नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या मंदिर विवाद पर अपना ऐतिहासिक फैसला दिया जिसमें अदालत ने रामलला पक्ष को विवादित जमीन का मालिकाना हक देने का आदेश दिया है. वहीं मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया. इस मुद्दे की जब जब बात होगी तो एक आदमी जो बार बार याद किया जाएगा वह है पुरातत्वविद के. के. मुहम्मद.
के के मुहम्मद वही पुरातत्वविद हैं जिन्होंने सबसे उल्लेखनीय योगदान बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर दबे होने की खोज को दुनिया के सामने लाए थे. पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के बी बी लाल की टीम जिसने 1976 में राम जन्म भूमि संबंधी पुरातात्विक की खुदाई की थी. उन्होंने उस दौरान यह बयान देकर सनसनी फैला दी थी कि ‘अयोध्या में राम का अस्तित्व है.’ इस बयान के बाद उन्हें विभागीय कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा था. लेकिन के के मोहम्मद अपने बयान पर कायम रहे थे और उन्होंने कहा था कि झूठ बोलने से अच्छा है कि ‘मैं मर जाऊं.’
के के मुहम्मद सिर्फ एक पुरातत्वविद नहीं हैं जिन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक के तौर पर काम किया बल्कि यह वह पुरातत्वविद है जिसने प्राचीन मंदिरों को सहेजने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. यही नहीं मोहम्मद फतेहपुर सीकरी में अकबर के इबादत खाना सहित कई प्रमुख खोज में शामिल रहे हैं.
उन्होंने अपनी किताब ‘मैं भारतीय हूं’ में अपनी खोज की पूरी यात्रा को बहुत विस्तार से लिखा है. वह अपनी किताब में लिखते हैं कि जब अयोध्या में राम जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर 1990 में पहली बार पूरे देश में बहस जोड़ पकड़ रही थी तब मुझे वह दिन याद आ रहे थे जब मैं 1976-77 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या में होने वाली खुदाई में हिस्सा लेने के लिए मुझे भी भेजा गया था.
क्या लिखा था अपनी किताब में
अयोध्या में राम जन्मभूमि के मालिकाना हक़ को लेकर 1990 में पहली बार पूरे देश में बहस ने जोर पकड़ा था. इसके पहले 1976-77 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या में होने वाली खुदाई में हिस्सा लेने के लिए मुझे भी भेजा गया. प्रो बीबी लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में से एक मैं भी था.
उस समय के उत्खनन में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला. हमें हैरानी थी कि किसी ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत नहीं समझी. ऐसी खुदाइयों में हमें इतिहास के साथ-साथ एक पेशेवर नजरिया बनाए रखने की भी जरूरत होती है. खुदाई के लिए जब मैं वहां पहुंचा तब बाबरी मस्जिद की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई देते थे. मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण ‘ब्लैक बसाल्ट’ पत्थरों से किया गया था. स्तंभ के नीचे भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे. मंदिर कला में पूर्ण कलश 8 ऐश्वर्य चिन्हों में एक माने जाते हैं.
अपनी किताब में मुहम्मद ने लिखा है कि अयोध्या में हुई खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे. बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर सूरजभान मंडल, सुप्रिया वर्मा, जया मेनन आदि के अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक मजिस्ट्रेट भी इस पूरी खुदाई की निगरानी कर रहा था. जाहिर है इसके नतीजों पर सवाल उठाने का कोई आधार नहीं है? ज्यादा हैरानी तब हुई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तो भी वामपंथी इतिहासकार गलती मानने को तैयार नहीं हुए.
इसका बड़ा कारण यह था कि खुदाई के दौरान जिन इतिहासकारों को शामिल किया गया था वो दरअसल निष्पक्ष न होकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे. इनमें से 3-4 को ही आर्कियोलॉजी की तकनीकी बातें पता थीं. सबसे बड़ी बात कि ये लोग नहीं चाहते थे कि अयोध्या का ये मसला कभी भी हल हो. शायद इसलिए क्योंकि वो चाहते हैं कि भारत के हिंदू और मुसलमान हमेशा ऐसे ही आपस में उलझे रहें.
पद्मश्री से सम्मानित 2012 में रिटायर हो चुके के के मोहम्मद का नाम जब जब आएगा तब तब बटेश्वर के प्राचीन मंदिरों का जिक्र किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि नब्बे के दशक में जब के के मोहम्मद ने पुरातत्व विभाग के तमाम नाज नखरे सह कर बटेश्वर के 200 मंदिरों के अवशेष के पास पहुंचे तब कोई नहीं कहता था कि गुप्त काल से लेकर गुर्जर प्रतिहार काल के 6 शताब्दी पुराने ये मंदिर फिर खड़े हो पाएंगे.
Sacchai chhup nahin sakti bnavat ke masudo se khushbu a nahin sakta kagaj ke phoolon se
Sach to aakhir sach hi hota h……ise koun badal paya h…..agr khi beej h…to poudha bhi nikl kr saamne aayga????