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Friday, 20 December, 2024
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राखीगढ़ी में मिले कंकालों की डीएनए सैंपलिंग से आर्यों के आक्रमणकारी होने की थ्योरी को लगा धक्का

शोध में राखीगढ़ी (सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्र) में मिले कंकालों के डीएनए सैंपल की जांच की गई है और इनके डीएनए मध्य एशियन जीन से नहीं मिलते हैं.

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नई दिल्ली : हरियाणा के राखीगढ़ी में मिले कंकालों के डीएनए सैंपलों से पता चला है कि इनका आर्यन के जीन से कोई संबंद्ध नहीं है. हरियाणा में स्थित राखीगढ़ी सिंधु घाटी सभ्यता की जगहों में शामिल है.

राखीगढ़ी में मिले कंकालों पर किए गए अध्ययन का नाम, ‘एन एनसेंट हड़प्पन जीनोम लैक्स एनसेस्ट्री फ्रॉम स्टेपे पेस्टोरेलिस्ट और ईरानी फार्मर्स है.’ इस अध्ययन के दौरान राखीगढ़ी में मिले कंकाल जो 2500 बीसी पुराने बताए जा रहे हैं उन पर शोध किया गया है. यह समय हड़प्पा सभ्यता के दौरान का था.

शुक्रवार को प्रकाशित हुए शोध से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में किसानी जो शुरू हुई थी वो यहां के स्थानीय लोगों से हुई थी न कि पश्चिम से लोग यहां आए थे. स्टेपे में पशुओं को चराने वाले लोगों का एनातोलियन और ईरान के किसानों से संबंद्ध नहीं मिल पाया है. शोध में पता चला है कि वर्तमान समय में मध्य एशिया का स्टेपे जीन भारत के लोगों में मिलता है.

अध्ययन के मुताबिक राखीगढ़ी में मिले कंकालों से पता चलता है कि इनके डीएनए सैंपल का उत्तर-पश्चिम एशिया में सिंधु घाटी सभ्यता के समय के डीएनए सैंपल से ज्यादा मिलान नहीं है.

अध्ययन के मुताबिक आज भी दक्षिण एशिया में एनाटोलियन किसानों के पूर्वजों से संबंधित लोग रहते हैं. ये लोग 2000-1500 बीसीई के दौरान दक्षिण एशिया में फैले हुए थे.

पुरातत्ववेत्ता वसंत शिंदे ने अपने शोध के निष्कर्ष में कहा है, ‘हमने पूरे अध्ययन के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता के समय के कंकालों की जांच की है. इस अध्ययन में भारतीय प्रायद्वीप में फैले किसानों के पूर्वजों के बारे में जांच की गई है. जिससे पता चल सके कि इन किसानों का स्टेपे किसानों और ईरानी किसानों से कोई संबंद्ध है कि नहीं. इस अध्ययन से दक्षिण एशिया में रह रहे लोगों के पूर्वजों के बारे में पता लगाया गया है.’


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स्पष्टीकरण

इस अध्ययन के अंत में स्पष्टीकरण दिया गया है कि हमारे शोध में देखा गया है कि सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े कंकालों में कई तरह की समानता है. लेकिन कुछेक सैंपल के जरिए पूरी सभ्यता के बारे में बता पाना काफी मुश्किल है.

आर्यनों के घुसपैठ की बात को ब्रिटिश के समय में काफी प्रचलित किया गया था. जिसमें कहा गया कि भारत के संभ्रांत लोग मध्य एशिया से आए आर्यन की संतानें हैं. इन लोगों को यूरोपियन लोगों का भी पूर्वज बताया गया था.

देश के ही कई हिंदू संगठन ये दावा करते हैं कि आर्यन बाहर से नहीं आए थे बल्कि ये लोग हमारे असल पूर्वज हैं और इन्होंने ही वेदों की रचना की थी. इनवेशन थ्योरी के मुताबिक वैदिक हिंदूवाद यूरोपियन अप्रवासी लोगों ने विकसित किया था और यह लोग सिंधु घाटी सभ्यता के बाद यहां आए थे.

इस अध्ययन के ड्राफ्ट ने हलचल पैदा कर दी थी

पिछले साल राखीगढ़ी में हुए इस अध्ययन का पहला ड्राफ्ट निकला था. जिसके बाद से ही इस बारे में कई चर्चाएं शुरू हो गई थीं. इस ड्राफ्ट में बताया गया था कि यहां मिले कंकालों में आर1ए1 जीन नहीं पाया गया था.

इस रिपोर्ट के निष्कर्षों पर स्पष्ट तौर से देखें तो यह अध्ययन आर्यन इनवेशन थ्योरी को सही ठहराता है. अध्ययन में पता चला है कि मध्य एशिया के किसी भी पूर्वज के डीएनए से खुदाई में मिले कंकालों के डीएनए का मिलान नहीं हुआ है.

जेनेटिक शोधकर्ता नीरज राय ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि हमारे शोध में किसी भी मध्य एशिया के पूर्वजों के डीएनए का मिलान नहीं हुआ है. इससे पता चलता है कि राखीगढ़ी के रहने वाले लोगों का मध्य एशिया के लोगों से कोई संबंध नहीं है.

शिंदे 2015 से ही राखीगढ़ी में इस अध्ययन के दौरान हुई खुदाई में शामिल रहे हैं. ऐसी खबरों को जिसमें यह कहा जा रहा है कि यह रिपोर्ट आर्यन इनवेशन को सही मानती है, शिंदे इसे खारिज किया हैं.

बहुत सारे लोग मानते हैं कि आर्यन लोग मध्य एशिया से आए थे. लेकिन शिंदे कहते हैं कि इस बात के हमारे पास अभी तक कोई सबूत नहीं है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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