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Monday, 23 December, 2024
होमदेशबॉर्डर पर सेना, हॉस्पिटल में डॉक्टर और बाढ़ में NDRF है फ्रंटलाइन वॉरियर, संकटमोचक बन अबतक डेढ़ लाख को बचाया

बॉर्डर पर सेना, हॉस्पिटल में डॉक्टर और बाढ़ में NDRF है फ्रंटलाइन वॉरियर, संकटमोचक बन अबतक डेढ़ लाख को बचाया

एनडीआरएफ की टीम में इस साल दिसंबर तक महिला संकटमोटक का दल शामिल होने जा रहा है. 61 महिलाओं का दल पूरी तरह से प्रशिक्षित होकर तैयार है.

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नई दिल्ली: बिहार और असम का बड़ा इलाका इस समय बाढ़ से जूझ रहा है. असम के 26 और बिहार के करीब 12 जिले बुरी तरह बाढ़ की चपेट में हैं. बाढ़ के कारण करीब 30 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं, असम में जहां 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है वहीं बिहार में भी मौत का आंकड़ा सैकड़ा पार करने के करीब है.

बहरहाल, बिहार के विभिन्न जिलों में फिलहाल एनडीआरएफ की 21 टीमें बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए तैनात हैं. जबकि असम में 16 टीम मौजूद हैं. और दोनों राज्यों को मिलाकर अब तक डेढ़ से पौने दो लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा चुका है. लेकिन इस बार चुनौती और बड़ी है क्योंकि टीम को बाढ़ के साथ कोविड संकट से भी जूझना पड़ रहा है.

अगर बात करें कि आगे क्या होगा तो एनडीआरएफ के डीजी सत्य नारायण प्रधान का कहना है कि आने वाले समय में बिहार के हालात और भयावह ही होंगे. उन्होंने दिप्रिंट से विशेष बातचीत में कहा, ‘बिहार अभी जिस हालात में हैं वैसी स्थिति तो पिछले साल बारिश के दूसरे या तीसरे चरण के बाद आई थी.’ तेज बारिश और नेपाल की नदियों से पानी छोड़े जाने के कारण बिहार की स्थिति और खराब होने के आसार हैं क्योंकि वैसे भी इस बार मौसम विभाग ने ज्यादा बारिश का पूर्वानुमान जताया है.

प्रधान ने बताया कि पिछले साल तो नवंबर तक एनडीआरएफ की टीम बिहार में बाढ़ राहत कार्य में जुटी थी. साथ ही जोड़ा, ‘और अब जबकि मौसम विभाग ने ज्यादा बारिश का पूर्वानुमान जताया है तो आप सोच सकती हैं कि क्या हालात होने वाले हैं.’

संकटमोचक से लेकर डॉक्टर तक बन जाते हैं जवान

एनडीआरएफ को संकटमोचक बल भी कहा जाता है और उसी तर्ज पर इसके जवान बिहार और असम में बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में जुटे हैं. चाहे दिन हो या रात इनकी टीम बोट से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच रही है और लोगों की जान बचा रही है.

प्रधान ने बताया कि एनडीआरएफ के जवान हर परिस्थिति के लिए प्रशिक्षित किए जाते हैं यही वजह है कि पिछले दिनों एनडीआरएफ की 10वीं बटालियन ने बिहार के पूर्वी चंपारण के गांव गोबरी, बनजारिया में रेस्क्यू बोट पर रीमा देवी की डिलीवरी कराई और उन्होंने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया.

प्रसव के बाद मां और बेटी को अस्पताल पहुंचाने का काम भी एनडीआरएफ ने ही किया. इस वाकये का जिक्र करते हुए प्रधान ने दिप्रिंट को बताया कि यह पहली बार नहीं है जब एनडीआरएफ टीम ने ऐसा कुछ किया हो. 12-14 साल पहले भोजपुर के एक गांव में बाढ़ के दौरान रेस्क्यू टीम ने एक महिला की डिलीवरी में मदद की थी और बाद में उस बच्चे का नाम ही एनडीआरएफ सिंह रख दिया गया. अब वो बच्चा किशोर हो चुका है.

 

बिहार एक गांव में बाढ़ पीड़ित एक परिवार को सुरक्षित निकालते हुए एनडीआरएफ के जवान/फोटो: एनडीआरएफ
बिहार एक गांव में बाढ़ पीड़ित एक परिवार को सुरक्षित निकालते हुए एनडीआरएफ के जवान/फोटो: एनडीआरएफ

एसएन प्रधान कहते हैं, ‘एनडीआरएफ बचाव दल में शामिल एक-एक जवान को स्वास्थ्य सुरक्षा से लेकर राहत एवं बचाव तक हर कार्य के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. यहां तक कि अगर कोई डूब रहा है तो उसके बचाव के लिए पूरी तरह ट्रेंड किया जाता है. हमारे जवान जब फील्ड पर हैं तो वो एक नवजात से लेकर बुजुर्ग तक की हिफाजत करते हैं. कई बार तो इन्हें रात को भी रिमोट एरिया में जाना पड़ता है. इस बार भी बाढ़ में फंसे लोगों को सांप- बिच्छू के काटने जैसे कई मामले सामने आए हैं.

कितनी बड़ी चुनौती

फिलहाल एनडीआरएफ में 15000 हजार जवान हैं और 261 टीमें हैं. कोविड-19 संक्रमण इस बार एनडीआरएफ के जवानों के लिए बहुत बड़ा चैलेंज हैं. हालांकि टीम सुरक्षा के सारे मानकों के साथ फील्ड में है लेकिन अम्फन तूफान के दौरान पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बचाव दल के साथ 100 से अधिक जवान संक्रमित हो गए थे. उस समय तो जवानों में थोड़ी हिचकिचाहट थी लेकिन सभी 100 के 100 जवान ठीक होकर अब फिर ड्यूटी पर हैं और उनमें से कई बाढ़ में फंसे लोगों की दोगुने जोश के साथ मदद कर रहे हैं.

दिप्रिंट के ये पूछने पर एनडीआरएफ में क्या कमियां है, प्रधान ने बिना हिचकिचाए जवाब दिया. ‘हमारा ब्रेड एंड बटर तो बाढ़ और तूफान हैं जिससे हम हर साल निपटते हैं और उसमें रह गई कमियां देख हम हर खुद को तैयार भी कर लेते हैं. लेकिन हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या बोरवेल में गिरे बच्चों को बचाने में आती है. हम वहां 50 परसेंट फेल हैं और मैं वहां खुद को लाचार पाता हूं. वहां हमारी एक्सपर्टीज (विशेषज्ञता) नहीं है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘हम सबसे ज्यादा फ्रीक्वेंसी में जिसे डील करते हैं वो है ‘ड्राउनिंग’. सिर्फ ये नहीं कि जो डूब रहा है उसे बचाना है बल्कि जब बॉडी नहीं मिलती है तो उसे खोजने के लिए भी हमें कई बार 1000 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है क्योंकि उस राज्य के डीएम, एसपी, मुख्यमंत्री और सांसद हमसे गुहार लगाते हैं और हमें जाना पड़ता है.’

एनडीआरएफ के जवान असम में गोलपारा जिले में रेसक्यू के दौरान/फोटो: एएनआई

प्रधान ने कहा कि राज्य स्तर पर काम किए जाने की जरूरत है. एनडीआरएफ सचिव से बातचीत हुई है और केंद्र की तरफ से भी दबाव डाला जा रहा है कि राज्य अपने यहां एनडीआरएफ के टक्कर की एसडीआरएफ टीम तैयार करें. बातचीत में प्रधान ने यह भी बताया कि देश में सबसे अच्छी एसडीआरएफ टीम ओडिशा की है और वह एनडीआरएफ के बनने से पहले से काम कर रही है.

हालांकि. प्रधान ने बेबाकी से पहाड़ों पर और स्नो बाउंड एरिया में एनडीआरएफ को कमजोर बताया. उन्होंने कहा कि इन एरिया के लिए हमारी ‘ट्रेनिंग पूरी’ नहीं है. लेकिन जल्द ही जो चार बटालियन शामिल होने वाली हैं उसमें एक जम्मू-कश्मीर के लिए, एक हिमाचल के लिए और एक उत्तराखंड के लिए है, उन्हें पहाड़ों पर कैसे डील करना है उसकी ट्रेनिंग दी जाएगी. इनमें से दो आईटीबीपी से आ रही हैं जो हिमालय क्षेत्र के लिहाज से ट्रेंड होते हैं.

प्रधान ने दिप्रिंट से बातचीत में खुले तौर पर स्वीकारा एनडीआरएफ में काफी कमियां है, तमाम चुनौतियां है, गैप्स हैं और अभी बहुत लंबी दूरी तय करनी है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

प्रधान ने कहा, ‘आईएमडी हमारा बोन है जो एआई का काफी अच्छी तरह से इस्तेमाल कर रहा है. अम्फन तूफान इसका बड़ा उदाहरण है. हम तूफान आने के सात दिन पहले ही वहां पहुंच गए थे जहां तूफान के हिट करने की संभावना बताई गई थी. और, वहीं हिट भी हुआ. हमारी इक्विपमेंट टेक्नोलॉजी बहुत अच्छी है लेकिन डेटा बेस अभी तैयार हो रहा है. प्रधान ने कहा कि डेटा बेस कंप्लीट होना चाहिए.’

उन्होंने आगे बताया, झारखंड में एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान मैंने सारे नक्सल ऑपरेशन का डेटा बेस बनवाया था. जहां से आपको पता चल जाएगा कि ऑपरेशन कैसे हुआ. अब मैं बाढ़ पर ऐसी ही तकनीक का इस्तेमाल करना चाहता हूं जहां हमारा सारा डाटा, वीडियो एक जगह हो. इसमें समय लगेगा लेकिन आने वाले दो सालों में हम टेक्नोलॉजी के स्तर पर भी मोस्ट एडवांस्ड होंगे.

महिलाएं भी होंगी हिस्सा

दिप्रिंट से बातचीत में एनडीआरएफ चीफ ने बताया कि दिसंबर तक हमारी टीम में महिलाओं का संकटमोटक दल भी शामिल होने जा रहा है. 61 महिलाओं का दल पूरी तरह प्रशिक्षण लेकर तैयार है. दो अन्य दलों की ट्रेनिंग अभी चल रही है तो बहुत जल्द अब महिला एनडीआरएफ की टीम भी मैदान में नजर आएगी.

गर्व कीजिए 

यह पूछने पर विश्व स्तर पर भारतीय एनडीआरएफ कहां है, एसएन प्रधान कहते हैं, ‘आप गर्व कीजिए कि एनडीआरएफ दुनिया की अव्वल डिजास्टर मैनेजमेंट फोर्स में से एक है. यह दुनिया में एक ऐसा अनोखा संस्थान है जो सिर्फ आपदा के लिए ही काम करता है और अकेला सबसे बड़ा बल है. अमेरिका के पास भी इतनी बड़ी फोर्स नहीं है. वह वालंटियर बेस्ड है.’

उन्होंने बताया कि जब 2006 में इस बल का गठन किया गया तो संयुक्त राष्ट्र की 310 इक्विपमेंट की चेकलिस्ट को हूबहू एडॉप्ट किया गया था. इसके मैन्युल, प्रोटोकॉल और मैन्युअल्स विश्वस्तरीय हैं. संयुक्त राष्ट्र ने तो ऐसी इच्छा भी जताई है कि एनडीआरएफ यूएन के तत्वाधान में कुछ टीम बनाए जो की आपदा की स्थिति में विश्व के किसी भी देश में जा सकें. प्रधान ने कहा, ‘ जो गैप्स हमारे यहां है वही गैप्स दूसरी जगह भी हैं.

किन किन जिलों में कितनी एनडीआरएफ टीम मौजूद हैं/ फोटो: एनडीआरएफ

उन्होंने कहा, ‘हमारी यूएसपी है कि हम ‘स्टैंड एलोन’ फोर्स हैं. जिसमें सारी स्किल्स एक जगह हैं.एक ही बंदा वर्टिकल रेस्क्यू, अंडर वाटर रेस्क्यू, मेडिकल फर्स्ट एड पर्सन भी बन सकता है.कोलैप्स स्ट्रक्चर रेस्क्यू भी करता है. ये यूनिक है और यह दुनिया की किसी भी फोर्स में नहीं है.

‘हमारी क्षमताओं को देखते हुए यूनाइटेड नेशन्स ने भी हमारे दल को बुलाया है. और बहुत जल्दी आप देखेंगी की यूएन के बचाव दल के साथ भारत का दल भी होगा और उसके बैच, कैप और शोल्डर पर भारतीय तिरंगा होगा.’

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