुनिश्चित करने के लिए कि गवाह जो कह रहे हैं, उसमें कोई दोहरापन या पुनरावृति तो नहीं है. यह एक सावधानीपूर्वक बनायीं गयी सूची थी.’

इसके साथ ही आठ भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मामला स्थापित करने के लिए सीबीआई मौखिक साक्ष्य पर भरोसा कर रही है.

सीबीआई के एक अन्य अधिकारी ने कहा, रथ यात्रा शुरू होने पर इन नेताओं द्वारा भाषण दिए गए थे और 1990 में मस्जिद को ध्वस्त करने की कल्पना की गई थी, जो कि साजिश को दर्शाता है. हम उन साक्ष्यों के लिए ऑडियो क्लिप पर बहुत अधिक भरोसा कर रहे हैं, साजिश का आरोप साबित करने के लिए मौखिक साक्ष्य के साथ-साथ यह दिखाने के लिए कि सभी रथ यात्रा के दौरान रुक गए.

गवाहों को खोजने में सालों लग गए, अभी भी यह प्रक्रिया खत्म नहीं हुई 

2010 के बाद से सीबीआई की कई टीमों ने गवाहों का पता लगाने और उन्हें अदालत के सामने आने के लिए कहा. उन्हें समन जारी करने के लिए देश के सभी कोनों में गए. कुछ को इंग्लैंड और म्यांमार जैसी जगहों पर भी खोजा गया.

अदालत में अब तक केवल 348 गवाह पेश हुए हैं. हालांकि, अभी भी कुछ की खोज जारी है, कुछ की मौत हो गई है और कुछ लोगों को नहीं खोजा गया है.

सीबीआई के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘घटना को इतने साल बीत चुके हैं, यही वजह है कि इस मामले में गवाह बने लोगों का पता लगाना बेहद मुश्किल हो गया है. पिछले 27 वर्षों में, उनके पते बदल गए हैं, कुछ की मृत्यु हो गई है.

उन्होंने कहा, ‘इन 348 गवाहों का पता लगाने और उन्हें अदालत में लाने में हमें कई साल लग गए. पांच समन अभी भी दैनिक आधार पर जारी किए जा रहे हैं, 90 प्रतिशत मामलों में व्यक्ति अपने पते पर नहीं मिला. तब टीम को उस व्यक्ति का पता लगाने जाना पड़ा. कभी-कभी सीबीआई को गवाह का पता लगाने में चार या पांच साल लग जाते हैं, लेकिन वे अदालत में पेश होने से मना कर देते हैं.

कुछ गवाह जो घटना के समय 50 वर्ष के आसपास के थे, अब बूढ़े हो चुके हैं. वे अदालत नहीं जा सकते हैं. 6 दिसंबर 1992 को जो हुआ था, उसे याद नहीं कर सकते हैं.

एक अधिकारी ने बताया कि स्थानों के नाम बदलना भी एक बाधा है. एक बार एक सीबीआई अधिकारी जो एक व्यक्ति को समन देने गया था, जिसका पता गांधी पार्क में था, उसने पाया कि उस नाम का कोई जगह ही नहीं है, फिर उसने एक रिक्शा वाले से पूछा, जिसने उसे बताया था कि 20 साल पहले गांधी पार्क का नाम बदलकर रफी मार्ग कर दिया गया था.

लेकिन, जब समन जारी करने वाला अधिकारी रफी मार्ग गया, तो उसने पाया कि साक्षी बाहर चला गया था और शायद वैशाली में रह रहा था. अधिकारी ने कहा, ‘हमे उस गवाह को ट्रैक करने में दो साल लग गए और जब उससे संपर्क किया गया, तो उसने इनकार कर दिया और कहा कि वह अदालत में पेश होने से बहुत डर रहा है. कुछ मामलों में, किसी व्यक्ति का पता लगाने में हमें छह साल लग गए. यह वही मामला है जो अदालत की कार्यवाही में बाधा डालता है.

सीबीआई ने अदालत में 140 गवाहों के मृत्यु प्रमाण पत्र भी दाखिल किए हैं. कुछ मामलों में, मृत्यु प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं थे, क्योंकि परिवारों ने उनके लिए आवेदन नहीं किया था, इसलिए वे रिकॉर्ड पर नहीं आए हैं. एक अन्य अधिकारी ने कहा, कई गवाहों की अनभिज्ञेय रिपोर्ट भी अदालत में दायर की गई है.

इसी अधिकारी ने कहा, ‘अब केवल कुछ गवाहों को अदालत में पेश करने के लिए छोड़ दिया गया है और हम उम्मीद करते हैं कि यह प्रक्रिया जल्द पूरी हो जाएगी.’

प्रमाण के रूप में 100 से अधिक वीडियो कैसेट

डॉक्यूमेंन्ट्री सबूत भी मुकदमे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. इसमें समाचार रिपोर्ट, तस्वीरें और वीडियो शामिल हैं, जिन्हें 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में घटना को कवर करने वाले पत्रकारों द्वारा शूट किया गया था.

वकील ललित सिंह ने कहा, ‘यह एक ऐसा मामला है जहां बहुत सारे डॉक्यूमेंन्ट्री सबूत, रिपोर्ट, फोटो और वीडियो हैं जो यह दिखाते हैं कि यह किसने किया और उन्होंने यह कैसे किया.’ विभिन्न चैनलों द्वारा 100 से अधिक यू-मैटिक वीडियो कैसेट प्रस्तुत किए गए. लेकिन वे भी धूल खा रहे हैं.

जब भी कोई गवाह अदालत में पेश होता है और वीडियो-ग्राफिक सबूत के साथ बयानों को मिलान करने के लिए कहा जाता है, तो इन कैसेट को 27 इंच के सोनी टीवी और दो वीसीआर पर अदालत में चलाया जाता है.

पिछले 12 वर्षों से वहां मौजूद एक कर्मचारी ने कहा, ‘हर बार जब वीडियो अदालत में चलता है, तो बाबरी विध्वंस की यादें ताजा हो जाती हैं. मुझे लगता है कि यह मेरी आंखों के सामने सब कुछ हो रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘यह आरोपी के खिलाफ अपराध दर्ज करने और उसे साबित करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए. भगवान जाने इतना समय क्यों लग रहा है.’

वीडियोग्राफिक प्रूफ सेकेंडरी सबूत है, क्योंकि इसकी कभी फोरेंसिक द्वारा जांच नहीं की गई थी. बचाव पक्ष की सहायता करने वाले एक वकील ने दिप्रिंट को बताया, ‘इन कैसेट्स में से कुछ वीडियो संपादित किए गए हैं, जो चैनलों को चलाने चाहिए. यह मूल फुटेज नहीं है, जो हमें बताता है कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ की जाती है. केवल कुछ ही मूल वीडियो उपलब्ध हैं.’

नाम न बताने की शर्त पर सीबीआई का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अन्य वकील ने कहा कि बहुत सारे कैसेट नष्ट कर दिए गए थे और उन्हें बहाल करने के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की एक टीम को बुलाना पड़ा. लेकिन कुछ को ही बचाया जा सका.

वकील ललित सिंह ने कहा, फिर उन्हें ब्लू-रे कैसेट प्रारूप में परिवर्तित करके कैसेट को डिजिटाइज़ करने का निर्णय लिया गया, ताकि वे लंबे समय तक चलें. अगर अब मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चला जाए तो क्या होगा? इस सबूत की आवश्यकता तो होगी.

लेकिन वकीलों का कहना है कि हर बार एक परिवर्तित कैसेट चलने की जरूरत होती है, दूरदर्शन से एक मशीन मंगानी पड़ती है, जिससे देरी होती है. हमें बताया गया कि ब्लू-रे कैसेट को चलाने की मशीन केवल दूरदर्शन के पास है. सिंह ने कहा कि जब हमें इसकी आवश्यकता हो तो हम इसके लिए फोन करते हैं.

वैज्ञानिक साक्ष्य जो हत्या के मामलों में बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं, की इस मामले में सीमित भूमिका है.

वैज्ञानिक साक्ष्य में साइट से मोर्टार का नमूना शामिल है, जो एक भूमिका निभाता है, क्योंकि हमारे पास मामले को साबित करने के लिए बेहतर मौखिक और दस्तावेजी सबूत हैं. सीबीआई अधिकारी ने कहा कि जब कोई गवाह नहीं होता है तो वैज्ञानिक सबूत सबसे अच्छा काम करते हैं.

क्या 2020 तक ट्राइल पूरा हो सकता है

अगस्त 2010 में, आरोप पत्र और आरोपों के निर्धारण के बाद ट्रायल साक्ष्य के चरण में आया और यह मामला अभी यहीं बना हुआ है.

एक बार जब गवाहों की परीक्षा पूरी हो जाती है, तो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत प्रश्न और उत्तर के प्रारूप में अभियोजन पक्ष द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है और उसके बाद बचाव पक्ष अपनी दलील पेश कर सकता है. अपने मामले को साबित करने के लिए बचाव पक्ष को अपने स्वयं के गवाह या सबूत प्राप्त करने का भी मौका दिया जाता है.

फैसला सुनाए जाने से पहले सीबीआई के वकील ने कहा, ‘फिलहाल, हम अपने सबूत पेश कर रहे हैं. इसके बाद, बचाव पक्ष को अपने स्वयं के गवाह मिल जाएंगे और उसके बाद अंतिम बहस होगी.’

इस समय, अदालत विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के सीएम कल्याण सिंह के खिलाफ सबूतों की भी जांच कर रही है और सीबीआई के आरोप पत्र में नंबर 3 पर आरोप लगाया है. राजस्थान के राज्यपाल के रूप में पद छोड़ने के बाद, उनके खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप अब केवल उनके खिलाफ लगाए गए हैं, जिससे उन्हें संवैधानिक प्रतिरक्षा मिली.

हालांकि, सीबीआई ने उन गवाहों को रोक दिया है, जो कल्याण सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले थे, क्योंकि वह मुकदमे का हिस्सा नहीं थे. बचाव पक्ष पुराने गवाहों को वापस बुलाकर मुकदमे में देरी कर सकता है, क्योंकि कल्याण सिंह के खिलाफ साजिश का आरोप एक आम आरोप है. बचाव पक्ष के वकील रंजन जो आडवाणी, भारती, कल्याण सिंह और चंपत राय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने कहा कि बचाव पक्ष के पास जरूरत पड़ने पर गवाहों को वापस बुलाने की शक्ति है.

उन्होंने कहा, ‘हमने तय नहीं किया है कि हम इसे करेंगे या नहीं, लेकिन हम इसके लिए पूछ सकते हैं, क्योंकि साजिश का मामला आठ अभियुक्तों के खिलाफ एक सामान्य मामला है और अभियुक्तों के खिलाफ जिन गवाहों को हटाया गया है, उन्हें अलग नहीं किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘यह संभव है कि पहले के कुछ गवाहों ने कल्याण सिंह का उल्लेख किया था, लेकिन उस समय जिरह नहीं की गई थी, क्योंकि वह तब इस मामले का हिस्सा नहीं थे. उन गवाहों को वापस बुलाया जा सकता है.’

कोर्ट स्टाफ के अनुसार बचाव पक्ष ने 20 गवाहों की सूची बनाई है. अगर सब कुछ ठीक-ठीक चला, तो अप्रैल 2020 तक इस मामले में जज के टार्गेट अनुसार फैसला आ सकता है. लेकिन, अभी इस मामले में कार्य की गति को देखते हुए, उसमें ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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