नई दिल्ली: अमेरिका जैसे अपने कुछ करीबी रणनीतिक साझेदारों के दबाव के बावजूद भारत द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को रद्द करने की संभावना नहीं है. अमेरिका को उम्मीद है कि भारत रोक हटाने के फैसले पर ‘पुनर्विचार’ करेगा.
पिछले हफ्ते भारत ने घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिए गेहूं को ‘प्रतिबंधित’ श्रेणी के अंतर्गत लाते हुए, इसके निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया था. जिसका मतलब है कि गेंहू के निर्यात की अनुमति केवल खरीददार देश की सरकार के अनुरोध के आधार पर केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन के बाद ही दी जाएगी.
इस फैसले की यह कहते हुए आलोचना की गई कि भारत के इस कदम से विश्व में खाद्य संकट बढ़ सकता है. तब नरेंद्र मोदी सरकार ने मंगलवार को गेंहू के निर्यात पर पाबंदी के आदेश में ‘कुछ ढ़ील’ देने की घोषणा की. लेकिन केवल 13 मई से पहले सीमा शुल्क विभाग में रजिस्टर गेहूं की खेप को निर्यात की इजाजत दी जाएगी.
शीर्ष स्तर के आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार ने कहा है कि निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला विश्व स्तर पर गेहूं की बढ़ती कीमतों के कारण लिया गया था, जिसने रूस-यूक्रेन संघर्ष के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा के मुद्दों को जन्म दिया है. लेकिन दावा किया कि उसने अन्य देशों की तरह कोई ‘अनुचित और कठोर’ नीतिगत उपाय नहीं अपनाए हैं.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘यूक्रेन संकट और अगले सीजन में फसल खराब होने के मद्देनजर कई देशों ने अपने खाद्य निर्यात पर निर्यात कर के रूप में प्रतिबंध लगा दिया है.’ अधिकारी ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है. पश्चिमी देशों ने भी ‘कोविड संकट के दौरान दवाओं और टीकों को लेकर यही रुख अपनाया था.’
मंगलवार को सरकार ने मिस्र को निर्यात होने वाली गेहूं की 61,500 मीट्रिक टन (एमटी) खेप की अनुमति दी है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि गुजरात में कांडला बंदरगाह पर पहले से ही गेहूं की लोडिंग हो रही थी और मिस्र सरकार द्वारा गेहूं के कार्गो की अनुमति देने के अनुरोध के बाद ढील दी गई.
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संघर्ष और खाद्य सुरक्षा पर यूएनएससी की बैठक में अमेरिका इस मुद्दे को उठाएगा
19 मई को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में संघर्ष और खाद्य सुरक्षा के बीच संबंध पर एक खुली बहस की अध्यक्षता करेंगे, जहां नई दिल्ली के इस फैसले पर चर्चा की जाएगी.
अमेरिका ने भारत से अपने फैसले पर ‘पुनर्विचार’ करने का आग्रह किया है.
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी प्रतिनिधि लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने सोमवार को कहा, ‘हमने भारत के फैसले की रिपोर्ट देखी है. हम देशों को निर्यात को प्रतिबंधित नहीं करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि हमें लगता है कि निर्यात पर कोई भी प्रतिबंध भोजन की कमी को बढ़ा देगा.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘भारत सुरक्षा परिषद में हमारी बैठक में भाग लेने वाले देशों में से एक होगा और हमें उम्मीद है कि वे अन्य देशों द्वारा उठाई जा रही चिंताओं को सुनेंगे और हम उम्मीद करते हैं कि वे उस स्थिति पर पुनर्विचार करेंगे.’
अमेरिका के अनुसार, बहस यह सुनिश्चित करेगी कि बढ़ती खाद्य असुरक्षा कमजोर देशों में नया संघर्ष और अस्थिरता पैदा न करे.
एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस बीच भारत द्वारा इस बात पर प्रकाश डालने की संभावना है कि उसने चावल के निर्यात को नहीं रोका है, जिससे वह काफी हद तक खाद्य सुरक्षा के मुद्दों को हल करने में सक्षम होगा.
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‘एक रास्ता अभी भी खुला ‘
भारत के गेहूं निर्यात प्रतिबंध को लेकर चिंता केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं है. जर्मन कृषि मंत्री केम ओज़डेमिर ने पिछले हफ्ते स्टटगार्ट में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘अगर हर कोई निर्यात पर प्रतिबंध लगाना या बाजारों को बंद करना शुरू कर देगा है, तो इससे संकट और गहरा हो जाएगा … हम भारत से जी 20 सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालने का आह्वान करते हैं.’
हालांकि, आधिकारिक सूत्रों ने कहा है कि प्रतिबंध तभी हटाया जाएगा जब वैश्विक कीमतों में उछाल आना कम होगा और आपूर्ति स्थिर हो जाएगी.
वाणिज्य सचिव बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने शनिवार को कहा, ‘हम नहीं चाहते कि गेहूं अनियंत्रित तरीके से उन जगहों पर जाए जहां इसकी जमाखोरी हो सकती है या कमजोर देशों की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने का उद्देश्य सफल न हो पाता हो. इसलिए सरकार से सरकार के रास्ते खुले रखे गए हैं.’
मूल अधिसूचना में ‘कुछ ढील’ की घोषणा करते हुए मंगलवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में वाणिज्य मंत्रालय ने यह भी विस्तार से बताया कि निर्यात प्रतिबंध का उद्देश्य तीन मुख्य उद्देश्यों को पूरा करता है- भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और मुद्रास्फीति नियंत्रण, खाद्य संकट का सामना करने वाले देशों की मदद करने और आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की विश्वसनीयता को भी बनाए रखता है.
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस आदेश का उद्देश्य गेहूं की आपूर्ति की जमाखोरी को रोकने के लिए गेहूं बाजार को स्पष्ट दिशा प्रदान करना भी है.
इस बीच भारत द्वारा प्रतिबंध की घोषणा के बाद गेहूं की कीमतों में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. क्योंकि भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है.
(पिया कृष्णनकुट्टी के इनपुट्स के साथ)
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