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सोमवार, 21 अप्रैल, 2025
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‘आंटी’, ‘ननद-भाभी सिंडीकेट’ और दादियां: दिल्ली के ड्रग्स कारोबार में महिलाओं का बढ़ता दबदबा

हाई क्वालिटी वाली हशीश और एमडीएमए से लेकर हेरोइन और कोकीन बेचने तक, महिलाएं अब दिल्ली में नशीली दवाओं के धंधे का एक अभिन्न हिस्सा बन गई हैं, जो कूरियर का काम भी करती हैं और यहां तक ​​कि सिंडिकेट भी चलाती हैं.

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नई दिल्ली: वे 30s के मिड में है, उसके चेहरे पर तीखे नैन-नक्श हैं और वे फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोल सकती है. पश्चिमी दिल्ली के किसी भी क्लब में अपर मिडिल क्लास के ग्राहकों से वह अलग नहीं है. वह इस इलाके के पार्टी सर्किट में कोकीन और एमडीएमए की मैन सप्लायर है.

दिल्ली पुलिस पिछले कुछ महीनों से इस रहस्यमयी महिला की तलाश कर रही है, लेकिन उसे पकड़ने की ज़्यादातर कोशिशें विफल रही हैं — वह छापे से ठीक पहले भागकर हवा में गायब हो जाती है.

हाई क्वालिटी वाली हशीश और एमडीएमए से लेकर हेरोइन और कोकीन बेचने वाली, उसके जैसी महिलाएं अब दिल्ली में ड्रग कारोबार का एक अभिन्न हिस्सा बन गई हैं. उनका नेटवर्क हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में फैला हुआ है. जो बात इसे अनोखा बनाती है वह यह है कि महिला कैरियर्स आसानी से घूम सकती हैं और उनके नाम पर आपराधिक रिकॉर्ड होने की संभावना काफी कम रहती है.

पश्चिमी दिल्ली में मादक पदार्थ बेचने वाली रहस्यमयी महिला का मामला ही ले लीजिए. पुलिस को पता चला है कि उसका एक नाम है, लेकिन वह संभवतः छद्म नाम है. मामले से परिचित पुलिस सूत्र ने बताया, “कभी-कभी वह प्रतिबंधित पदार्थ लेकर चलती है, लेकिन वह बहुत सावधान भी रहती है और वह ज्यादातर ग्राहकों से मिलती है और सौदा तय करने के बाद अपने नीचे काम करने वाले लोगों को फोन करके ग्राहक तक सामान पहुंचाती है. वह फोन पर भी सामान पहुंचाती है, लेकिन केवल किसी रेफरेंस के ज़रिए.”

जांचकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि दिल्ली में मादक पदार्थ के कारोबार में ज्यादातर महिलाओं के लिए शराब की तस्करी ही प्रवेश बिंदु रही है.

परिवार के पुरुषों द्वारा बनाए गए नेटवर्क ने इसमें मदद की.

नाम न बताने की शर्त पर दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “इसलिए उनके पास पहले से ही एक नेटवर्क है, लेकिन चूंकि घर के पुरुषों को पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका है, इसलिए ये महिलाएं बेहद सावधान रहती हैं और पकड़ी नहीं जातीं. वह अपने काम को बहुत तेज़ी से अंजाम देती हैं.”

दिप्रिंट द्वारा प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 में, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 की संबंधित धाराओं के तहत दर्ज 188 अलग-अलग मामलों में दिल्ली भर में कम से कम 211 महिलाओं को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें ड्रग्स की ‘व्यावसायिक मात्रा’ शामिल थी.

इनमें से 98 मामलों में ‘गांजा’ जब्त किया गया, इसके बाद 82 मामलों में पुलिस ने हेरोइन जब्त की. डेटा यह भी दिखाता है कि इनमें से 22 मामले पश्चिमी दिल्ली जिले में, 20 शाहदरा में, 19 बाहरी उत्तर में, 18 उत्तर पश्चिम में और 14 द्वारका जिले में दर्ज किए गए थे.

इन 188 मामलों में गिरफ्तार की गई 54 प्रतिशत से अधिक महिलाएं 40 से 85 वर्ष की आयु के बीच थीं, जिनमें से लगभग 6 प्रतिशत 60 से 85 वर्ष की आयु के बीच थीं.

महिलाएं पारंपरिक रूप से पुरुष मालिकों द्वारा सौंपी गई परिधीय या “निम्न-स्तरीय” भूमिकाओं में ड्रग व्यापार में प्रवेश करती हैं. पुलिस से जुड़े एक अन्य सूत्र ने कहा, “उन्हें अपने घरों में बैठकर ‘पुड़ियां’ (हेरोइन, कोकीन बांटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले छोटे कागज़ के पैकेट) बनाने के लिए कहा जाता था. उनके घरों में लोहे की ग्रिल होती है. छापे के दौरान, जब पुलिस ताला तोड़ रही होती है, तो उन्हें ड्रग्स को नष्ट करने के लिए काफी वक्त मिल जाता है.”

उन्होंने आगे कहा कि पहले सप्लाई चैन पूरी तरह से पुरुषों के वर्चस्व वाली थी.

लेकिन अंडरग्राउंड इकोनॉमी में पावर डायनमिक्स और लैंगिक भूमिकाओं में बदलाव आया है. महिलाएं अब सिर्फ ‘पुड़ियां’ नहीं बना रही, कुछ तो पूरी तरह से काम संभाल रही हैं — सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूटिंग से लेकर सड़क किनारे खुदरा बिक्री के लिए पुरुषों को काम पर रखने तक.

तीसरे पुलिस सूत्र ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व वाले ड्रग ऑपरेशन में छोटी डिलीवरी करने के लिए किशोरों को भी काम पर रखा जाता है.

ऐसा ही एक सिंडिकेट 55-वर्षीय महिला चलाती है, जिसे सिर्फ ‘आंटी’ के नाम से जाना जाता है. उसने दिप्रिंट को फोन पर बताया, “यह सिर्फ धंधा है. पहले मैं शराब बेचती थी, लेकिन फिर किसी ने मुझे इसके बारे में बताया. इससे ज़्यादा पैसे मिलने लगे और हर रोज़ काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. बस यह ध्यान रखना होता है कि डिलीवरी के दौरान हम पकड़े न जाएं.”

बहुत ज़्यादा जानकारी न देते हुए ‘आंटी’ ने कहा कि वह कभी भी बिना किसी रेफरेंस के ग्राहकों से बात नहीं करती, सिर्फ व्हाट्सएप पर क्लाइंट से बात की जाती है और कभी भी बड़ी खेप नहीं रखी या डिलीवर नहीं की जाती है. उसका सिंडिकेट दक्षिणी दिल्ली और हरियाणा के सीमावर्ती इलाकों में क्लाइंट को मारिजुआना से लेकर हेरोइन तक की तस्करी करता है.

वह कभी-कभी खुद स्कूटी या कार से सामान ले जाती है, लेकिन डिलीवरी ज़्यादातर क्विक कॉमर्स एजेंट के ज़रिए की जाती है, जिन्हें हमेशा नमकीन चीज़ों या मिठाइयों के नीचे छिपी ‘पुड़ियों’ के बारे में पता नहीं होता.

इस बारे में पूछे जाने पर कि वह ड्रग के धंधे में कैसे आई, ‘आंटी’ ने बताया कि कुछ साल पहले उसके पति ने उसे छोड़ दिया था. उसने कहा, “अच्छा हुआ कि वह चला गया. रोज़ाना की मारपीट और सताना बंद हो गया. मैं इतनी पढ़ी-लिखी तो हूं नहीं और खुद को और अपनी ज़िंदगी चलाने के लिए मैंने शराब बेचना शुरू किया. ड्रग्स के साथ, यह धंधा आसान है, सामान वज़न में हल्का है और पैसे ज़्यादा मिलते हैं.”

उसका बूटलेगिंग का धंधा अभी भी चल रहा है और शराबबंदी के दिन, उसने कहा, धंधे के लिए बहुत अच्छे हैं.

जबकि ‘आंटी’ जैसी कुछ महिलाएं सीधे ग्राहकों से डील करती हैं, वहीं कुछ कूरियर का इस्तेमाल करती हैं. उक्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “इस नेटवर्क में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में काम करने वाली सेक्स वर्कर भी शामिल हैं. पिकअप का काम जाने-माने कैब ड्राइवर करते हैं, जो इनकी सुरक्षा और पुलिस के जाल से दूरी बनी रहे इसका ध्यान रखते हैं.”

और जब ड्रग के धंधे की बात आती है, तो उम्र कोई बाधा नहीं है. उदाहरण के लिए दिल्ली के इंद्रपुरी में जेजे कॉलोनी की 85-वर्षीय निवासी राज रानी को ही देखिए. वह 1990 से इस धंधे में है. पश्चिमी दिल्ली के इंद्रपुरी पुलिस स्टेशन में उसे ‘बैड कैरेक्टर’ घोषित किया गया है, उसे एनडीपीएस अधिनियम के तहत कम से कम तीन बार गिरफ्तार किया गया था. 2024 में उसे हेरोइन के कारोबार के दो अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार किया गया था और 2019 में गिरफ्तारी के वक्त उसके पास से हेरोइन बरामद की गई थी.


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तस्लीमा: कुलमाता

भलस्वा डेयरी की जेजे कॉलोनी में कोई भी तस्लीमा को पहचानना नहीं चाहता. पुट्टी के नाम से भी जानी जाने वाली, यहां तक ​​कि उनके करीबी पड़ोसियों का भी दावा है कि वह 43-वर्षीय इस महिला को नहीं जानते, जिसे जून 2024 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था.

आखिरकार एक पड़ोसी ने राज़ से पर्दा उठाया. पर्दे के पीछे छिपे पड़ोसी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “वह (तस्लीमा) यहां डॉन की तरह है. पूरा परिवार डॉन है. हर कोई जानता है कि वह क्या कर रही है, लेकिन यहां के लोग उससे डरते हैं.”

उन्होंने आगे बताया, “वह ड्रग्स का धंधा करके बहुत अमीर बन गई. हमें नहीं पता कि पुलिस को किसने खबर दी, लेकिन एक बात पक्की है, यह जेजे क्लस्टर का कोई इंसान नहीं हो सकता, क्योंकि सभी को डर है कि अगर उसे पता चल गया तो वह उनके साथ क्या करेगी.”

कुछ ही मिनटों में तस्लीमा के परिवार के सदस्य पड़ोसी के घर के बाहर थे. उनकी बहू रूबी ने पहली धमकी दी: “आप सभी तस्लीमा के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? मत भूलिए, हम सब यहीं रहते हैं.” इसके बाद उन्होंने तस्लीमा का बचाव करते हुए दावा किया कि उसका ड्रग्स से कोई लेना-देना नहीं है.

“हम छोटे-मोटे काम करते हैं. पुलिस झूठ बोल रही है.”

तस्लीमा का घर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
तस्लीमा का घर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

दूसरी ओर, पुलिस सूत्रों ने बताया कि तस्लीमा के पास 400 ग्राम हाई क्वालिटी वाली हेरोइन पाई गई और शुरुआती जांच से पता चला कि वह दस साल से ज़्यादा वक्त से ड्रग्स का धंधा कर रही थी.

कई अन्य लोगों की तरह, तस्लीमा ने भी शराब की तस्करी करके अपने पैर जमाए. उसके पति मुनव्वर और बेटे नवाब को कई बार जेल जाना पड़ा. ऐसे ही कभी उनके सलाखों के पीछे रहने के दौरान तस्लीमा ने आगे बढ़ने का फैसला किया. माना जाता है कि उसने कथित तौर पर सिंडिकेट को आगे बढ़ाने के लिए अपने बेटे के नेटवर्क का इस्तेमाल किया.

गिरफ्तारी के वक्त तक, तस्लीमा ने कथित तौर पर लगभग 2 करोड़ रुपये की संपत्ति बना ली थी. एनडीपीएस अधिनियम की धारा 68एफ(1) के तहत छह संपत्तियों को जब्त कर लिया गया था, क्योंकि तस्लीमा यह साबित नहीं कर पाई कि संपत्तियां अपराध की आय का उपयोग करके नहीं खरीदी गई थीं. कथित तौर पर डिलीवरी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली हुंडई क्रेटा को भी जब्त कर लिया गया.

उसके बेटे नवाब, स्थानीय थाने में ‘बैड कैरेक्टर’ के रूप में नामित, उसी मामले में फरार है जिसमें पुलिस ने चार अन्य लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनके नाम सोनू सिंह, विजेंद्र, राजेश्वरी और नदीम हैं.

‘बैड कैरेक्टर’ या बीसी वह व्यक्ति होता है जिसका पिछला आपराधिक रिकॉर्ड हो और जिसका नाम पुलिस स्टेशनों द्वारा बनाए गए डोजियर में शामिल हो. बोलचाल की भाषा में, ‘‘बैड कैरेक्टर’ आदतन अपराधी होते हैं.

संतोष: कूरियर

एक और मामला 58-साल की संतोष का है, जिसने अपने पति, जो एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर है, के स्वास्थ्य की स्थिति के कारण काम न कर पाने के बाद यह धंधा शुरू किया.

फरवरी में जीटी करनाल बाईपास के पास संतोष को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने गिरफ्तार किया था. उसके कपड़ों के बैग में भूरे रंग के टेप से ढका एक पॉलीथीन बैग छिपा था जिसमें 2 किलोग्राम हाई क्वालिटी वाली हशीश या ‘मलाना क्रीम’ थी, जिसकी अनुमानित कीमत 10 लाख रुपये है.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि संतोष अपनी गिरफ्तारी से दो साल पहले से ही इस सामान को ले जा रही थी.

इस मामले से परिचित पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता. वह बहुत कमज़ोर दिखती है और कई बीमारियों से पीड़ित है. हमें महीनों पहले गुप्त सूचना मिली थी, लेकिन उसके खिलाफ सबूत जुटाने और गिरफ्तारी के लिए उसे प्रतिबंधित सामान के साथ रंगे हाथों पकड़ने तक इंतज़ार करना पड़ा.”

कोविड-19 महामारी के दौरान, संतोष — जो तब करोल बाग के बापा नगर में रहती थी उसने इलाके में ज्वैलर की दुकानों के लिए कूरियर का काम करना शुरू कर दिया. वह सामान के साथ-साथ नकदी भी उठाती और छोड़ती थी. इस दौरान वह हिमाचल प्रदेश के मणिकरण गई, जहां नेपाली मूल का एक व्यक्ति उसके पास आया. दोनों ने धंधे की बात शुरू की और उसने उसे हर एक किलो की खेप के लिए 40,000 रुपये में सौदा तय किया, जो वह उसके लिए पहुंचाएगी.

प्रकरण से परिचित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “संतोष के लिए, इसका मतलब था कि उसे कम यात्रा करनी होगी. महीने में दो यात्राएं करके वह 80,000 रुपये या उससे अधिक कमा सकती थी. यह गिरोह डिलीवरी के लिए दिल्ली को मिड-ट्रांजिट प्वाइंट की तरह इस्तेमाल करता था. संतोष ड्रग्स को सूरत, महाराष्ट्र और पंजाब ले जाती थी.”

अभी तक इस मामले में संतोष के अलावा किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है. जांचकर्ताओं का कहना है कि नेपाली मूल का व्यक्ति राजा, जो उसे सामान देता था, को उसकी गिरफ्तारी के बारे में पता चला और उसने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया. संतोष से भी पूछताछ में कुछ खास नहीं मिला.


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सीमा, मीनू और काजोल: ‘ननद-भाभी’ सिंडिकेट

2022 में दिल्ली पुलिस को तीन महिलाओं द्वारा ड्रग सिंडिकेट चलाने की सूचना मिली.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि सीमा (45), मीनू (38) और काजोल (25) के जानने वाले लगभग सभी लोग हेरोइन के धंधे में शामिल थे. उन्होंने बताया कि तीनों महिलाएं पिछले 10 सालों में अलग-अलग समय पर इस गिरोह में शामिल हुईं. सीमा मीनू की भाभी हैं और काजोल पड़ोसी हैं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि जुलाई 2022 में एनडीपीएस अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत दर्ज मामले में तीनों को गिरफ्तार किया गया. गिरफ्तारी के वक्त मीनू और काजोल के पास 550 ग्राम हेरोइन बरामद की गई.

आउटर नॉर्थ जिले का वह इलाका जहां सीमा, मीनू और काजोल रहती हैं | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
आउटर नॉर्थ जिले का वह इलाका जहां सीमा, मीनू और काजोल रहती हैं | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

मामले से जुड़े वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “पति की मृत्यु के बाद सीमा ने कारोबार संभाला. उसने मीनू और काजोल को साथ मिला लिया. तीनों ने सिंडिकेट को बढ़ाने और अधिक महिलाओं को लाने पर चर्चा की. ये महिलाएं डीलर हैं जो अन्य डीलरों के साथ-साथ ग्राहकों को भी सामान सप्लाई करती हैं.”

इन तीनों के अलावा, शानू खातून नाम की एक अन्य महिला और काजोल के भाई दीपक उर्फ ​​पप्पू को भी मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया.

दीपक ‘बैड कैरेक्टर’ है और उसके खिलाफ हत्या के प्रयास और एनडीपीएस अधिनियम के तहत कई मामले दर्ज हैं. सीमा का भाई विजय, एक और ‘बैड कैरेक्टर’, तीनों महिलाओं से जुड़े इसी मामले में फरार है. सीमा के खिलाफ भी शारीरिक हमले के आरोपों के तहत एक मामला पहले दर्ज है.

कानून प्रवर्तन की चुनौतियां

जांचकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा संचालित ड्रग ऑपरेशन का काम करने का तरीका काफी हद तक एक जैसा है, लेकिन महिला कार्टेल प्रमुखों और सप्लायर्स की पहचान करना एक चुनौतीपूर्ण काम है, मुख्य रूप से लैंगिक रूढ़िवादिता के कारण.

जैसा कि दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “ज्यादातर मामलों में ड्रग डीलिंग के लिए गिरफ्तार की गई महिलाओं का कोई पिछला अपराध रिकॉर्ड नहीं होता है, जिससे वह रडार से बाहर रहती हैं. हालांकि, कुछ को पहले भी बूटलेगिंग (अवैध व्यापार) के लिए गिरफ्तार किया हो सकता है. महिलाएं अपनी परिचित अन्य महिलाओं, जैसे पड़ोसी या कुछ परिचितों को भर्ती करती हैं.”

उन्होंने कहा, “यात्रा करते समय भी, वह पुरुष समकक्षों की तुलना में कम ध्यान आकर्षित करती हैं, क्योंकि प्रचलित मानसिकता यह है कि महिलाएं ड्रग्स का कारोबार नहीं करती हैं. इनमें से ज़्यादातर महिलाएं कुछ पुरुष डीलरों के विपरीत, अपने द्वारा बेची जाने वाली दवाओं का सेवन भी नहीं करती हैं, जिससे गलती की बहुत कम गुंजाइश रह जाती है.”

पुलिस के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ड्रग के धंधे पर पहले पुरुषों का ही दबदबा था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. “इसका एक बड़ा कारण यह धारणा है कि 60-80 वर्ष की आयु की कोई महिला भी इसमें शामिल हो सकती है, लेकिन असल में झुग्गियों में बैठी कई दादियां करोड़ों के ड्रग्स बेच रही हैं.”

अधिकारी ने यह भी खुलासा किया कि ड्रग तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किए गए अधिकांश पुरुषों के विपरीत, महिलाएं गिरफ्तारी के बाद पुलिस के साथ आसानी से सहयोग नहीं करती हैं. “उनमें से कुछ पहले से ही बीमार हैं और बेहद कमज़ोर दिखती हैं, इसलिए जांच दल को बहुत सतर्क रहना पड़ता है. महिलाएं इस तरह से छिपती हैं कि शक न हो. यही वजह है कि धंधे को कंट्रोल करने वाले पुरुष भी अब महिलाओं को डिलीवरी करने के लिए प्राथमिकता देते हैं.”

जांचकर्ताओं ने बताया कि एक और कारण यह है कि नशीली दवाओं के व्यापार में काम करने वाली महिलाएं ज़्यादातर रात में काम करती हैं.

एक तीसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “जब तक हमें मजिस्ट्रेट से अनुमति न मिल जाए और यह एक पक्का मामला हो, हम सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय तक उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकते. यह साबित करना होगा कि गिरफ्तारी असाधारण परिस्थितियों में की गई थी, तो छापेमारी पूरी तरह से सुरक्षित होनी चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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