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Saturday, 16 November, 2024
होमदेशअसम के पिग हार्ट सर्जन- 175 कुत्तों का जमावड़ा, मेज ठोंककर समझाते हैं बात, अब भी लगती है मरीजों की लाइन

असम के पिग हार्ट सर्जन- 175 कुत्तों का जमावड़ा, मेज ठोंककर समझाते हैं बात, अब भी लगती है मरीजों की लाइन

1997 में डॉ. धनीराम बरुआ के एक मरीज ने सुअर के हृदय और फेफड़े के प्रत्यारोपण के बाद दम तोड़ दिया था. वह अब अपने घर ‘सिटी ऑफ जीनोम’ में ‘बॉयोलॉजिकल मॉलिक्यूल’ तैयार करने में जुटे हैं.

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असम के विवादास्पद ‘पिग हार्ट डॉक्टर’ डॉ. धनीराम बरुआ के ऑफिस को सिर्फ कोई क्लिनिक नहीं कहा जा सकता. बल्कि यह पूरा ‘शहर’ है.

सुअर का हृदय और फेफड़ा लगाने वाले ऑपरेशन के बाद अपने एक मरीज की मौत के कारण 1997 में जेल गए डॉ. बरुआ पिछले कई सालों से अपनी कुख्याति से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. अब वह असाध्य रोगों से ग्रसित मरीजों, जैसे डायबिटीज, कैंसर और यहां तक एड्स से पीड़ित लोगों का इलाज कर रहे हैं, जिसे वह ‘बरुआ बॉयोलॉजिकल मॉलिक्यूल’ की संज्ञा देते हैं.

लेकिन एक नजर में तो यही दिखता है कि वह कुत्तों से घिरे एक खड़ूस, क्रोधी इंसान है. सोनपुर स्थित उनके ‘शहर’ में 175 कुत्ते मौजूद रहते हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि इनमें से तमाम उन जानवरों की संतान हैं जिनका उन्होंने मूलत: अपने प्रत्यारोपण संबंधी प्रयोगों में इस्तेमाल किया था.

Road up the hill inside the compound surrounded by dogs | Angana Chakrabarti | ThePrint
पहाड़ों पर कुत्तों से घिरा हुआ कंपाउंड । अंगना चक्रबर्ती । दिप्रिंट

गुवाहाटी को सिलचर से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 27 से करीब 100 मीटर की दूरी पर सफेद रंग की एक पुरानी-सी दीवार पर जंग लगा बोर्ड नजर आता है, जो बताता है कि यह जगह ‘डॉ. धनीराम बरुआ सिटी ऑफ ह्यूमन जीनोम’ है. ये तथाकथित शहर पेड़ों और कंक्रीट के कुछ घरों का परिसर मात्र है. एक हरे रंग के बड़े गेट से अंदर घुसते ही कुछ सौ मीटर की दूरी पर एक घुमावदार चढ़ाई वाली सड़क एक जर्जर-सी इमारत की ओर ले जाती है—और यही डॉ. धनीराम बरुआ का क्लिनिक है. यह उनका शोध संस्थान कही जाने वाली वही जगह है जिसे 25 वर्ष पूर्व एक मरीज की मौत, जिसे डॉ. बरुआ ने सुअर के दिल लगाया था, के बाद भीड़ ने जला दिया था.

‘विज्ञान के क्षेत्र में अगुआ’

जनवरी में बरुआ का नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया था. हालांकि, इस बार अमेरिकी डॉक्टरों द्वारा 57 वर्षीय एक मरीज को सुअर का दिल सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित करने के बाद उन्हें पशु-मानव प्रत्यारोपण के ‘अगुआ’ के तौर पर सराहा गया. सर्जरी के दो महीने बाद मार्च में अमेरिकी व्यक्ति की मौत हो गई. 1997 में धनीराम के मरीज पूर्णो सैकिया की संक्रमण के कारण सात दिन बाद ही मौत हो गई थी.

Dr Dhaniram Baruah in his clinic | Angana Chakrabarti | ThePrint
अपने क्लीनिक में डॉ धनीराम बरुआ | स्पेशल अरेंजमेंट | दिप्रिंट टीम

उस समय मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 असम पर लागू नहीं होने के कारण गुवाहाटी हाईकोर्ट की तरफ से बरी किए जाने से पहले डॉ. बरुआ और दो अन्य डॉक्टरों को 40 दिनों से ज्यादा समय तक हिरासत में जेल में रहना पड़ा था.

उस मामले में हुई बदनामी ने आज तक पूरी तरह डॉ. धनीराम का पीछा नहीं छोड़ा है, और इन वर्षों ने उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाला है. ब्रेन स्ट्रोक के बाद वह बोलने में असमर्थ हो चुके हैं और हाथ के इशारों से ही अपनी बात समझा पाते हैं. लेकिन इस अक्षमता ने भी उन्हें मरीजों को देखने से नहीं रोका. अपने तथाकथित ‘शहर’ में तो वह आज भी राजा ही हैं.


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बरुआ के बॉयोलॉजिकल मॉलिक्यूल

Board of 'Dr Dhani Ram Baruah City of Human Genome' | Angana Chakrabarti | ThePrint
बोर्ड ऑफ ‘डॉ धनीराम बरुआ सिटी ऑफ ह्यूमन जीनोम’ | चक्रबर्ती | दिप्रिंट

काले सूट, चमकदार लाल रंग की टाई और डॉक्टरों वाला सफेद ओवरकोट पहने डॉ. बरुआ अपने कमरे में एक बड़ी मेज के पीछे बैठे हैं. कमरे में चार सिंगल-डोर रेफ्रिजरेटर हैं जो ‘बॉयोलॉजिकल मॉलिक्यूल’ यानी जैविक अणुओं की शीशियों से भरे हैं. इन मॉलिक्यूल को एड्स, मधुमेह, कैंसर और उच्च रक्तचाप के इलाज में कारगर बताया जा रहा है.

उनकी शोध सहायक दलीमी बरुआ दुभाषिया के तौर पर काम करती हैं, लेकिन इस तीन-तरफा बातचीत के दौरान अचानक ही बरुआ किसी बात पर नाराज हो जाते हैं. जब तक दलीमी कुछ समझें और हस्तक्षेप करें, वह जोर-जोर से मेज को पीटना शुरू कर देते हैं.

Dalimi Baruah outside the clinic on the second floor of the bare bodied building | Angana Chakrabarti | ThePrint
बिल्डिंग के दूसरे मंजिल पर बनी क्लीनिक के बाहर दालिमी बरुआ | अंगना चक्रबर्ती | दिप्रिंट

कक्ष से पहले ही बाहर किए जा चुके तीन कुत्ते दरवाजे के पास खड़े होकर सारा नजारा देख रहे थे. बाहर, एक दुबला-पतला और भैंगी आंखों वाला केयरटेकर क्लिनिक में तीन मरीजों पर लगातार नजर रखे हुए हैं जो बगल के प्रतीक्षा क्षेत्र में इंतजार करते हुए इधर-उधर घूम रहे हैं.

बरुआ अपने सभी मरीजों के संवाद के दौरान डेस्क थपथपाकर और कभी-कभी सिर हिलाकर अपनी बात कहते हैं. प्रभात दास, जिनकी 15 वर्षीय बेटी नेहा बोन कैंसर से पीड़ित थी, ने बताया, ‘डॉक्टर ने मेज थपथपाकर संकेत दिया था कि हमारी बेटी ठीक हो जाएगी. उन्होंने 10 इंजेक्शन देने की बात कही थी जिसमें प्रत्येक की कीमत 20,000 रुपये है. एक इंजेक्शन के बाद उसे फिर से माहवारी शुरू हो गई. यह एक अच्छा संकेत था.’ वे मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल और चेन्नई के अपोलो अस्पताल के विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद उसे बरुआ के पास लाए थे.

लेकिन परिवार की उम्मीदें क्षणिक ही थीं. तीन महीने बाद ही नेहा दास का निधन हो गया.

संस्थान में इस समय 13 लोग कार्यरत हैं, जिनमें शोधकर्ता डॉ. सैगीता आचरेकर भी शामिल हैं, जो नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू) के तीन पीएचडी छात्रों के साथ परिसर में एक लैब चलाती हैं.

महंगा, अकल्पनीय ‘इलाज’

Inside Dr Dhaniram Baruah's clinic | Angana Chakrabarti | ThePrint
डॉ धनीराम बरुआ के क्लीनिक के अंदर | अंगना चक्रबर्ती | दिप्रिंट

विवादास्पद पिग सर्जरी ने बरुआ के पास ‘आय का कोई साधन’ नहीं छोड़ा लेकिन उन्होंने औषधीय पौधों का इस्तेमाल करके असाध्य हृदय रोग, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप का ‘इलाज’ करना शुरू कर दिया. काफी समय से रिसर्च पार्टनर के तौर पर उनके साथ काम कर रही आचरेकर ने कहा, ‘हमने ये प्रायोगिक अध्ययन किए और सिनकोना प्लांट से आइसोलेट्स (अणु) निकाले.’ सर्जन और वैज्ञानिक ने 32 साल पहले का जिक्र करते हुए दावा किया कि उन्होंने कैंसर, एचआईवी का इलाज किया और डायबिटीज और उच्च रक्तचाप का टीका बनाया था.

आचरेकर ने कहा, ‘हमने आईआईटी-गुवाहाटी से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने हमारी मदद नहीं की और आखिरकार हम एनईएचयू पहुंचे, जहां हमें एक रिसर्च फैकल्टी की सुविधा प्रदान की गई.’

उनके इसी शोध ने ‘बरुआ बॉयोलॉजिकल मॉलिक्यूल’ को जन्म दिया.

बरुआ के पिछले अनुभव और कैद का उसके कार्यों पर आज भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. एक ‘असंभव’ सर्जरी के बाद डॉ. बरुआ अब अकल्पनीय तरीकों से मरीजों का इलाज करने में जुटे हैं. बरुआ ने 2008 की अपनी किताब, अनफोल्डिंग द मिस्ट्रीज ऑफ ह्यूमन जेनेटिक साइंसेज इन हार्ट डिजीज एंड कैंसर में दावा किया है कि इन मॉलिक्यूल का परीक्षण 190 मरीजों पर किया गया है. हालांकि. आचरेकर ने माना कि कोई भी शोध पियर-रिव्यू के तौर पर प्रकाशित नहीं हुआ.

उन्होंने कहा, ‘हमने (पियर-रिव्यू जर्नल) नेचर को कई पेपर भेजे, लेकिन उन्होंने उन्हें प्रकाशित नहीं किया क्योंकि हम पौधों के नाम देने के लिए तैयार नहीं थे.’

इलाज सस्ता नहीं है, लेकिन असम के ज्यादातर मरीज बरुआ से सलाह लेते रहते हैं. कई लोग बेहद गंभीर रूप से बीमार हैं और अंतिम उपाय के तौर पर बरुआ के पास आते हैं.

74 वर्षीय हरिशंकर झा ने बताया, ‘मेरे हार्ट में 62 प्रतिशत ब्लाकेज है और इंजेक्शन पर दो लाख रुपये से अधिक खर्च हुए हैं लेकिन स्वास्थ्य में काफी सुधार भी हुआ है.’

हालांकि, इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि ये इंजेक्शन काम करते हैं. डॉ. केमप्लेइल जोसेफ जेम्स कहते हैं, ‘वह वास्तव में एकदम टूट चुके इंसान हैं. लेकिन उनके पास अभी भी बहुत-सी चीजें करने का उत्साह है. मैं इस इलाज के बारे में ज्यादा नहीं जानता.’ डॉ. केमप्लेइल ने असफल पिग हार्ट सर्जरी में बरुआ की सहायता की थी और गिरफ्तार किए गए तीन डॉक्टरों में से एक थे.


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…जब गांव का लड़का इंदिरा गांधी से मिला

The building housing Baruah's clinic | Angana Chakrabarti | ThePrint
बरुआ क्लीनिक की बिल्डिंग हाउसिंग | अंगना चक्रबर्ती | दिप्रिंट टीम

इंदिरा गांधी के परिचित होने का दावा करने वाले एक डॉक्टर बरुआ ने जितनी तेजी से ख्याति हासिल की, उनका पतन भी उतनी तेजी से हुआ था. 1948 में जन्मे धनीराम बरुआ मध्य असम के नवगांव जिले के एक छोटे से गांव जगियाल के रहने वाले हैं. भतीजे प्रदीप बरुआ ने बताया, ‘उनके माता-पिता किसान थे, और वह खेत पर काम करने के साथ पढ़ाई भी करते थे.’

धनीराम ने नवगांव के एक कॉलेज से विज्ञान की पढ़ाई की और डिब्रूगढ़ के असम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली. उनका दावा है कि उन्हें हमेशा से अनुप्रयुक्त मानव आनुवंशिक इंजीनियरिंग में रुचि रही है, जिसका उपयोग असाध्य रोगों के इलाज के लिए किया जा सकता है. असम से वह आयरलैंड के डबलिन चले गए, जहां अपनी जनरल सर्जिकल ट्रेनिंग पूरी की, और 1978 और 1982 के बीच बेलफास्ट, लंदन और स्टॉकहोम के अस्पतालों में ट्रेनिंग ली. इसके अलावा, वह स्कॉटलैंड के ग्लासगो स्थित रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन (एफआरसीएस) में फेलो भी रहे.

धनीराम अपनी किताब में बताते हैं कि उन्होंने 19 अप्रैल 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की थी, ‘सुबह 11:00 बजे उनके कार्यालय में.’

उन्होंने लिखा, ‘मैं अपने परिवार के साथ आया, उनसे मिला और मेरी 45 मिनट की बातचीत हुई और बैठक के दौरान गोपी अरोड़ा मौजूद थे, जो उनके विशेष सचिव थे. मैंने असम में हार्ट वॉल्व बनाने के लिए एक लैब शुरू करने पर जोर दिया.

बरुआ ने बताया कि इंदिरा गांधी ने उन्हें असम को अपना बेस नहीं बनाने की सलाह दी क्योंकि यह ‘रणनीतिक तौर पर उपयुक्त नहीं था’ और साथ ही कहा कि वह मुंबई में शोध के लिए व्यवस्था करेंगी. उन्होंने लिखा, ‘उन्होंने तुरंत पी.आर. लते को बैठक के लिए बुलाया, जो तकनीकी विकास महानिदेशक थे और उन दोनों को मुझे (मुंबई में) वित्त सहित सभी सुविधाएं प्रदान करने का आदेश दिया.’

बरुआ हार्ट वाल्व इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना जुलाई 1987 में बॉम्बे (अब मुंबई) में हुई थी.

क्या गांधी के साथ उनकी मुलाकात के किस्से में कोई सच्चाई है? इस सवाल पर असम के एक अनुभवी कांग्रेस नेता हिरण्या बोरा ने कहा, ‘जब हम श्रीमती गांधी से मिले, तो उन्होंने कहा कि वह एक महान विद्वान और हार्ट वाल्व के विशेषज्ञ हैं. लेकिन उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया.’

इसी शहर में धनीराम भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की तत्कालीन वरिष्ठ वैज्ञानिक सैगीता आचरेकर से मिले. इसके बाद उनका जुड़ाव खत्म नहीं हुआ.

बरुआ ने अपनी सारी ऊर्जा हार्ट वाल्व विकसित करने में लगा दी: इसमें जिरकोनियम और गोजातीय पेरीकार्डियम एक कंपोनेंट था, जो मवेशियों के हृदय को कवर करने वाली एक सख्त, डबल-लेयर्ड झिल्ली होती है. उन्होंने और उनकी पत्नी निराला बरुआ ने 1989 में ‘बायोप्रोस्थेटिक हार्ट वाल्व’ के लिए आवेदन किया और पेटेंट हासिल किया.

असम वापसी

धनीराम बरुआ का दिल तो यही चाहता था कि वह अपने गृह राज्य में एक संस्थान चलाएं. अपनी किताब में उनका दावा है कि जब इंदिरा गांधी ने असम में एक संस्थान स्थापित करने से मना कर दिया तो ‘उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री (असम के) हितेश्वर सैकिया को व्यक्तिगत स्तर पर एक पत्र लिखा.’

बरुआ ने कथित तौर पर 26 अप्रैल 1984 को सैकिया और राज्य के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री भूमिधर बर्मन से मुलाकात भी की. हालांकि, उनका दावा है कि उनकी योजना सफल नहीं हो पाई क्योंकि डॉक्टरों (असम के तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव कमलेश्वर बोरा के नेतृत्व में) ने मिलकर उन्हें गुवाहाटी से ‘बाहर निकाल दिया.’

हालांकि, असम के डॉक्टर उनकी ज्यादातर बातों को नमक-मिर्च लगाकर बताई गई कहते हैं.

1991 में उन्होंने दावका क्लिनिक और अस्पताल (अब जीएनआरसी सिक्समाइल अस्पताल) में आयोजित एक संगोष्ठी में व्याख्यान दिया. यह पहला मौका था जब गुवाहाटी के कई डॉक्टरों का धनीराम से आमना-सामना हुआ था, जिनके कारनामों के बारे में उन्होंने सिर्फ सुना था. दिसपुर अस्पताल में चिकित्सा सलाहकार डॉ. बनजीत चौधरी ने कहा, ‘उन्होंने दिल के वाल्व पर बात की जो वह मुंबई में बना रहे थे. मैं कह सकता हूं कि वह ढेरों सपनों के साथ एक तेजतर्रार, और काफी एक्टिव व्यक्ति थे.’

लेकिन सर्जन बरुआ के वाल्व के प्रति आश्वस्त नहीं थे. गुवाहाटी स्थित जीएनआरसी हार्ट इंस्टीट्यूट के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल भराली ने कहा, ‘मैंने पाया कि उन्हें हार्ट वाल्व की संरचना के बारे में कम जानकारी थी. मैंने एक सवाल पूछा जिसका उत्तर उन्हें पता नहीं था. इसलिए वह नाराज हो गए और मुझ पर चिल्लाने लगे. मैं उलझन में था कि इस तरह के ज्ञान के साथ उन्हें ब्रिटेन में ट्रेनिंग कैसे मिली थी.’

हालांकि, 1995 तक धनीराम बरुआ का सपना सच हो गया. उन्होंने सोनापुर में ‘डॉ. धनी राम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर’ स्थापित कर लिया.

1996 में, जैसा बरुआ का दावा है कि उन्होंने ‘पूरे उत्तर-पूर्व में पहली ओपन-हार्ट सर्जरी’ की थी. खुद भी असम स्थानांतरित हो चुकी सैगीता इसे एक सफलता बताती है, लेकिन मेडिकल बिरादरी और राज्य के राजनीतिक नेता इस तरह की बातों से सहमत नहीं हैं.

असम गण परिषद महासचिव और उस समय स्वास्थ्य मंत्री रहे कमला कलिता ने कहा कि जब उन्होंने हृदय केंद्र शुरू किया, तो उन्हें कोई मरीज नहीं मिला. उन्होंने कहा, ‘हम किसी भी ऐसे मरीज को नहीं जानते हैं जिसकी उन्होंने ओपन हार्ट सर्जरी की थी.’


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कुख्यात पिग हार्ट सर्जरी

असम के गोलाघाट जिले का एक किसान पूर्णो सैकिया, जो वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट यानी दिल में छेद की बीमारी से पीड़िता था. अपने इलाज के लिए बेताब था.

दलीमी ने कहा कि सैकिया बरुआ के चचेरे भाई का दोस्त था. इस परिचय के जरिये सैकिया इलाज के लिए धनीराम के पास पहुंचा.

तब तक बरुआ अपने बायोप्रोस्थेटिक हार्ट वॉल्व के मद्देनजर सूअरों के साथ प्रयोग करना शुरू कर चुके थे. 1995 में जर्मनी में आर्टिफिशियल सर्कुलेशन पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने अपना पेपर पेश करते हुए दावा किया कि ‘सुअर एकमात्र ऐसा जानवर है जो आनुवंशिक रूप से प्रायोगिक उद्देश्य और अंग प्रत्यारोपण और गैर-मानव प्राइमेट के लिए मानव के सबसे करीब है.’

दलीमी ने बताया, ‘हमने 94 सूअरों को पाला और उन पर शोध किया था—उसके बाद उन्होंने सर्जरी की.’ उनका मानना था कि जेनोट्रांसप्लांटेशन ही सैकिया के जीवित रहने की एकमात्र उम्मीद है जो कि जीवित ऊतकों और अंगों को एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में ट्रांसप्लांट करने की एक प्रक्रिया है.

मानव शरीर ट्रांसप्लांट को जल्द स्वीकार नहीं करता, और इससे बचने के लिए ही धनीराम सूअर के अंग में एक एंटी-हाइपरक्यूट रिजेक्शन थेरेपी के साथ आए, जिसमें रक्त से परिसंचारी एंटीबॉडी को हटा दिया जाता है.

सर्जरी में उन्होंने हृदय-फेफड़े की मशीन ऑपरेट करने वाले एक क्लिनिकल परफ्यूजनिस्ट डॉ. केमप्लेइल जोसेफ जेम्स और चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग (जिसे उस समय केवल चीनी यूनिवर्सिटी कहा जाता था) के कार्डियक सर्जन डॉ जोनाथन हो के-शिंग को शामिल किया.

दिलचस्प बात यह है कि साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, 1992 में केई-शिंग ने हांगकांग स्थित प्रिंस ऑफ वेल्स अस्पताल में ‘विवादास्पद ऑक्स टिशू हार्ट वाल्व प्रोग्राम’ की अगुआई की थी. उन्होंने बैल के वाल्व के इस्तेमाल वाली बरुआ वाल्व तकनीक अपनाई थी लेकिन उनकी तरफ से ऑपरेट किए गए 12 में से छह रोगियों की मौत के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था.

जेम्स ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने 31 दिसंबर 1996 को (पूर्णो सैकिया पर) प्रत्यारोपण किया था…मैंने सर्जरी में मदद के लिए कुछ दक्षिण भारतीय नर्सों को लिया था.’

दलीमी ने बताया कि सर्जरी 15 घंटे तक चली. एक नर्स के तौर पर बरुआ की मदद करने वाली दलीमी ने बताया, ‘हम बीच में आराम करते. उन्होंने एक सुअर के दिल, फेफड़े और किडनी (मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर) का ऑपरेशन और ट्रांसप्लांट किया.’

सात दिन बाद सैकिया के पित्ताशय, अग्न्याशय और लिवर में संक्रमण के बाद उसकी मृत्यु हो गई. 9 जनवरी 1997 को धनीराम, जेम्स और जोनाथन को गिरफ्तार कर लिया गया. धनीराम कहते हैं, ‘मुझे गिरफ्तार करने के लिए सत्तर पुलिसकर्मी ऐसे आए जैसे कि मैं कोई मोस्ट वांटेड आतंकवादी था.’

जेम्स ने कहा, ‘मैं 5-6 साल के अनुभव वाला एक नया प्रोफेशनल था. मेरा करियर पूरी तरह अंधकारमय हो चुका था.’ 2001 में, वह कुवैत चले गए जहां उन्होंने बतौर परफ्यूजनिस्ट काम करना जारी रखा. डॉ. जोनाथन को हांगकांग मेडिकल रजिस्टर से हटा दिया गया और जैसा सैगीता का कहना है, वह अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए.

बरसों तक बरुआ और संस्थान को लेकर विवाद चलता रहा. 2009 में, संस्थान के पास दो कटे सिर पाए जाने के बाद भीड़ ने दूसरी बार वहां पर हमला किया और उसे जला दिया. उस समय काम के सिलसिले में बाहर गए बरुआ ने इसे संस्थान के खिलाफ एक साजिश बताया.

लेकिन इनमें से कोई भी बुरा अनुभव या खराब स्वास्थ्य लाइलाज बीमारियों को ठीक करने की डॉ. बरुआ की आकांक्षा के आड़े नहीं आया. और असाध्य रोगों से पीड़ित लोग इलाज के लिए उनका दरवाजा खटखटाते रहते हैं. जैसे ही केयरटेकर अगले मरीज का अंदर भेजता है, कुत्तों के भौंकने की आवाजों के आगे हर शोर दब जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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