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Tuesday, 5 November, 2024
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कैसे सदियों पुरानी एक परंपरा मध्यप्रदेश के आदिवासी गांवों में टीकाकरण को गति दे रही है

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में टीके को लेकर हिचकिचाहट और कोविड शॉट्स के बारे में भ्रामक सूचनाएं काफी ज्यादा फैली हैं. लेकिन प्रशासन ने इससे निपटने के लिए एक पुरानी रवायत का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है.

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झाबुआ, मध्य प्रदेश: ‘वैक्सीन सरकार की एक साजिश है.’ ‘टीके प्रजनन क्षमता खत्म करते हैं.’ ‘टीके एक टाइम बम की तरह हैं और जो कोई भी टीका लगवाएगा कुछ ही महीनों में मर जाएगा.’ मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में जिले के तमाम अधिकारी और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता स्थानीय लोगों, जिनमें अधिकांश दिहाड़ी मजदूर हैं, से ऐसी बातें सुनने के आदी हैं.

अप्रैल-मई के आस-पास जब देश में कोविड की दूसरी लहर चरम पर थी, झाबुआ में तमाम अधिकारियों ने यहां के निवासियों को टीका लगवाने की पूरी कोशिश की. लेकिन लोगों के पूर्वाग्रह के कारण उन्हें कड़ा प्रतिरोध झेलना पड़ा.

झाबुआ में अब तक कुल 7,683 कोविड केस सामने आए हैं और 63 मौतें हुई हैं. पिछले एक हफ्ते में कोई नया मामला नहीं आया है.

झाबुआ के जिला मजिस्ट्रेट सोमेश मिश्रा ने कहा, ‘हम (गांवों में) टीकाकरण शिविर लगाएंगे लेकिन शायद ही कोई आए, क्योंकि टीकों के बारे में अफवाहें फैलती रहती हैं.

लोगों का रुख देखने के बाद ही जिले के अधिकारियों ने टीकाकरण को लेकर सभी मिथक तोड़ने के लिए ‘खाटला बैठक’ की अवधारणा को अपनाने का फैसला किया है.

झाबुआ की मेघनगर तहसील के सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) आकाश सिंह बताते हैं, ‘झाबुआ में खाटला बैठक की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इन अनौपचारिक बैठकों में गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों के साथ बैठकर उनके विवादों को सुलझाते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमने महसूस किया कि जनता के साथ करीबी दर्शाते हुए बातचीत करने और उनकी सभी शंकाओं को दूर करने के लिए यह एक अच्छा माध्यम हो सकता है.’

‘खाटला बैठक’ का सामान्य का मतलब लकड़ी की खाट पर बैठकर की जाने वाली बैठक से है.

जून की शुरुआत से एसडीएम सिंह जिले भर की ग्राम पंचायतों में ऐसी एक दर्जन के करीब बैठकों का आयोजन कर चुके हैं. प्रशासन ने आदिवासी कलाकारों को टीके के प्रति जागरूकता फैलाने वाले शॉर्ट वीडियो का हिस्सा भी बनाया है.

नतीजा यह हुआ कि जिले के टीकाकरण के आंकड़ों में सुधार नजर आने लगा है. मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि मई में जिले में हर दिन 1,800 और 2,100 के बीच टीके लगाए जा रहे थे, लेकिन खाटला बैठक शुरू होने के बाद से झाबुआ में हर दिन लगभग 4,000 टीके लगाए जाने की रिपोर्ट मिल रही है. 24 जून को जिले ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए और एक दिन में 10,000 टीकाकरण का आंकड़ा दर्ज किया.

रविवार 20 जून को दिप्रिंट ने सिंह और उनकी टीम के साथ जिले के ग्वाली गांव में ऐसी ही एक बैठक में हिस्सा लिया. इसकी जानकारी फैल चुकी थी और बड़ी संख्या में ग्रामीण यहां पहुंचे थे, वे टीकाकरण अभियान के बारे में अपनी तमाम शंकाओं का समाधान चाहते थे.

झाबुआ के मेघनगर तहसील के उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) आकाश सिंह, एक ग्रामीण के साथ खटला बैठक में | निर्मल पोद्दार/ दिप्रिंट

खाटला बैठक में शंकाओं का समाधान

आकाश सिंह जिस खाट पर बैठे थे, उसके आसपास जमा ग्रामीणों से उनका पहला सवाल था, ‘आपमें से कितने लोगों ने अभी तक टीका लगवाया है?’

सिर्फ तीन लोगों ने हाथ खड़े किए, सब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता.

इस दौरान ‘गुड कॉप-बैड कॉप’ जैसा प्रदर्शन करते हुए एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जिनीत मेदा ने आकाश सिंह से शिकायत की कि जब भी उन्होंने ग्रामीणों को टीकाकरण के लिए मनाने की कोशिश की, तो बदले में उन्हें खरी-खोटी बातें ही सुनने को मिलीं.

मेदा ने आगे कहा, ‘वो कहते हैं कि मैं तो सरकारी पेरोल पर हूं, इसलिए उन्हें टीका लगवाने की कोशिश कर रही हूं. उन्हें लगता है कि टीके उनकी जान ले लेंगे या प्रजनन क्षमता कम कर देंगे.’

इसके जवाब में आकाश सिंह ने टीकाकरण के लाभों को गिनाने के बजाये आश्वासन और सहानुभूति के स्वर में खुद का उदाहरण सामने रखा.

उन्होंने कहा, ‘मुझे देखो, मैं तुम्हारे सामने बैठा हूं. मुझे टीके की दोनों खुराकें लग चुकी हैं और इस खाट पर बैठे अन्य सभी अधिकारियों को भी. अगर अफवाहें सच होतीं, तो हम जिंदा नहीं होते और आपसे बात नहीं कर रहे होते.’

अगले एक घंटे में उन्होंने टीकाकरण को लेकर तमाम संदेहों और आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की. बीच-बीच में वह ग्रामीणों को खुलकर अपनी बात कहने देते. इसका उद्देश्य कोई आधिकारिक बयान देने के बजाये एक अच्छे माहौल में बिना हिचक खुलकर सारी बातें करना था.

उन्होंने वहां भीड़ में मौजूद करीब 20 वर्षीय एक युवक से कहा, ‘क्या आप टीका लगवाएंगे? नहीं? क्यों? क्या आप शक्तिमान हैं कि वायरस आपको नहीं मारेगा? यह वायरस शक्तिमान को भी मार सकता है.’

कई बार ग्रामीणों की झिझक या गलतफहमी धार्मिक भावनाओं से भर जाती थी और इस दौरान सिंह को उनसे बातचीत करते में काफी चतुराई से काम लेना पड़ता था.

सिंह ने नुकीली टोपी पहने एक बूढ़े ग्रामीण से सवाल किया, ‘आपने सेना की टोपी (सैन्य पोशाक के कैमोफ्लाज प्रिंट वाली) पहन रखी है लेकिन टीकों से डरते हैं. क्यों? सेना के जवान इतने मजबूत होते हैं कि वे टीकों से नहीं डरेंगे.’

एक ग्रामीण रिजू कुमार ने कहा कि उसने तो अपनी जिंदगी ‘भगवान भरोसे’ छोड़ दी है.

इसके जवाब में आकाश सिंह ने कहा, ‘यदि आप सड़क पर खड़े हैं और एक कार तेज गति से आपकी ओर आ रही है तो आप सड़क से हट जाएंगे, है ना? आप वहां खड़े तो नहीं रहेंगे. भगवान तो यही चाहेंगे कि आप वहां आगे बढ़ें और अपना जीवन बचाएं. टीका भी बस इसी तरह है.’

ग्रामीणों और जिले के तमाम अधिकारियों के बीच काफी समय तक चले बहस-मुबाहिसे के आखिर में आकाश सिंह ने फिर स्थानीय लोगों से पूछा कि क्या वे टीका लगवाएंगे. इस बार सभी ने सहमति में हाथ उठाया.

बढ़ते आंकड़े

जिले के अधिकारियों के मुताबिक जिन गांवों में खाटला बैठक आयोजित की गई है, वहां टीकाकरण के आंकड़ों में लगातार बढ़े हैं.

झाबुआ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) जयपाल सिंह ठाकुर ने कहा, ‘खाटला बैठक ने आम लोगों के बीच हमारी पैठ बनाने और टीकाकरण के आंकड़े सुधारने में काफी मदद की है.’

मांडली गांव में मार्च-जब पहली बार यहां टीकाकरण शिविर लगाए गए थे- से लेकर 31 मई तक केवल 50 लोगों को टीका लगाया गया था. लेकिन एक बार जब खाटला बैठक आयोजित हो गई तो 15 जून तक यह आंकड़ा 270 से अधिक हो गया, 200 से ज्यादा लोगों को तो टीका केवल दो हफ्तों में लगा है.

झाबुआ के ही एक अन्य गांव गुजरपारा में ऐसी पहली खाटला बैठक 2 जून को हुई थी. उस समय तक गांव में रोजाना भेजी जाने वाली शीशियों में से करीब 10 फीसदी का ही इस्तेमाल होता था. लेकिन बैठक के अगले दिन 3 जून को गांव में टीकाकरण सौ फीसदी सफल रहा, और वहां भेजी जा रही सभी शीशियों का इस्तेमाल होने लगा.

टीका जागरूकता बढ़ाने के लिए एक फिल्म की स्क्रीनिंग |निर्मल पोद्दार/ दिप्रिंट

जिले में 25 जून तक 1,20,000 लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक मिल चुकी है, जहां 18 साल से ज्यादा उम्र वालों की कुल आबादी 7.5 लाख है.

ठाकुर ने कहा, ‘हमें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन खाटला बैठक टीकाकरण की दर सुधारने में हमारी मदद कर रही है।”

झाबुआ के टीकाकरण के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से बनाई जाने वाली लघु फिल्मों को यहां के आदिवासी कलाकारों को भी शामिल किया है.

झाबुआ के एक निवासी कृपाल सिंह ने ऐसी ही एक फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान दिप्रिंट को बताया, ‘इन्हें देखने और खाटला बैठक में हिस्सा लेने से टीकों के बारे में हमारे बहुत सारे संदेह दूर हो गए हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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