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Wednesday, 20 November, 2024
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अफगानिस्तान के राजदूत बोले- भारत, रूस और चीन एकजुट हों तो तालिबान को करना पड़ेगा बहुत दबाव का सामना

दिप्रिंट को दिए एक विशेष इंटरव्यू में अफगान राजदूत फरीद मामुन्दजई ने क्षेत्रीय ताकतों के ‘एकजुट’ होने का आह्वान किया और साथ ही तालिबान द्वारा समर्थित उन आतंकवादी समूहों के बारे में चेतावनी दी जिनकी ‘क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं’ हैं.

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नई दिल्ली: भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुन्दजई ने कहा कि अगर भारत, रूस और चीन अफगानिस्तान के हालातों पर आम सहमति बना लेते हैं, तो तालिबान को काफी अधिक क्षेत्रीय दबाव का सामना करना पड़ेगा.

दिप्रिंट को दिए एक विशेष इंटरव्यू में, अफगानिस्तान की पूर्व अशरफ गनी सरकार द्वारा साल 2020 में नियुक्त इन राजदूत ने भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान जैसे क्षेत्रीय ताकतों से अफगानिस्तान के मसले पर ‘एकजुट’ होने का आह्वान किया.

साथ ही, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित एक क्षेत्रीय वार्ता में भाग लेने के लिए इस महीने होने वाली मॉस्को की संभावित यात्रा सही दिशा में उठाया गया एक कदम है.

मामुन्दजई ने कहा, ‘‘इस क्षेत्र की भी एक ज़िम्मेदारी है, मगर अफसोस की बात है कि ऐसा हो नहीं रहा है. हमारे पास भारत, चीन, रूस के साथ-साथ पाकिस्तान और ईरान सहित इस क्षेत्र में स्थित कई अहम और ताकतवर देश हैं. उन्हें एकजुट होने की ज़रूरत है.’’

अफगान राजदूत ने कहा, ‘‘यदि हमारे पास रूस, चीन और भारत एकराय के साथ होते, तो तालिबान को बहुत अधिक क्षेत्रीय दबाव का सामना करना पड़ता. आज ऐसा नहीं है, लेकिन एनएसए की मॉस्को यात्रा सही दिशा में उठाया गया कदम है.’’

बता दें कि अफगानिस्तान पर केंद्रित एक क्षेत्रीय चर्चा के लिए भारत, पाकिस्तान, चीन और मध्य एशियाई देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के इस महीने मॉस्को में मिलने की उम्मीद है.

पिछले साल मई में भी ताजिकिस्तान के दुशांबे में क्षेत्र के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के बीच अफगानिस्तान पर बहुपक्षीय वार्ता आयोजित की गई थी.

अफगान राजदूत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की भारत द्वारा की जा रही अध्यक्षता के बारे में काफी आशाएं व्यक्त की और साथ ही यह भी कहा कि साल 2005 में स्थापित एससीओ-अफगानिस्तान संपर्क समूह इस समय के लिए ज़रूरी ‘गहन बातचीत’ का प्रकार है. इसके अलावा उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा संरक्षित और समर्थित कई आतंकवादी समूह हैं जिनकी ‘क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं’ हैं.

पिछले साल 16 सितंबर को भारत ने चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान सहित 8-सदस्यीय SCO की रोटेटिंग प्रेसिडेंसी (सदस्यों को बारी-बारी से मिलने वाली अध्यक्षता) संभाली थी.


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‘तालिबान प्रतिनिधि के साथ काम करना मुश्किल’

फिलहाल, भारत सरकार की काबुल में कोई राजनयिक उपस्थिति नहीं है, जबकि नई दिल्ली स्थित मौजूदा अफगान दूतावास उन अफगान अधिकारियों द्वारा चलाया जा रहा है जो पूर्व अशरफ गनी सरकार का हिस्सा थे.

पिछली 12 जनवरी को दिप्रिंट ने खबर दी थी था कि तालिबान ने भारत सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि वह उसे नई दिल्ली में अपना एक नुमाइंदा (प्रतिनिधि) तैनात करने की इज़ाज़त दें और तालिबान शासन के विदेश मंत्रालय के विवादास्पद प्रवक्ता अब्दुल कहर बाल्खी इस भूमिका के लिए एक प्रस्तावित उम्मीदवार हैं.

इन घटनाक्रमों पर टिप्पणी करते हुए, मामुन्दजई ने कहा, ‘‘यह भारत सरकार पर निर्भर करता है कि क्या वे दिल्ली में उनके राजनयिकों को मान्यता देने के तालिबान के अनुरोध के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं या नहीं. मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. एक पूर्व राजनयिक प्रतिनिधि के रूप में हम तब तक बने रहेंगे जब तक इसकी ज़रूरत है.’’

उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि अगर तालिबान का कोई प्रतिनिधि दिल्ली आता है, तो ‘‘किसी भी राजनयिक मिशन में काम करने वाला कोई भी सम्मानजनक और गरिमापूर्ण शख्श वहां से बाहर निकलना चाहेगा.’’

उन्होंने कहा, ‘‘दो प्रतिस्पर्धी एजेंडे के साथ कोई भी मिशन बनाना मुश्किल होगा.’’

अफगान राजदूत ने स्पष्ट किया कि यदि अफगानिस्तान के लोग तालिबान के शासन को स्वीकार करते हैं तो उन्हें तालिबान प्रतिनिधि के साथ काम करने में कोई समस्या नहीं होगी.


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ई-वीजा मुद्दे पर ‘लगातार बनी है चिंता’

अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता हथियाने जाने के बाद इस युद्धग्रस्त देश से भाग रहे अफगानों हेतु ‘आपातकालीन ई-वीजा’ शुरू करने वाला पहला देश भारत ही था.

हालांकि, जैसा कि अनुमान बताते हैं, पिछले डेढ़ साल में अफगानों को लगभग 300 ही ऐसे वीज़ा जारी किए गए हैं, जिनमें ज्यादातर सिख और हिंदू लोगों के लिए हैं; जबकि भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने वाले कई अफगान छात्र अभी भी वहां फंसे हुए हैं.

मामुन्दजई ने कहा, ‘‘ई-वीज़ा जारी किया जाना पिछले 19 महीनों में कई अफगानों के लिए लगातार बनी हुई चिंता का विषय रहा है. भारत में अधिकारियों द्वारा जो दृष्टिकोण अपनाया गया है उसके बारे में हमें उम्मीद नहीं थी कि अफगानों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाएगा.’’

राजनयिक ने कहा, ‘‘पाकिस्तान और ईरान की तरह भारत भी (बाहर भाग रहे अफगानों के लिए) एक पारगमन (ट्रांजिट) देश की भूमिका निभा सकता था.’’

उन्होंने आगे यह दलील नहीं दी कि अमेरिका जैसे कई अन्य देश, जिनकी अफगानिस्तान में कोई राजनयिक उपस्थिति नहीं है अभी भी वहां से बाहर जाने वाली उड़ानों और वीज़ा प्रोसेसिंग की इज़ाज़त दे रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं यह बात कर रहा हूं, उस समय में काबुल से तीन ऐसी साप्ताहिक उड़ानें चल रही हैं जो अफगानों को अमेरिका जाने के लिए वहां से बाहर निकालने का काम कर रहीं हैं. काबुल में उनकी कोई मौजूदगी नहीं है. कई अन्य देश हैं, जिनकी काबुल में कोई मौजूदगी नहीं है फिर भी उनके वीज़ा प्रोसेस किए जा रहे हैं.’’

उन्होंने भारत सरकार से ई-वीज़ा नीति की जल्द समीक्षा करने का आग्रह किया.

पिछले साल नवंबर में, नई दिल्ली स्थित अफगानिस्तान के दूतावास में व्यापार कार्यालय के प्रमुख (परामर्शदाता) कादिर शाह ने दिप्रिंट को बताया था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला-दिल्ली में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम के दौरान अफगान व्यापारियों की संख्या में काफी वृद्धि देखी गई थी, लेकिन बड़ी संख्या में लोग अभी भी ई-वीज़ा से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

शाह ने कहा था कि उस मेले में भाग लेने के लिए अफगानिस्तान के व्यापारियों और व्यावसायिक संगठनों द्वारा 50 से अधिक अनुरोध किए गए थे, लेकिन उनमें से अधिकांश भारत के लिए ई-वीज़ा हासिल करने में नाकामयाब रहें.

(अनुवादः रामलाल खन्ना | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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