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Saturday, 4 May, 2024
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महामारी में चल रही सिर्फ ऑनलाइन क्लास, छात्रों का सवाल- ट्यूशन फीस के अलावा क्यों दे किसी और चीज़ के पैसे

ऐसी मांग उठाने वालों में देश की राजधानी स्थित गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और (आईआईएमसी) जैसे सरकारी संस्थान शामिल हैं.

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नई दिल्ली: भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों की एक नई मांग का ट्रेंड चल निकला है. कई बड़े संस्थानों के छात्रों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान अपनी यूनिवर्सिटी की जिन सुविधाओं का वो इस्तेमाल नहीं कर रहे उसके लिए वो फ़ीस क्यों भरें?

ऐसी मांग उठाने वालों में देश की राजधानी स्थिति गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी (जीजीएसआईपीयू) और दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) के अलावा देहरादून स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेट्रोलियम और एनर्जी स्टडीज़ के छात्र भी शामिल हैं.

इसके अलावा भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) में दाख़िले की तैयारी में लगे छात्रों का भी यही कहना है. करीब 125 कॉलेजों वाले जीजीएसआईपीयू में तकरीबन 1 लाख़ से अधिक छात्र पढ़ते हैं. इससे जुड़े विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज (वीआईपीएस) ने अपने छात्रों को फ़ीस भरने से जुड़ा एक नोटिस भेजा है.

वीआईपीएस के एक छात्र अंकुर उपरेती ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस नोटिस का प्रभाव सभी छात्रों पर पड़ेगा क्योंकि सभी को इसी समय फ़ीस भरनी होती है और हर जगह फ़ीस लगभग इतनी ही है.’ भारी फ़ीस की मांग से प्रभावित ऐसे ही कई छात्रों ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (यूजीसी) तक का दरवाज़ा खटखटाया है.

छात्रों द्वारा इन्हें भेजे गए मेल की कई कॉपियां दिप्रिंट के पास मौजूद है. मेल में छात्रों ने लिखा है, ‘दिल्ली सरकार के तहत आने वाली जीजीएसआईपीयू के कॉलेजों में 85,000 से 1,00,000 तक की फ़ीस ली जा रही है. ऐसी महामारी के बीच इतनी ज़्यादा फ़ीस छात्रों और उनके परिवार वालों के प्रति क्रूर और हिंसक कदम जैसा लगता है.’

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छात्रों का कहना है कि पढ़ने-पढ़ाने के लिए सिर्फ़ ऑनलाइन माध्यम का इस्तेमाल हो रहा है. छात्रों की मांग है, ‘हमसे सिर्फ़ बेसिक ट्यूशन फ़ीस ली जानी चाहिए.’ जीजीएसआईपीयू के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘फ़ीस निर्धारण का काम दिल्ली स्टेट फ़ीस रेग्युलेटरी कमेटी का है. यूनिवर्सिटी इस मामले में कुछ नहीं कर सकती.’

हालांकि, अधिकारी का कहना है कि ऐसी महामारी में छात्र और उनके परिवारों को राहत मिलनी चाहिए. लगभग यही तर्क बाकी संस्थान के छात्रों का भी है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के डीटीयू अध्यक्ष अपरनेंदू त्रिपाठी ने कहा, ‘सिर्फ़ ऑनलाइन पढ़ाई होने की वजह से फ़ोन-लैपटॉप, इंटरनेट, बिजली जैसी तमाम चीज़ें छात्रों के घर से लग रही हैं. जब हम कॉलेज का कुछ इस्तेमाल नहीं कर रहे तो बेसिक ट्यूशन फ़ीस के अलावा कुछ और क्यों दें?’

हालांकि, डीटीयू के पब्लिक रिलेशन अधिकारी अनुप लाथेर की मानें तो बेसिक ट्यूशन फ़ीस और परीक्षा फ़ीस के अलावा बाकी चीज़ें दरकिनार करने से भी फ़ीस में ज़्यादा अंतर नहीं आएगा, जबकि अपरनेंदू का कहना है कि इससे हर छात्र की फ़ीस में कम से कम 40,000-50,000 रुपए का अंतर आ जाएगा.

सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाले जर्नलिज़्म इस्टीट्यूट आईआईएमसी में अगले अकादमिक कैलेंडर के लिए दाख़िला मेरिट और ऑनलाइन वीडियो इंटरव्यू के जरिए होगा. इतना ही नहीं, संस्थान द्वारा सार्वजनिक की गई जानकारी के मुताबिक यहां कराए जाने वाले दो सत्रों के डिप्लोमा में पहला सत्र पूरी तरह से ऑनलाइन होगा.

ऐसे में संस्थान में दाख़िला लेने के लिए फ़ॉर्म भर चुके एक छात्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘जर्नलिज़्म जैसे प्रैक्टिकल कोर्स में जब सब घर बैठे करना होगा तो आप ही बताइए कि किसी छात्र को ट्यूशन फ़ीस के अलावा ऑडिटोरियम या कैमरे के लिए फ़ीस क्यों भरनी चाहिए.’

इस बारे में फ़ीस बढ़ोतरी वापसी के ख़िलाफ़ लंबा आंदोलन चलाने वाली जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ अध्यक्ष आयशी घोष ने कहा, ‘जेएनयू को तो यूजीसी से ग्रांट मिलता है ऐसे में हमें मामूली फ़ीस देनी होती है.’

हालांकि, हाल में जेएनयू प्रशासन द्वारा 450 करोड़ रुपए का हेफ़ा लोन लिए जाने का हवाला देते हुए आयषी ने कहा, ‘ये पैसा जेएनयू किससे वसूलेगा, छात्रों से ही वसूलेगा. लेकिन अगर फ़िर से फ़ीस बढ़ाने की कोशिश होती है तो हम फ़िर से सड़कों पर उतरेंगे.’

बीते शुक्रवार को चलाए गए एक हैशटैग #UPESFEES में यूपीईएस देहरादून के छात्रों ने भी ऐसी ही बातों का ज़िक्र किया कि महामारी में भी उनसे इंफ्रास्ट्रक्चर समेत तमाम तरह की फ़ीस ली जा रही है.

इस विषय में कांग्रेस के छात्रसंघ नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ़ इंडिया (एनएसयूआई) ने शिक्षा मंत्रालय से छह महीने की फ़ीस माफ़ करने की मांग की है. प्रशासनिक पक्ष जानने के लिए दिप्रिंट ने शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी, दिल्ली के शिक्षा मंत्री और आईआईएमसी के अधिकारियों को फ़ोन और मैसेज के जरिए संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

हालांकि, नाम नहीं छापने की शर्त पर दिल्ली शिक्षा विभाग की एक आला अधिकारी ने कहा, ‘अगर छात्र कैंपस का इस्तेमाल नहीं कर रहे तो भी कैंपस अपनी जगह पर है और इसके मेटेंनेंस में जो ख़र्च आता था वो अभी भी आ रहा है.’

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