नई दिल्ली: नॉर्थईस्ट में भारत की ऊर्जा सुरक्षा को एक बड़ा बढ़ावा मिलने वाला है.
सरकारी स्वामित्व वाली नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) ने अरुणाचल प्रदेश-असम सीमा के पास नॉर्थ लखीमपुर में सुबनसिरी लोअर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की 250 मेगावाट (एमडब्ल्यू) की एक इकाई के कमीशनिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी है. एनएचपीसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी.
यह कदम एनएचपीसी के तहत लंबे समय से अटके इस प्रोजेक्ट के लिए एक बड़ी सफलता है. एनएचपीसी देश की सबसे बड़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर डेवलपर कंपनी है.
सुबनसिरी नदी, जो ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है, पर बने इस रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट में कुल आठ इकाइयां होंगी, जिनकी स्थापित क्षमता 2,000 मेगावाट होगी. इसके अगले साल के मध्य तक पूरा होने पर यह भारत की सबसे बड़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स (जलविद्युत परियोजनाओं) में से एक होगी.
इस परियोजना में देरी का कारण स्थानीय समुदायों के विरोध और भूस्खलन जैसे पर्यावरणीय कारण रहे हैं. देरी की वजह से इसकी लागत 2002 में 6,285 करोड़ रुपये से बढ़कर अब 26,075 करोड़ रुपये हो गई है.
हालांकि, भारत के जलविद्युत क्षेत्र में यह नई प्रगति इसलिए भी जरूरी है क्योंकि चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र (जिसे वहां यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है) पर दुनिया की सबसे बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बना रहा है.
अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तावित 11,200 मेगावाट की अपर सियांग बहुउद्देश्यीय परियोजना चीन के इस मेगा डैम का जवाब मानी जाती है. लेकिन स्थानीय विरोध के कारण यह अभी भी रुकी हुई है.
एनएचपीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “सुबनसिरी परियोजना की 250 मेगावाट इकाई की वेट कमीशनिंग शुरू हो गई है और इसे राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ा जा रहा है. यूनिट-1 की पूरी कमीशनिंग के लिए आगे परीक्षण जारी हैं. इसके बाद तीन अन्य इकाइयों की कमीशनिंग चरणबद्ध तरीके से की जाएगी.”
सभी चार इकाइयों का व्यावसायिक संचालन एक के बाद एक नवंबर के अंत से 31 दिसंबर 2026 तक पूरा होने की संभावना है.
सुबनसिरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स को मूल रूप से 2014 में पूरा होना था.
ऑपरेशनल क्लीयरेंस
“यूनिट-1 के सफल वेट कमीशनिंग के साथ राष्ट्रीय ग्रिड से सिंक्रोनाइज़ेशन शुरू हो गया है. जल्द ही तीन और 250-मेगावॉट यूनिट्स जोड़ी जाएंगी, जिससे इस साल कुल 1,000 मेगावॉट की क्षमता बढ़ेगी,” एनएचपीसी ने शुक्रवार को एक्स पर पोस्ट करते हुए इस ऐतिहासिक पल को चिह्नित किया.
पोस्ट में आगे कहा गया, “पूरा होने पर, सुबनसिरी लोअर एचईपी (8×250 मेगावॉट) भारत का सबसे बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावरहाउस बनेगा, जो लाखों घरों को रोशनी देगा और देश की ऊर्जा सुरक्षा व सतत विकास को आगे बढ़ाएगा.”
सुबनसिरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की चार यूनिट्स दिसंबर तक व्यावसायिक रूप से काम शुरू कर देंगी, जबकि बाकी चार यूनिट्स—जो निर्माण के उन्नत चरण में हैं—मई 2026 तक तैयार होने की संभावना है.
नेशनल डैम सेफ्टी अथॉरिटी (एनडीएसए) के चेयरमैन अनिल जैन ने दिप्रिंट को सुबनसिरी प्रोजेक्ट की चार यूनिट्स को मिली मंजूरी की पुष्टि की.
अप्रैल 2025 में, एनएचपीसी ने पहली बार जलाशय भरने की अनुमति मांगी थी, जिसके बाद एनडीएसए ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की.
समिति के सदस्यों ने परियोजना स्थल का तीन बार दौरा किया और बांध की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एनएचपीसी को अपग्रेडेशन कार्य करने की सिफारिश की.
“एनएचपीसी ने इन सिफारिशों का पालन किया, जिसके बाद पिछले महीने बांध सुरक्षा प्राधिकरण से शुरुआती भराव के लिए मंजूरी मिली,” जैन ने कहा.
किसी भी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई (पीएसयू) द्वारा बनाए गए बांध के व्यावसायिक संचालन से पहले एनडीएसए की मंजूरी अनिवार्य होती है.
‘शुरुआत’ से देरी में फंसना
सुबनसिरी परियोजना अपनी शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण चरणों से गुजरती रही है.
स्थानीय लोगों के बड़े विरोध से लेकर बार-बार आने वाले भूस्खलन तक, जिसने काम रोक दिया, परियोजना में देरी हुई और लागत में काफी बढ़ोतरी हुई.
परियोजना को सितंबर 2003 में टेक्नो-इकोनॉमिक मंजूरी मिली थी. इसका मतलब है कि 125 मीटर ऊंचे कंक्रीट ग्रेविटी बांध और प्रत्येक 250 मेगावॉट की आठ यूनिट वाले सतही पावरहाउस के निर्माण को मंजूरी दी गई थी.
बांध का निर्माण 2008 में शुरू हुआ, लेकिन दिसंबर 2011 में स्थानीय लोगों के तीव्र विरोध के बाद इसे रोक दिया गया.
विरोध जारी रहने के दौरान, 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में निर्माण के खिलाफ एक याचिका दायर की गई. यह मामला 2019 तक चला.
इस बीच, विद्युत मंत्रालय द्वारा गठित कई तकनीकी समितियों ने परियोजना की समीक्षा की. 2012 में गठित तकनीकी समीक्षा समिति ने 2013 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जबकि बांध डिजाइन समीक्षा पैनल और परियोजना निगरानी समिति की रिपोर्ट क्रमशः 2014 और 2016 में सौंपी गई.
इसके अलावा, एनजीटी द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने 2019 में अपनी रिपोर्ट में काम फिर से शुरू करने का निर्देश दिया, जिसके बाद नवंबर 2019 में निर्माण कार्य दोबारा शुरू हुआ.
हालांकि, इसके तुरंत बाद एक प्राकृतिक आपदा आई.
जून 2020 में परियोजना स्थल के पास भूस्खलन हुआ, जिससे बांध तक पहुंचने वाली सड़क कट गई.
2021, 2022 और 2023 में भी भूस्खलन ने निर्माण कार्य को बाधित किया. आखिरकार 2024 में काम ने फिर से रफ्तार पकड़ी.
ब्रह्मपुत्र पर अन्य बांध
भारत अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए आधा दर्जन से अधिक हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का निर्माण कर रहा है. इनमें सबसे बड़ी 11,200 मेगावॉट की सियांग बहुउद्देश्यीय परियोजना है, जो स्थानीय विरोध के कारण देरी में फंसी हुई है.
2,000 मेगावॉट की सुबनसिरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के अलावा, एनएचपीसी ऊपरी सुबनसिरी में 1,650 मेगावॉट की एक और जलविद्युत परियोजना का निर्माण करेगा.
एक दूसरी 2,880 मेगावॉट की बहुउद्देश्यीय परियोजना निचली दिबांग घाटी में दिबांग नदी पर निर्माणाधीन है.
अरुणाचल प्रदेश के कमले जिले में सुबनसिरी की सहायक नदी कमला पर 1,800 मेगावॉट की एक और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का निर्माण भी जारी है.
दो अन्य परियोजनाएं—186 मेगावॉट की टाटो-1 और 240 मेगावॉट की हेयो हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स—पिछले साल नवंबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर की गई थीं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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