नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर के कार्यालय और आवास पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापों की तमाम एक्टिविस्ट, शिक्षाविदों और अधिवक्ताओं ने कड़ी निंदा की है.
600 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने गुरुवार को एक संयुक्त बयान जारी करके कहा कि मंदर को ‘कई सरकारी एजेंसियों की तरफ से लगातार उत्पीड़न’ का सामना करना पड़ रहा है और ये छापे ‘हर आलोचक को डराने-धमकाने और उसका मुंह बंद कराने के लिए मौजूदा सरकार की तरफ से सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग की ही अगली कड़ी हैं.
बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 600 लोगों में इतिहासकार रोमिला थापर, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी जूलियो रिबेरो, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल राम दास शामिल हैं.
16 सितंबर को ईडी ने मंदर के आवास और दक्षिणी दिल्ली के अधचीनी, महरौली और वसंत कुंज में स्थित उनके एनजीओ सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) के कार्यालयों की तलाशी ली थी. ये छापे उनके रॉबर्ट बॉश अकादमी में छह माह के फेलोशिप प्रोग्राम के लिए अपनी पत्नी के साथ जर्मनी रवाना होने के कुछ ही घंटों के बाद मारे गए थे.
ईडी का मामला दिल्ली पुलिस की तरफ से इसी साल फरवरी में दो बाल गृहों—दक्षिणी दिल्ली स्थित उम्मीद अमन घर और खुशी रेनबो होम—और उनकी मूल संस्था सीईएस, जिसमें मंदर एक निदेशक हैं, के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की शिकायत पर दर्ज एफआईआर पर आधारित है.
हालांकि, मंदर को प्राथमिकी में आरोपी के तौर पर नामित नहीं किया गया है.
एजेंसी के सूत्रों ने कहा कि छापे मनी लॉन्ड्रिंग और दोनों बाल गृहों में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत दर्ज एक मामले के सिलसिले में मारे गए थे.
एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘एफआईआर दिल्ली पुलिस की तरफ से दर्ज की गई थी, और हम इसके वित्तीय पहलुओं की जांच कर रहे हैं. एनसीपीसीआर की तरफ से सौंपी गई एक रिपोर्ट के आधार पर जांच की जा रही है जो वित्तीय अनियमितताओं के संबंध में है और इस पर गौर किया जा रहा है.’
‘सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग का सिलसिला जारी’
संयुक्त बयान में मंदर के खिलाफ लगाए गए एनसीपीसीआर के आरोपों को ‘झूठा और दुर्भावनापूर्ण’ बताया गया है. बयान में कहा गया है कि आरोपों का ‘एक वैधानिक निकाय दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की तरफ से ही खुलकर प्रतिवाद किया गया, जिसने सीईएस के खिलाफ झूठे आरोपों को खारिज करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक मजबूत हलफनामा दायर किया है.’
बयान में यह भी कहा गया है कि सीईएस को भी आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) और आईटी विभाग द्वारा परेशान किया गया है.
इसमें कहा गया है, ‘बदले की भावना से उठाए गए इन सभी कदमों से न तो मनी लॉन्ड्रिंग और न ही किसी तरह के कानून के उल्लंघन की बात सामने आई है. ईडी और आईटी विभाग के इन छापों को अपने हर आलोचक को डराने-धमकाने, और चुप कराने के लिए सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग की मौजूदा सरकार की लगातार कोशिश की एक कड़ी के तौर पर ही देखा जाना चाहिए.’
बयान में आगे कहा गया है, ‘हम हर्ष मंदर और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज से जुड़े हर व्यक्ति के साथ खड़े हैं. भारत के संविधान और देश के कानून का इस्तेमाल हमारे अधिकारों के हनन के लिए सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोगी की कोशिश के बजाये डराने-धमकाने के इन प्रयासों को उजागर करने के लिए होना चाहिए, जिनके लिए वे बने हैं.’
कांग्रेस नेता शशि थरूर और जयराम रमेश भी मंदर के समर्थन में सामने आए हैं.
थरूर ने ट्वीट किया, ‘वह निर्विवाद रूप से सत्यनिष्ठ और ईमानदार व्यक्ति हैं, जो कोई गलत काम नहीं कर सकते, आज के भारत के मानकों के हिसाब से वह बेहद ईमानदार हैं. यह छापेमारी हास्यास्पद है.’
I am shocked & dismayed to read of the ED raids on my friend and college batchmate @harsh_mander: https://t.co/uh6lFdGGDp
He is a person of unquestionable integrity &honesty, incapable of wrongdoing, almost too upright for the standards of today's India. This raid is a travesty.— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) September 16, 2021
जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के एक दिन बाद ही मोदी सरकार ने एफडीआई—फीअर, डिसेप्शन और इंटिमिडेशन यानी भय, कपट और धमकी—की अपनी मनोवृत्ति के कारण जाने-माने एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवी हर्ष मंदर का उत्पीड़न किया. और दूसरों को वह समावेशिता और लोकतंत्र पर व्याख्यान दे रहे थे.’
One day after the International Day of Democracy, Modi Sarkar continues with its FDI obsession—Fear, Deception, Intimidation, by harassing a renowned activist and intellectual, Harsh Mander. And He gives lectures to others on inclusiveness and democracy!https://t.co/HRpwNeYcP9
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 16, 2021
क्या है मामला
अक्टूबर 2020 में एनसीपीसीआर ने मंदर से जुड़े बालगृहों का निरीक्षण किया था, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और कहा कि बाल गृहों में ‘बच्चों का इस्तेमाल अवैध गतिविधियों के लिए किया जा रहा है और उनके साथ क्रूरता’ हो रही है. एनसीपीसीआर के रजिस्ट्रार की शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस ने फरवरी में इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी.
पुलिस के मुताबिक, एनसीपीसीआर ने अपने निरीक्षण के आधार पर 24 पन्नों की एक रिपोर्ट भी सौंपी थी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि 2019-20 में चार-पांच लड़कियों को नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में धरना देने को कहा गया था. इसमें यह भी कहा गया था कि उम्मीद अमन घर में रहने वाले एक लड़के को बताया गया था कि ‘सरकार केवल हिंदुओं के लिए काम करती है और पाकिस्तान से लड़ती रहती है.’
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पैनल का कहना था कि बालगृहों में बच्चों को छोटे-छोटे केबिन में रहना पड़ता है और कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सामाजिक दूरी बनाए रखने के भी कोई उपाय नहीं किए गए हैं.
प्राथमिकी दर्ज होने के तुरंत बाद मंदर ने एक बयान जारी करके कहा था कि एनसीपीसीआर ने दिल्ली में दो बालगृहों में यह पता लगाने के लिए लिए छापा मारा था कि यहां रहने वाले किसी बच्चे ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया था या नहीं.
उन्होंने बयान में कहा था, ‘मैं अब औपचारिक तौर पर इन बालगृहों से नहीं जुड़ा हूं… मैं उनके (बच्चों के) पास जाता जरूर हूं जब उनके कल्याण कार्यों को लेकर आश्वस्त होना चाहता हूं, उनसे दुनियाभर की और एक अच्छे जीवन के बारे में बातें करता हूं, उनके साथ मिलकर गुनगुनाता भी हूं. एनसीपीसीआर टीम ने दोनों बालगृहों के ‘छापे’ के दौरान मुख्यत: चार चीजें जानने की कोशिशें की थीं. सबसे पहले तो यह कि क्या बच्चों ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. दूसरा यह कि क्या मेरा इन बालगृहों से किसी तरह का संबंध है.’
उन्होंने आगे कहा था कि कि छापे का उद्देश्य यह पता लगाना भी था कि क्या कोई विदेशी फंडिंग मिल रही हैं और कहीं कोई रोहिंग्या बच्चा तो इन बालगृहों में नहीं रह रहा.
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