चंडीगढ़: पंजाब सरकार ने पिछले हफ्ते केंद्र की नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केटिंग पॉलिसी को खारिज कर दी. इसे 2021 में संसद द्वारा रद्द किए गए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के प्रावधानों को वापस लाने की कोशिश बताया गया है. इसके जवाब में केंद्र ने कहा कि पंजाब का यह फैसला राजनीतिक लग रहा है और यह राज्य के लिए “बड़ा नुकसान” होगा.
केंद्र के कृषि मंत्रालय के नीति ड्राफ्टिंग कमेटी के संयोजक और डिप्टी एग्रीकल्चरल मार्केटिंग एडवाइज़र एस.के. सिंह को भेजे गए पत्र में, पंजाब के कृषि विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अनुराग वर्मा ने कहा कि कृषि राज्य का विषय है.
“भारत सरकार को इस तरह की (कृषि) नीति नहीं बनानी चाहिए और इसे राज्य के विवेक पर छोड़ देना चाहिए कि वे अपनी जरूरतों और चिंताओं के हिसाब से नीतियां बनाएं,” पत्र में लिखा गया.
पंजाब ने यह भी कहा कि नीति में गेहूं और धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का जिक्र नहीं है. “2020 के किसान आंदोलन के समय, मुख्य मुद्दा यह था कि किसानों को आशंका थी कि भारत सरकार गेहूं और धान की एमएसपी पर खरीद बंद करने का लक्ष्य रखती है.”
ड्राफ्ट नीति में एमएसपी का जिक्र न होने के कारण पंजाब के किसानों के बीच वही पुरानी आशंकाएं फिर से उठ रही हैं.
एसके सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “यह प्रस्तावित नीति सिर्फ सुझावों का एक सेट है, जो किसी भी राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं है और न ही इसका मकसद राज्य सरकारों की कृषि को नियंत्रित करने की शक्ति को प्रभावित करना है. अगर पंजाब एग्रीकल्चरल मार्केटिंग में कोई सुधार नहीं चाहता या केंद्रीय योजनाओं का लाभ उठाना नहीं चाहता, तो यह उनका फैसला है.”
पिछले साल जून में कृषि मंत्रालय ने राष्ट्रीय नीति पर सुझाव और टिप्पणियां विभिन्न राज्यों और अन्य हितधारकों से मांगी थीं.
यह एग्रीकल्चरल मार्केटिंग पॉलिसी कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए अतिरिक्त नियामित बाजार बनाने का सुझाव देती है. ये बाजार सरकारी या निजी हो सकते हैं.
नीति में पहले से मौजूद ढांचे जैसे कि निजी गोदामों और साइलो का उपयोग करने और उन्हें राज्य कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानूनों के तहत बाजार क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश की गई है.
अंत में, नीति “मूल्य बीमा योजना” का प्रस्ताव करती है, जो किसानों को निश्चित आय का आश्वासन देगी. इसमें उत्तर-पूर्व क्षेत्र और उन राज्यों के लिए अलग-अलग नीतियां बनाने की बात भी शामिल है, जहां एपीएमसी कानून नहीं हैं.
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पंजाब सरकार का विरोध
10 जनवरी को भेजे गए पत्र में पंजाब ने कहा कि कृषि संविधान के अनुच्छेद 246 के सातवीं अनुसूची की लिस्ट-II (राज्य सूची) की एंट्री 28 के तहत राज्य का विषय है और ऐसी नीति बनाना “संविधान की भावना के खिलाफ” है.
पत्र में कहा गया, “एग्रीकल्चरल मार्केटिंग राज्य का विषय है. हमारे संविधान निर्माताओं ने समझा था कि ये गतिविधियां किसी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। ये परिस्थितियां राज्य दर राज्य अलग होती हैं.”
आगे जोड़ते हुए कहा, “इसलिए, उन्होंने इस विषय को राज्य सूची में सही तरीके से रखा। इससे यह सुनिश्चित होता है कि नीतियां किसी राज्य की विशेष जरूरतों, परिस्थितियों और चुनौतियों के अनुसार बनाई जाएं क्योंकि राज्य स्थानीय कारकों जैसे फसल पैटर्न, बुनियादी ढांचे की स्थिति, किसानों की क्षेत्र-विशिष्ट आवश्यकताओं आदि को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.”
पंजाब ने एग्रीकल्चरल मार्केटिंग ड्राफ्ट पॉलिसी का विरोध किया क्योंकि इसमें निजी बाजारों को बढ़ावा देने पर “महत्वपूर्ण जोर” दिया गया है, जबकि यह स्वीकार करता है कि निजी थोक बाजारों से होने वाले लाभों पर कोई स्वतंत्र अध्ययन उपलब्ध नहीं है.
“नीति की व्यापक भावना निजी बाजारों को बढ़ावा देना और एपीएमसी बाजारों को काफी हद तक कमजोर करना है ताकि उन्हें अप्रासंगिक बना दिया जाए,” पत्र में कहा गया.
पंजाब ने कहा कि राज्य में एक एपीएमसी बाजार औसतन 115 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को सेवा प्रदान करता है—“सभी राज्यों में सबसे अधिक एपीएमसी बाजारों की डेंसिटी है.” पत्र में कहा गया, “किसी नए निजी बाजार की आवश्यकता नहीं है.”
“वर्तमान में, किसान एपीएमसी बाजारों में पूरी तरह पारदर्शी तरीके से और एक स्थापित नियामक प्रणाली के तहत अपनी उपज बेचने में सक्षम हैं, जो यह सुनिश्चित करती है कि किसानों के हित सुरक्षित रहें। निजी बाजारों के आने से एपीएमसी बाजार नष्ट हो जाएंगे. इसके बाद, किसान निजी बाजारों के मालिकों की दया पर रह जाएंगे,” पत्र में जोड़ा गया.
पंजाब ने साइलो को ‘मान्यता प्राप्त बाजार यार्ड’ घोषित करने के प्रस्ताव का भी जोरदार विरोध किया है. किसानों को आशंका है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां (एमएनसी) “भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की जगह ले लेंगी और उनका शोषण करेंगी.”
“किसानों को यह भी डर है कि एफसीआई का अंतिम उद्देश्य गेहूं और धान को एमएसपी पर खरीदने से बाहर होना है. यह राज्य की दो प्रमुख फसलों, गेहूं और धान, के विपणन के लिए बहुत हानिकारक होगा,” पंजाब के पत्र में कहा गया.
‘पंजाब की आपत्तियां तथ्यों पर आधारित नहीं’
एसके सिंह ने पंजाब सरकार की आपत्तियों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ड्राफ्ट नीति को खारिज करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए बिंदु किसी तर्क या तथ्य पर आधारित नहीं हैं. पंजाब ने राजनीतिक कारणों से तय कर लिया है कि वह भारत सरकार द्वारा दी गई किसी भी सलाह पर सहमति नहीं जताएगा.”
उन्होंने कहा, “हमने सिर्फ सुझाव नहीं दिए हैं, बल्कि किसानों के लिए कई योजनाएं भी पेश की हैं, जैसे मूल्य बीमा योजना और कृषि-श्रृंखला के बुनियादी ढांचे में खामियों को भरने की योजना. इनका उपयोग न करना राज्य के लिए बहुत बड़ा नुकसान होगा.”
एमएसपी या खरीद से संबंधित किसी भी नीति निर्माण के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह एग्रीकल्चरल मार्केटिंग पॉलिसी के दायरे से बाहर है. “एमएसपी पर खरीद की प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों को संभालने के लिए भारत सरकार का एक अलग विभाग है. इसे इस नीति का हिस्सा नहीं बनाया गया था। हालांकि, हमने एक मूल्य बीमा योजना की सिफारिश की है, जिसमें बीमा कंपनियां उस अंतर को पूरा करेंगी जो किसान अपनी फसल को बेचने और उस फसल के लिए घोषित एमएसपी के बीच अनुभव करते हैं.”
उन्होंने यह भी जोड़ा, “फ्रेमवर्क में दी गई किसी भी चीज़ से सहमत न होना पूरी तरह राजनीतिक प्रतिक्रिया है. वरना, वे अपने किसानों की बेहतरी क्यों नहीं चाहेंगे?”
सिंह ने कहा कि नीति निर्माण में राज्य की स्वायत्तता पहले से ही ध्यान में रखी गई है और ड्राफ्ट स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य अपनी एग्रीकल्चरल मार्केटिंग रूपरेखाओं पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का मार्गदर्शन लेते हुए काम करेंगे. “भारत सरकार की ओर से पंजाब सरकार पर नीति के सुझावों को लागू करने के लिए कोई दबाव नहीं है. यह सिर्फ एक व्यापक खाका है जिसे राज्य सरकार अपने तरीके से आगे बढ़ाने का चुनाव कर सकती है.”
उन्होंने यह भी कहा, “यह आदर्श होगा कि पंजाब में विकसित प्रणाली अन्य राज्यों या राष्ट्रीय स्तर पर विकसित प्रणालियों के साथ तालमेल में काम करे.”
पंजाब सरकार द्वारा निजी बाजारों और वेयरहाउसों की स्थापना के बारे में निकाले गए निष्कर्षों पर उन्होंने कहा कि वह “चौंक गए” हैं, जबकि अंतिम लक्ष्य एपीएमसी बाजारों को बढ़ाना है.
“पंजाब में हर 115 वर्ग किलोमीटर पर एक बाजार है. लेकिन आदर्श स्थिति 80 वर्ग किलोमीटर है, जिसका मतलब होगा कि किसान को बाजार तक अपनी उपज ले जाने में कम दूरी तय करनी होगी, जिससे परिवहन लागत कम होगी.”
प्रस्ताव में राज्य को यह संभावना तलाशने का सुझाव दिया गया है कि मौजूदा निजी बुनियादी ढांचे जैसे साइलो और वेयरहाउस को पंजीकृत और बाजार के रूप में चिह्नित किया जाए ताकि “किसानों को सुविधा” दी जा सके.
“अगर मौजूदा निजी बुनियादी ढांचे मौजूद नहीं हैं, तो राज्य सरकार नए बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्रोत्साहित कर सकती है,” उन्होंने जोड़ा. “और अगर राज्य सरकार किसी भी निजी खिलाड़ी से निपटना नहीं चाहती, तो वे खुद अधिक बाजार बना सकते हैं.”
सिंह ने कहा कि संगठित थोक विपणन देश में एपीएमसी अधिनियमों के तहत स्थापित 7,057 नियामित बाजारों के माध्यम से किया जाता है. “31 मार्च 2024 तक इन बाजारों की संख्या राज्य से राज्य में भिन्न होती है और देश के औसत के अनुसार एक नियामित बाजार 407 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की सेवा करता है, जबकि आदर्श मानक 80 वर्ग किलोमीटर है. इससे भी खराब स्थिति यह है कि 1,100 से अधिक बाजार अप्रयुक्त हैं.”
कमीशन एजेंटों का विरोध
पंजाब सरकार ने खराब होने वाले वस्तुओं पर 4% और खराब न होने वाले वस्तुओं पर 2% कमीशन शुल्क की सीमा तय करने का विरोध किया। सरकार ने कहा कि कमीशन एजेंट्स (आढ़तियों) और किसानों के बीच पारंपरिक “सहजीवी” संबंध हैं. आढ़तिये इनपुट सप्लाई, व्यापार सुविधा जैसी सेवाएं प्रदान करते हैं.
“आढ़तिये खरीद एजेंसियों के गुणवत्ता मानकों के अनुसार कम समय में गेहूं और धान की बड़े पैमाने पर खरीद संचालन में मदद करते हैं। इसलिए, उनके कमीशन की दर तय करना राज्य का विशेष अधिकार होना चाहिए,” पंजाब सरकार ने पत्र में कहा.
पंजाब सरकार ने बाजार शुल्क को 1 से 2% के बीच सीमित करने के प्रस्ताव का भी विरोध किया. उन्होंने इसे “राज्य और मंडी बोर्ड के लिए प्रमुख आय का स्रोत” बताया.
सरकार ने कहा कि इन फंड्स का उपयोग एपीएमसी बाजारों का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित करने और गांव की सड़कों को उनसे जोड़ने में किया गया है. “इन फंड्स की मदद से 1,900 मंडियां और लगभग 65,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का नेटवर्क जोड़ा गया है. इन शुल्कों में कमी से मंडियों और ग्रामीण सड़कों के नेटवर्क को बनाए रखना संभव नहीं होगा.”
सिंह ने कहा कि पंजाब सरकार देश में सबसे अधिक बाजार शुल्क ले रही है, जिसे खरीदार को चुकाना पड़ता है. “वास्तव में, यह राशि किसानों से ली जाती है, जिससे उनके उत्पादन लागत में वृद्धि होती है.”
इसी तरह, उन्होंने कहा, “कमीशन एजेंट का शुल्क राज्य के खजाने में नहीं जा रहा है.”
“अगर यह कमीशन एजेंट द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा का भुगतान है, तो शुल्क सेवा के अनुरूप होना चाहिए. पंजाब सरकार को निजी बिचौलियों को बड़ी धनराशि का भुगतान करने पर कोई आपत्ति नहीं है, जो न तो किसान को लाभ पहुंचाता है और न ही राज्य सरकार को,” सिंह ने कहा.
पंजाब सरकार ने यह भी कहा कि ड्राफ्ट नीति “अनुबंध खेती को प्रोत्साहित” करती है, जो पंजाब में किसानों के लिए एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. सिंह ने कहा कि नीति केवल उन कंपनियों और संस्थाओं का ऑनलाइन डेटाबेस बनाने की बात करती है, जो किसानों के साथ अनुबंध के आधार पर काम करने में रुचि रखते हैं.
उन्होंने कहा, “यह डेटाबेस उन किसानों को सशक्त करेगा जो अनुबंध खेती करने के इच्छुक और तैयार हैं। इस कदम का राज्य सरकार को क्या आपत्ति हो सकती है? सिवाय इसके कि वह विरोध के लिए विरोध करे?”
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