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Wednesday, 18 December, 2024
होमदेशऑफिस पर हमले, दौरे रद्द- मराठा कोटा आंदोलन हिंसक होने से शिंदे सरकार के विधायकों-सांसदों की बढ़ीं मुश्किलें

ऑफिस पर हमले, दौरे रद्द- मराठा कोटा आंदोलन हिंसक होने से शिंदे सरकार के विधायकों-सांसदों की बढ़ीं मुश्किलें

मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों ने बीड में राकांपा (अजित पवार गुट) विधायक के घर और छत्रपति संभाजीनगर जिले में भाजपा विधायक के कार्यालय पर हमला किया.

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मुंबई: सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे मराठा समुदाय के नए दौर के विरोध प्रदर्शन और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में इसके हिंसक हो जाने की वजह से सत्तारूढ़ शिवसेना-भाजपा-राकांपा गठबंधन के विधायकों और सांसदों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

सोमवार को आंदोलनकारियों ने बीड जिले के माजलगांव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायक प्रकाश सोलंके के आवास पर पथराव किया, साथ ही वहां खड़े उनके कुछ वाहनों को भी आग लगा दी. माजलगांव से विधायक सोलंके डिप्टी सीएम अजीत पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट का हिस्सा हैं. लगभग उसी समय बीड में सोलंके के आवास पर हमला किया गया, कुछ लोगों ने कथित तौर पर माजलगांव नगर परिषद भवन पर भी हमला किया.

माजलगांव से 300 किलोमीटर से कुछ अधिक दूर, अज्ञात व्यक्तियों ने छत्रपति संभाजीनगर जिले के गंगापुर से भाजपा विधायक प्रशांत बंब के कार्यालय पर हमला किया.

एमएसआरटीसी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि प्रदर्शनकारियों ने पिछले 48 घंटों में महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) की बसों पर भी पथराव किया, जिसके कारण निकाय को कुछ मार्गों पर सेवाएं निलंबित करनी पड़ीं.

इसके अलावा, कुछ गांवों के प्रतिनिधियों ने घोषणा की है कि वे राजनेताओं को अपने गांव में प्रवेश नहीं करने देंगे. शिंदे के नेतृत्व वाली सेना के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इस पृष्ठभूमि में, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे और सेना सांसद श्रीकांत शिंदे व राज्य मंत्री दादा भुसे ने नासिक जिले का एक निर्धारित दौरा रद्द कर दिया है.

इस बीच, सीएम शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट में मराठा कोटा के लिए अपना मामला पेश करने में राज्य की तैयारियों की निगरानी के लिए तीन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का एक सलाहकार बोर्ड बनाकर प्रदर्शनकारियों को शांत करने की कोशिश की. शीर्ष अदालत ने 2021 में महाराष्ट्र के मराठा कोटा कानून को रद्द कर दिया था. मराठा समुदाय से आने वाले सीएम शिंदे ने भी प्रदर्शनकारियों से हिंसा में शामिल नहीं होने या कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा नहीं करने की अपील की.

सोमवार को मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए, शिंदे ने कहा कि मराठा समुदाय ने पिछली बार मराठा आरक्षण की मांग उठाते हुए “बहुत अनुशासित तरीके से” 58 मोर्चे आयोजित किए थे.

उन्होंने कहा, “लाखों लोगों के मोर्चे होने के बावजूद, कहीं भी कानून-व्यवस्था से समझौता नहीं किया गया. लेकिन दुर्भाग्य से, आज कुछ स्थानों पर, हालांकि मराठा समुदाय अनुशासित और शांतिपूर्ण है, कुछ लोग कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं. मराठा समाज को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. यह कलंक कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है.”

‘आंदोलन ने भावनात्मक मोड़ ले लिया है’

महाराष्ट्र में तीन सत्तारूढ़ दलों – शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के जन प्रतिनिधि पिछले कुछ समय से मराठा आरक्षण आंदोलन का दबाव महसूस कर रहे हैं.

रविवार को, मराठवाड़ा के नांदेड़ जिले से शिंदे के नेतृत्व वाली सेना के सांसद हेमंत पाटिल ने मराठा समुदाय के साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दे दिया. और सोमवार को, जियोराई से भाजपा विधायक लक्ष्मण पवार व शिंदे के नेतृत्व वाले सेना सांसद हेमंत गोडसे ने भी कथित तौर पर इस्तीफा दे दिया.

शिंदे के नेतृत्व वाली सेना के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “यह एक गैर-राजनीतिक आंदोलन है, लेकिन अब जो हो रहा है वह थोड़ा उग्र है. मामला अदालत में है, इसलिए हम कुछ भी कहने या करने की स्थिति में नहीं हैं. हम मतदाताओं से संपर्क करने और उनके सामने सरकार की बात रखने या कोटा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराने में भी सक्षम नहीं हैं. आंदोलन ने भावनात्मक मोड़ ले लिया है.”

विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के नेताओं ने भी इस भावना को समझ लिया है. एमवीए के एक प्रतिनिधिमंडल में शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), शरद-पवार के नेतृत्व वाली राकांपा और कांग्रेस के नेता शामिल थे, जिन्होंने सोमवार को राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की और उनसे मराठा कोटा की मांग और अन्य समुदायों की शिकायतों पर विचार-विमर्श के लिए विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया.

सोमवार को मुंबई में पत्रकारों से बात करते हुए, शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने शिंदे सरकार पर एक समिति बनाकर मराठा समुदाय को “बरगलाने” का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “मराठा समुदाय द्वारा पिछले महीने आंदोलन वापस लेने के बाद कार्रवाई के लिए 40 दिन का समय दिए जाने के बावजूद सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की.”

बारामती से सांसद ने डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस – जिनके पास गृह विभाग भी है – के इस्तीफे की भी मांग की. सवाल करते हुए उन्होंने पूछा, “एक विधायक का घर जला दिया गया, एक सरकारी भवन जला दिया गया, क्या हो रहा है? क्या महाराष्ट्र में कोई कानून-व्यवस्था बची है?”


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मराठा आरक्षण आंदोलन अब तक

महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या में लगभग 32 फीसदी मराठा समुदाय के लोग हैं, जिनमें चीनी मिल के मालिक और ज़मीदारों से शक्तिशाली लोगों से लेकर संकट के जूझ रहे किसान और बेरोज़गार युवा तक शामिल हैं.

अपनी ओर से, राज्य सरकार ने दो मौकों पर मराठों को यह कोटा दिया: 2014 में जब कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सत्ता में थी, और फिर 2018 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन के कार्यकाल के दौरान. हालांकि, दोनों बार न्यायिक जांच के दौरान कोटा को उचित नहीं पाया गया.

2016 के बाद से, कोटा की मांग को लेकर मराठा समुदाय के लोगों द्वारा कई बार विरोध प्रदर्शन किया गया है. इन्हें हर पार्टी के मराठा नेता का समर्थन मिला था, भले ही कोई भी पार्टी सत्ता में थी.

शुरुआत में शांतिपूर्ण होने की वजह से विरोध प्रदर्शन की सराहना की गई.

हालांकि, 2018 में, वे हिंसक हो गए और आंदोलनकारियों ने पथराव किया और वाहनों को आग लगा दी – ठीक उसी तरह जैसे अब आंदोलन चल रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि विरोध प्रदर्शन इसलिए हिंसक हो गया क्योंकि वह मराठा क्रांति मोर्चा – मराठा आरक्षण का समर्थन करने वाले संगठनों के एक छात्र संगठन – के नियंत्रण से बाहर चला गया था और इसने ब्राह्मण समुदाय के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के खिलाफ मुख्यमंत्री-विरोधी आंदोलन का रूप ले लिया.

हालांकि, फड़णवीस को मराठा समुदाय के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का आकलन करने के लिए नियुक्त आयोग के काम में तेजी लाने और अंततः नवंबर 2018 में समुदाय को आरक्षण देने के लिए राज्य विधानमंडल में एक कानून पारित करने की वजह से मराठा समुदाय की काफी तारीफ भी मिली. यह कानून बॉम्बे हाई कोर्ट की जांच में खरा उतरा, लेकिन तीन साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे “असंवैधानिक” करार दे दिया.

मराठों द्वारा विरोध प्रदर्शन का यह नया दौर भी इस साल अगस्त में सामुदायिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठने के साथ शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ. हालांकि, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया और कार्यकर्ता को जबरन अस्पताल ले जाने की कोशिश की.

तभी सीएम शिंदे ने व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप किया, आंदोलन स्थल पर गए और मराठा समुदाय के आरक्षण को बहाल करने का वादा करते हुए जारंग पाटिल को अपना अनिश्चितकालीन अनशन खत्म करने के लिए मना लिया. इसके बाद पाटिल ने सरकार को मराठा समुदाय की मांगों पर कार्रवाई करने के लिए 24 अक्टूबर की समय सीमा दी. एक बार समय सीमा समाप्त होने के बाद, पाटिल ने अपना अनिश्चितकालीन अनशन फिर से शुरू कर दिया.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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