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Friday, 1 November, 2024
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कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का फायदा उठाने में जुटी TMC, G-23 के नेताओं से भी साध रही संपर्क

तृणमूल कांग्रेस जो वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को अपने परिवार में शामिल कर रही है, कहती है कि वो केवल अपना ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा बनाए रखना चाहती है.

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कोलकाता: कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई में विरोधियों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, जिसका नतीजा ये हुआ है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) उसके अशांत जल में मछलियां पकड़ रही है.

दिप्रिंट को पता चला है कि टीएमसी ने जी-23 के सदस्यों से संपर्क साधा है- 23 कांग्रेस नेताओं का समूह जो संगठन में हो रहे बहाव के लिए आलाकमान से जवाबदेही की मांग करता रहा है- ताकि उन्हें तृणमूल के पाले में लाने की कोशिश की जा सके. कम से कम दो वरिष्ठ कांग्रेस नेता, जो जी-23 के सदस्य हैं, ममता बनर्जी की पार्टी के संपर्क में हैं. अन्य के अलावा जी-23 के कुछ सदस्य हैं- कपिल सिब्बल, शशि थरूर, ग़ुलाम नबी आज़ाद, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा, और वीरप्पा मोइली.

ये सब ऐसे समय हो रहा है जब तृणमूल कांग्रेस के गोवा के लुईज़ीन्हो फलेरो, और असम की  सुष्मिता देव को गले लगाने की वजह से, कांग्रेस के साथ उसकी ज़ुबानी जंग चल रही है. टीएमसी नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी कांग्रेस को कमज़ोर नहीं कर रही, बल्कि केवल ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का अपना दर्जा बनाए रखना चाहती है.

पश्चिमी बंगाल कैबिनेट के एक वरिष्ठ मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘जी-23 कांग्रेस समूह के दो बहुत वरिष्ठ सदस्य, नज़दीकी से हमारे साथ काम कर रहे हैं. वो दोनों यूपीए में मंत्री थे. दोनों ममता बनर्जी के संपर्क में हैं. बातचीत के कई स्तर होते हैं इसलिए अभी हम नहीं कह सकते, कि वो हमारी पार्टी में शामिल होंगे कि नहीं. हमें लगता है कि अगले एक या दो महीने में, स्थिति स्पष्ट हो सकती है’.

तृणमूल ख़ासकर त्रिपुरा, मेघालय, और गोवा जैसे छोटे सूबों में, अपनी स्थिति मज़बूत करने की कोशिश करने में लगी है. लेकिन उसका ये विस्तार मुख्य रूप से कांग्रेस की क़ीमत पर हो रहा है.

टीएमसी कांग्रेस पर अपने हमले भी तेज़ कर रही है, और पार्टी महासचिव तथा ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने, पिछले हफ्ते आरोप लगाया कि कांग्रेस, बीजेपी से टक्कर लेने के लिए कुछ नहीं कर रही है.

लेकिन टीएमसी नेताओं का कहना है, कि उनकी पार्टी कांग्रेस को कमज़ोर नहीं कर रही, बल्कि ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का अपना दर्जा बनाए रखने के लिए, दूसरे राज्यों में अपना विस्तार करना चाह रही है.

पश्चिम बंगाल मंत्री और वरिष्ठ टीएमसी नेता सुब्रत मुखर्जी ने कहा, ‘अपना राष्ट्रीय दर्जा बनाए रखने के लिए, तृणमूल को कुछ राज्यों में चुने हुए सदस्यों की ज़रूरत है. हम वही हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘जहां तक 2024 में कांग्रेस-तृणमूल में समीकरण की बात है, तो वो उसी से तय होगा कि आगामी प्रदेश चुनावों के नतीजे कैसे रहते हैं. हमें उन सूबों में अपनी जगह बनानी है, जहां क्षेत्रीय पार्टियां बहुत मज़बूत नहीं हैं’.

राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बनाए रखने की लड़ाई

सितंबर 2016 में भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने, तृणमूल कांग्रेस को एक राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर दिया था. इससे पहले तृणमूल को चार सूबों- पश्चिम बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा, और अरुणाचल प्रदेश- में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ था.

तृणमूल ने इन सभी सूबों में चुनाव लड़े. 2009 में उसे अरुणाचल में पांच विधायक मिल गए, और 2012 में मणिपुर में उसके सात विधायक हो गए. 2018 में उसने त्रिपुरा में चुनाव लड़ा, लेकिन खाता नहीं खोल सकी. 2009 और 2016 के बीच तृणमूल, तीन पूर्वोत्तर राज्यों में एक प्रदेश पार्टी बन गई, और 2016 में उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया.

लेकिन, तृणमूल ने इन राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा खो दिया, क्योंकि वो मणिपुर में केवल एक सीट जीत पाई, जिससे उसका वोट शेयर 2012 में 17 प्रतिशत से घटकर, 2017 में 1.4 प्रतिशत पर आ गया. अरुणाचल में उसने चुनाव नहीं लड़ा.

2019 के आम चुनावों के बाद, ईसीआई ने तृणमूल को नोटिस जारी करके पूछा, कि राष्ट्रीय पार्टी का उसका दर्जा क्यों न वापस ले लिया जाए, क्योंकि वो चार सूबों में कम से कम छह प्रतिशत वोट हासिल नहीं कर पाई.

तृणमूल ने, जो उस समय तीन वर्ष पुरानी एक राष्ट्रीय पार्टी थी, 2024 चुनावों तक का समय मांगा, और दावा किया कि राष्ट्रीय पार्टी बने रहने की ईसीआई की शर्तों पर पूरा उतरने के लिए, उसे लगातार दो आम चुनावों में मौक़ा मिलना चाहिए.

इलेक्शन सिंबल्स (रिज़र्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 2017, के अनुसार किसी पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा तब मिलता है, जब उसके उम्मीदवारों को चार या उससे अधिक राज्यों में, कम से कम छह प्रतिशत वोट हासिल हों, और लोकसभा में उसके कम से कम चार सांसद हों.

तृणमूल को अब तीन और राज्यों में प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है, और इसके लिए उसने असम, त्रिपुरा, मेघालय, और गोवा को लक्ष्य बनाया है.

लेकिन ऐसा ज़ाहिर होता है कि उसका ये विस्तार, कांग्रेस की क़ीमत पर हो रहा है.

असम की पूर्व कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव, और गोवा विधायक फलेरो के बाद, जो नवंबर 1998 और नवंबर 1999 के बीच कुल मिलाकर आठ महीने गोवा के मुख्यमंत्री रहे थे, तृणमूल अब कांग्रेस विधायक और पूर्व मेघालय मुख्यमंत्री, मुकुल संगमा के साथ बातचीत कर रही है.

तृणमूल सांसद सौगत रॉय ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस में खलबली मची हुई है. प्रदेश इकाइयां ताश के पत्तों की तरह बिखर रही हैं. उनके नेता हमारे पास आकर पार्टी में शामिल हो रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं भी लंबे समय तक कांग्रेस में रहा था, लेकिन ये कांग्रेस अलग है. उनके पुराने नेता भी खुलकर नेतृत्व की आलोचना कर रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘तृणमूल विस्तार मोड में है. हमें राष्ट्रीय स्तर पर जगह बनानी है, और हम वही कर रहे हैं. मैं जानता हूं कि इसमें समय लगेगा, लेकिन हमें कहीं से तो शुरूआत करनी ही है. उन्होंने आगे कहा, ‘ममता अब एक विश्वसनीय राष्ट्रीय चेहरा बनकर उभर रही है. अलग अलग सूबों के वरिष्ठ राजनेता उनके पास जमा हो रहे हैं. हम उनका शिकार नहीं कर रहे हैं; वो स्वयं हमारे साथ आ रहे हैं. मुझे लगता है कि सोनिया जी इसे देखेंगी. राजनीतिक समीकरण बनने में समय लगता है.

कांग्रेस ने चुप्पी साधी

पिछले पखवाड़े में तृणमूल कांग्रेस, ख़ासकर उसके राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने, कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उसे एक ‘बेअसर’ पार्टी क़रार दिया है, जो ‘काम नहीं करती’ और ‘अपनी आरामदायक स्थिति में बने रहना चाहती है’.

ये हमला उसके बाद हुआ है, जब ममता बनर्जी दो महीने पहले दिल्ली आईं थीं, और सोनिया व राहुल गांधी के साथ उनकी मुलाक़ात के बाद, विपक्षी एकता का संकल्प लिया गया था.

उनकी पार्टी का मुखपत्र जागो बांग्ला अपने संपादकीयों में, पार्टी को एक ‘सर्कस’ कहता है, और कहा है कि उसने देश को ‘फेल’ कराया है. मुखपत्र ममता बनर्जी को ‘राष्ट्रीय विपक्ष के चेहरे’ के तौर पर भी पेश करता है.

लेकिन अभी तक, अधीर रंजन चौधरी जैसे कुछ वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को छोड़कर, पार्टी के पुराने नेता मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं.

दिप्रिंट ने टेक्स्ट और व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए, कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से संपर्क करके इस विषय पर उनके विचार जानने चाहे, जिनमें जी-23 के कुछ सीनियर सदस्य भी शामिल थे.

चिदंबरम, जयराम रमेश और अभिषेक मनु सिंघवी ने जवाब देते हुए कहा, वो इस स्थिति पर कुछ नहीं कहना चाहेंगे.

दिप्रिंट ने कपिल सिब्बल और शशि थरूर समेत कई जी-23 नेताओं से टेक्स्ट के ज़रिए संपर्क किया, लेकिन अभी तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

पार्टी महासचिव रणदीप सिंह सिंह सुरजेवाला ने जवाब देते हुए कहा, ‘ये ठीक है’.

एक वरिष्ठ एआईसीसी सदस्य और सांसद ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस अपना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाने की कोशिश कर रही है. 2019 में, निर्वाचन आयोग ने कहा था कि तृणमूल और सीपीआई, राष्ट्रीय पार्टी का अपना दर्जा गंवा सकती हैं, जिसके लिए दोनों पार्टियों ने 2024 चुनावों तक का समय मांगा था.

उन्होंने आगे कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस के पास यही एक विकल्प बचा है, कि वो कांग्रेस से कुछ नेताओं को ले ले, और कुछ छोटे राज्यों में ब्रांच कार्यालय खोल ले, जहां कांग्रेस इकाइयों को ठीक से संभाला नहीं जा रहा है. इसलिए ममता बनर्जी प्रशांत किशोर की सहायता से, त्रिपुरा, गोवा, और मेघालय जैसे राज्यों को लक्ष्य बना रही हैं. हमारे वरिष्ठ नेताओं को इन सूबों की चिंता नहीं है’.

पश्चिम बंगाल कांग्रेस प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने, ममता बनर्जी पर हमला बोलते हुए कहा कि वो एक ‘झगड़ालू’ राजनेता हैं, जो ‘गठबंधन राजनीति के लिए कभी भी फिट नहीं हैं’. उन्होंने आगे कहा कि ममता बनर्जी एक ‘आरएसएस एजेंट’ की तरह काम कर रही हैं, जो कांग्रेस और विपक्षी एकता को नुक़सान पहुंचाकर बीजेपी की मदद करती हैं. उन्होंने कहा, ‘सोनिया जी और राहुल जी कभी इतना नीचे नहीं गिरेंगे. इसलिए वो उनके खिलाफ कभी नहीं बोलेंगे. हमारा मुख्य उद्देश्य 2024 में बीजेपी को बाहर करना है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए क्लिक करें)

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