वड़ोदरा: कोरोना महामारी के चार महीने बाद गुजरात के गांव खासकर ग्रामीण जिलों में वायरस का संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है. जिला के अधिकारियों और गांव वालों का मानना है कि ये राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद किए गए अनलॉक के कारण हुआ है.
गुजरात में अभी तक 64,684 कोविड-19 के मामले आए हैं जिनमें 2,509 लोगों की मृत्यु भी हुई है. घनी आबादी वाले जिले और बड़े शहर खासकर अहमदाबाद, वड़ोदरा और सूरत में मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं लेकिन पिछले एक सप्ताह में ग्रामीण जिले जैसे कि भारूच, खेड़ा, आनंद और सुरेंद्रनगर में भी मामले बढ़े हैं.
भारूच का उदाहरण लें तो- यहां 30 जुलाई को 35 मामले आए लेकिन 4 अगस्त तक मामले 226 तक पहुंच गए. ठीक ऐसे ही खेड़ा में 24 जुलाई को 8 नए मामले आए थे, 30 जुलाई को 15 मामले लेकिन 4 अगस्त को यहां 114 मामले आए हैं. आनंद जिले में मामलों में पांच गुना वृद्धि हुई है. पिछले हफ्ते तक यहां 10 मामले थे जो अब 55 पहुंच गया है जबकि सुरेंद्रनगर में 31 जुलाई को 34 नए मामले आए थे जो 4 अगस्त को 414 तक पहुंच गया.
इस बढ़ोतरी ने वड़ोदरा को प्रभावित किया है. 1041 सक्रिय मामलों में से करीब 300 मामले पाडरा और उसके आसपास के गांवों से संबंधित हैं. वड़ोदरा के जिला अधिकारियों का कहना है कि शहर के 20 प्रतिशत मामले पहले पड़ोस के जिलों से संबंधित थे लेकिन अब ये 45 प्रतिशत तक पहुंच गया है.
दिप्रिंट ने कोविड-19 संक्रमण के तेज़ी से बढ़ने के कारणों को जानने के लिए वड़ोदरा और उसके पड़ोसी भारूच, आनंद और खेड़ा जिलों का दौरा किया.
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अनलॉक और टेस्टिंग में तेज़ी- मामले बढ़ने का कारण
मामलों में वृद्धि आने के बारे में पूछे जाने पर खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, वड़ोदरा में स्पेशल ड्यूटी पर काम कर रहे अधिकारी डॉ. विनोद राव ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस बीमारी के संचरण की प्रकृति ऐसी है कि यह जिस क्षेत्र में शुरू में ये चरम पर था, उसके बाद यह उन क्षेत्रों में गया, जहां लोग अधिक संपर्क रखते हैं. ट्रांसमिशन उन क्षेत्रों में गया जहां आबादी शहर के साथ सीधे संपर्क में रही है. इसलिए पड़ोसी नगर पालिका क्षेत्र, औद्योगिक समूह और ग्रामीण समूह अगले चरण में हैं.’
वड़ोदरा जिला मजिस्ट्रेट शालिनी अग्रवाल ने बताया कि वड़ोदरा और उसके पड़ोसी जिलों में एंटीजेन टेस्टिंग को बढ़ा दिया गया.
भारूच के जिलाधिकारियों ने भी ये कहा कि ‘अनलॉक’ की प्रक्रिया के बाद मामलों में वृद्धि आई है. ग्रामीणों के शहर जाने और वापस लौटने के दौरान वायरस ने इन इलाकों में जगह बनाई.
वड़ोदरा के पडरा में ‘अनलॉक’ के साथ ही स्थानीय मंडी खुली जो ‘सुपर स्प्रैडर’ साबित हुईं. सब्जी मंडी में करीब 230 मामले दर्ज किए गए.
एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी के उपाध्यक्ष सचिन गांधी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इंफेक्शन में तेजी आने के बाद लोग मंडी में आने और उपज खरीदने से डर रहे हैं. लॉकडाउन से पहले, हर दिन 3,000 से अधिक लोग मंडी आते थे, अब यह संख्या घटकर केवल 800 रह गई है.’
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जागरूकता की कमी
गुजरात सरकार ने 35,000 लोगों के प्रत्येक क्लस्टर के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र की स्थापना की है. प्रत्येक केंद्र में एक चिकित्सा अधिकारी के होने की बात है जो लोगों को सलाह देगा अगर उसे कोविड जैसे लक्षण हैं, जबकि प्रत्येक गांव में एक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) है, जो डोर-टू-डोर जाकर मॉनिटर करता है कि किसी को कोई लक्षण तो नहीं है.
हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि जिलों के ग्रामीणों को इस बात की जानकारी नहीं है कि कोविड जैसे लक्षणों का अनुभव होने पर वे किससे संपर्क करें.
डोर-टू-डोर निगरानी और स्क्रीनिंग का संचालन करने के लिए अन्य प्रमुख पहलें, जैसे कि धन्वंतरि रथ और 104 हेल्पलाइन भी कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं क्योंकि आनंद, भरूच और खेड़ा के लोग इस बारे में काफी हद तक अनजान हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या खेड़ा जिले का कोई संक्रमित हुआ है, इस पर अतरोली गांव के सरपंच विनोदभाई ने अपना फोन निकाला और खुद की तस्वीर दिखाते हुए कहा, ‘यह मैं हूं. मुझे कोरोनावायरस हुआ था. अधिकांश ग्रामीणों का परीक्षण भी किया गया है.’
न तो उन्हें और न ही ग्रामीणों को पता था कि थर्मल स्क्रीनिंग और कोविड परीक्षण एक समान नहीं होते हैं.
खेड़ा के उथेला की गीताबेन ने कहा, ‘अगर हमें परीक्षण करवाना है तो हमें नरवाल जाना होगा, जो 20 किमी दूर है. ग्रामीणों के लिए इतनी दूर जाना मुश्किल है. हम वायरस के कारण शहर जाने से भी डरते हैं.’
गीताबेन ने कहा कि खेड़ा के सिविल अस्पताल ने उथेला के लोगों को समायोजित नहीं किया है. हालांकि, सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके सिंह ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा, ‘यहां प्रतिदिन 200 से अधिक ओपीडी मरीज आते हैं, जिनमें से 10 प्रतिशत कोविड संक्रमित होते हैं.’
आनंद जिले के अजारपुर के सरपंच सेजल पटेल ने कहा कि उनके गांव में किसी की भी जांच नहीं हुई है जबकि कोविड के दो मरीज आ चुके हैं.
पटेल ने कहा, ‘पंचायत के पैसे से मैंने गांव को सैनिटाइज करवाया है. मैंने गांव में सोशल डिस्टेंसिंग कायम रखने के लिए सख्त लॉकडाउन लगाया है.’
भरूच के जम्बूसार गांव के नज़ीरभाई ने आरोप लगाया कि आशा कार्यकर्ताओं को खुद ही कोई खबर नहीं है. हालांकि वड़ोदरा के मूजपुर के ग्रामीणों का अलग अनुभव है. उनका कहना है कि अगर उन्हें तेज़ बुखार या कमजोरी होती है तो वे आशा कार्यकर्ता के पास जाते हैं.
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टेस्टिंग लैब्स की कमी
भरूच के नबीपुर गांव के 52 वर्षीय मकबूल हुसैन इब्राहिम लांबा ने एक सप्ताह पहले वायरस के कारण दम तोड़ दिया. उनके बेटे, डॉ सफवान लांबा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें कनेक्शन के जरिए भरूच में एक अस्पताल में बिस्तर मिला. जब हमें आखिरकार एक बिस्तर मिला, तो परीक्षण रिपोर्ट प्राप्त करने में भी काफी देरी हुई.’
तथ्य यह है कि भरूच में परीक्षण प्रयोगशाला नहीं है, इसलिए सभी आरटी-पीसीआर परीक्षण नमूनों को सूरत (लगभग 70 किमी दूर) भेजा जाता है. यह, कई ग्रामीणों की शिकायत है, परीक्षण के परिणाम में काफी देरी होती है. हालांकि, मुख्य जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ वी.एस. त्रिपाठी ने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करते हैं कि परीक्षण परिणाम 24 घंटे में जारी किया जाए.’
आनंद में भी कोई परीक्षण प्रयोगशाला नहीं है, इसलिए नमूने अहमदाबाद भेजे जाते हैं. खेड़ा अपने नमूने वडोदरा या अहमदाबाद भेजता है, जबकि वडोदरा के एसएसजी अस्पताल में नाडिया से नमूने आते हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था, जिसमें महामारी से निपटने में जमीनी हकीकत का आकलन करने के लिए भरूच में एक टीम भेजने का आग्रह किया गया था. उन्होंने कहा कि भरूच में लोगों को अपने घरों के पास परीक्षण करवाना मुश्किल हो रहा है.
डॉ लांबा ने कहा कि यहां बेड की भी कमी है. भरूच में कुछ सरकारी अनुमोदित कोविड-19 अस्पतालों में से एक वेलफेयर अस्पताल है, जिसके अध्यक्ष, सलीमभाई फांसिवाला ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम उन सभी रोगियों को भर्ती करते हैं जो हमारे पास आते हैं. हालांकि, भरूच सिविल अस्पताल और अन्य रोगियों को भर्ती नहीं करना चाहते क्योंकि वे जोखिम नहीं लेना चाहते हैं.’
वेलफेयर अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक सुकेतु दवे ने कहा, ‘भरूच में सरकारी अस्पताल केवल विषम रोगियों को सुरक्षित स्थान पर रखने की बात कर रहे हैं. कभी-कभी, वेंटिलेटर की कमी के कारण भरूच में रोगियों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करने के लिए कहा जाता है. एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में शिफ्ट किए गए मरीज खतरनाक साबित हो सकते हैं.’
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मुद्दों से कैसे निपटा जाए?
यह पूछे जाने पर कि गांवों में कोविड संक्रमण को लेकर क्या रणनीति थी, भरूच सीडीएचओ त्रिपाठी ने कहा, ‘हमने उन क्षेत्रों में परीक्षण किया है जहां संक्रमण में वृद्धि दर्ज की गई है. हमने जिले में अस्पताल के बिस्तरों की संख्या भी बढ़ाई है.’
उन्होंने कहा, ‘गांवों में, हम वायरस के बारे में जागरूकता लाने में मदद करने के लिए शिक्षकों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं. हम जागरूकता बढ़ाने के लिए सरपंच की अध्यक्षता में प्रत्येक गांव में एक जन जागृति समिति का गठन भी करेंगे.’
वडोदरा के ओएसडी विनोद राव ने कहा, ‘हम मानते हैं कि अगले महीने में, इन क्षेत्रों में मामले बढ़ेंगे, इसलिए हमने उसी अनुसार तैयारी की है. हमने एक चक्र शुरू किया है, जिसमें तीन दिन की गृह-आधारित निगरानी होगी, उसके बाद चार दिनों तक इसे दोहराया जाएगा.’
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