scorecardresearch
Saturday, 16 November, 2024
होमदेशभारत को 2026 तक नक्सल-फ्री करना चाहते हैं अमित शाह, छत्तीसगढ़ में बैठक के दौरान बनी योजना

भारत को 2026 तक नक्सल-फ्री करना चाहते हैं अमित शाह, छत्तीसगढ़ में बैठक के दौरान बनी योजना

रायपुर में एक उच्च स्तरीय बैठक में गृह मंत्री ने नक्सल गतिविधियों पर भाजपा सरकार और राज्य पुलिस की कार्रवाई की प्रशंसा की और उन्हें आश्वासन दिया कि उन्हें 20 दिनों के भीतर आवश्यक संसाधन मिल जाएंगे.

Text Size:

नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ पुलिस को आश्वासन दिया है कि नक्सल गतिविधियों पर उनकी चल रही कार्रवाई के लिए उन्हें हथियार या दूरसंचार उपकरण जैसे सभी संसाधन 20 दिनों के भीतर उपलब्ध करा दिए जाएंगे.

शनिवार को मीडिया से बात करते हुए शाह ने इस बात पर जोर दिया कि अब देश में नक्सल समस्या पर “अंतिम प्रहार” करने का समय आ गया है और इस मुद्दे से निपटने के लिए “मजबूत और निर्मम रणनीति” की जरूरत है.

शाह छत्तीसगढ़ के रायपुर में वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) पर एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करने के बाद प्रेस से बात कर रहे थे, जहां उन्होंने मार्च 2026 तक भारत को “नक्सल मुक्त” बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया. बैठक से अवगत अधिकारियों ने कहा कि गृह मंत्री सीमावर्ती क्षेत्रों में अभियान चलाने की किसी भी योजना के लिए राज्य पुलिस बलों के साथ सहयोग करने के बारे में बहुत “स्पष्ट” हैं.

बैठक में शामिल एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि माओवादी सुरक्षा बलों से बचने के लिए राज्यों के बीच सीमाओं पर खामियों का फायदा उठाते हैं, और अन्य सुरक्षा एजेंसियों और बलों के साथ सहयोग बढ़ाने और खुफिया संचार के सुचारू हस्तांतरण पर जोर दिया गया ताकि बेहतर तैयारी और संचालन की योजना बनाई जा सके.”

शाह ने कहा कि वर्ष 2022, चार दशकों में पहला वर्ष होगा जब हताहतों की संख्या 100 से नीचे आ गई. इसके अतिरिक्त, 2014 से 2024 के दशक में वामपंथी उग्रवाद की सबसे कम घटनाएं दर्ज की गईं और इस अवधि के दौरान शीर्ष 14 नक्सली नेताओं को निष्प्रभावी कर दिया गया.

उन्होंने कहा, “2004 से 2014 के बीच 16,463 घटनाएं दर्ज की गईं और 2014 से 2024 के बीच 7,744 घटनाएं दर्ज की गईं, जो 53 प्रतिशत की महत्वपूर्ण गिरावट को दर्शाता है. 2004-2014 के बीच सुरक्षा बलों और नागरिकों के बीच 6,617 हताहत हुए, जो 70 प्रतिशत कम है.”

उन्होंने कहा- इसके अलावा, सुरक्षा बलों के हताहतों की संख्या में 73 प्रतिशत की कमी आई, जबकि वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं के कारण नागरिकों की मृत्यु में 69 प्रतिशत की कमी आई.

गृह सचिव गोविंद मोहन और खुफिया ब्यूरो के निदेशक तपन डेका के अलावा, बैठक में छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) ने भाग लिया. झारखंड का प्रतिनिधित्व एक अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रैंक के अधिकारी ने किया.

ऊपर उद्धृत अधिकारी के अनुसार, शाह ने नक्सल प्रभावित राज्यों के डीजीपी और मुख्य सचिवों को नक्सलियों की आवाजाही के साथ-साथ उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में विकास पर “निरंतर निगरानी” रखने को कहा है.

उन्होंने डीजीपी से हर हफ्ते नक्सल विरोधी अभियानों में शामिल अधिकारियों से मिलने को भी कहा, जबकि मुख्य सचिवों को हर 15 दिन में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों की समीक्षा करने का काम सौंपा गया है.

बैठक में मौजूद एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी कई बैठकें पहले से ही हो रही हैं, जहां माओवादी समस्या अभी भी मौजूद है, लेकिन अब जब इस तरह की उच्च स्तरीय बैठक में बैठक की समयसीमा और एसओपी पर चर्चा हो चुकी है, तो अब यह नक्सल प्रभावित राज्यों में नीति बन जाएगी.”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में शाह ने घोषणा की कि विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार अगले एक या दो महीने में नई आत्मसमर्पण नीति पेश करेगी. इस नीति का उद्देश्य नक्सली कैडरों को समाज में फिर से शामिल होने का अंतिम अवसर प्रदान करना है.

एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस नीति पर गृह मंत्रालय स्तर पर विचार-विमर्श किया जाएगा और यह नक्सलियों के लिए एक अद्यतन राष्ट्रव्यापी आत्मसमर्पण नीति बन सकती है. विवरण से अवगत एक अधिकारी ने कहा, “जैसे ही छत्तीसगढ़ सरकार, गृह मंत्रालय द्वारा सशक्त होकर, आत्मसमर्पण नीति को अंतिम रूप देगी, केंद्र इसकी समीक्षा करेगा और संभवतः इसे राष्ट्रीय नीति के रूप में अपनाएगा.”

उनके धन प्रवाह को रोकना

बैठक के दौरान माओवादियों के वित्त पोषण पर चर्चा का मुख्य विषय रहा. अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य के अधिकारियों से माओवादियों को मिलने वाली वित्तीय सहायता को रोकने के लिए विशिष्ट विचार और नीतियां प्रदान करने के लिए कहा गया.

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने पहले ही माओवादियों से संबंधित कई मामलों को, जिनमें उनके वित्त से जुड़े मामले भी शामिल हैं, गृह मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया है.

बैठक में शाह ने सभी राज्यों से प्रत्येक राज्य में माओवादियों को वित्तपोषित करने वाले बुनियादी ढांचे और सपोर्ट नेटवर्क पर “पूरी तरह से हमला” करने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया.

शाह ने वामपंथी उग्रवाद के मामलों में एनआईए को शामिल करने के महत्व पर जोर दिया और सुझाव दिया कि वर्तमान में पुलिस बलों द्वारा संभाले जा रहे ऐसे सभी मामलों को एनआईए को सौंप दिया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, जांच और अभियोजन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को एनआईए विशेषज्ञों से प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए जो आतंकवाद के वित्तपोषण के मामलों में विशेषज्ञ हैं.

अधिकारियों ने यह भी बताया कि प्रत्येक नक्सल प्रभावित राज्य में एक राज्य जांच एजेंसी स्थापित करने के बारे में चर्चा हुई. ये एजेंसियां ​​एनआईए का समर्थन करने वाले नोडल निकायों के रूप में कार्य करेंगी, जो कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मार्च में माओवादी मामलों को विशेष रूप से संबोधित करने के लिए स्थापित एसआईए के समान हैं.

छत्तीसगढ़ की हुई तारीफ़

गृह मंत्री ने बैठक में मौजूदा राज्य सरकार की भी तारीफ़ की, साथ ही आरोप लगाया कि भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान नक्सल विरोधी अभियान धीमा पड़ गया था.

शाह ने कहा, “जब से [भाजपा] सरकार सत्ता में आई है, तब से गिरफ़्तारियाँ, आत्मसमर्पण, न्यूट्रलाइज़ेशन और विकास की संख्या में वृद्धि हुई है.”

बैठक में मौजूद अधिकारियों ने बताया कि बैठक में शामिल सुरक्षा प्रतिष्ठान के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी माओवादियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ के अभियान की सराहना की.

एक अधिकारी ने कहा, “छत्तीसगढ़ माओवादियों की लगभग 80 प्रतिशत समस्या से निपट रहा है और इसलिए छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों की सफलता और विफलता दोनों का लाल सेना के खिलाफ केंद्र की लड़ाई पर असर पड़ेगा. इसलिए, कार्रवाई और अभियान की सराहना की गई.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

share & View comments