नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर पुलिस रियासी आतंकी हमले के पीछे संभावित संदिग्धों को पकड़ पाती, जिसके परिणामस्वरूप नौ लोगों की जान चली गई, इससे पहले ही जम्मू क्षेत्र में दो और हमले हो गए. मंगलवार शाम जम्मू के कठुआ और डोडा जिलों में हुए दोहरे हमलों में केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का एक कांस्टेबल मारा गया और छह सुरक्षाकर्मी घायल हो गए.
सेना के पास उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल राजौरी और पुंछ जिलों में कुल 20 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.
सेना प्रमुख जनरल मनोज पाण्डेय ने इस साल की शुरुआत में दोनों सीमावर्ती जिलों में हुए घटनाक्रम को “चिंता का विषय” बताते हुए कहा था कि पाकिस्तान जम्मू में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, क्योंकि घाटी में समग्र सुरक्षा स्थिति में सुधार हो रहा है.
उन्होंने वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पिछले पांच-छह महीनों में राजौरी और पुंछ में आतंकवाद में वृद्धि हुई है. यह चिंता की बात है. उस क्षेत्र में आतंकवाद 2003 में समाप्त हो गया और 2017-18 तक वहां शांति थी. घाटी में स्थिति सामान्य होने के कारण, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमारे विरोधी आतंकवाद को बढ़ावा देने, इस क्षेत्र में छद्म तंजीमों (समूहों) को संचालन करने के लिए प्रोत्साहित करने के मामले में सक्रिय हैं.”
जनरल पाण्डेय और जम्मू-कश्मीर के डीजीपी आरआर स्वैन दोनों ने इस बात पर जोर दिया है कि जम्मू के इन सीमावर्ती जिलों ने 1990 के दशक के अंत और 2003 के बीच अशांत दौर के बाद दशकों तक शांति देखी है.
स्वैन ने पिछले साल 31 दिसंबर को कहा था, “हम जानते हैं कि पुंछ, राजौरी और रियासी ने (अतीत में) हिंसा का दौर देखा है. हम उस स्थिति (1997-2003) और इस स्थिति को भी ध्यान में रखते हैं। और हम इस अंतर (शांति की अवधि) को उनके (पाकिस्तान के) पक्ष में पाटने की अनुमति नहीं देंगे.”
दिप्रिंट यहां आपको बता रहा है कि कैसे ये हमले 2021 के बाद से जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमलों की चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं.
वायुसेना स्टेशन पर ड्रोन हमला
27 जून, 2021 को पेलोड के साथ दो मानव रहित हवाई वाहन जम्मू वायुसेना स्टेशन के तकनीकी क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गए, जिससे दो कम तीव्रता वाले विस्फोट हुए. उस समय के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने इसे आतंकवादी हमला बताया और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस संबंध में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया. दो दिन बाद, गृह मंत्रालय ने मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया.
इस हमले के बाद से जम्मू में सिलसिलेवार यह घटनाएं होती रहीं. यह पहली बार था जब भारत के महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रतिष्ठान पर ड्रोन द्वारा हमला किया गया था, जो संभवतः आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा (एलईटी) द्वारा संचालित था.
पुंछ में घात लगाकर हमला
उसी साल 11 अक्टूबर को सीमावर्ती जिले पुंछ के सुरनकोट इलाके में डेरा की गली के पास एक खुफिया-आधारित अभियान के दौरान एक जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) सहित पांच सैन्यकर्मी मारे गए थे. 10-11 अक्टूबर की रात को शुरू हुआ तलाशी अभियान 15 दिनों तक जारी रहा और इसके परिणामस्वरूप नौ सैनिक मारे गए.
तब दिप्रिंट ने बताया था कि 11 अक्टूबर को शुरू में पांच सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया गया था, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने घेराबंदी कर तलाशी अभियान चलाया था. इसी अभियान के दौरान पुंछ के जंगल के मेंढर की तरफ एक तलाशी दल पर आतंकवादियों द्वारा की गई गोलीबारी में चार और सैनिक मारे गए. पुंछ में जब मैराथन तलाशी अभियान चल रहा था, तभी पड़ोसी राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा के पास एक माइन विस्फोट में एक लेफ्टिनेंट सहित दो सैन्यकर्मी मारे गए.
2022-23 के बीच: राजौरी-पुंछ का गढ़
जम्मू में अधिकांश आतंकी हमले राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती जिलों में हुए हैं जो पीर पंजाल रेंज के तहत आते हैं.
11 अगस्त, 2022 को सेना ने एक जेसीओ सहित चार कर्मियों को खो दिया, जब दो फिदायीन ने राजौरी जिले के दरहाल क्षेत्र में सेना के एक कैंप पर हमला किया. हमले में घायल एक अन्य जवान ने 10 दिन बाद दम तोड़ दिया.
1 जनवरी 2023 को आतंकवादियों ने राजौरी के ढांगरी गांव में पांच नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी और कई अन्य को गंभीर रूप से घायल कर दिया. इसके बाद अगले दिन आतंकवादियों द्वारा हमला किए गए घरों में से एक में IED विस्फोट हुआ. जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा मामला दर्ज किया गया था, लेकिन NIA ने जांच अपने हाथ में ले ली और अब तक इस मामले के संबंध में एक नाबालिग सहित तीन मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिन पर कथित तौर पर लश्कर से जुड़े आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप है.
सेना को पिछले अप्रैल में एक और झटका लगा था, जब उसके पांच जवान आतंकवादियों के हमले की चपेट में आ गए थे. आतंकवादियों ने पुंछ जिले में सेना के एक वाहन पर गोलीबारी की और ग्रेनेड फेंके. दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि आतंकवादियों ने उचित रेकी करने के बाद सेना के एकमात्र वाहन को निशाना बनाया था और सिल्वर कोर बुलेट का इस्तेमाल किया था, जो बख्तरबंद ढालों को भी भेद सकती है.
उसी साल मई में सेना की एलाइट 9 पैरा एसएफ के पांच जवान, जो पुंछ में घात लगाकर हमला करने वालों की तलाश कर रहे थे, राजौरी सेक्टर के घने कंडी वन क्षेत्र में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे.
जुलाई में सुरक्षा बलों ने पुंछ के सुरनकोट तहसील के सिंधारा टॉप क्षेत्र में चार आतंकवादियों को सफलतापूर्वक ट्रैक किया और उन्हें मार गिराया. सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक संयुक्त टीम ने 17-18 जुलाई की रात को ऑपरेशन चलाया.
लेकिन नवंबर में, सेना को एक और झटका लगा, जब राजौरी के कालाकोट क्षेत्र में बाजी मल अपर जंगलों में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में दो कैप्टन रैंक के अधिकारियों सहित उसके पांच जवान मारे गए.
उसी महीने बाद में सुरक्षा अधिकारियों ने दो आतंकवादियों को मार गिराया, जिसमें लश्कर का एक कमांडर भी शामिल था, जिसके बारे में माना जाता है कि वह जनवरी में ढांगरी गांव में नागरिकों पर हमले और मई 2023 में कंडी जंगल में घात लगाकर हमला करने के पीछे था.
हालांकि, दिसंबर में पुंछ जिले में डेरा की गली से गुजर रहे एक काफिले के दो वाहनों पर आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर हमला करने के बाद सेना को चार और हताहतों का सामना करना पड़ा. हमले के बाद चलाए गए तलाशी अभियान में विवाद तब शुरू हुआ जब सेना द्वारा तीन नागरिकों को हिरासत में लिए जाने के आरोप सामने आए, जिनकी कथित तौर पर हिरासत में मौत हो गई.
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अज्ञात संदिग्धों के खिलाफ हत्या के लिए एक एफआईआर दर्ज की और सेना ने ऑपरेशन के बाद कोर्ट ऑफ इंक्वायरी शुरू की.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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