बागली: एक 29 वर्षीय आशा वर्कर ईमम मुजल्दे, हर रोज़ सुबह 9 बजे बागली तहसील के लोगों को, टीका लगवाने के लिए राज़ी करने निकल जाती हैं. लेकिन हर दिन उसे इस आदिवासी इलाक़े में, एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है- वो है लोगों में वैक्सीन को लेकर झिझक.
बागली के पुंजापुरा गांव में 2013 से, आशा वर्कर का काम कर रही मुजल्दे ने कहा, ‘आदिवासी आबादी को टीका लगवाने के लिए राज़ी करना एक भारी चुनौती है. वो यही कहते रहते हैं कि टीका लगवाने से, उन्हें बुख़ार हो जाएगा और वो मर जाएंगे. कभी कभी तो वो मुझपर चिल्ला पड़ते हैं, और मेरे मुंह पर दरवाज़ा बंद कर देते हैं. फिर भी, मैं शांति से उन्हें समझाने की कोशिश करती हूं, कि इससे उन्हें फायदा पहुंचेगा, लेकिन वो सुनते ही नहीं’.
पच्चीस किलोमीटर दूर बागली के एक और गांव उदयनगर में, आशा वर्कर नूरिया की भी यही शिकायत है. और गांव में टीके का ख़ौफ, साफ महसूस किया जा सकता है.
घास फूस की छत के एक घर में, 55 वर्षीय झुमका बाई तीन बकरियों के साथ ज़मीन पर बैठी हुई थी, और उसने ठान रखी थी कि वो टीका नहीं लगवाएगी.
उसने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे बहुत डर लगता है. मैं टीका नहीं लगवाउंगी. मैंने सुना है कि टीका लगवाने के बाद, बहुत लोगों को बुख़ार हो गया है’.
मध्यप्रदेश के इस हिस्से में अप्रैल में भी, टेम्प्रेचर 45 डिग्री तक पहुंच जाता है, और इसकी वजह से भी, टीकों को लेकर लोगों में हिचकिचाहट है.
झुमका बाई के देवर, 35 वर्षीय गुलाब भरोसे ने कहा: ‘यहां पर गर्मी बहुत है. और हमने सुना है कि टीका लगवाने से शरीर गर्म हो जाता है. हमें ख़तरा है कि इससे दिल काम करना बंद कर देगा. यही कारण है कि हमारे परिवार से कोई टीका नहीं लगवाएगा, भले ही हमें इसकी अनुमति मिल जाए’.
लेकिन वैक्सीन्स को लेकर ये अनिश्चितता, बागली के इन आदिवासी गांवों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है. एमपी के शहरों में अस्पताल कोविड मामलों के बोझ से चरमरा रहे हैं, और दूसरी लहर अब आदिवासी आबादी में भी घुस गई है.
स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, बागली में, जिसकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 10,310 है, इस समय 365 एक्टिव मामले हैं.
इस बीच देवास ज़िले में शनिवार तक, कुल 4,811 मामले और 40 मौतें दर्ज की गईं हैं, जैसा कि राज्य के हेल्थ बुलेटिन में बताया गया है.
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टेस्टिंग तो ठीक है, लेकिन ‘टीका नहीं लगवाएंगे’
आदिवासी बेल्ट में आय का मुख्य साधन खेती है, और चिलचिलाती धूप में भी, किसान और मज़दूरों को खेतों में मेहनत करते, और फसल काटते देखा जा सकता है. लेकिन उनमें किसी ने भी मास्क नहीं पहना हुआ था.
उदयनगर में ऐसे ही एक खेत में, जहां खोदी हुई प्याज़ की बोरियां लाइन से रखी हैं, एक 23 वर्षीय खेती मज़दूर सीमा मोरया, एक महीना काम के बिना रहने के बाद, फसल खुदाई के लिए आ गई.
‘मुझे महामारी के बारे में पता है. लेकिन हम कोई दवा वग़ैरह नहीं ले रहे हैं. हमें संक्रमित होने का डर नहीं है,’ जब मोरया दिप्रिंट से ये कह रही थी, तो उसके तीन छोटे बच्चे खेतों में भाग रहे थे, और उन्होंने भी मास्क नहीं पहना था.
मोरया की तरह ही, इस बेल्ट के अन्य गांव वासी भी वायरस से वाक़िफ तो हैं, लेकिन इससे बस इतना हुआ है कि वो, टेस्ट कराने को राज़ी हो गए हैं. टीकाकरण के मामले में स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों को, कोई कामयाबी नहीं मिल पाई है.
पुंजापुरा में एक फल विक्रेता धर्मेंद्र कुमार ने कहा, ‘इस बार लोग ज़्यादा डरे हुए हैं. पिछले साल वायरस हमारे पास तक नहीं पहुंचा था. अब हम सुन रहे है कि पड़ोस के गांवों में लोग संक्रमित हो रहे हैं. आज हमारे गांव में दो लोगों की मौत हुई है, चार और लोग पास के एक गांव में मरे हैं’.
इसकी वजह से गांव वालों के बीच डर और शक बढ़ गया है. गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर, टीकाकरण अभियान के कार्यकर्ता सुनील जाथब के अनुसार, शनिवार को केवल 16 लोग, टीका लगवाने के लिए आए थे.
उसने दिप्रिंट को बताया, ‘गांव वालों को चिंता है कि टीका लगवाने के बाद आपको बुख़ार हो जाता है. हम उन्हें पैरासिटेमॉल देते हैं, लेकिन वो फिर भी डरते हैं. उन्हें लगता है कि वो बीमार पड़ जाएंगे. स्थानीय लोग हमारी आशा वर्कर्स के साथ, बहुत बुरी तरह पेश आते हैं. वो उन्हें गालियां देते हैं, और अपनी पेंशन तथा राशन तक गंवाने के लिए तैयार हैं, लेकिन टीका लगवाने को राज़ी नहीं हैं’.
रोज़ाना 100 लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य है, लेकिन पुंजापुरा का प्रदर्शन बहुत ख़राब है. मार्च में ये संख्या उन्होंने हासिल की थी, लेकिन अब, मुश्किल से 15 लोग सेंटर पर आते हैं. गांव की आबादी 4,875 है, जो पूरी तहसील का 47 प्रतिशत है.
उदयनगर में- जहां तहसील की कुल आबादी के 30 प्रतिशत लोग रहते हैं- शनिवार को केवल 14 लोग टीका लगवाने आए थे.
लेकिन, गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉ अमित नागर का कहना था, कि पात्र आबादी के लगभग 50-60 प्रतिशत लोगों का, टीकाकरण किया जा चुका है.
कुछ गांवों में उपयुक्त स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
टीके की झिझक के अलावा, पुंजापुरा में कोविड-19 के इलाज के लिए, पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं हैं.
गांवों में भी लॉकडाउन घोषित किया गया था, लेकिन इलाक़े में मामले बढ़ रहे हैं. और गांववालों के पास टेस्ट कराने के लिए कोई सुविधा नहीं है. अगर उनमें लक्षण पैदा हो जाएं, तो उन्हें बागली के सरकारी अस्पताल तक जाना पड़ता है, जो 15 किलोमीटर दूर है.
कुमार ने कहा, ‘लोग वायरस से डरे हुए हैं. लेकिन आख़िर हम कब तक डरते रहेंगे? हमें इसका सामना करना है. हमारे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में हमारे इलाज, या जांच तक करने की सुविधा नहीं है’.
पुंजापुरा में एक बुख़ार क्लीनिक और क्वारंटीन केंद्र दोनों हैं, लेकिन दोनों क़रीब ढाई महीने से बंद पड़े हैं. इलाक़े में मामलों के घटने के बाद, दोनों सुविधाओं को बंद कर दिया गया था, लेकिन उछाल के बाद भी, इन्हें फिर से नहीं खोला गया.
लेकिन, सभी गांवों का हाल ऐसा नहीं है. उदयनगर का फीवर क्लीनिक एक हफ्ता पहले फिर से खुल गया, जब गांव में मामले बढ़ने शुरू हुए.
उदयनगर में कोविड-19 वॉर्ड को संभालने वाले, आयुष चिकित्सा अधिकारी डॉ जसवंत पंवार ने दिप्रिंट से कहा, ‘उदयनगर में हर रोज़ औसतन 50 सैम्पल्स टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें 2-10 के बीच पॉज़िटिव निकलते हैं. नतीजे आने में 3-4 दिन का समय लग रहा है’.
पंवार ने कहा कि वायरस की जागरूकता ने, लोगों को टेस्ट कराने के प्रति ज़्यादा ज़िम्मेदार बना दिया है.
उन्होंने ये भी कहा, ‘फिलहाल हमारे सभी 38 मरीज़ होम क्वारंटीन में हैं, और सरकार द्वारा मुहैया कराई गई मेडिकल किट, उनके इलाज के लिए काफी है’.
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बागली के सरकारी अस्पताल में न ऑक्सीजन न बिस्तर
पुंजापुरा और उदयनगर में जो मरीज़ कोविड-19 के संपर्क में आ जाते हैं, उन्हें बागली के सरकारी अस्पताल भेजा जाता है, जो ज़िले का एकमात्र कोविड-समर्पित अस्पताल है.
लेकिन, फिलहाल देश के किसी भी दूसरे शहर की तरह, यहां का अस्पताल भी ऑक्सीजन, और दवाओं की भारी कमी से जूझ रहा है. इसके आठ उपलब्ध बिस्तरों में से पांच फिलहाल भरे हुए हैं, चूंकि अधिकांश मरीज़ होम आइसोलेशन में रहते हैं.
लेकिन, अस्पताल के भीतर कड़े प्रोटोकोल्स का पालन नहीं किया जा रहा है. 26 वर्षीय शैलेंद्र यादव अस्पताल के कोविड केयर यूनिट में ऐसे ही दाख़िल हो गया, जहां उसकी 45 वर्षीय मां 60 प्रतिशत ऑक्जीजन सपोर्ट पर है. न तो किसी ने उसे अंदर आते हुए रोका, और न ही जाते हुए.
बागली में ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी, डॉ विष्णुलता वीके ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम होम आइसोलेशन में चल रहे मरीज़ों को, बताने की कोशिश कर रहे हैं, कि क़ुदरती उपायों से अपने ऑक्सीजन स्तर बनाए रखें- मसलन, लंबे व गहरे सांस लें. हमारे पास पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं है, इसीलिए हम होम आइसोलेशन वाले मरीज़ों को ये उपाय सुझा रहे हैं. जो लोग हमारे पास आते हैं, उन्हें ऑक्सीजन की बहुत ज़रूरत होती है, लेकिन हमारे पास वो है ही नहीं’.
फिलहाल, अस्पताल केवल चार ऑक्सीजन कॉनसेंट्रेटर्स के सहारे है- एक मेडिकल उपकरण जो आसपास की हवा से ऑक्सीजन को खींचता है. अस्पताल ने सरकार से 60 जंबो सिलिंडर्स की मांग की है- जिससे एक मरीज़ को 12 घंटे तक सपोर्ट किया जा सकता है- लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.
मरीज़ न केवल शारीरिक रूप से बीमार हैं, बल्कि डॉक्टरों को होम आइसोलेशन में रह रहे कई मरीज़ों में, डिप्रेशन का इलाज भी करना पड़ता है.
डॉ विष्णुलता ने कहा, ‘आइसोलेशन की वजह से मरीज़ डिप्रेशन में जा रहे हैं, जिससे उनके इलाज की हमारी प्रक्रिया बाधित हो रही है. इससे निपटने के लिए हमारी रैपिड रेस्पॉन्स टीम, वीडियो कॉल्स के ज़रिए होम आइसोलेशन में रह रहे मरीज़ों को, सलाह मश्विरा देती है. मरीज़ों को ये डर भी रहता है, कि वो अब ठीक नहीं होंगे’.
जनवरी तक, बागली का एक निजी अस्पताल जोज़फ हॉस्पिटल भी, कोविड मरीज़ों का इलाज कर रहा था, लेकिन जब ऑक्सीजन और रेम्डिसिविर जैसी दवाओं की मांग आसमान छूने लगी, तो उन्हें बंद कर देना पड़ा.
अस्पताल में काम करने वाले डॉ जॉन जोज़फ ने दिप्रिंट से कहा, ‘जून-जुलाई तक यहां बागली में कोई केस नहीं था. कंटेनमेंट और लॉकडाउन को सख्ती से लागू करके, उसका पालन कराया गया. स्थानीय प्रशासन ने सराहनीय काम किया. लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद, लोग देवास और इंदौर से संक्रमण यहां लाने लगे’.
बागली में महामारी की दूसरी लहर, पहली से ज़्यादा घातक साबित हुई है, जिसमें 2 से 30 लोग वायरस का शिकार हुए हैं. लेकिन फिर भी इलाक़े में बहुत से लोग, बिना मास्क पहने घूम रहे हैं, या उन्हें ठीक से नहीं लगाए हैं.
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