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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशअतीक-अशरफ हत्या केस में स्वतंत्र जांच कराने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 28 अप्रैल को करेगी सुनवाई

अतीक-अशरफ हत्या केस में स्वतंत्र जांच कराने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 28 अप्रैल को करेगी सुनवाई

पांच जजों के अस्वस्थ होने और उपलब्ध न होने के कारण कई मामले सूचीबद्ध नहीं हो सके हैं. अतीक और अशरफ की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग की गई है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट सोमवार को गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या की स्वतंत्र जांच का अनुरोध करने वाली याचिका पर 28 अप्रैल को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया.

अधिवक्ता विशाल तिवारी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अपनी याचिका की तत्काल सुनवाई की मांग की और अदालत को अवगत कराया कि मामले को आज सूचीबद्ध किया जाना था.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि पांच जजों के अस्वस्थ होने एवं उपलब्ध न होने के कारण कई मामले सूचीबद्ध नहीं हो सके हैं. अपनी याचिका में, तिवारी ने अतीक और अशरफ की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग की थी.

गौरतलब है कि उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की 15 अप्रैल की रात को मीडिया से बातचीत के दौरान तीन हमलावरों ने नजदीक से गोली मारकर हत्या कर दी थी. घटना के समय अतीक और अशरफ को पुलिस चिकित्सा जांच करवाने के लिये अस्पताल लेकर जा रही थी.

वकील विशाल तिवारी के जरिए दायर याचिका में 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हुई 183 मुठभेड़ों की जांच कराने का भी अनुरोध किया गया है.

इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “चूंकि पांच न्यायाधीश उपलब्ध नहीं हैं तो जिन कुछ मामलों में तारीखें दी गयी थीं, उन्हें सूचीबद्ध नहीं किया गया है. हम शुक्रवार (28 अप्रैल) को इसे सूचीबद्ध करने की कोशिश करेंगे.”

उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाल में कहा था कि उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार के छह साल में मुठभेड़ों में 183 कथित अपराधियों को मार गिराया जिनमें अतीक अहमद का बेटा असद और उसका साथी भी शामिल हैं.

अतीक की हत्या का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया कि पुलिस की ऐसी हरकत लोकतंत्र तथा कानून के शासन के लिए गंभीर खतरा है तथा यह पुलिसिया राज की ओर ले जाता है.

याचिका में आगे कहा गया है, “लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को अंतिम निर्णय सुनाने का या दंड देने वाला प्राधिकरण बनने नहीं दिया जा सकता. दंड देने का अधिकार केवल न्यायपालिका को है.”

इसमें कहा गया कि न्यायेत्तर हत्या या फर्जी पुलिस मुठभेड़ की कानून में कोई जगह नहीं है.


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