नई दिल्ली: पिछले पांच साल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपने कुल खुदाई बजट का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा गुजरात पर खर्च किया है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है. संसद में पेश किए गए आंकड़ों के ‘दिप्रिंट’ द्वारा किए गए विश्लेषण के मुताबिक, मोदी के होमटाउन वडनगर की खुदाई के लिए विभाग ने 8.03 करोड़ रुपये खर्च किए — जो कि गुजरात को मिले कुल 8.53 करोड़ रुपये का 94 प्रतिशत है.
2020 से 2024 के बीच एएसआई ने हर साल वडनगर में खुदाई की. इस अवधि में गुजरात के जिन अन्य स्थलों पर खुदाई हुई, उनमें वलभीपुर, विहार, सरवल और लोथल शामिल हैं.
24 जुलाई को राज्यसभा में केरल से सांसद ए. रहीम के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि 2020 से 2024 के बीच एएसआई ने 17 राज्यों के 58 स्थलों पर खुदाई की, जिस पर कुल 34.81 करोड़ रुपये खर्च हुए.
मंत्री ने अपने जवाब में कहा कि इस अवधि में गुजरात, मध्य प्रदेश और ओडिशा में छह-छह खुदाइयां हुईं, जबकि हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पांच-पांच और बिहार, तमिलनाडु और राजस्थान में चार-चार स्थलों पर खुदाई की गई.
पिछले पांच साल के कुल खर्च में से एएसआई ने छह स्थलों — वडनगर (गुजरात), राखीगढ़ी (हरियाणा), केसरी खेड़ा (हरियाणा), रत्नगिरि (ओडिशा), बहाज (राजस्थान) और अधिचनल्लूर (तमिलनाडु) — पर ही 50% से ज्यादा बजट खर्च कर दिया.
एएसआई का कुल बजट भी बीते वर्षों में बढ़ा है — वित्त वर्ष 2019-20 में यह 1,036.41 करोड़ रुपये था, जो 2025-26 तक बढ़कर 1,278.49 करोड़ रुपये हो गया है.
एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को नाम न छापने की शर्त पर बताया, “पिछले कुछ वर्षों में खुदाई की रफ्तार बढ़ी है और देशभर में ज्यादा से ज्यादा स्थलों पर खुदाई की जा रही है.”
हालांकि, एएसआई के कुल बजट का 1 प्रतिशत से भी कम हिस्सा वास्तव में खोज और खुदाई पर खर्च होता है.
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी 2022 की अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे को उजागर किया था. उसी साल की शुरुआत में संस्कृति मंत्रालय ने संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी को आश्वासन दिया था कि वह खोज और खुदाई गतिविधियों पर खर्च बढ़ाकर कुल बजट का 5 प्रतिशत करेगा.
लेकिन CAG की रिपोर्ट में कहा गया, “मंत्रालय द्वारा दिए गए आश्वासन के बावजूद, एएसआई का खुदाई और खोज पर खर्च अब भी 1 प्रतिशत से कम ही है.”
आज भी खोज और खुदाई के लिए जो बजट मिलता है, वह लगभग उतना ही है.
हरियाणा का राखीगढ़ी, जो सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है, खुदाई के लिए फंड आवंटन के मामले में सबसे आगे रहा. 2020 से 2024 के बीच एएसआई ने यहां खुदाई पर 1.86 करोड़ रुपये खर्च किए — जो कि हरियाणा को मिले कुल 5.47 करोड़ रुपये का 34 प्रतिशत है.
राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान एएसआई को एक कुएं, प्राचीन मिट्टी की ईंटों से बने ढांचे, मिट्टी की ईंटों से बना स्टेडियम और जल संग्रहण क्षेत्र के प्रमाण मिले.
इस दौरान हरियाणा के पांच स्थलों — सिरसा का थेड़ टीला, राखीगढ़ी, केसरी खेड़ा, असंध और अग्रोहा — में खुदाई हुई.
राखीगढ़ी के बाद केसरी खेड़ा में सबसे ज्यादा खर्च हुआ — 2022 और 2023 में खुदाई के दौरान यहां 1.83 करोड़ रुपये खर्च किए गए. यह स्थल अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परतों के लिए जाना जाता है और यहां खुदाई के दौरान पेंटेड ग्रे वेयर (PGW) काल (1100–800 ईसा पूर्व), जिसे आमतौर पर ‘महाभारत काल’ कहा जाता है, की कलाकृतियां मिलीं.
हालांकि, एएसआई के सूत्रों के अनुसार, इस साल एएसआई ने देश के कई स्थलों — जिनमें हरियाणा का राखीगढ़ी और बिहार का राजगीर भी शामिल है — पर खुदाई की अनुमति नहीं दी.
कीलाड़ी खुदाई
केरल से राज्यसभा सांसद ए. रहीम ने संसद में पिछले पांच वर्षों में तमिलनाडु स्थित कीलाड़ी खुदाई के लिए आवंटित फंड की जानकारी मांगी, लेकिन संबंधित मंत्रालय ने इस पर कोई आंकड़ा नहीं दिया.
कीलाड़ी स्थल एक राजनीतिक विवाद का विषय बन गया जब पुरातत्वविद अमरनाथ रामकृष्ण को अपनी रिपोर्ट के मसौदे में “विशेषज्ञों के सुझावों के अनुसार ज़रूरी सुधार” करने को कहा गया.
संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने अपने जवाब में बताया, “एएसआई ने वैगई नदी घाटी में व्यवस्थित सर्वेक्षण के बाद कीलाड़ी की पुरातात्विक संभावना पहचानी थी. इसके बाद 2014-15, 2015-16 और 2016-17 में खुदाई की गई, जिससे समृद्ध पुरातात्विक अवशेष मिले. 2018 से कीलाड़ी स्थल पर खुदाई का काम तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग कर रहा है.”
तमिलनाडु को मिले कुल 3.43 करोड़ रुपये में से 2.11 करोड़ रुपये आदिचनल्लूर स्थल पर खर्च किए गए, जहां 2021 से 2024 तक एएसआई ने खुदाई की. यह स्थल लौह युग की मेगालिथिक (विशाल पत्थरों वाली) समाधियों के लिए जाना जाता है और खुदाई में यहां कलश, मिट्टी के अन्य बर्तन और बसी हुई सभ्यता के प्रमाण मिले हैं.
आर्थिक वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में, यह स्थल देश के उन पांच पुरातात्विक स्थलों में शामिल था जिन्हें ‘आइकॉनिक साइट्स’ के रूप में विकसित किया जाना है.
1861 में स्थापित एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) भारत में पुरातात्विक शोध और खुदाई के लिए मुख्य संस्था है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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